51 शक्तिपीठ की कथा; सभी 51 शक्तिपीठ माता सती से संबंधित

हिंदू धर्म में 51शक्तिपीठों में सिद्ध तारापीठ का सबसे अधिक महत्व है. पश्चिम बंगाल के प्रमुख पर्यटन स्थलों में एक है यह तारापीठ. असम स्थित कामाख्या मंदिर की तरह यह स्थान भी तंत्र साधना में विश्वास रखने वालों के लिए परम पूज्य स्थल है. यहां भी साधु-संत अतिविास और श्रद्धा के साथ साधना करते हैं. दक्ष प्रजापति के यज्ञ की अग्निकुंड में कूद कर सती द्वारा आत्म बलिदान करने के बाद शिव विचलित हो उठे और सती के शव को अपने कंधे पर लेकर आकाश मार्ग से चल दिए. उनके क्रोध से सारे देवी-देवता डर गए. उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना किया. तब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शव को खंडित कर दिया. तारापीठ में देवी सती के नेत्र गिरे थे, इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है. कहते हैं, देवी तारा की आराधना से हर रोग से मुक्ति मिलती है. 

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माना जाता है कि इस स्थान पर देवी सती के तीसरे नेत्र का तारा गिरा था. इसलिए यह स्थान तारापीठ के नाम से विख्यात है. प्राचीन काल में महर्षि वशिष्ठ ने इस स्थान पर देवी तारा की उपासना करके सिद्धियां प्राप्त की थीं. तारापीठ में देवी सती के नेत्र गिरे थे, इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है. कहते हैं, यहां तंत्र साधकों के अलावा जो भी लोग यहां मुराद मांगने आते हैं, वह पूर्ण होता है. देवी तारा के सेवा आराधना से हर रोग से मुक्ति मिलती है. इस स्थान पर सकाम और निष्काम दोनों प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं. त्रिताप को जो नाश करती है, उसे तारा कहते हैं. ताप चाहे कोई सा भी हो, विष का ताप हो, दरिद्रता का ताप हो या भय का ताप, देवी तारा माता सभी तापों को दूर कर जीव को स्वतंत्र बनाती है.

यदि किसी का शरीर रोग से ग्रस्त हो गया है या कोई प्राणी पाप से कष्ट भोग रहा है, वह जैसे ही दिल से तारा-तारा पुकारता है, तो ममतामयी तारा माता अपने भक्तों को इस त्रिताप से मुक्त कर देती है.

तारा अपने शिव को अपने मस्तक पर विराजमान रखती हैं. वे जीव से कहती है चिंता मत करो, चिता भूमि में जब मृत्यु वरण करोगे तो मैं तुम्हारे साथ रहूंगी, तुम्हारे सारे पाप, दोष सभी बंधन से मैं मुक्त कर दूंगी.
ब्रह्मांड के सर्वश्रेष्ठ क्षेत्र विंध्यक्षेत्र को परम-पावन क्षेत्र के रूप में मान्यता प्राप्त है. यह क्षेत्र अनादिकाल से आध्यात्मिक साधना का केंद्र रहा है. यहां अनेक साधकों ने स्थान के महत्व को समझ कर सर्वे भवन्ति सुखिन: की भावना से साधना कर सिद्धि प्राप्त की. वामपंथी साधना की अधिष्ठात्री देवी मां तारा है. मां तारा देवी लोक जीवन में आने वाली विपत्तियों, आकर्षण, विकर्षण और उच्चाटन से मानव को मुक्ति प्रदान करती है. मां तारा की साधना पूर्ण रूपेण अघोरी साधना है. इस साधना से मनुष्य को लौकिक सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है. तंत्रशास्त्र को हिंदू धर्म के विश्वाकोष के रूप में मान्यता प्राप्त है. यह तंत्र ग्रंथ सम्वाद के रूप में प्रसिद्ध है, जिसमें वक्ता भोले बाबा शिव जी, श्रोता स्वयं जगदम्बा मां पार्वती जी हैं. भगवान शिव को इसमें आगम कहकर और मां पार्वती को निगम कहकर पुकारा गया है. महानिर्वाण तंत्र में भगवान शिव ने पार्वती जी से कहा कि कलिदोश के कारण द्विज लोग वैदिक कृत्यों के द्वारा युक्ति लाभ करने में समर्थ्य नहीं होंगे. वैदिक कर्म और मंत्र निर्विश सर्प की तरह शक्तिहीन हो जाएगी, तब मानव तंत्रशास्त्र द्वारा कल्याण का मार्ग ढूंढेगा. तंत्र धर्म एक प्राचीन धर्म है. श्रीमद्भागवत के 11वें तीसरे, स्कंद पुराण के चौथे अध्याय, बह्यपुराण, वाराह पुराण आदि में उल्लेखित है कि देवोपासना तांत्रिक विधि से करनी चाहिए. महाभारत के शांतिपूर्ण, अध्याय 259 तथा अध्याय 284 श्लोेक 74वां, 120, 122, 124, में इस बात की चर्चा है. शंकर संहिता, स्कंद पुराण के एक भाग एवं रामायण में भी तांत्रिक उपासना का उल्लेख है. शिव के अहंकार को मिटाने के लिए माता पार्वती ने उन्हें दशों दिशाओं में काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्व.री, बगंलामुखी, भैरवी, कमला, धूमावती, मातंगी, छिन्नमस्तका के रूप में दर्शन दिया. इस तरह दश विद्याओं द्वारा शक्ति का अवतरण शिव का अहंकार नाश करने वाला हुआ. मां तारा दश विद्या की अधिष्ठात्री देवी है. तंत्र साधना का स्थल तारापीठ भारत के अनेक क्षेत्रों में स्थापित है, जहां वामपंथ की साधना की जाती है. यह पीठ विशेष स्थान माया नगरी (बंगाल) और असम (मोहनगरी) में भी है. आद्यशक्ति के महापीठ विंध्याचल में स्थित तारापीठ का अपना अलग ही महत्व है. विंध्य क्षेत्र स्थित तारापीठ मां गंगा के पावन तट पर श्मशान के समीप है. श्मसान में जलने वाले शव का धुआं मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने के कारण इस पीठ का विशेष महत्व है. इस पीठ में तांत्रिकों को शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है, ऐसा साधकों की मान्यता है. इस मंदिर के समीप एक प्रेत-शिला है, जहां लोग पितृ पक्ष में अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंड दान करते हैं. इसी स्थल पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने भी अपने पिता का तर्पण, पिंडदान किया था. यह विंध्याचल के शिवपुर के राम गया घाट पर स्थित है. यहां स्थित मां तारा आद्यशक्ति मां विंध्यवासिनी के आदेशों पर जगत कल्याण करती है. इस देवी को मां विंध्याचल की प्रबल सहायिका एवं धाम की प्रखर प्रहरी की भी मान्यता प्राप्त है. देवीपुराण के अनुसार, मां तारा देवी जगदम्बा विंध्यवासिनी की आज्ञा के अनुसार विंध्य के आध्यात्मिक क्षेत्र में सजग प्रहरी की तरह मां के भक्तों की रक्षा करती रहती है.

