सोमवार, 16 अप्रैल ;अमावस्या- कालसर्प दोष की शांति के लिए बहुत खास

वं वृक्षाकाराय नमः शिवाय वं॥   हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल की खास प्रस्‍तुति

सोमवार, 16 अप्रैल को हिन्दी पंचांग के अनुसार वैशाख मास की अमावस्या है। सोमवार और अमावस्या के योग की वजह से इसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है। इस दिन नकारात्मक शक्तियां ज्यादा सक्रिय रहती हैं जो कि  नुकसान पहुंचा सकती हैं।अमावस्या शुभ व अशुभ भी हो सकती है। अमावस्या पर पवित्र नदियों में स्नान करने और दान-पुण्य करने की मान्यता है। सुबह जल्दी उठें। पानी में काले तिल डाल कर स्नान करें। इसके बाद सूर्य को जल चढ़ाएं। अमावस्या पर पूजा-पाठ करने से देवी-देवताओं की विशेष कृपा मिलती है। अमावस्या पर पति-पत्नी को दूरी बनाकर रखना चाहिए। इस रात में संबंध बनाने से बचें। इस साल सोमवती अमावस्या पर सूर्य-चंद्रमा मेष राशि और अश्विनी नक्षत्र में रहेंगे। वैशाख मास और अश्विनी नक्षत्र का ये संयोग 17 साल बाद बन रहा है। इसके बाद ऐसा शुभ संयोग 10 साल बाद 24 अप्रैल 2028 को बनेगा। सात्विक और देवगण वाले इस नक्षत्र के साथ सोमवार और अमावस्या का संयोग बनने से ये दिन पितृ पूजा, पितृ दोष और कालसर्प दोष की शांति के लिए बहुत खास हो गया है।

सांसारिक जीवन में गृहस्थ जीवन में विधि विधान से रहना भी एक बडा कार्य है- हिमालयायूके का फोकस- वैशाख अमावस्या की तिथि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 16 अप्रैल को सोमवार के दिन है। सोमवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या बहुत ही सौभाग्यशाली फल देने वाली सोमवती अमावस्या कहलाती है। धार्मिक और सांस्कृतिक तौर पर वैशाख महीने का बहुत अधिक महत्व माना जाता है। हिन्दू मान्यताओं में यह दिन बहुत महत्व रखता है तथा इस दिन कुछ लोग अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं तथा प्रसाद चढ़ाते हैं। अमावस्या शुभ व अशुभ भी हो सकती है।

ग्रह दोष विशेषकर काल सर्प दोष से मुक्ति पाने के लिये भी अमावस्या तिथि पर ही ज्योतिषीय उपाय भी अपनाये जाते हैं। अमावस्या चंद्रमास के कृष्ण पक्ष का अंतिम दिन माना जाता है इसके पश्चात चंद्र दर्शन के साथ ही शुक्ल पक्ष की शुरूआत होती है। पूर्णिमांत पंचांग के अनुसार यह मास के प्रथम पखवाड़े का अंतिम दिन होता है तो अमावस्यांत पंचांग के अनुसार यह दूसरे यानि अंतिम पखवाड़े का अंतिम दिन होता है। धर्म-कर्म, स्नान-दान, तर्पण आदि के लिये यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। ग्रह दोष विशेषकर काल सर्प दोष से मुक्ति पाने के लिये भी अमावस्या तिथि पर ही ज्योतिषीय उपाय भी अपनाये जाते हैं। वैशाख हिंदू वर्ष का दूसरा माह होता है। मान्यता है कि इसी माह से त्रेता युग का आरंभ हुआ था इस कारण वैशाख अमावस्या का धार्मिक महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। दक्षिण भारत में तो अमावस्यांत पंचांग का अनुसरण करने वाले वैशाख अमावस्या को शनि जयंती के रूप में भी मनाते हैं। आइये जानते हैं वैशाख अमावस्या की व्रत कथा व इसके महत्व के बारे में।

