6 अप्रैल से हिंदू नव वर्ष; शनि राजा – सितारो की चाल से बन रहा है यह योग

6 अप्रैल से हिंदू नव वर्ष शुरू होगा, शनि होंगे राजा तो पिता सूर्य मंत्री : 6 अप्रैल से हिंदू नव वर्ष; शनि के राजा होने से सितारो की चाल से बना क्‍या योग ;राजनीतिक परिवर्तन के योग –
हिंदू नववर्ष प्रारंभ होने के दिन आकाशीय ग्रहों का भी निर्वाचन

6 अप्रैल से हिंदू नववर्ष प्रारंभ ; शक्ति की आराधना शुरू  ; राजनीतिक परिवर्तन के योग

 छह अप्रैल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत्‌ 2076 को नवसंवत्सर का प्रारंभ होगा। इस बार नवसंवत्सर का नाम परिधावि होगा। शनिवार के दिन नववर्ष प्रारंभ होने के कारण इस बार नवसंवत्सर के राजा शनिदेव होंगे। साथ ही उनके मंत्री मण्डल में शनि के पिता सूर्य रहेंगे। मंत्री मण्डल में सूर्य, मंगल, चंद्र को भी विशेष पद मिलेगा। पंचागीय गणना से वर्ष फल देखें तो हिन्दू नववर्ष मिश्रित फल देने वाला रहेगा। वर्षा व धान्य की दृष्टि से संवत्सर मध्यम फलदायी होगा। 

विक्रम संवत्सर परिधावि की शुरुआत शनिवार के दिन हो रही है। मान्यता यह है कि जिस दिन संवत्सर का आरंभ होता है, उस दिन के अधिपति संवत्सर के राजा होते हैं। इसलिए इस बार संवत्सर के राजा शनि होंगे। मंत्रीमंडल में शामिल चार ग्रहों के पास नौ महत्वपूर्ण विभाग रहेंगे। वर्षभर इनका प्रभाव अलग-अलग रूपों में नजर आएगा। इस बार वर्षा की स्थिति व धान्य का उत्पादन मध्यम रहेगा। वर्षा ऋतु में बारिश की स्थित को श्रेष्ठ बनाने के लिए धार्मिक अनुष्ठान की आवश्यकता रहेगी। पशु धन में संक्रमण, समाज में अस्थिरता तथा हिंसात्मक घटनाएं भी सामने आएंगी। शत्रु राष्ट्रों से युद्ध की स्थिति तथा राजनीतिक परिवर्तन के योग भी बनेंगे।

 ग्रहों का प्रभाव; राजा शनि : जनमानस आध्यात्मिक अनुभूति करेगा। वर्षा की दृष्टि से प्राकृतिक प्रभाव परेशानी पैदा करेगा। महंगाई भी बढ़ेगी, जिसके कारण मुद्रास्फीति प्रभावित होगी। साथ ही कई जगह अघोषित युद्ध की स्थिति निर्मित होगी।

मंत्री सूर्य : पूर्वोत्तर में उत्तम कृषि तथा धान्य की स्थिति सुदृढ़ होगी। फलों की अधिक खेती होने से रस पदार्थों के भाव में मंदी रहेगी।

सस्येश मंगल : पशुधन पर संकट की स्थिति रहेगी। संक्रमण का प्रभाव बढ़ेगा। दक्षिण के कुछ प्रांतों में पेयजल संकट उत्पन्न होगा। सामाजिक अस्थितरता तथा हिंसात्मक घटना बढ़ेगी।

धान्येश चंद्र : वर्षाकाल में आध्यात्मिक अनुष्ठान से वर्षा की स्थिति श्रेष्ठ होगी। पशुधन की सुरक्षा का लाभ मिलेगा। आम जनमानस के मध्य आपसी सौहार्द बढ़ेगा।

मेघेश शनि : पश्चिमोत्तर राष्ट्रों में प्राकृतिक तथा सामुदायिक घटना बढ़ेगी। खड़ी फसलों को नुकसान हो सकता है। कहीं कहीं खंड वृष्टि के योग बनेंगे।