ये है 51 शक्तिपीठ की कथा सभी 51 शक्तिपीठ माता सती से संबंधित हैं। माता सती के पिता प्रजापति दक्ष थे। सती ने भगवान शिव से विवाह किया था। प्राचीन समय में प्रजापित दक्ष ने हरिद्वार में भव्य यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में दक्ष ने सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया, क्योंकि दक्ष भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे। माता सती को नारद से ये बात मालूम हुई कि उनके पिता दक्ष के यहां यज्ञ हो रहा है। सती इस यज्ञ में जाने के लिए तैयार हो गईं। शिवजी ने माता सती को समझाया कि बिना आमंत्रण हमें यज्ञ में नहीं जाना चाहिए, लेकिन शिवजी के समझाने पर भी वे नहीं मानीं। शिवजी के मना करने के बाद भी माता सती अपने पिता के यहां यज्ञ में सम्मिलत होने के लिए चली गईं। जब माता सती यज्ञ स्थल पर पहुंची तो उन्हें मालूम हुआ कि यज्ञ में शिवजी के अतिरिक्त सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया है।
यह देखकर माता सती ने अपने पिता दक्ष से शिवजी को न बुलाने का कारण पूछा। इस प्रश्न के जवाब में दक्ष ने शिवजी के लिए अपमानजनक बातें कही। शिवजी का अपमान माता सती से सहन नहीं हुआ और उन्होंने हवन कुंड में कूदकर अपने प्राणों की आहूति दे दी। जब ये समाचार शिवजी तक पहुंचा तो वे बहुत क्रोधित हुए और उनका तीसरा नेत्र खुल गया। शिवजी के कहने पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया। इसके बाद शिवजी सती के वियोग में बहुत दुखी हुए। शिवजी सती का जला हुआ शव लेकर समस्त सृष्टि में भ्रमण करने लगे।
शिव को इस वियोग से बाहर निकालने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती माता की देह को कई हिस्सों में विभाजित कर दिया। इस कारण जहां-जहां सती के अंग गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ है। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है। शक्तिपीठांक के अनुसार 42 शक्तिपीठ भारत में हैं। 3 बांग्लादेश में, 1 पाकिस्तान में, 2 नेपाल में, 1 श्रीलंका में, 1 तिब्बत में है। इस प्रकार 50 शक्तिपीठ हो गए और शेष 1 शक्तिपीठ पंचसागर कहां स्थित है, इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है।
बंगाल के शक्ति पीठ- प्राचीन बंगभूमि, जिसमें वर्तमान का बांग्लादेश भी सम्मिलित है। प्राचीन समय से ही यह भूमि शक्ति उपासना का विशिष्ट केंद्र रही है। दुर्गा पूजा का यहां सबसे बड़ा उत्सव मनाया जाता है। इस क्षेत्र में 14 शक्तिपीठ स्थित हैं।
कालिका शक्तिपीठ
कोलकाता के कालीघाट स्थित कालिका देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में सर्व प्रसिद्ध शक्तिपीठ होने के साथ-साथ इस क्षेत्र का प्रमुख धार्मिक स्थल है। कोलकाता में इस मंदिर की वही मान्यताएं हैं जो कि काशी में श्रीविश्वनाथ मंदिर की है। यहां माता के दाहिने पैर का अंगूठा गिरा था और माता यहां शक्ति रूप में स्थापित हो गईं। माता सती यहां कालिका रूप में हैं, जबकि स्वयंभू नकुलेश्वर भैरव रूप में प्रतिष्ठित हैं। चार महाशक्तिपीठों में एक कालिका देवी मंदिर में माता अपने उस प्रचंड रूप में हैं, जिसमें उन्होंने भगवान शिव के सीने पर पैर रखकर नरमुंडों की माला पहनी हुई हैं।
कहां है मंदिर- कालिका देवी का मंदिर पश्चिम बंगाल के प्रसिद्ध शहर कोलकाता में हुगली नदी के तट पर स्थित है। कोलकाता में इसके अलावा भी कई प्रसिद्ध देवी मंदिर हैं।
कैसे पहुंचें- कोलकाता भारत का प्रसिद्ध औद्योगिक शहर है, जो देश के सभी हिस्सों से रेल व हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ है।
किरीट कात्यायनी शक्तिपीठ
किरीट यानी मुकुट या सिर का आभूषण। इस जगह सती माता का किरीट गिरा था। इसलिए इसे किरीट कात्यायनी शक्ति पीठ कहा जाता है। यहां की शक्ति विमला या भुवनेश्वरी है। भैरव संवर्त हैं।
कहां है मंदिर- यह शक्तिपीठ हावड़ा बाहरवां रेलवे लाइन पर हावड़ा से ढाई किलोमीटर दूर लाल बाग कोट स्टेशन से लगभग 5 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
कैसे पहुंचें- किरीट कात्यायनी-रेल, बस या हवाईजहाज द्वारा कलकत्ता पहुंचकर आसानी से किरीट कात्यायनी पहुंचा जा सकता है।
युगाद्या शक्तिपीठ
यहां देवी की देह के दाहिने पैर का अंगूठा गिरा था। यहां की शक्ति भूतधात्री है और भैरव क्षीरकण्टक है। त्रेता युग में महिरावण ने पाताल में जिस काली की उपासना की थी, वह युगाद्या ही थीं। कहा जाता है कि महिरावण की कैद से छुड़ाकर श्रीराम-लक्ष्मण को पाताल से लेकर लौटते समय हनुमानजी देवी को भी अपने साथ लेकर आए और क्षीरग्राम में उन्हें स्थापित किया। क्षीरग्राम की भूतधात्री महामाया के साथ देवी युगाद्या की भद्रकाली मूर्ति एक हो गई और देवी का नाम योगाद्या या युगाद्या हो गया। बंगाली के अनेक ग्रंथों के अलावा गंधर्वतंत्र, साधक चूड़ामणि, शिवचरित तथा कृत्तिवासी रामायण में इस देवी का वर्णन मिलता है।
कहां है मंदिर- पूर्वी रेलवे के बर्दवान जंक्शन से लगभग 32 कि.मी. उत्तर की ओर क्षीरग्राम में यह शक्तिपीठ स्थित है।
