2014 वाले नतीजे अब नामुमकिन- राजनैतिक गलियारों में हलचल मची

बीजेपी की तरफ से 2014 वाले नतीजे दोहराए जाने की बातें अब बीएसपी और एसपी गठबंधन की औपचारिक घोषणा के बाद बेमानी  #एक नपा-तुला गठबन्धन और जिताऊ प्रत्याशियों के माध्यम से ही बीजेपी को मात दी जा सकती है और शायद यही वजह है कि आने वाले हफ्तों में कुछ और अप्रत्याशित ऐलान होने भी संभव हैं. लोकसभा चुनावों की सबसे बड़ी राजनैतिक खबर को जन्म देकर एक बार फिर राजनैतिक गलियारों में हलचल मचा दी है. पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार, शनिवार दोपहर ठीक 12 बजे लखनऊ के एक पांच सितारा होटल में जब बीएसपी प्रमुख सुश्री मायावती और एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव एक मंच पर आए तो गठबंधन के औपचारिक ऐलान के बाबत उपस्थित मीडियाकर्मियों की सरगर्मी देखने लायक थी.

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 चर्चा इन दिनों आम है कि बीजेपी के कुछ मौजूदा सांसदों ने पिछले दिनों अखिलेश यादव से कई बार भेंट मुलाकात की है और उनमे से कई अब पाला बदलने की राह पर हैं. ऐसे में उत्तर प्रदेश के राजनैतिक खेमों में पेशबंदी और गुटबाजी का सीधा फायदा गठबंधन को मिलने की पूरी उम्मीद है. # बीजेपी के अंदरखाने में चल रही सरगर्मियों से साफ ज़ाहिर है कि इस गठबंधन का डर अच्छा खासा है.# अखिलेश यादव और मायावती ने कांग्रेस को अलग रखकर सूबे में गठबंधन का ऐलान कर दिया है. सीटों के बंटवारे भी हो गए हैं और दोनों दलों ने 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ने की सहमति देते हुए 2-2 सीटें कांग्रेस और सहयोगी दल राष्ट्रीय लोक दल के लिए रिक्त छोड़ी हैं. अमेठी और रायबरेली सीट पर गठबंधन अपने उम्मीदवार नहीं उतारेगा, लेकिन कुछ सीटों पर कांग्रेस के मजबूत प्रत्याशियों के समक्ष कुछ गैर नामचीन उम्मीदवार भी गठबंधन की ओर से उतारे जा सकते हैं.  2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 39.6% वोट मिले तो एसपी और बीएसपी को 22 प्रतिशत वोट मिले थे कांग्रेस को मात्र 6 प्रतिशत वोट ही मिले थे. एसपी-बसपा के वोटों को मिला दें तो 44 फीसदी हो जाता है और इसी जादुई आंकड़े ने अखिलेश और मायावती दोनों ही के जेहन में उम्मीदें जगा रखी हैं.

उत्तर प्रदेश में 22 प्रतिशत दलित मतदाता हैं, जिनमें 14 फीसदी जाटव और चमार समुदाय के मतदाता शामिल हैं, शेष 8 प्रतिशत दलित मतदाताओं में पासी, धोबी, खटीक मुसहर, कोली, वाल्मीकि, गोंड, खरवार सहित 60 अन्य जातियां हैं. प्रदेश में 45 प्रतिशत के करीब अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता हैं, जिनमें 10 प्रतिशत यादव, 5 प्रतिशत कुर्मी, 5 प्रतिशत मौर्य, 4 प्रतिशत लोधी और 2 प्रतिशत जाट मतदाता हैं. बाकी 19 प्रतिशत में गुर्जर, राजभर, बिंद, बियार, मल्लाह, निषाद, चौरसिया, प्रजापति, लोहार, कहार, कुम्हार सहित अन्य कई उपजातियां हैं. इसके अलावा लगभग 19 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता भी हैं जो अब गठबंधन की घोषणा के बाद स्थिर होकर किसी एक प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने के लिए सक्षम होंगे.

