विश्व इतिहास का अनूठा महानायक – लोकतन्त्र के प्रथम संस्थापक

जन्म दिवस- 18 जुलाई 2018 पर विशेष
– ललित गर्ग-

दुनिया में अनेक महापुरुषों की स्मृति को क्षीण होते हुए देखा है, लेकिन नेल्सन मंडेला इसके अपवाद है। उनके जीवित रहते समय जितना उनको सम्मान प्राप्त हुआ, उससे कहीं अधिक उनकी मृत्यु के बाद उन्हें समूची दुनिया ने आदर दिया है। पिछले कुछ वर्षों में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उनके प्रति जितनी उत्सुकता बढ़ी है, वह उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर एक महानायक एवं रंगभेद विरोधी संघर्ष के सूत्रधार के रूप में उनकी छवि को निर्मित करता है। हर एक महापुरुष इतिहास की निर्मिति होता है। उसे उसके समाज में ही व्यक्तित्व प्राप्त होता है, किन्तु महापुरुष की यह विशेषता होती है कि वह जिस तरह इतिहास की निर्मिति होता है, ठीक उसी तरह अपने समय का निर्माता भी होता है। वे सम्पूर्ण दुनिया की मानव जाति को अपनी परिधि में लाने वाले राजनीतिक आन्दोलन के जननायक थे। उनके योगदान का एक लम्बा इतिहास है। वैश्विक स्तर पर आमूलचूल परिवर्तन करना है तो मंडेला के क्रांतिकारी दर्शन को सामने रखना होगा।

दक्षिण अफ्रीका के लोग मंडेला को व्यापक रूप से “राष्ट्रपिता” मानते थे। उन्हें “लोकतन्त्र के प्रथम संस्थापक”, ”राष्ट्रीय मुक्तिदाता और उद्धारकर्ता” के रूप में देखा जाता था। 2004 में जोहनसबर्ग में स्थित सैंडटन स्क्वायर शॉपिंग सेंटर में मंडेला की मूर्ति स्थापित की गयी और सेंटर का नाम बदलकर नेल्सन मंडेला स्क्वायर रख दिया गया। दक्षिण अफ्रीका में प्रायः उन्हें मदी बाकह कर बुलाया जाता है जो बुजुर्गों के लिये एक सम्मान-सूचक शब्द है। नवम्बर 2009 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने रंगभेद विरोधी संघर्ष में उनके योगदान के सम्मान में उनके जन्मदिन (18 जुलाई) को ‘मंडेला दिवस’ घोषित किया। मंडेला को विश्व के विभिन्न देशों और संस्थाओं द्वारा 250 से भी अधिक सम्मान और पुरस्कार प्रदान किए गए हैं।
नेल्सन मंडेला का मानना था कि दृढ़ता, जिद्द और विश्वास से हम अपने हर सपने को पूरा कर सकते हैं। उन्होंने कहा था कि जब आप कुछ करने की ठान लेते हैं तो आप किसी भी चीज पर काबू पा सकते हैं। वे यह भी कहते थे कि अगर आप अपने काम के लिए समर्पित और उत्साही हैं तो सफलता आपके कदम चूमेगी। इन्हीं विचारों के आधार पर उन्होंने सम्पूर्ण मानव जाति के हित में आलोक फैलाया। वे आदर्शों एवं मानवता की पराकाष्ठा थे।