रसेश गुरु : जुलाई के बाद प्राकृतिक सहयोग होने से जल की स्थिति अनुकूल होगी। जलस्रोतों के परिपूर्ण होने की स्थिति बनेगी। प्राचीन परंपरागत औषधीय की उत्पत्ति श्रेष्ठ रहेगी।

फलेश शनि : पुष्प तथा फलों की खेती में कुछ उत्पादक स्थानों पर कमी रहेगी। शीत ऋतु में हिमपात होने से शीत लहर में वृद्घि होगी।

धनेश मंगल : विश्व में अनेक राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था में उतार चढ़ाव दिखाई देगा।

सेनापति शनि : अनेक राष्ट्रों में राजनीति के चलते आंदोलन, प्रदर्शन, विरोध तथा अस्थिरता दिखाई देगी। प्राकृतिक आपदा से जनता प्रभावित होगी।

 जिस प्रकार संसार में सरकार चलाने के लिए मंत्रिमंडल का गठन होता है, उसी प्रकार प्रतिवर्ष हिंदू नववर्ष प्रारंभ होने के दिन आकाशीय ग्रहों का भी निर्वाचन होता है। निर्वाचित ग्रहों का कार्यकाल एक वर्ष का होता है। इस वर्ष आकाशीय मंडल के निर्वाचन में राजा का पद शनि को प्राप्त हुआ है। वहीं प्रधानमंत्री सूर्य बनाए गए हैं। जबकि पिछले वर्ष राष्ट्रपति का पद सूर्य के पास और प्रधानमंत्री का पद शनि के पास था। सूर्य के राष्ट्रपति होने से पूरे विश्व में भारत की शान सूर्य के समान चमकी। इस वर्ष अखिल ब्राह्मंड के सर्वोच्च न्यायाधीश शनिदेव के राजा बनने से भारतीयों को अनेक मामलों में न्याय मिलेगा। इसमें आतंकी घटनाओं सहित धार्मिक एवं सामाजिक मामलों की समरसता विश्वभर में बढ़ेगी। राजा शनि के पास वर्षा यानि मेघेश का प्रभार रहेगा। रक्षा विभाग दुर्गेश एवं फलों का प्रभार फलेश भी शनि को बनाया गया। इस प्रकार राजा के पास चार विभाग होंगे। खरीफ की फसलों का स्वामी चंद्रमा, रवि का स्वामी बुध हैं। रसों का प्रभार शुक्र के पास रहेगा। नीरसेष वस्तुओं का प्रभार बुध के पास, वित्त मंत्रालय यानि धनेश मंगल के पास रहेगा। इसके साथ ही पिछले वर्ष के उलट 10 विभागों में से 6 विभाग क्रूर ग्रहों के पास और 4 विभाग सौम्य ग्रहों के पास रहेंगे।  राजा शनि द्वारा संवत 2076 में चार विभाग हथिया लेने से न्याय व्यवस्था तथा रक्षा के मामलों में कसावट रहेगी। रवि एवं खरीफ की फसल का स्वामी बुध-चंद्र अनाजों की अच्छी पैदावार कराएगा। रसेश यानि बिना रस वाली वस्तुएं शुक्र, नीरसेश सूखी वस्तुएं बुध शुभ फल देगा। वित्त विभाग मंगल के पास होने से विश्वभर में मंदी की संभावना है। गुरु-बृहस्पति को इस वर्ष का प्रभार प्राप्त हुआ है। इनको मंत्रिमंडल में कोई स्थान प्राप्त नहीं हुआ है। संवत 2076 परिधावी नामक संवतसर होगा। 60 संवतसरों में यह संवत 46वें क्रम पर है। इस वर्ष मेघेश का स्वामी शनि सामान्य बारिश कराएगा। शनि क्रूर ग्रह होने के कारण एवं रोहिणी का वास समुद्र के पास होने से युद्धादि जैसे हालात बनेंगे।

