4 धाम यात्रा मार्ग में ४४ संवेदनशील स्थानों को तो खुद सरकार मान रही है

15 अप्रैल तक हर हाल में सभी तैयारियां पूर्ण करने का दावा # सफर करना ख़तरे से खाली नहीं है # उत्‍तराखण्‍ड में  चार धाम की यात्रा को देखते हुए  तैयारियां शुरू कर दी है. गंगोत्री, यमुनोत्री और केदारनाथ में  अधूरे कार्य पूरे   कराये जा रहे हैं, चार धाम यात्रा को लेकर   उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से लेकर गंगोत्री तक का रूट का जायजा लिया जा रहा  हैं. चार धाम यात्रा को लेकर पुलिस भी अपनी व्यवस्थाएं बनाने में लग गई है.   पहाड़ों में   यात्रा काल में हिल पेट्रोल यूनिट तैनात की जाएगी. पुलिस पेट्रोलिंग टीम मोटरसाइकिल से यात्रा रूट में यातायात के नियमों के पालन के साथ जाम खुलवाने और आपातकालीन स्थितियों में कार्य करेगी.  इस साल अक्षय तृतिया के मौके पर 18 अप्रैल को गंगोत्री, यमुनोत्री के कपाट खुलने को देखते हुए चार धाम यात्रा तैयारी के लिए डीएम उत्तरकाशी ने सड़क सुव्यवस्था के लिए बीआरओ को, पेयजल के लिए जल संस्थान को, बिजली के लिए उरेड़ा और विद्युत विभाग को निर्देश दिए हैं. उन्होनें बताया कि 15 अप्रैल तक हर हाल में सभी तैयारियां पूर्ण हो जाएंगी. यात्रियों को पार्किंग व्यवस्था मिले, इसके लिए विभागों को निर्देश दे दिए है. #यमुनोत्री धाम को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग की हालत ख़स्ता #उत्तराखण्ड में बड़े सड़क हादसे कोई नई बात नहीं हैं. यहां के दुर्गम पहाड़ी मार्गों पर विभागीय उदासीनता के चलते ऐसे सड़क हादसे होते रहते हैं. लेकिन विभाग और सरकारें इसके प्रति संजीदा होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं जिसकी एवज में मासूम जनता को अपनी जान गंवानी पड़ रही है. #  

 

चन्‍द्रशेखर जोशी  सम्‍पादक की  हिमालयायूके न्यूज पोर्टल के लिए बडी खबर-  

चार धाम  में ४४ संवेदनशील स्थानों को तो खुद सरकार मान रही है, क्‍या सिर्फ मान कर सडक दुर्घटनाओं से बचा जा सकेगा, चार धाम यात्रा मार्ग में दुर्घटना नही होगी- यह गारंटी कौन देगा, जबकि सरकार सडको को खुद संवेदनशील उस समय मान रही है जब अभी बरसात नही हुई है, सडको पर पानी नही पडा है।  उत्‍तराखण्‍ड के चार धाम यात्रा मार्ग में दुर्घटना रहित हो गये है, इसकी गारंटी कौन देगा, यह बडा सवाल है, कीमती जनमाल की कोई जिम्‍मेदार तो सुरक्षा, गारंटी देगा, या सिर्फ सडक संवेदनशील है, कहकर पल्‍ला झाड लिया जायेगा, क्‍योंकि हर हाल सैकडो दुर्घटनाएं होती देखी जा रही है, उपचार न मिलने और संसाधनों के अभाव में केदारनाथ यात्रा के दौरान कई तीर्थ यात्रियों की अकाल मौत हो जाती है.

परोसी गई खबर के अनुसार  राज्य निर्माण के १७ वर्ष बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ऐसे पहले मुख्यमंत्री  बने जो सडक मार्ग से गैरसेण पहुंचे।   मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द ने ऋषिकेश से कीर्तिनगर तक ऑल वेदर रोड के विभिन्न संवेदनशील स्थलों, जिनमें नीरगढ, साकणीधार, मुल्यागॉव निरीक्षण के दौरान के सम्बन्धित अधिकारियों को निर्देश दिये कि इन स्थानों पर सुरक्षा के पुख्ता इन्तजाम किये जाए ताकि सडक दुर्घटनाओं से बचा जा सके।  

इस अवसर पर पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि बद्रीनाथ व केदारनाथ तक के पंहुच मार्ग के अन्तर्गत ४४ संवेदनशील स्थानों को चिन्हित किया गया है जहॉ पर यातायात को सूचारु करने के लिए ४० जेसीबी तैनात रहेंगी जिनके फोन नम्बर आपदा नियंत्रण कक्ष व जिला प्रशासन के पास उपलब्ध रहेंगे। उन्होने कहा कि ऑल वेदर रोड में सडक कटान का कार्य ३१ मार्च २०१८ तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है तथा ३० जून तक सडकों पर सुरक्षा दिवार लगाने की समयसीमा सुनिश्चित की गई है। ऑल वेदर रोड योजना से जुडी ऐजेन्सियों को निर्देश दिये गये हैं कि निर्माण कार्यो को समयसीमा के अन्तर्गत पूरा करना सुनिश्चित करें।