कैसे पहुंचें- यहां बर्दवान जंक्शन से बस द्वारा युगाद्या मंदिर आसानी से पहुंचा जा सकता है।
बहुला शक्तिपीठ
पौराणिक कथा के अनुसार बहुला शक्तिपीठ वह जगह है, जहां पर देवी मां की बायीं भुजा गिरी थी। इस मंदिर के निर्माण और उत्थान को लेकर वैसे तो कोई जानकारी नहीं है, लेकिन यहां के स्थानीय लोग इसके निर्माण को लेकर अलग-अलग कहानियां सुनाते हैं।
कहां है मंदिर- पश्चिम बंगाल के हावड़ा से यह 145 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। बहुला शक्तिपीठ को भारत के ऐतिहासिक स्थलों में से एक माना जाता है। यहां पर हिंदू भक्तों को देवी शक्ति के रूप का दर्शन कर अद्वितीय ईश्वरीय ऊर्जा की अनुभूति होती है।
कैसे पहुंचें- बहुला माता मंदिर रेल बस व हवाई तीनों मार्गों से पहुंचा जा सकता है। बर्धमान एयरपोर्ट रेलवे स्टेशन से सड़क मार्ग से अपने वाहन द्वारा या सरकारी या प्राइवेट बसों से बहुला शक्तिपीठ पहुंच सकते हैं। राज्य में बहुला के लिए नियमित रूप से डीलक्स बसें भी संचालित हैं।
त्रिस्त्रोता शक्तिपीठ
यहां सती माता का वाम या उल्टा पैर गिरा था। यहां कि शक्ति भ्रामरी और भैरव ईश्वर हैं।
कहां है मंदिर- यह मंदिर पूर्वोतर रेलवे में सिलीगुड़ी-हल्दीवाड़ी रेलवे-लाइन पर जलपाइगुुड़ी स्टेशन है। यह जिला मुख्यालय भी है। इस जिले के बोदा इलाके में शलवाड़ी ग्राम है। यहां तीस्ता नदी के किनारे माता का मंदिर है।
कैसे पहुंचें- रेल के माध्यम से जलपाइगुड़ी पहुंचकर। बस व अन्य वाहनों से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
वक्त्रेश्वर शक्तिपीठ
इस शक्तिपीठ का मुख्य मंदिर वक्त्रेश्वर शिव मंदिर है। इसी स्थान पर सती का मन गिरा था। यहां शक्ति को महिषासुरमर्दिर्नी और भैरव को वक्त्रनाथ कहा जाता है। किवदंती ये भी है कि यहीं पर महर्षि कहोड के पुत्र अष्टावक्र का आश्रम भी था। जो अब नहीं है।
कहां है मंदिर- यह मंदिर सैंथिया जंक्शन से 12 कि.मी. की दूरी पर शमशान भूमि पर स्थित है। बाकेश्वर नाले के किनारे पर स्थित होने के कारण इसे बाकेश्वर या वक्त्रेश्वर कहा जाता है। इस स्थान पर अनेक तप्त झरने है। जो यहां के सौन्दर्य में वृद्धि करते हैं।
कैसे पहुंचें- पूर्वी रेल्वे की एक मुख्य लाइन में ओंडाल जंक्शन है, वहां से सैंथिया होते हुए दुब्राजपुर स्टेशन पहुंचा जा सकता है। स्टेशन से उत्तर की ओर इस मंदिर तक पहुंचने के लिए वाहन मिल जाते हैं।
नलहटी शक्तिपीठ
इस शक्तिपीठ के संबंध में मान्यता है कि यहां माता सती की उदर नली गिरी थी। यहां की शक्ति कालिका और भैरव योगीश हैं।
कहां है मंदिर- यह शक्तिपीठ बोलपुर शांति निकेतन से 75 किलोमीटर और सैन्थिया जंक्शन से मात्र 42 कि.मी दूर नलहटी रेलवे स्टेशन से 3 किलोमीटर की दूरी पर है।
कैसे पहुंचें- रेलमार्ग नलहटी शक्ति पीठ पहुंचना ज्यादा आसान है। सैंथिया जंक्शन से यहां के लिए आसानी से रेल व बस सुविधा उपलब्ध है।
करतोयातट शक्तिपीठ
इस जगह सती माता की देह से बायीं पायल गिरी थी। यहां की शक्ति अपर्णा और भैरव वामन है।
कहां है मंदिर- बांग्लादेश के शेरपुर बागुरा स्टेशन से 28 किमी दूर भवानीपुर गांव के पार करतोया तट स्थान पर माता की पायल गिरी थी।
कैसे पहुंचें- बांग्लादेश तक पहुंचने के बाद रेलमार्ग से या सड़क मार्ग से शेरपुर बागुरा पहुंचकर किसी भी प्राइवेट वाहन या अन्य साधनों से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
विभाष शक्तिपीठ
यहां माता सती का बायां टखना गिरा था। शक्ति कपालिनी या भीमरूपा है और भैरव सर्वानंद है।
कहां है मंदिर- यह मंदिर पश्चिम बंगाल में मिदनापर जिले के ताम्रलुक में है। वहां रूपनारायण नदी के तट पर वर्गभीमा का विशाल मंदिर ही यह शक्तिपीठ है। दक्षिण पूर्व रेलवे के कुड़ा स्टेशन से 24 किलोमीटर की दूरी पर यह स्थान है।
कैसे पहुंचें- मिदनापुर से सड़कमार्ग या रेलमार्ग सेे कुड़ा स्टेशन पहुंचकर सड़क मार्ग से ताम्रलुक पहुंचा जा सकता है। ताम्रलुक में ही माता का मंदिर स्थित है।
नंदीपुुर शक्तिपीठ
मान्यता है कि इस स्थान पर सती माता के गले का हार गिरा था। यहां की शक्ति नंदिनी और भैरव नंदीकेश्वर हैं।
कहां है मंदिर- सैंथिया स्टेशन से थोड़ी दूर पर नंदीपुर नामक स्थान में एक बड़े वट वृक्ष के नीचे यह देव मंदिर स्थित है।
कैसे पहुंचें- सैंथिया जंक्शन से यह शक्तिपीठ बहुत ही पास है। यहां निजी वाहन या बस द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।
अट्टहास शक्तिपीठ
इस स्थान पर देवी का अध ओष्ट यानी नीचे वाला होंठ गिरा था। यहां की शक्ति फुल्लरा और भैरव विश्वेश है।
कहां है मंदिर- यह शक्तिपीठ वर्धमान या बर्दवान से 93 कि.मी. दूर कटवा-अहमदपुर लाइन पर लाबपुर स्टेशन के पास है।
कैसे पहुंचें- यहां पहुंचने का सबसे आसान और सस्ता तरीका रेलमार्ग है। रेलमार्ग से लाबपुर तक पहुंचने के बाद किसी भी वाहन से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
यशोर शक्तिपीठ