– मानव निर्मित प्राकृतिक प्रकोप बढ़ेंगे। राजा शनि एवं प्रधानमंत्री सूर्य का प्रभाव इस वर्ष असाध्य रोग की दवा का अविष्कार कराने में सहायक होगा। राजा शनि के धार्मिक राशि धनु पर रहने से धार्मिक मामलों का निपटारा संभव है।

शास्त्रों के अनुसार 60 संवतसरों को तीन भागों में बांटा गया है। रुद्रबीसी का योग 20 वर्ष तक चलता है। पहला ब्रह्मा बीसी, दूसरा विष्णुबीसी, तीसरा रुद्रबीसी होता है। रुद्रबीसी का यह 5वां वर्ष (2013-2034) चल रहा है। गौरतलब है कि रुद्रबीसी के पहले वर्ष केदारनाथ आपदा, दूसरे वर्ष भगवान पशुपतिनाथ को प्राकृतिक प्रकोप, तीसरे वर्ष सिंहस्थ उज्जैन में प्राकृतिक प्रकोप तथा चौथे वर्ष केरल की बाढ़ त्रासदी के अलावा वर्ष के जाते-जाते पुलवामा में आतंकी घटना आदि रुद्रबीसी का प्रभाव है। यह पांचवां वर्ष है। प्राकृतिक प्रकोप एवं आपदाओं से भरा रहेगा। अभी रुद्रबीसी के 15 वर्ष शेष हैं। रुद्रबीसी के 15 वर्ष संघर्षपूर्ण माने गए हैं। इस दौरान विश्व युद्ध जैसी स्थितियां बनने के संकेत हैं। बड़े ग्रहों को देखा जाए तो पूरे वर्षभर शनि और गुरु धनु राशि में, राहु मिथुन राशि में, केतु धनु राशि में संचारत रहेंगे।

नए वर्ष के प्रथम दिन के स्वामी को उस वर्ष का स्वामी भी मानते हैं। 2019 में हिन्दू नव वर्ष शनिवार से आरंभ हो रहा है, अतः नए सम्वत् का स्वामी शनि है। नव संवत 2076 आगामी 6 अप्रैल 2019 से प्रारंभ होकर 24 मार्च 2020 तक होगा।     हिंदू पंचांग में नववर्ष का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी ‘गुड़ी पड़वा’ से माना जाता है जो कि इस बार 8 अप्रैल को पड़ रहा है| हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, यह दिन सृष्टि रचना का पहला दिन है| इस दिन चैत्र नवरात्रि भी प्रारंभ होती है| हिन्दू परम्परा के अनुसार इस दिन को ‘नव संवत्सर’ या ‘नव संवत’ के नाम से भी जाना जाता है| नव संवत् के राजा इस बार सूर्य व मंत्री शनि हैं। खास यह कि संवत 2075 का आगमन मीन लग्न और मीन राशि में हो रहा है। मीन लग्न में चतु‌र्ग्रही योग बना है और इसमें ही नव संवत्सर का आगमन हो रहा है। इसी दिन ब्रह्मा जी ने जगत की रचना प्रारंभ की थी इसीलिए हम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नए साल का आरम्भ मानते हैं| हिन्दू पंचांग का पहला महीना चैत्र होता है| यही नहीं शक्ति और भक्ति के नौ दिन यानी कि नवरात्रि स्थापना का पहला दिन भी यही है| ऐसी मान्यता है कि इस दिन नक्षत्र शुभ स्थिति में आ जाते हैं और किसी भी नए काम को शुरू करने के लिए यह मुहूर्त शुभ होता है| नव संवत का राजा सूर्य और मंत्री शनि होने को ठीक संकेत नहीं माना जा रहा लेकिन भारत का विश्व में प्रभुत्व बढे़गा। ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय व्यापार में पूंजी निवेश की अभिवृद्धि होगी। मित्र देशों का सहयोग समर्थन प्राप्त होगा। स्त्री हित में तमाम नए कानूनादि का निर्माण होगा। हालांकि बड़े नेताओं या केंद्र-राज्य की सत्ता व नौकरशाहों में मतभेद दिखेगा। देश के पश्चिमोत्तर में हिंसक घटनाओं की अधिकता हो सकती है। पड़ोसी राष्ट्रों से अत्यधिक सावधान रहने की आवश्यकता होगी। शेयर बाजार में भारी उतार चढ़ाव देखने को मिलेगा। इस संवत में अच्छी और समय पर बारिश की उम्मीद जताई जा रही है। इससे अनाज और फलों की पैदावार अच्छी होगी। लोग सुविधाओं का अधिक इस्तेमाल कर सकेंगे। किसान और व्यापारी वर्ग का लाभ बढ़ेगा। इस मार्च महीने में सूर्य, मंगल, बुध और शुक्र राशि बदलेंगे। वहीं गुरु ग्रह की चाल टेढ़ी हो जाएगी। सितारों की ये स्थिति कुछ लोगों की लाइफ में बड़े बदलाव कर सकती है। इन ग्रहों के कारण वृष, सिंह और मीन राशि वाले नौकरीपेशा लोगों को तरक्की मिल सकती है। नौकरी बदलने की सोच रहे हैं तो बहुत अच्छे आॅप्शन मिल सकते हैं। करियर में आगे बढ़ने के अच्छे मौके मिल सकते हैं। वहीं मेष, कर्क, कन्या, तुला, धनु और कुंभ राशि वालों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। बिजनेस करने वालों को रुका हुआ पैसा मिल सकता है। फायदे वाले निवेश होंगे और कुछ लोगों को अचानक धन लाभ भी हो सकता है। इनके अलावा अन्य राशि वाले लोगों के लिए ये महीना मिला-जुला रहेगा। इन सितारों का आपकी सेहत पर भी असर पड़ेगा।