उत्‍तराखण्‍ड में  चार धाम की तैयारियां इस प्रकार है-  मीडिया की रिपोर्टो के अनुसार- 

साल 2017 में केदारनाथ धाम यात्रा के दौरान 38 श्रद्धालुओं की मौत ऑक्सीजन की कमी से हो गई थी # साल 2012   74 लोगों की मौत

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित ग्यारहवें ज्योर्तिलिंग भगवान केदारनाथ की यात्रा शुरू होने में मात्र छह सप्ताह का समय शेष रह गया है. अभी तक जिला प्रशासन को केदारनाथ धाम के लिए ऐयर एम्बुलेंन्स की स्वीकृति शासन से नहीं मिल पायी है. इस साल से केदारनाथ यात्रा में    (चार धाम यात्रा मार्ग -फोटो )   सम्मिलित होने वाले 60 वर्ष की उम्र से अधिक के तीर्थ यात्रियों को ईसीजी टेस्ट करवाना होगा.  केदारनाथ धाम साढ़े ग्यारह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. सभी ज्योर्तिलिगों में सबसे दुर्गम यात्रा केदारनाथ धाम की है. उच्च हिमालयी क्षेत्रों में स्थित होने के कारण यहां हर समय ऑक्सीजन की कमी रहती है. जिसके कारण बुजुर्ग को हार्ट अटैक होने की संभावना काफी बढ़ जाती है. साल 2017 में केदारनाथ धाम यात्रा के दौरान 38 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी. यात्रा के दौरान दम तोड़ने वाले 36 श्रद्धालुओं की मौत हृदय गति रुकने के कारण हुई थी.

इसी तरह साल 2012 की बात करें, तो केदारनाथ यात्रा के दौरान 74 लोगों की मौत हुई थी. जिसमें से 69 लोगों की मौत हृदय गति रुकने के कारण हुई हुई थी. समय पर उपचार न मिलने और संसाधनों के अभाव में केदारनाथ यात्रा के दौरान कई तीर्थ यात्रियों की अकाल मौत हो जाती है.

 

स्‍वास्‍थ्‍य के अलावा- राष्ट्रीय राजमार्ग की हालत ख़स्ता #राष्ट्रीय राजमार्ग पर सफ़र करना खतरे से खाली नहीं 

चार धाम यात्रा शुरू होने में अब महज़ एक महीना रह गया है. यात्री और प्रशासन सब यात्रा की तैयारी में हैं. लेकिन कुछ कमियां अब तक दूर नहीं हो पायी हैं. यमुनोत्री धाम को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग की हालत ख़स्ता है. इस पर सफर करना ख़तरे से खाली नहीं है. यमुनोत्री धाम के अहम पड़ाव बडकोट में तो सड़क ऐसी है कि वहां से गुज़रते वक्त लगता है किसी झूले में बैठे हैं. पूरी सड़क पर बड़े-बड़े गढ्ढे हैं. लेकिन मरम्मत के बजाए केवल पत्थर के रोड़े से ढांक दिया गया है. आए दिन यहां एक्सीडेंट हो रहे हैं.

यमुनोत्री धाम की यात्रा के कपाट खुलने को अब महज चार सप्ताह का समय रह गया है लेकिन व्यवस्थाओं को देखते हुए लगता नहीं कि जिम्मेदार विभागों को अपनी जिम्मेदारी का अहसास हो.   यमुनोत्री धाम तक पहुंचने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर सफ़र करना खतरे से खाली नहीं है.

उत्तराखंड की चार धाम यात्रा यमुनोत्री से ही शुरू होती है और इसका मुख्य पड़ाव बड़कोट है. यानि कि ज़्यादातर ऋषिकेश, हरिद्वार से यमुनोत्री आने वाले ज़्यादातर यात्री इसी रास्ते यमुनोत्री जाते हैं. हालांकि ऑलवेदर रोड में यह रास्ता शामिल नहीं है. ऑल वेदर रोड में बड़कोट से दो किलोमीटर आगे धरासू से जाने वाले एनएच 94 को शामिल किया गया है और इसलिए बड़कोट से धरासू तक जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग को जैसे एनएच अथॉरिटी भूल ही गई है. बड़कोट नगर क्षेत्र से गुज़रने वाली सड़क के हालात तो ऐसे हैं कि गाड़ी मुख्य बाज़ार में भी गाड़ी हिचकोले खाकर चलती है. मुख्य चौराहे में ही सड़क में बड़े-बड़े गड्ढों को आसानी से देखा जा सकता है जिन्हें पत्थर की रोड़ियों से ढक दिया गया है. इन गड्ढ़ों में कई बार दोपहिया सवार दुर्घटना ग्रस्त हो चुके हैं. इतना ही नहीं राह चलते पैदल मुसाफिर भी कई बार गड्ढों से ठोकर खाकर चोटिल हो चुके हैं.