यहां देवी के देह की वाम हथेली यानी उल्टे हाथ की हथेली गिरी थी। शक्ति यशोरेश्वरी और भैरव चंद्र है। इसी का पुराना नाम यशोर (यशोदर) है। यहीं पर देवी यशोरेश्वरी नाम से विराजमान हैं।
कहां है मंदिर- यह शक्तिपीठ वर्तमान में बंग्लादेश में है। यह मंदिर खुलना जिले के जैशोरे शहर में स्थित है।
कैसे पहुंचें- बांग्लादेश तक पहुंचने के बाद रेलमार्ग से या सड़क मार्ग से यहां पहुंचा जा सकता है। किसी भी प्राइवेट वाहन या अन्य साधनों से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
चट्टल शक्तिपीठ
इस शक्तिपीठ पर माता सती का दक्षिण बाहु गिरा था। शक्ति भवानी और भैरव चंद्रशेखर है। चंद्रशेखर शिव का भी यहां मंदिर है। इस मंदिर से सीताकुंड, व्यासकुंड, सूर्यकुंड, ब्रहकुंड, जनकोटिशिव, सहस्त्रधारा, बाडवकुंड और लवणाक्ष तीर्थ पास ही हैं। यहां हर वर्ष शिवरात्रि पर मेला लगता है।
कहां है मंदिर- चटगांव से 38 कि.मी. दूर सीताकुंड स्टेशन के पास चंद्रशेखर पर्वत पर यह भवानी मंदिर स्थित है।
कैसे पहुंचें- चटगांव से रेलमार्ग व सड़कमार्ग दोनों से ही यहां पहुंचने के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध हैं।
सुगंधा शक्तिपीठ
इस स्थान पर माता सती की नासिका गिरी थी। यहां की शक्ति सुनंदा और भैरव त्र्यम्बक हैं।
कहां है मंदिर- यह शक्तिपीठ बांग्लादेश में स्थित है। यहां पहुंचने के लिए बरीसाल तक स्टीमर से जाया जाता सकता है। वहां से 21 कि.मी. उत्तर में शिकारपुर ग्राम है। वहीं सुगंधा नदी के तट पर मंदिर स्थित है। इस मंदिर को उग्रतारा मंदिर के नाम से जाना जाता है।
अब जानिए मध्यप्रदेश के शक्तिपीठ- देश के अन्य प्रांतों की ही तरह मध्यप्रदेश में भी देवी उपासना की बहुत प्राचीन परंपरा है। यहां जगह-जगह कई लोक देवियों के भी मंदिर हैं। इस प्रदेश में चार शक्ति पीठ हैं, जो कि इस प्रकार हैं…
हरसिद्धि शक्तिपीठ
इस स्थान पर सती माता की ‘कुहनी’ गिरी थी। यह एक सिद्ध शक्तिपीठ माना गया है। सती शक्ति का नाम मागंल्यचण्डिका और शिव का नाम कपिलाम्बर है। इस शक्तिपीठ पर कवच-मन्त्रों की सिद्धि प्राप्त होती है। इसलिए इस पीठ को हरसिद्धी भी कहा जाता है। यहां श्रीयन्त्र की पूजा होती है। मंदिर के गर्भगृह में एक शिला पर श्रीयन्त्र बना हुआ है। यहां अन्नपूर्णा, कालिका, महालक्ष्मी, महासरस्वती एवं महामाया की प्रतिमाएं भी हैं।
कहां है मंदिर- उज्जैन में महाकाल मन्दिर से पश्चिम की ओर प्राचीन हरसिद्धि माता मंदिर स्थित है।
कैसे पहुंचें- देशभर से सड़क व रेल मार्ग से आसानी से उज्जैन जंक्शन पहुंचा जा सकता है। हवाई मार्ग से इंदौर पहुंचकर बस या अन्य प्रायवेट वाहनों से उज्जैन पहुंचा जा सकता है।
भैरव पर्वत शक्तिपीठ
इस शक्तिपीठ को लेकर मतभेद हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि गुजरात के गिरनार क्षेत्र के पास स्थित भैरव पर्वत शक्तिपीठ है, जबकि कुछ लोग मानते हैं कि यह मध्यप्रदेश के उज्जैन से निकट स्थित है। यहां माता सती का ऊर्ध्व ओष्ठ यानी ऊपर वाला होंठ गिरा था। यहां की शक्ति अवंती और भैरव लंब व कर्ण है।
कहां है मंदिर- कहा जाता है कि भैरव पर्वत शिप्रा नदी के तट पर स्थित है।
कैसे पहुंचें- देशभर से सड़क व रेल मार्ग से आसानी से उज्जैन जंक्शन पहुंचा जा सकता है। हवाई मार्ग से इंदौर पहुंचकर बस या अन्य प्राइवेट वाहनों से उज्जैन पहुंचा जा सकता है। गुजरात के गिरनार जाने के लिए भी यातायात के कई साधन देश के सभी बड़े शहरों से उपलब्ध हो सकते हैं।
शोण शक्तिपीठ
यहां माता सती की देह का दाहिना नितंब गिरा था। यहां की शक्ति नर्मदा या शोणाक्षी और भैरव भद्रसेन हैं।
कहां है मंदिर- अमरकंटक के नर्मदा मंदिर में यह शक्तिपीठ माना जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार बिहार के सासाराम स्थित ताराचंडी मंदिर को भी यही शक्तिपीठ माना गया है। कुछ विद्वानों का मानना है कि डेहरी आन सोन स्टेशन से कुछ दूर स्थित देवीस्थान को यह शक्तिपीठ कहते हैं।
कैसे पहुंचें- अमरकंटक प्रसिद्ध स्थान है। यह नर्मदा नदी का उद्गम स्थल भी है। यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। देश के सभी बड़े शहरों से यहां पहुंचने के लिए साधन मिल सकते हैं।
रामगिरी शक्तिपीठ
यहां पर माता सती की देह का स्तन गिरा था। यहां की शक्ति शिवानी और भैरव चंड हैं।
कहां है मंदिर- इस शक्तिपीठ के संबंध में दो मान्यताएं हैं, कुछ विद्वान मानते हैं कि चित्रकूट का शारदा मंदिर यह शक्तिपीठ है। जबकि, कुछ लोग मानते हैं कि मेहर का शारदा मंदिर यह शक्तिपीठ है।
कैसे पहुंचें- देश के सभी बड़े शहरों से यहां पहुंचने के लिए कई साधन आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
तमिलनाड़ु के शक्तिपीठ- दक्षिण भारत में तमिलनाडु प्राचीन समय में द्रविड़ सभ्यता का केंद्र था। देवी पूजा की यहां बहुत प्राचीन परंपरा है। यहां के वरलक्ष्मी वरदम और नवरात्र ये उत्सव महालक्ष्मी, महासरस्वती और दुर्गा तीनों रूपों की प्रसन्नता के लिए मनाए जाते हैं। इस प्रदेश में मां जगदम्बा के 4 शक्तिपीठ हैं।