इस मार्च महीने में सूर्य, मंगल, बुध और शुक्र राशि बदलेंगे। वहीं गुरु ग्रह की चाल टेढ़ी हो जाएगी। सितारों की ये स्थिति कुछ लोगों की लाइफ में बड़े बदलाव कर सकती है। इन ग्रहों के कारण वृष, सिंह और मीन राशि वाले नौकरीपेशा लोगों को तरक्की मिल सकती है। नौकरी बदलने की सोच रहे हैं तो बहुत अच्छे आॅप्शन मिल सकते हैं। करियर में आगे बढ़ने के अच्छे मौके मिल सकते हैं। वहीं मेष, कर्क, कन्या, तुला, धनु और कुंभ राशि वालों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। बिजनेस करने वालों को रुका हुआ पैसा मिल सकता है। फायदे वाले निवेश होंगे और कुछ लोगों को अचानक धन लाभ भी हो सकता है। इनके अलावा अन्य राशि वाले लोगों के लिए ये महीना मिला-जुला रहेगा। इन सितारों का आपकी सेहत पर भी असर पड़ेगा।

इस मार्च महीने में सूर्य, मंगल, बुध और शुक्र राशि बदलेंगे। वहीं गुरु ग्रह की चाल टेढ़ी हो जाएगी। सितारों की ये स्थिति कुछ लोगों की लाइफ में बड़े बदलाव कर सकती है। इन ग्रहों के कारण वृष, सिंह और मीन राशि वाले नौकरीपेशा लोगों को तरक्की मिल सकती है। नौकरी बदलने की सोच रहे हैं तो बहुत अच्छे आॅप्शन मिल सकते हैं। करियर में आगे बढ़ने के अच्छे मौके मिल सकते हैं। वहीं मेष, कर्क, कन्या, तुला, धनु और कुंभ राशि वालों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। बिजनेस करने वालों को रुका हुआ पैसा मिल सकता है। फायदे वाले निवेश होंगे और कुछ लोगों को अचानक धन लाभ भी हो सकता है। इनके अलावा अन्य राशि वाले लोगों के लिए ये महीना मिला-जुला रहेगा। इन सितारों का आपकी सेहत पर भी असर पड़ेगा।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा गुड़ी पड़वा पर 18 मार्च, रविवार को विक्रम संवत 2075 का आरंभ होगा। इस नववर्ष विरोधकृत संवत्सर रहेगा जिसका राजा सूर्य तथा मंत्री शनिदेव होंगे। 10 सदस्यीय मंत्रिमंडल में 7 विभाग शुभ ग्रहों के पास रहेंगे। इनमें सूर्य के पास 2, चन्द्रमा के पास 3 तथा शुक्र के पास 2 विभाग होंगे। मंत्रिमंडल का वर्षफल देखा जाए तो इस वर्ष समय पर बारिश होगी। धान्य का उत्पादन श्रेष्ठ रहेगा। बाजार में तेजी से व्यापार उन्नति करेगा। शनि न्याय का देवता होकर इस बार इन्हें मंत्री पद प्राप्त होने से भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी। सूर्य को इस बार राजा का पद होने से प्रशासनिक भ्रष्ट अधिकारियों पर गाज गिरेगी।