 राजनीतिक जानकारों के मुताबिक एसपी बीएसपी के एकजुट होने के बाद चुनावी समीकरण और जातीय गणित निश्चित रूप से भाजपा के लिए चुनावी संघर्ष को वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनावों के मुकाबले ज्यादा कांटे का बनाएंगे। इनकी ताकत को हाल ही गोरखपुर, फूलपुर और कैराना के लोकसभा उपचुनावों में देखा जा चुका है। दलित और यादव वोट एकसाथ होने का सीधा फायदा गठबंधन को होगा जो बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी करेगा।

बहरहाल, इस गठबंधन की पटकथा 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में हार के बावजूद बीसपी के स्थिर वोटबैंक के प्रतिशत को देखने के बाद अखिलेश के बीएसपी के प्रति लचीले रुख से साफ जाहिर होने लगी थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मात देने लिए 23 साल पुरानी दुश्मनी भुलाकर एसपी-बीएसपी ने सूबे में एक बार फिर गठबंधन किया है, और आज की संयुक्त पत्रकार वार्ता के बाद राजनैतिक विश्लेषकों ने भी मान लिया है कि उत्तर प्रदेश की सियासत में नई इबारत लिखी जा रही है.

नब्बे के दशक की शुरुआत में चली राम लहर के बाद बीजेपी को मिले ऐतिहासिक लाभ के बाद 1993 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के ठीक पहले एसपी-बीएसपी का गठबंधन हुआ था. वो दौर मंडल और कमंडल का था जहां एक तरफ हिंदूवादी विचारधारा थी और दूसरी तरफ मंडल के नाम पर देश भर की पिछड़ी जातियां एक छतरी के नीचे आकर खड़ी थीं. मुलायम सिंह यादव पिछड़ा वर्ग के जाति समूहों के बड़े नेता बनकर उभरे थे और राम मंदिर आंदोलन के कारण मुस्लिम मतदाता भी उनके साथ खड़े थे. दूसरी तरफ कांशीराम भी दलित और गैर यादव पिछड़ी जातियों के नेता बनकर उभरे थे. ऐसे में जब दोनों ने हाथ मिलाया तो एक मजबूत समीकरण तैयार हुआ और राम मंदिर की खुमारी में बैठी बीजेपी सत्ता में वापसी नहीं कर पाई थी.

तत्कालीन बीएसपी प्रमुख मान्यवर कांशीराम और तत्कालीन एसपी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने आपसी समझौते के बाद सीटों का बंटवारा किया और एसपी 256 और बीएसपी 164 विधानभा सीटों पर चुनाव लड़ी थी. नतीजे आने के बाद एसपी को 109 और बीएसपी को 67 सीटें मिलीं थीं. बीजेपी 177 सीटें ही जीत पाई थी और एसपी-बीएसपी ने मुलायम के नेतृत्व में सरकार बनाई थी. दोनों दलों के गठबंधन ने पिछड़ा, अति पिछड़ा व मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण अपने पक्ष में करके हिंदुत्व की लहर को खत्म कर दिया था. लेकिन 2 जून, 1995 को गेस्ट हाउस कांड के बाद एसपी-बीसपी के रिश्ते खराब हो गए और गठबंधन टूट गया और साथ ही यादव और दलितों के बीच एक गहरी खाई पैदा हो गई थी.

2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी लहर ने काम को बखूबी अंजाम दिया था और प्रदेश की 80 संसदीय सीटों में से बीजेपी गठबंधन 73 सीटें जीतने में सफल रही थी और शेष 7 सीटें विपक्ष को मिली थीं. नतीजे आने के बाद बीजेपी को 71, अपना दल को 2, कांग्रेस को 2 और एसपी को 5 सीटें मिली थीं, और बीएसपी को कोई सीट नहीं मिल पाई थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को उत्तर प्रदेश में 42.63% वोट मिले थे. एसपी को 22.35%, और बीएसपी को 19.77% वोट मिले थे, कांग्रेस को 7.53 % वोट मिले थे.