दक्षिण अफ्रीका के लोग मंडेला को व्यापक रूप से “राष्ट्रपिता” मानते थे। उन्हें “लोकतन्त्र के प्रथम संस्थापक”, ”राष्ट्रीय मुक्तिदाता और उद्धारकर्ता” के रूप में देखा जाता था। 2004 में जोहनसबर्ग में स्थित सैंडटन स्क्वायर शॉपिंग सेंटर में मंडेला की मूर्ति स्थापित की गयी और सेंटर का नाम बदलकर नेल्सन मंडेला स्क्वायर रख दिया गया। दक्षिण अफ्रीका में प्रायः उन्हें मदी बाकह कर बुलाया जाता है जो बुजुर्गों के लिये एक सम्मान-सूचक शब्द है। नवम्बर 2009 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने रंगभेद विरोधी संघर्ष में उनके योगदान के सम्मान में उनके जन्मदिन (18 जुलाई) को ‘मंडेला दिवस’ घोषित किया। मंडेला को विश्व के विभिन्न देशों और संस्थाओं द्वारा 250 से भी अधिक सम्मान और पुरस्कार प्रदान किए गए हैं।
नेल्सन मंडेला का मानना था कि दृढ़ता, जिद्द और विश्वास से हम अपने हर सपने को पूरा कर सकते हैं। उन्होंने कहा था कि जब आप कुछ करने की ठान लेते हैं तो आप किसी भी चीज पर काबू पा सकते हैं। वे यह भी कहते थे कि अगर आप अपने काम के लिए समर्पित और उत्साही हैं तो सफलता आपके कदम चूमेगी। इन्हीं विचारों के आधार पर उन्होंने सम्पूर्ण मानव जाति के हित में आलोक फैलाया। वे आदर्शों एवं मानवता की पराकाष्ठा थे।
नेल्सन मंडेला लम्बे संघर्षों की निष्पत्ति थे। उन्होंने कहा कि मेरी सफलता को देखकर कोई राय मत बनाइए। आप देखिए कि मैं कितनी बार गिरा हूं और फिर दोबारा कैसे अपने पैरों पर खड़ा हुआ हूं। मुसीबतें किसी को तोड़ती हैं तो किसी को मजबूत भी बनाती हैं। कोई भी कुल्हाड़ी इतनी तेज नहीं होती कि वो लगातार प्रयास करने वाले के हौसले को तोड़ सके।
महात्मा गांधी ने रंगभेद के खिलाफ अगर अपना संघर्ष दक्षिण अफ्रीका में शुरू किया, तो नेल्सन मंडेला ने उसी जमीन पर गांधी की विरासत को आगे बढ़ाया। भारत का जितना गहरा रिश्ता दक्षिण अफ्रीका से है, उतना ही नेल्सन मंडेला से भी। मंडेला इस दुनिया में एक युग के तौर पर जाने जाते हैं। दक्षिण अफ्रीका का इतिहास उनके पहले और उनके बाद के काल के तौर पर तय किया जाएगा। वे किसी सरहद में बंधने वाले शख्स नहीं थे। उन्होंने दुनिया की लोकचेतना को जगाया। यही कारण है कि उन्हें भारत सरकार ने ‘भारत रत्न’ प्रदत्त किया तो बाद में उन्हें पाकिस्तान का सबसे बड़ा सम्मान ‘निशाने पाकिस्तान’ भी मिला। मंडेला भारत के भी थे, पाकिस्तान के भी। वे चीन और अमेरिका के भी थे। पूरी दुनिया के थे।
नेल्सन मंडेला ने बीसवीं सदी में एक राष्ट्रनायक के रूप में अपना किरदार निभाया। एक तरह से सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिवर्तनों की बागडोर इस महारथी के हाथ में रही। राजतंत्र, उपनिवेशवाद और लोकतंत्र के संधिकाल वाली इस सदी में अपने देश का परचम थामे इस राजनेता ने विश्व इतिहास की इबारत अपने हाथों से लिखी। उन्होंने अपने देश को एक राष्ट्र के रूप में विश्व के मानचित्र पर स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
दक्षिण अफ्रीका की प्रिटोरिया सरकार का शासनकाल मानव सभ्यता के इतिहास में ‘चमड़ी के रंग’ और नस्ल के आधार पर मानव द्वारा मानव पर किए गए अत्याचारों का सबसे काला अध्याय है। वह दुनिया की एकमात्र ऐसी सरकार थी, जिसने जातीय पृथक्करण एवं रंगभेद पर आधारित लिखित कानून बना रखा था। वहां के 75 प्रतिशत मूल अश्वेत अपनी ही जमीन पर बेगाने हो गए और बाहर से आए 15 प्रतिशत गोरी चमड़ी वाले 87 प्रतिशत भू-भाग के मालिक थे, उन पर शासन करते, अत्याचार करते थे। इन विकट एवं बर्बर स्थितियों में नेल्सन मंडेला ने खून का घूंट पीकर, ड्राइवर, दरबान और भृत्य के रूप में निर्वासित जीवन जीकर और जेल में क्रूर यातनाएं सहकर भी दक्षिण अफ्रीका को बीसवीं सदी के अंतिम मोड़ पर आजाद करवा ही दिया। समंदर के किनारे और किताब के पन्ने तक गोरों ने अपने लिए सुरक्षित करा रखे थे। वहां केवल अफ्रीका के अश्वेतों पर नहीं बल्कि