जिस दिन संवत्सर का आरंभ होता है, उस दिन का अधिपति संवत्सर का राजा कहलाता है। इस बार रविवार के दिन नवसंवत्सर का आरंभ हो रहा है इसलिए इस वर्ष के राजा सूर्यदेव होंगे, मंत्री शनिदेव होंगे तथा अन्य विभाग इस प्रकार हैं- सस्येश चन्द्रमा, धान्येश सूर्य, मेघेष शुक्र, दुर्गेश शुक्र, रसेश बुध, नीरसेस चन्द्र, फलेश गुरु, धान्येश चन्द्र हैं।

वर्ष 2018 के मंत्री मंडल में सूर्य राजा एवं शनि मंत्री होंगे। मेघेश शुक्र एवं धनेश चंद्र होंगे। विरोधकृत संवत्सर में फ़सलों के उत्पादन में कमी, आतंकी वारदातों में वृद्धि, वर्षा में कमी, सूखा, एवं सत्तापक्ष को मानसिक कष्ट रहेगा। अनाज मंहगा होगा। दूध एवं फ़लों के रस का उत्पादन बढ़ेगा। चांदी सस्ती होगी। विक्रम संवत् 2075 के अन्तर्गत विरोधकृत संवत्सर में तीन सूर्यग्रहण एवं दो चंद्रग्रहण होंगें। तीनों सूर्यग्रहण भारत में दृश्य नहीं होंगे। शेष दो चंद्रग्रहण में से केवल एक चंद्रग्रहण भारत में दृश्य होगा, जो आषाढ़ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा दिन शुक्रवार दिनांक 27 जुलाई 2018 होगा। यह खग्रास चंद्रग्रहण संपूर्ण भारत में दृश्य एवं मान्य होगा।

राशियों पर प्रभाव-

1. मेष- रोग व शोक

2. वृष- नेष्टसूचक, अशुभ

3. मिथुन- नेष्टसूचक, अशुभ

4. कर्क- सुख शांति

5. सिंह- सुख, समृद्धि

6 कन्या- नेष्टसूचक, अशुभ

7. तुला- नेष्टसूचक, अशुभ

8. वृश्चिक- रोग व शोक

9. धनु- सुख, शांति

10. मकर- सुख, समृद्धि

11 कुंभ- सुख, समृद्धि

12. मीन- सुख, शांति

6 अप्रैल 2019 से सनातन धर्म के स्त्री सिद्धयुग पूर्णिमाँ के 2076 का प्रथम चरण, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 2019,भारतीय नव वर्ष विक्रम संवत्, युगाब्द सिद्धयुग वर्ष 2076 नववर्ष हिन्दू नव संवत्सर पूर्णिमाँ के प्रारम्भ की शुभकामनायें,