शुचि शक्तिपीठ
मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती के दांत गिरे थे। यहां की शक्ति नारायणी और भैरव संहार या संकूर हैं।
कहां है मंदिर- तमिलनाड़ु में तीन महासागरों के संगम स्थल कन्याकुमारी से 13 कि.मी. दूर शचीन्द्रम में शिव मंदिर स्थित है। उसी मंदिर में यह शक्तिपीठ है।
कैसे पहुंचें- पूरे देशभर से आसानी से रेलमार्ग हवाई मार्ग या सड़क मार्ग से तिरुअनंतपुरम पहुंचकर वहां से कन्याकुमारी पहुंचा जा सकता है। कन्याकुमारी तिरुअनंतपुरम से 93 कि.मी की दूरी पर है।
रत्नावली शक्तिपीठ
रत्नावली शक्तिपीठ मद्रास के पास है, लेकिन यह स्थान अज्ञात है। यहां देवी देह का दक्षिण स्कंध गिरा था। यहां की शक्ति कुमारी और भैरव शिव हैं।
कन्यकाश्रम शक्तिपीठ
इस स्थान पर देवी के शरीर का पृष्टभाग गिरा था। यहां की शक्ति शर्वाणी और भैरव निमिष है।
कहां है मंदिर- तमिलनाड़ु में तीन सागरों के संगमस्थल पर कन्या कुमारी का मंदिर है। उस मंदिर में ही भद्रकाली का भी मंदिर है। ये कुमारी देवी की सखी हैं, उनका मंदिर ही शक्तिपीठ है।
कैसे पहुंचें- देशभर के सभी बड़े शहरों से रेलमार्ग हवाई मार्ग या सड़क मार्ग से तिरुअनंतपुरम पहुंचकर वहां से कन्याकुमारी पहुंचा जा सकता है। कन्याकुमारी तिरुअनंतपुरम से 93 कि.मी की दूरी पर है।
कांची शक्तिपीठ
यह दक्षिण भारत का सबसे प्रधान शक्तिपीठ माना गया है। यहां भगवान एकमेश्वर का मंदिर है। इस स्थान पर देवी देह का कंकाल गिरा था। यहां कि शक्ति देवगर्भा और भैरव रुद्र हैं।
कहां है मंदिर- तमिलनाड़ु में कांजीवरम् में कामाक्षी देवी का विशाल मंदिर है। मुख्य मंदिर में भगवती त्रिपुर सुंदरी की प्रतिमूर्ति कामाक्षी देवी की प्रतिमा है। अन्नपूर्णा, शारदामाता और आद्यशंकराचार्य की भी मूर्तियां है।
कैसे पहुंचें- हवाई, सड़क या रेलमार्ग से देश के सभी बड़े शहरों से चैन्नई आसानी से पहुंचा जा सकता है। चैन्नई से कांजीवरम् 72 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां से सड़क मार्ग से कांजीवरम् पहुंचा जा सकता है।
बिहार और झारखंड के शक्तिपीठ- यहां भी देवी दुर्गा के भक्तों के संख्या काफी अधिक है। भगवती षष्ठी, चंडी, बूढ़ी माई आदि विभिन्न रूपों में यहां देवी उपासना की जाती है। इन दोनों प्रदेशों में तीन शक्तिपीठ हैं।
मगध शक्तिपीठ- मान्यता है कि इस स्थान पर देवी देह की दक्षिण जंघा गिरी थी। यहां की शक्ति सर्वानंदकरी और भैरव व्योमकेश हैं।
कहां है मंदिर- बिहार की राजधानी पटना में स्थित यह मंदिर पटनेश्वरी देवी शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। यह स्थान पटना सिटी चौक से लगभग 5 कि.मी. पश्चिम में है।
कैसे पहुंचें- देश के किसी भी कोने से हवाई, सड़क या रेलमार्ग के द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है।
मिथिला शक्तिपीठ
मिथिला क्षेत्र में कई ऐसे मंदिर है, जिन्हें लोग शक्तिपीठ मानते हैं। कहा जाता है कि यहां देवी का नेत्र गिरा था। यहां एक यंत्र पर तारा, जटा और नील सरस्वती की मूर्तियां स्थित हैं।
कहां है मंदिर- मिथिला में उच्चैठ नाम के स्थान पर नवदुर्गा मंदिर है। दूसरा सहरसा के स्टेशन के पास उग्रतारा मंदिर है। तीसरा समस्तीपुर से पूर्व में 61 कि.मी. दूर सलौना रेलवे स्टेशन से 9 किलोमीटर दूर जयमंगल देवी का मंदिर है। इन तीनों मंदिरों को विद्वानों ने शक्तिपीठ माना है।
कैसे पहुंचें- इन मंदिरों का निश्चित स्थान अज्ञात है।
वैद्यनाथ शक्तिपीठ
शक्तिपीठांक के अनुसार शिवजी ने यहीं सती की देह का अंतिम संस्कार किया था। यहां देवी के शरीर का मुख्य भाग गिरा था। यहां की शक्ति जयदुर्गा और भैरव वैद्यनाथ हैं।
कहां है मंदिर- वैद्यनाथ मंदिर झारखंड राज्य के गिरडीह में स्थित है। यहां भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंग में से एक ज्योर्तिलिंग व शक्तिपीठ भी स्थित है। यह स्थान चिताभूमि में है।
कैसे पहुंचें- मंदिर पहुंचने के लिए नजदीकी एयरपोर्ट पटना है, जिसकी दूरी 281 किलोमीटर है। पटना, देश के सभी बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। यहां का निकटवर्ती रेलवे स्टेशन देवघर है जो वैद्यनाथ से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर है। कोलकाता, गिरिडीह, पटना, दुमका, गया, रांची और मधुपुर से देवघर के लिए नियमित रूप से बसें चलाई जाती हैं।
उत्तरप्रदेश के शक्तिपीठ- मां अन्नपूर्णा की कृपास्थली उत्तर प्रदेश में देवी दुर्गा के कई मंदिर स्थित हैं। उत्तरप्रदेश में 3 दिव्य शक्तिपीठ हैं।
वृंदावन शक्तिपीठ
यह स्थान महर्षि शाण्डिल्य की साधना स्थली भी है। यहां देवी देह के केश यानी बालों का पतन हुआ था। शक्ति उमा और भैरव भूतेश हैं।
कहां है मंदिर- मथुरा और वृंदावन के बीच भूतेश्वर नाम का रेल्वे स्टेशन है। उस स्टेशन से भूतेश्वर मंदिर पास ही माता का मंदिर स्थित है। इन माता को चामुण्डा भी कहा जाता है।