मोदी लहर ने 2017 के विधानसभा चुनावों में भी विपक्ष का खासा नुकसान किया और एसपी-बीएसपी समेत कांग्रेस को भी खासा नुकसान उठाना पड़ा था. लेकिन नोटबंदी के दूरगामी नुकसान और प्रदेश सरकार की नीतियों से खफा जनमानस ने एक साल बाद हुए उपचुनावों में ही गठबंधन के प्रत्याशियों के पक्ष में वोट देकर अपनी मंशा साफ कर दी और 3 लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में 2 पर एसपी और एक पर आरएलडी को जीत मिली और बीजेपी के पास सिर्फ 68 सीटें बची रह गई. बीजेपी अपने वर्तमान मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की लोकसभा सीटें भी नहीं बचा पाई थी और इस लिटमस टेस्ट के बाद गठबंधन की तस्वीर स्पष्ट हो गई थी.

भाजपा के अहंकार का विनाश करने के लिए सपा-बसपा का मिलना जरूरी था. मैने कहा था कि इस गठबंधन के लिए अगर दो कदम पीछे भी हटना पड़ा तो हम करेंगे. आज से सपा का कार्यकर्ता यह गांठ बांध ले कि मायावती जी का अपमान मेरा अपमान होगा. हम समाजवादी हैं औऱ समाजवादियों की विशेषता होती है कि हम दुख और सुख के साथ होते हैं. बीजेपी हमारे बीच गलतफैमी पैदा कर सकती है. बीजेपी दंगा-फसाद भी करा सकती है लेकिन हमें संयम और धैर्य से काम लेना है. मैं मायावती जी के इस निर्णय का स्वागत करता हूं. मैं आपको भरोसा दिलाता हूं कि अब बीजेपी का अन्त निश्चित है. 

मायावती ने कहा कि एसपी-बीएसपी का गठबंधन केवल चुनावी गठबंधन नहीं है बल्कि यह गठबंधन बीजेपी के अत्याचार का अंत भी है. ‘बीजेपी के अहंकार का विनाश करने के लिए बीएसपी और एसपी का मिलना बहुत जरूरी था.’ अखिलेश ने कहा, ‘मायावती का सम्मान मेरा सम्मान है. अगर बीजेपी का कोई नेता मायावती का अपमान करता है तो एसपी कार्यकर्ता समझ लें कि वह मायावती का नहीं बल्कि मेरा अपमान है.’

शिवपाल यादव ने जब  पार्टी बनाई तो सियासी गलियारे में तरह-तरह की चर्चाएं उड़नें लगीं.
शिवपाल सिंह यादव की पार्टी को परदे के पीछे से बीजेपी सपोर्ट कर रही है. और मुलायम सिंह की सरकार में कभी बेहद प्रभावशाली नेता रहे शख्स के जरिए बीजेपी बड़ी डील में जुटी है. सपाई खेमे में भी यह चर्चा उड़ने लगी कि सपा-बसपा गठबंधन के काट के तौर पर बीजेपी शिवपाल यादव को आगे कर दांव चल रही है. इस बीच बसपा मुखिया मायावती का बंगला योगी सरकार ने शिवपाल सिंह यादव को दे दिया. वर्तमान में  महज जसवंत सीट से विधायक की हैसियत रखने वाले शिवपाल सिंह यादव को जैसे ही बंगला मिला, फिर उनके विरोधी बीजेपी से सांठगांठ की चर्चा शुरू कर दिए.
बसपा मुखिया मायावती ने यह कहकर चौंका दिया कि शिवपाल यादव की पार्टी में बीजेपी का पैसा लगा है
मायावती ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा- शिवपाल यादव और अन्य लोगों की पार्टी में जो बीजेपी पानी की तरह पैसा बहा रही है, वो सारा पैसा बर्बाद हो जाएगा. मायावती ने इस बहाने यह जताने की कोशिश की यूपी में प्रमुख दलों के मुकाबले हाल में जो नए दल गठित हुए हैं, वह महज वोटकटवा हैं और बीजेपी परदे के पीछे से उन दलों को चला रही है. खास बात है कि जब मायावती शिवपाल यादव की पार्टी में बीजेपी का पैसा लगा होने पर तंज कस रहीं थीं,तब अखिलेश यादव मुस्कुराने लगे. मायावती ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत शिवपाल यादव और बीजेपी के बीच सांठगांठ होने का संदेश देने की कोशिश की. ताकि बीजेपी के विरोध में खड़े तबका का वोट शिवपाल यादव की पार्टी को न मिल सके. 

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