इस मार्च महीने में सूर्य, मंगल, बुध और शुक्र राशि बदलेंगे। वहीं गुरु ग्रह की चाल टेढ़ी हो जाएगी। सितारों की ये स्थिति कुछ लोगों की लाइफ में बड़े बदलाव कर सकती है। इन ग्रहों के कारण वृष, सिंह और मीन राशि वाले नौकरीपेशा लोगों को तरक्की मिल सकती है। नौकरी बदलने की सोच रहे हैं तो बहुत अच्छे आॅप्शन मिल सकते हैं। करियर में आगे बढ़ने के अच्छे मौके मिल सकते हैं। वहीं मेष, कर्क, कन्या, तुला, धनु और कुंभ राशि वालों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। बिजनेस करने वालों को रुका हुआ पैसा मिल सकता है। फायदे वाले निवेश होंगे और कुछ लोगों को अचानक धन लाभ भी हो सकता है। इनके अलावा अन्य राशि वाले लोगों के लिए ये महीना मिला-जुला रहेगा। इन सितारों का आपकी सेहत पर भी असर पड़ेगा।

नवरात्रि पर्व हिन्दू धर्म के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस पावन अवसर पर माँ दुर्गा के नौ रूपों की आराधना की जाती है। इसलिए यह पर्व नौ दिनों तक मनाया जाता है। वेद-पुराणों में माँ दुर्गा को शक्ति का रूप माना गया है जो असुरों से इस संसार की रक्षा करती हैं। नवरात्र के समय माँ के भक्त उनसे अपने सुखी जीवन और समृद्धि की कामना करते हैं। आइए जानते हैं माँ दुर्गा के नौ रूप कौन-कौन से हैं :-

1.  माँ शैलपुत्री
2.  माँ ब्रह्मचारिणी
3.  माँ चंद्रघण्टा
4.  माँ कूष्मांडा
5.  माँ स्कंद माता
6.  माँ कात्यायनी
7.  माँ कालरात्रि
8.  माँ महागौरी
9.  माँ सिद्धिदात्री

सनातन धर्म में नवरात्र पर्व का बड़ा महत्व है कि यह एक साल में पाँच बार मनाया जाता है। हालाँकि इनमें चैत्र और शरद के समय आने वाली नवरात्रि को ही व्यापक रूप से मनाया जाता है। इस अवसर पर देश के कई हिस्सों में मेलों और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। माँ के भक्त भारत वर्ष में फैले माँ के शक्ति पीठों के दर्शन करने जाते हैं। वहीं शेष तीन नवरात्रियों को गुप्त नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। इनमें माघ गुप्त नवरात्रि, आषाढ़ गुप्त नवरात्रि और पौष नवरात्रि शामिल हैं। इन्हें देश के विभिन्न हिस्सों में सामान्य रूप से मनाया जाता है।

नवरात्रि पर्व का महत्व

यदि हम नवरात्रि शब्द का संधि विच्छेद करें तो ज्ञात होता है कि यह दो शब्दों के योग से बना है जिसमें पहला शब्द ‘नव’ और दूसरा शब्द ‘रात्रि’ है जिसका अर्थ है नौ रातें। नवरात्रि पर्व मुख्य रूप से भारत के उत्तरी राज्यों के अलावा गुजरात और पश्चिम बंगाल में बड़ी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर माँ के भक्त उनका आशीर्वाद पाने के लिए नौ दिनों का उपवास रखते हैं।

इस दौरान शराब, मांस, प्याज, लहसुन आदि चीज़ों का परहेज़ किया जाता है। नौ दिनों के बाद दसवें दिन व्रत पारण किया जाता है। नवरात्र के दसवें दिन को विजयादशमी या दशहरा के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि इसी दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध करके लंका पर विजय पायी थी।

नवरात्रि से जुड़ी परंपरा

भारत सहित विश्व के कई देशों में नवरात्रि पर्व को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भक्तजन घटस्थापना करके नौ दिनों तक माँ की आराधना करते हैं। भक्तों के द्वारा माँ का आशीर्वाद पाने के लिए भजन कीर्तन किया जाता है। नौ दिनों तक माँ की पूजा उनके अलग अलग रूपों में की जाती है। जैसे –