उत्तराखण्ड में बड़े सड़क हादसे कोई नई बात नहीं हैं. यहां के दुर्गम पहाड़ी मार्गों पर विभागीय उदासीनता के चलते ऐसे सड़क हादसे होते रहते हैं. लेकिन विभाग और सरकारें इसके प्रति संजीदा होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं जिसकी एवज में मासूम जनता को अपनी जान गंवानी पड़ रही है.

 108 सेवा का औचित्य भी देख लीजिये  ;108 एंबुलेंस  अब पहाड़ में चलने लायक ही नहीं रही हैं  

 इसी माह 14 March, 2018  रामनगर के पास अल्मोड़ा जिले के सल्ट में मंगलवार हुई बस दुर्घटना में 13 लोगों की मौत के बाद कई सवाल खड़े हो गए हैं. क्या इस दुर्घटना को टाला जा सकता था, क्या कुछ लोगों की जानें बचाई जा सकती थीं?  पीडब्ल्यूडी की भूमिका के साथ ही 108 सेवा के औचित्य पर भी पर प्रश्नचिन्ह लगता है.  रामनगर से करीब 50 किलोमीटर दूर टोटाम के पास केएमओयू की बस 200 मीटर गहरी खाई में जा गिरी. स्थानीय लोगों ने पुलिस-प्रशासन और 108 सेवा को इसकी जानकारी दी. लेकिन कभी जीवनदायिनी रही 108 एंबुलेंस यहां पहुंच ही नहीं पाई. 108 सेवा के कर्मचारी ब

 

ताते हैं कि ये गाड़ियां साढ़े चार लाख किलोमीटर से अधिक का सफर तय कर चुकी हैं और न जाने कब से रिटायरमेंट मांग रही हैं. यह गाड़ियां अक्सर खराब रहती हैं और सही बात तो यह है कि अब पहाड़ में चलने लायक ही नहीं रही हैं जिससे घटनास्थल तक पहुंचने में अधिक समय लगता है.
डॉप्लर राडार स्थापित  कब होगा-

मौसम विभाग मसूरी और पिथौरागढ़ क्षेत्र को डॉप्लर राडार लगाने के लिए चिन्हित कर चुका है.  प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से सर्वाधिक संवेदनशील उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के अलकनंदा और मंदाकिनी घाटी क्षेत्र में भविष्य में किसी भी संभावित भीषण आपदा से बचाव के लिए केंद्रीय भूविज्ञान मंत्रालय डॉप्टर राडार स्थापित करने की कवायद में जुट 

गया है. साल 2013 की भीषण आपदा का दंश झेल चुकी रूद्रप्रयाग जनपद की केदार घाटी के साथ अलकनन्दा घाटी का अति संवेदनशनील चमोली जनपद का क्षेत्र विशेषतौर पर मंत्रालय की प्राथमिकताओं में है. 

अलकनंदा नदी के तट पर स्थित बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है | मान्यता है की इसी स्थान में नर-नारायण ने तपस्या की थी  2; केदारनाथ मंदिर ऊँचे हिमालय में स्थित भगवान शिव का मंदिर हैं | इस मंदिर की महत्वता ये भी है के यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है | 3. गंगोत्री धाम पापनाशिनी गंगा नदी का उदगम स्थल है | तीर्थयात्री गंगोत्री में माँ गंगा के गंगोत्री मंदिर में दर्शनों के साथ गंगा नदी में नहा कर गंगाजल अपने साथ ले जाते हैं | 4. यमुना नदी का उदगम स्थल यमुनोत्री है | यमुनोत्री धाम में माँ यमुना मंदिर की पूजा होती है | यानुमोत्री धाम चार धाम यात्रा का पहला पड़ाव है | चारधाम यात्रा प्रत्येक वर्ष अक्षय तृतीया यानि अप्रैल – मई से शुरू होकर दीपावली के बाद यानि अक्टूबर – नवम्बर तक चलती है | ग्ग्रीषम काल में चारों धामों के कपाट तीर्थयात्रियों के लिए बंद हो जाते हैं | चारधाम यात्रा में हिमालय की गोद में बसे हुए तीर्थ स्थलों के दर्शनों के लिए लाखों श्रद्धालु हर वर्ष उत्तराखंड आते हैं | चारधाम यात्रा का क्रम यमुनोत्री से शुरू होता है और गंगोत्री , केदारनाथ होते हुए बद्रीनाथ में ख़तम होता है | यात्रा में श्रद्धालु प्रकृति की सुंदरता भी देखते रहते हैं |  चारधाम यात्रा मार्ग पहाड़ों से होकर जाता है | गंगोत्री और बद्रीनाथ धाम सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है | केदारनाथ और यमुनोत्री धाम में सड़क मार्ग के अतिरिक्त 18 किमी व 6 किमी पैदल चलना पड़ता है | केदारनाथ में हेलीकाप्टर सेवा भी है | यात्राकाल अप्रैल-मई से अक्टूबर-नवंबर रहता है | सबसे ज्यादा यात्री मई-जून और सितम्बर-अक्टूबर में आते हैं | यही चारधाम यात्रा का सबसे सही समय होता है | बरसात के महीनों में पहाड़ों के टूटने और ज्यादा बारिश से यात्रा सुविधाजनक नहीं होती |

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