कैसे पहुंचें- हवाई मार्ग से आगरा पहुंचकर बस या रेल से आसानी से मथुरा पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा रेल या सड़क मार्ग से भी मथुरा पहुंचना आसान है। मथुरा से वृंदावन पहुंचने के लिए अनेक साधन उपलब्ध हैं।
वाराणसी शक्तिपीठ
मान्यता है कि यहां भगवान विश्वनाथ विश्राम करते हैं। यहां देवी देह की दाहिनी कर्ण मणि गिरी थी। यहां की शक्ति विशालाक्षी और भैरव काल भैरव हैं।
कहां है मंदिर- वाराणसी में यह मंदिर मीरघाट के धर्मेश्वर के समीप विशालाक्षी गौरी के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
कैसे पहुंचें- देश के सभी बड़े शहरों से हवाई, सड़क या रेलमार्ग से वाराणसी पहुंचा जा सकता है।
प्रयाग शक्तिपीठ
यहां देवी सती के हाथों की उंगलियां गिरीं थी। यहां की शक्ति ललिता और भैरव भव हैं।
कहां है मंदिर- प्रयाग में अक्षयवट के निकट ललितादेवी का मंदिर है, कुछ विद्वान इसे ही शक्तिपीठ मानते हैं। कुछ विद्वान आलोपी माता के मंदिर को शक्तिपीठ मानते हैं। वहां भी ललिता देवी का मंदिर है। साथ ही, एक अन्य मान्यता के अनुसार मीरपुर में ललितादेवी का शक्तिपीठ है।
कैसे पहुंचें- रेल मार्ग, सड़क मार्ग व हवाई मार्ग से आसानी से प्रयाग शक्तिपीठ पहुंचा जा सकता है।
राजस्थान के शक्तिपीठ- राजस्थान की आराध्या पराम्बा शक्ति ही है। पूरे प्रदेश में माता के अनेक मंदिर और स्थान हैं। इस प्रदेश में देवी के दो शक्तिपीठ हैं।
विराट शक्तिपीठ
यहां सती माता के पैरों की अंगुलियां गिरीं थी। इस मंदिर की शक्ति अंबिका और भैरव अमृत हैं।
कहां है मंदिर- जयपुर से 64 किलोमीटर दूर विराट नाम के गांव में यह मंदिर है। यहां महाभारत कालीन विराट नगर के खंडहर मिलते हैं। इस नगर में पांडवों ने अंतिम वर्ष का अज्ञात वास बिताया था।
कैसे पहुंचें- जयपुर व अलवर से सड़क मार्ग द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है।
मणिवेदिक शक्तिपीठ
यहां पर माता सती की कलाइयां गिरीं थी। यहां की शक्ति गायत्री और भैरव शर्वानंद हैं।
कहां है मंदिर- राजस्थान के पुष्कर सरोवर के एक ओर पर्वत की चोटी पर सावित्री देवी का मंदिर है और दूसरी तरफ पहाड़ की चोटी पर गायत्री मंदिर है। यहां गायत्री मंदिर ही शक्तिपीठ है।
कैसे पहुंचें- रेलमार्ग या सड़क मार्ग से अजमेर पहुंचकर वहां से आसानी से पुष्कर पहुंचा जा सकता है। हवाई मार्ग से जयपुर पहुंचकर सड़क मार्ग से आसानी से पुष्कर पहुंचा जा सकता है।
गुजरात के शक्तिपीठ- गुजरात में अनेक रूपों में देवी आराधना की जाती है। इस प्रदेश में दो शक्तिपीठ हैं।
प्रभास शक्तिपीठ
यहां देवी देह का उदर भाग गिरा था। इस मंदिर की शक्ति चंद्रभागा और भैरव वक्रतुंड हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार गुजरात के अर्बुदारण्यक्षेत्र में पर्वत शिखर पर सती के शरीर का एक भाग गिरा था। इस स्थान को अरासुरी अंबाजी कहते हैं।
कहां है मंदिर- गुजरात के जूनागड़ क्षेत्र में गिरनार पर्वत के प्रथम शिखर पर देवी अंबिका का विशाल मंदिर है। एक मान्यता के अनुसार स्वयं जगजननी देवी पार्वती हिमालय से आकर यहां निवास करती हैं।
कैसे पहुंचें- रेल, सड़क व हवाई मार्ग से जूनागड़ आसानी से पहुंचा जा सकता है।
हरसिद्धि शक्तिपीठ
हरसिद्धि देवी का मंदिर द्वारका (सौराष्ट्र) में स्थित है। एक मान्यता के अनुसार उज्जैन के राजा विक्रमादित्य यहीं से देवी को अपनी आराधना से संतुष्ट करके उज्जैन ले आए थे। इसी वजह से उज्जैन स्थित हरसिद्धि मंदिर को भी इन्हीं का रूप माना जाता है।
आंध्रप्रदेश के शक्तिपीठ- आंध्रप्रदेश देवस्थानों के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध है। यहां अनेक देवी मंदिर भी हैं। 51 शक्तिपीठों में से 2 इस प्रदेश में हैं।
गोदावरी तट शक्तिपीठ
इस जगह पर माता सती का बायां गाल गिरा था। यहां की शक्ति विश्वेशी या रुक्मणी और भैरव दंडपाणि हैं।
कहां है मंदिर- आंध्रप्रदेश में गोदावरी स्टेशन के पास गोदावरी नदी के पास कुब्बूर कोटितीर्थ है, यह शक्तिपीठ वहीं स्थित है।
कैसे पहुंचें- रेल, सड़क या हवाई मार्ग से हैदराबाद पहुंचकर वहां से आसानी से गोदावरी जिले तक पहुंचा जा सकता है।
श्रीशैल शक्तिपीठ
इस स्थान पर देवी देह की ग्रीवा गिरी थी। यहां की शक्ति महालक्ष्मी और भैरव संवरानंद या ईश्वरानंद हैं।
कहां है मंदिर- श्रीशैल में भगवान शंकर का मल्लिका अर्जुन नाम का ज्योर्तिलिंग है। वहां से लगभग 4 कि.मी. पश्चिम में भगवती भ्रमराम्बादेवी का मंदिर है। यह मंदिर ही शक्तिपीठ है।
कैसे पहुंचें- रेल, सड़क व वायुमार्ग से हैदराबाद पहुंचकर वहां से सड़क मार्ग से आसानी से श्रीशैल मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
महाराष्ट्र के शक्तिपीठ- महाराष्ट्र में देवी का अनेक रूपों में पूजन किया जाता है। यहां 2 शक्तिपीठ हैं।
करवीर शक्तिपीठ
मान्यता है कि देवी सती के नेत्र यहां गिरे थे। यहां की शक्ति महिषमर्दिनी और भैरव क्रोधीश हैं। यहां भगवती महालक्ष्मी का निवास माना जाता है।
कहां है मंदिर- यह मंदिर कोल्हापुर में स्थित है। यहां पुराने राजमहल के पास खजाना घर है। उसके पीछे महालक्ष्मी का विशाल मंदिर है। इसे लोग अंबाजी मंदिर भी कहते हैं। यह मंदिर ही शक्तिपीठ माना गया है।