नवरात्रि का पहला दिन माँ शैलपुत्री को होता है समर्पित

नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माँ पार्वती माता शैलपुत्री का ही रूप हैं और हिमालय राज की पुत्री हैं। माता नंदी की सवारी करती हैं। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का फूल है। नवरात्रि के पहले दिन लाल रंग का महत्व होता है। यह रंग साहस, शक्ति और कर्म का प्रतीक है। नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना पूजा का भी विधान है।

नवरात्रि का दूसरा दिन माँ ब्रह्मचारिणी के लिए है

नवरात्रि का दूसरा दिन माता ब्रह्मचारिणी को समर्पित होता है। माता ब्रह्मचारिणी माँ दुर्गा का दूसरा रूप हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब माता पार्वती अविवाहित थीं तब उनको ब्रह्मचारिणी के रूप में जाना जाता था। यदि माँ के इस रूप का वर्णन करें तो वे श्वेत वस्त्र धारण किए हुए हैं और उनके एक हाथ में कमण्डल और दूसरे हाथ में जपमाला है। देवी का स्वरूप अत्यंत तेज़ और ज्योतिर्मय है। जो भक्त माता के इस रूप की आराधना करते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन का विशेष रंग नीला है जो शांति और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है।

नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघण्टा की होती है पूजा

नवरात्र के तीसरे दिन माता चंद्रघण्टा की पूजा की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि माँ पार्वती और भगवान शिव के विवाह के दौरान उनका यह नाम पड़ा था। शिव के माथे पर आधा चंद्रमा इस बात का साक्षी है। नवरात्र के तीसरे दिन पीले रंग का महत्व होता है। यह रंग साहस का प्रतीक माना जाता है।

नवरात्रि के चौथे दिन माँ कुष्माण्डा की होती है आराधना

नवरात्रि के चौथे दिन माता कुष्माडा की आराधना होती है। शास्त्रों में माँ के रूप का वर्णन करते हुए यह बताया गया है कि माता कुष्माण्डा शेर की सवारी करती हैं और उनकी आठ भुजाएं हैं। पृथ्वी पर होने वाली हरियाली माँ के इसी रूप के कारण हैं। इसलिए इस दिन हरे रंग का महत्व होता है।

नवरात्रि का पाँचवां दिन माँ स्कंदमाता को है समर्पित

नवरात्र के पाँचवें दिन माँ स्कंदमाता का पूजा होता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है। स्कंद की माता होने के कारण माँ का यह नाम पड़ा है। उनकी चार भुजाएँ हैं। माता अपने पुत्र को लेकर शेर की सवारी करती है। इस दिन धूसर (ग्रे) रंग का महत्व होता है।

नवरात्रि के छठवें दिन माँ कात्यायिनी की होती है पूजा

माँ कात्यायिनी दुर्गा जी का उग्र रूप है और नवरात्रि के छठे दिन माँ के इस रूप को पूजा जाता है। माँ कात्यायिनी साहस का प्रतीक हैं। वे शेर पर सवार होती हैं और उनकी चार भुजाएं हैं। इस दिन केसरिया रंग का महत्व होता है।

नवरात्रि के सातवें दिन करते हैं माँ कालरात्रि की पूजा

नवरात्र के सातवें दिन माँ के उग्र रूप माँ कालरात्रि की आराधना होती है। पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि जब माँ पार्वती ने शुंभ-निशुंभ नामक दो राक्षसों का वध किया था तब उनका रंग काला हो गया था। हालाँकि इस दिन सफेद रंग का महत्व होता है।

नवरात्रि के आठवें दिन माँ महागौरी की होती है आराधना

महागौरी की पूजा नवरात्रि के आठवें दिन होती है। माता का यह रूप शांति और ज्ञान की देवी का प्रतीक है। इस दिन गुलाबी रंग का महत्व होता है जो जीवन में सकारात्मकता का प्रतीक होता है।