किसी पवित्र नदी में स्नान करें और स्नान करते हुए सूर्य को जल चढ़ाएं। इस दिन पीपल की पूजा करनी चाहिए। पीपल को जल चढ़ाएं और सात परिक्रमा करें। शिवलिंग पर तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं और बिल्व पत्र अर्पित करें। किसी गरीब को घर में बैठाकर खाना खिलाएं। हनुमानजी के सामने तेल का दीपक जलाकर हनुमान चालीसा का पाठ करें। शनि चालीसा का पाठ भी कर सकते हैं या फिर शनि मंत्रों का जाप कर सकते हैं।

वैशाख अमावस्या के महत्व को बताने वाली एक कथा भी पौराणिक ग्रंथों में मिलती है। कथा कुछ यूं है कि बहुत समय पहले की बात है। धर्मवर्ण नाम के एक ब्राह्मण हुआ करते थे। वह बहुत ही धार्मिक प्रवृति के थे। व्रत-उपवास करते रहते, ऋषि-मुनियों का आदर करते व उनसे ज्ञान ग्रहण करते। एक बार उन्होंने किसी महात्मा के मुख से सुना कि कलियुग में भगवान विष्णु के नाम स्मरण से ज्यादा पुण्य किसी भी कार्य में नहीं है। अन्य युगों में जो पुण्य यज्ञ करने से प्राप्त होता था उससे कहीं अधिक पुण्य फल इस घोर कलियुग में भगवान का नाम सुमिरन करने से मिल जाता है। धर्मवर्ण ने इसे आत्मसात कर लिया और सांसारिकता से विरक्त होकर सन्यास लेकर भ्रमण करने लगा। एक दिन भ्रमण करते-करते वह पितृलोक जा पंहुचा। वहां धर्मवर्ण के पितर बहुत कष्ट में थे। पितरों ने उसे बताया कि उनकी ऐसी हालत धर्मवर्ण के सन्यास के कारण हुई है क्योंकि अब उनके लिये पिंडदान करने वाला कोई शेष नहीं है। यदि तुम वापस जाकर गृहस्थ जीवन की शुरुआत करो, संतान उत्पन्न करो तो हमें राहत मिल सकती है। साथ ही वैशाख अमावस्या के दिन विधि-विधान से पिंडदान करे। धर्मवर्ण ने उन्हें वचन दिया कि वह उनकी अपेक्षाओं को अवश्य पूर्ण करेगा। तत्पश्चात धर्मवर्ण अपने सांसारिक जीवन में वापस लौट आया और वैशाख अमावस्या पर विधि विधान से पिंडदान कर अपने पितरों को मुक्ति दिलाई।

सोमवती अमावस्या को शास्त्रों ने अमोघ फलदायनी कहा है। मत्स्यपुराण के अनुसार पितृओं ने अपनी कन्या आच्छोदा के नाम पर आच्छोद नामक सरोवर का निर्माण किया था। इसी सरोवर पर आच्छोदा ने पितृ नामक अमावस से वरदान पाकर अमावस्या पंचोदशी तिथि को पितृओं हेतु समर्पित किया। शास्त्रनुसार इस दिन कुश को बिना अस्त्र शस्त्र के उपयोग किए उखाड़ कर एकत्रित करने का विधान है। अतः इस दिन एकत्रित किए हुए कुश का प्रभाव 12 वर्ष तक रहता है। यह दिन पितृ के निमित पिण्डदान, तर्पण, स्नान, व्रत व पूजन का विशेष महत्व है। इस दिन तीर्थ के नदी-सरोवरों में तिल प्रवाहित करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है। इस दिन मौन व्रत रखने से सहस्र गोदान का फल मिलता। सोमवती अमावस्या पर शिव आराधना का विशेष महत्व है। इस दिन सुहागने पति की दीर्घायु के लिए पीपल में शिव वास मानकर अश्वत का पूजन कर परिक्रमा करती हैं। आज के विशेष पूजन से सर्वार्थ सफलता मिलती है, पितृ दोष से मुक्ति मिलती है तथा सुहाग की रक्षा होती है। 

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