अन्य देशों के लोगों पर भी रंग के आधार पर जुल्म किए जाते थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है गांधीजी, जिनका सामान वहां ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया और घोड़ा-गाड़ी पर बैठने के लिए चढ़ने के दौरान उन पर चाबुक बरसाए गए। जब सारी दुनिया के लोग आजादी की सांस ले रहे थे, तब भी बीसवीं सदी के अंतिम पड़ाव तक दक्षिण अफ्रीका इन काले अंधेरों में क्रंदन कर रहा था। नेल्सन मंडेला ने बर्बरता और अत्याचार के स्याह घेरे को तोड़ने का कालजयी और पराक्रमी कार्य किया। जिस प्रकार अन्य लोगों के योगदान के बावजूद भारत की आजादी की लड़ाई के आदर्श नायक गांधीजी हैं, उसी प्रकार दक्षिण अफ्रीका की आजादी के महानायक और मसीहा हैं नेल्सन मंडेला। अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस और उसकी यूथ लीग के माध्यम से गोरी सरकार के खिलाफ संघर्ष का जो मंत्र उन्होंने फूंका, वो प्राणशक्ति अफ्रीका के लोगों में आजादी मिलने तक कायम रही। 5 अगस्त 1962 को गिरफ्तार होने के बाद 64 में बहुचर्चित ‘रिवोनिया’ मुकदमे में उन्हें आजन्म कैद की सजा सुनाई गई। साढ़े सत्ताईस साल का कारावास भी उनके बुलंद इरादों और संकल्पशक्ति को कैद न कर सका बल्कि उनके आत्मबल ने लोहे की सलाखों को भी पिघला दिया। जेल की चहारदीवारी के भीतर जैसे-जैसे मंडेला की उम्र बूढ़ी होती गई, लेकिन उनके इरादे और दक्षिण अफ्रीका का स्वतंत्रता आंदोलन जवान होता गया। जेल के भीतर और बाहर वे जननायक बने रहे।
नेल्सन मंडेला को अफ्रीका का गाँधी कहा जाता है, देश में हो रहे अश्वेतों के प्रति भेदभाव को देखते हुए नेल्सन मंडेला ने अहिंसा का मार्ग अपनाया, वे महात्मा गांधी और अब्राहम लिंकन को प्रेरणास्त्रोत मानते थे और उन्ही के बताये अहिंसा के मार्ग पर चलकर उन्होंने देश में रंग के आधार पर हो रहे भेदभाव को समाप्त किया और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बने। उन्होंने सभी समस्यों को खत्म करने के लिए राजनीति का मार्ग अपनाया, उन्होंने कई लोगों को न्याय दिलाया, कई आन्दोलन किये और कई बार जेल भी गए, लेकिन वे राजनीति से पीछे नहीं हटे।
अफ्रीका के गाँधी कहे जाने वाले नेल्सन मंडेला का जन्म ट्रांस्की के म्वेजो गाँव में 18 जुलाई 1918 को हुआ था। उनकी माता का नाम नेक्यूफी नोसकेनी था, जो एक मेथोडिस्ट थीं और पिता का नाम गेडला हेनरी मंडेला था, जो म्वेजो कस्बे के सरदार (प्रधान) थे। नेल्सन मंडेला ने अपनी प्रारंभिक पढाई क्लार्कबेरी मिशनरी स्कूल से की, और उसके बाद की पढ़ाई मेथोडिस्ट मिशनरी स्कूल से की। 1940 में नेल्सन मंडेला ने अपनी स्नातक की शिक्षा हेल्डटाउन कॉलेज में पूरी कर ली थी।
नेल्सन ने आजादी की लड़ाई में अपना सौ फीसद योगदान दिया। उन्होंने जब सक्रिय राजनीति से संन्यास लिया तो लोग समझने लगे कि नेल्सन अब रिटायर हो गए हैं, लेकिन वे खुद ऐसा नहीं मानते थे। वे अब ज्यादा सक्रिय हो गये, उन्होंने कहा था-मैंने एक सपना देखा है, सबके लिए शांति हो, काम हो, रोटी हो, पानी और नमक हो। जहां हम सबकी आत्मा, शरीर और मस्तिष्क को समझ सके और एक-दूसरे की जरूरतों को पूरा कर सकें। ऐसी दुनिया बनाने के लिए अभी मीलों चलना बाकी है। हमें अभी चलना है, चलते रहना है।
नेल्सन मंडेला 10 मई 1994 को दक्षिण अफ्रीका के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति बने। रंगभेद विरोधी संघर्ष के कारण उन्होंने 27 साल के लिए रॉबेन द्वीप के कारागार में डाल दिया गया, जहां उन्हें कोयला खनिक का काम करना पड़ा। वर्ष 1990 में श्वेत सरकार से हुए एक समझौते के बाद उन्होंने नए दक्षिण अफ्रीका का निर्माण किया। आज के तीव्रता से बदलते समय में, हमें उन्हें तीव्रता से सामने रखकर दुनिया की रचना करनी चाहिए। यदि हमें सचमुच आदर्श समाज की रचना करनी है तो मंडेला के बताये मार्ग पर आगे बढ़ना ही होगा।

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