कैसे पहुंचें- सड़क, वायु व रेलमार्ग से आसानी से कोल्हापुर पहुंचा जा सकता है।
जनस्थान शक्तिपीठ
जनस्थान शक्तिपीठ मंदिर में शिखर नहीं है। यहां सिंहासन पर नवदुर्गाओं की मूर्ति है। उनके मध्य में भद्रकाली की ऊंची मूर्ति है। इस स्थान पर देवी सती की ठोड़ी गिरी थी। यहां की शक्ति भ्रामरी और भैरव विकृताक्ष हैं।
कहां है मंदिर- नासिक के पास पंचवटी में स्थित भद्रकाली के मंदिर को ही शक्तिपीठ माना गया है। मध्य रेलवे की मुंबई से दिल्ली जाने वाली मुख्य लाइन पर नासिक एक प्रमुख स्टेशन है। वहां से पंचवटी 5 मील दूर है।
कैसे पहुंचें- सड़क, रेल व हवाई मार्ग से आसानी से नासिक पहुंचा जा सकता है।
कश्मीर शक्तिपीठ
इस शक्तिपीठ पर देवी का कंठ गिरा था। यहां की शक्ति माया और भैरव त्रिसंध्येश्वर हैं।
कहां है मंदिर- कश्मीर की अमरनाथ की गुफा में भगवान शिव का बर्फ से बना ज्योर्तिलिंग हिमशक्तिपीठ कहलाता है। वहां शिवपीठ के साथ ही एक गणेश पीठ व एक शक्तिपीठ भी बनता है।
कैसे पहुंचे- श्रावण पूर्णिमा को अमरनाथ के दर्शन के साथ-साथ यह शक्तिपीठ भी दिखाई देता है। इसलिए इस शक्ति पीठ तक पहुंचने के लिए अमरनाथ यात्रा का रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता है, जो कि समय-समय पर होते हैं।
श्री पर्वत शक्तिपीठ
इस स्थान पर माता सती के बाएं पैर की पायल गिरी थी। यहां की शक्ति श्री सुंदरी और भैरव सुंदरानंद हैं।
कहां है मंदिर- कुछ विद्वान इसे लद्दाख कश्मीर में तो कुछ असम प्रांत के सिलहट से 4 किलोमीटर दूर जैनपुर नामक जगह पर स्थित मानते हैं।
कैसे पहुंचें- असम के नेगाउ जिले से सड़क या रेलमार्ग से सिलहट पहुंचा जा सकता है। वहां से श्रीपर्वत शक्तिपीठ के लिए वाहन मिल सकते हैं।
त्रिपुरा शक्तिपीठ- त्रिपुरा में त्रिपुरासुंदरी शक्तिपीठ है।
त्रिपुरासुंदरी शक्तिपीठ
इस स्थान पर माता सती का सीधा पैर गिरा था। यहां की शक्ति त्रिपुरसुंदरी और भैरव त्रिपुरेश हैं। इसी शक्तिपीठ के नाम पर इस राज्य का नाम त्रिपुरा पड़ा।
कहां है मंदिर- इस राज्य के राधाकिशोरपुर नाम के गांव से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर यह शक्तिपीठ है।
कैसे पहुंचें- सड़क, वायु या रेलमार्ग से अगरतला पहुंचकर वहां से सड़क मार्ग से राधाकिशोरपुर और शक्तिपीठ पहुंचा जा सकता है।
पंजाब का शक्तिपीठ- पंजाब में लोग माता के भक्तों की संख्या काफी अधिक है। पंजाब में मां शक्तिस्वरूपा का एक ही शक्तिपीठ है। वह है जालंधर शक्तिपीठ।
जालंधर शक्तिपीठ
इस स्थान पर देवी का वाम स्तन गिरा था। यहां की शक्ति त्रिपुरमालिनी और भैरव भीषण हैं। लोगों का विश्वास है कि इस पीठ में संर्पूण देवी देवता और तीर्थ अंशरूप में निवास करते हैं।
कहां है मंदिर- जालंधर पंजाब के मुख्य नगरों में से एक है। उत्तर रेलवे की मुगलसराय-अमृतसर मुख्य लाइन पर पंजाब में जालंधर रेलवे स्टेशन है। यहां विश्वमुखी देवी का मंदिर है। इसे प्राचीन त्रिगर्ततीर्थ कहते हैं।
कैसे पहुंचें- हवाई मार्ग से लुधियाना पहुंचकर जालंधर आसानी से पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा रेल व सड़क मार्ग से भी आसानी से जालंधर पहुंच सकते हैं।
उड़ीसा के शक्तिपीठ- उड़ीसा में भी एक ही शक्तिपीठ स्थित है।
उड़ीसा उत्कल शक्तिपीठ
कहते हैं यहां देवी की नाभि गिरी थी। यहां की शक्ति विमला और भैरव जगन्नाथ हैं।
कहां है मंदिर- इस शक्ति पीठ के विषय में दो मान्यताएं हैं। पहली तो ये कि पुरी जगन्नाथ मंदिर के प्रांगण में स्थित विमलादेवी मंदिर ही शक्तिपीठ है। जबकि कुछ विद्वान मानते हैं कि याजपुर में ब्रह्मकुंड के समीप स्थित विरजा देवी मंदिर शक्तिपीठ है। याजपुर हावड़ा वाल्टेयर लाइन पर वैतरणी रोड़ स्टेशन से लगभग 18 किलोमीटर दूर है।
कैसे पहुंचें- पुरी, भुवनेश्वर व कोणार्क से आसानी से रेल या बस द्वारा याजपुर रोड़ पहुंचा जा सकता है। वहां से बस से उत्कल शक्तिपीठ जाना सबसे बेहतर तरीका है।
हरियाणा शक्तिपीठ- हरियाणा में एक मात्र कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ है।
कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ
इस जगह पर माता सती का टखना गिरा था। यहां की शक्ति सावित्री और भैरव स्थाणु हैं।
कहां है मंदिर- हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र नगर में द्वैपायन सरोवर के पास यह शक्तिपीठ है। यहां काली माता और स्थाणु शिव मंदिर बने हुए हैं।
कैसे पहुंचें- रेल, सड़क या हवाई मार्ग से दिल्ली पहुंचकर वहां से आसानी से कुरुक्षेत्र पहुंचा जा सकता है।
कालमाधव शक्तिपीठ
इस स्थान पर देवी देह का वाम नितंब गिरा था। यहां की शक्ति को काली और भैरव को असितांग कहा जाता है।
कहां है मंदिर- यह शक्तिपीठ अज्ञात है।
असम शक्तिपीठ- असम में एक मात्र शक्तिपीठ कामाख्या है, जिसे कालिकापुराण और देवीपुराण में सर्वोतम पीठ माना गया है।
कामाख्या शक्तिपीठ- प्राचीन मान्यता के अनुसार देवी सती की योनि यहां गिरी थी। यहां की शक्ति कामाख्या और भैरव उमानंद हैं। विश्व के सभी तांत्रिकों, मांत्रिकों और सिद्ध-पुरुषों के लिए वर्ष में एक बार पड़ने वाला अम्बूवाची योग पर्व एक वरदान है। यह अम्बूवाची पर्वत भगवती (सती) का रजस्वला पर्व होता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार सतयुग में यह पर्व 16 वर्ष में एक बार, द्वापर में 12 वर्ष में एक बार, त्रेता युग में 7 वर्ष में एक बार तथा कलियुग में हर वर्ष जून माह में तिथि के अनुसार मनाया जाता है।
कहां है मंदिर- कामाख्या मंदिर असम की राजधानी गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर नीलाचल पर्वत पर स्थित है।
कैसे पहुंचें- सड़क, वायु या रेलमार्ग से गुवाहाटी पहुंचकर। सड़क मार्ग से आसानी से कामाख्या माता मंदिर पहुंचा जा सकता है।
हिमालचल प्रदेश शक्तिपीठ- हिमाचल प्रदेश में एक ही शक्तिपीठ है।
ज्वालादेवी शक्तिपीठ
कहते हैं यहां मां सती की जिव्हा गिरी थी। यहां की शक्ति सिद्धिदा और भैरव उन्मत हैं।
कहां है मंदिर- ज्वाला देवी मंदिर, कांगडा घाटी से 30 कि.मी. दक्षिण में हिमाचल प्रदेश में स्थित है। इस मंदिर को जोता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। ज्वाला देवी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों को जाता है। उन्हीं के द्वारा इस पवित्र धार्मिक स्थल की खोज हुई थी। इस मंदिर में माता के दर्शन ज्योति रूप में होते है।
कैसे पहुंचें- हवाई, सड़क व रेलमार्ग से दिल्ली पहुंचकर। वहां से सड़क मार्ग से आसानी से कांगडा पहुंचा जा सकता है। कांगडा से ज्वालादेवी पहुंचने के लिए से कई साधन मिल जाते हैं।
मेघालय शक्तिपीठ- मेघालय में सिर्फ एक जयंती शक्तिपीठ है।
जयन्ती शक्तिपीठ
इस स्थान पर देवी देह की जंघा गिरी थी। यहां की शक्ति जयंती और भैरव क्रमदीश्वर हैं।
कहां है मंदिर- मेघालय भारत के पूर्वी भागों में स्थित एक पर्वतीय राज्य हैं। गारो, खासी और जयतिंया वहां की प्रमुख पहाड़ियां है। यहां की जयंती पहाड़ी को शक्तिपीठ माना जाता है। यह शिलांग से 53 कि.मी की दूरी पर है।
कैसे पहुंचें- सड़क, वायु या रेल मार्ग से शिलांग पहुंचकर। वहां से आसानी से सड़क मार्ग से जयंती शक्तीपीठ पहुंचा जा सकता है।
नेपाल में शक्तिपीठ- नेपाल एक स्वतंत्र हिंदू राष्ट्र है। सभ्यता और संस्कृति में ये भारत से अलग है। नेपाल में दो देवी शक्तिपीठ हैं।
गण्डकी शक्तिपीठ
कहा जाता है यहां माता सती की देह का कपोल गिरा था। यहां की शक्ति गण्डकी और भैरव चक्रपाणि हैं।
कहां है मंदिर- नेपाल में गण्डकी नदी के आरंभ स्थल पर यह मंदिर स्थित है।
कैसे पहुंचें- रेल, सड़क या हवाई मार्ग से नेपाल पहुंचकर वहां से सड़क मार्ग द्वारा आसानी से गंडकी नदी तक पहुंचा जा सकता है।
नेपाल शक्तिपीठ
इस स्थान पर देवी के दोनों घुटने गिरे थे। यहां की शक्ति माया और भैरव कपाल हैं।
कहां है मंदिर- नेपाल में पशुपतिनाथ मंदिर से थोड़ी दूर बागमती नदी पड़ती है। नदी के उस पार सिद्ध कालिका देवी शक्तिपीठ है।
कैसे पहुंचें- सड़क या हवाई मार्ग से नेपाल के काठमांडू पहुंचकर वहां से सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पशुपतिनाथ पहुंच सकते हैं।
पाकिस्तान शक्तिपीठ- पाकिस्तान में हिंगुला शक्तिपीठ स्थित है।
हिंगुला शक्तिपीठ
इस स्थान पर माता सती का ब्रह्म रंध्र गिरा था। यहां की शक्ति कोट्टरी और भैरव भीमलोचन हैं।
कहां है मंदिर- यह शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के हिंगलाज नामक स्थान में है। हिंगलाज कराची से 144 किलोमीटर दूरी पर है। इस यात्रा का अधिकांश भाग मरूस्थल से होकर तय करना पड़ता है। यात्रा के 13 मुकाम है।13 वें मुकाम पर हिंगलाज देवी मंदिर है। यहां माता के दर्शन ज्योति स्वरूप में होते हैं। गुफा में हाथ-पैर के बल जाना पड़ता है।
कैसे पहुंचें- सड़क, वायु या रेलमार्ग से कराची पहुंचकर वहां से सड़क मार्ग से हिंगुला शक्तिपीठ पहुंचा जा सकता है।
श्रीलंका शक्तिपीठ- श्रीलंका में एक शक्तिपीठ है।
लंका शक्तिपीठ
मान्यता है यहां देवी का कोई आभूषण गिरा था। यहां की शक्ति इंद्राक्षी और भैरव राक्षसेश्वर हैं।
कहां है मंदिर- यह मंदिर कहां स्थित है, ग्रंथों में इसका कोई स्पष्ट वर्णन नहीं मिलता है।
तिब्बत शक्तिपीठ- तिब्बत में भी केवल एक शक्तिपीठ है।
तिब्बत का मानस शक्तिपीठ
इस स्थान पर देवी सती की दायीं हथेली गिरी थी। यहां की शक्ति दाक्षायणी और भैरव अमर हैं।
कहां है मंदिर- यह मंदिर चीन व अधिकृत तिब्बत में मानसरोवर के तट पर स्थित है।
कैसे पहुंचें- सिर्फ मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले यात्री ही इस शक्तिपीठ के दर्शन लाभ ले सकते हैं। मानसरोवर यात्रा के लिए हर साल रजिस्ट्रेशन होते हैं।
पंचसागर शक्तिपीठ
पंचसागर की शक्ति वाराही और भैरव महारुद्र है। यहां देवी के नीचे के दांत गिरे थे।
कहां है मंदिर- इस पीठ के स्थान का शास्त्रों में उल्लेख नहीं किया गया है।

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