नवरात्रि का अंतिम दिन माँ सिद्धिदात्री के लिए है समर्पित

नवरात्रि के आखिरी दिन माँ सिद्धिदात्री की आराधना होती है। ऐसा कहा जाता है कि जो कोई माँ के इस रूप की आराधना सच्चे मन से करता है उसे हर प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती है। माँ सिद्धिदात्री कमल के फूल पर विराजमान हैं और उनकी चार भुजाएँ हैं।

भारत में इस तरह मनाया जाता है नवरात्रि का पावन त्यौहार

नवरात्रि के पावन अवसर पर माँ दुर्गा के लाखों भक्त उनकी हृदय से पूजा-आराधना करते हैं। ताकि उन्हें उनकी श्रद्धा का फल माँ के आशीर्वाद के रूप में मिल सके। नवरात्रि के दौरान माँ के भक्त अपने घरों में का माँ का दरवार सजाते हैं। उसमें माता के विभिन्न रूपों की प्रतिमा या चित्र को रखा जाता है। नवरात्रि के दसवें दिन माँ की प्रतिमा को बड़ी धूमधाम के साथ जल में प्रवाह करते हैं।

पश्चिम बंगाल में सिंदूर खेला की प्रथा चलती है। जिसमें महिलाएँ एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। वहीं गुजरात में गरबा नृत्य का आयोजन किया जाता है। जिसमें लोग डांडिया नृत्य करते हैं। उत्तर भारत में नवरात्रि के समय जगह-जगह रामलीला का आयोजन होता है और दसवें दिन रावण के बड़े-बड़े पुतले बनाकर उन्हें फूंका जाता है।

नवरात्रि के लिए पूजा सामग्री

●  माँ दुर्गा की प्रतिमा अथवा चित्र
●  लाल चुनरी
●  आम की पत्तियाँ
●  चावल
●  दुर्गा सप्तशती की किताब
●  लाल कलावा
●  गंगा जल
●  चंदन
●  नारियल
●  कपूर
●  जौ के बीच
●  मिट्टी का बर्तन
●  गुलाल
●  सुपारी
●  पान के पत्ते
●  लौंग
●  इलायची

नवरात्रि पूजा विधि

●  सुबह जल्दी उठें और स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें
●  ऊपर दी गई पूजा सामग्री को एकत्रित करें
●  पूजा की थाल सजाएँ
●  माँ दर्गा की प्रतिमा को लाल रंग के वस्त्र में रखें
●  मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज बोयें और नवमी तक प्रति दिन पानी का छिड़काव करें
●  पूर्ण विधि के अनुसार शुभ मुहूर्त में कलश को स्थापित करें। इसमें पहले कलश को गंगा जल से भरें, उसके मुख पर आम की पत्तियाँ लगाएं और उपर नारियल रखें। कलश को लाल कपड़े से लपेंटे और कलावा के माध्यम से उसे बाँधें। अब इसे मिट्टी के बर्तन के पास रख दें
●  फूल, कपूर, अगरबत्ती, ज्योत के साथ पंचोपचार पूजा करें
●  नौ दिनों तक माँ दुर्गा से संबंधित मंत्र का जाप करें और माता का स्वागत कर उनसे सुख-समृद्धि की कामना करें
●  अष्टमी या नवमी को दुर्गा पूजा के बाद नौ कन्याओं का पूजन करें और उन्हें तरह-तरह के व्यंजनों (पूड़ी, चना, हलवा) का भोग लगाएं
●  आखिरी दिन दुर्गा के पूजा के बाद घट विसर्जन करें इसमें माँ की आरती गाएं, उन्हें फूल, चावल चढ़ाएं और बेदी से कलश को उठाएं

नवरात्रि से संबंधित पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि महिषासुर नामक राक्षस ब्रह्मा जी का बड़ा भक्त था। उसकी भक्ति को देखकर शृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी प्रसन्न हो गए और उसे यह वरदान दे दिया कि कोई देव, दानव या पुरुष उसे मार नहीं पाएगा। इस वरदान को पाकर महिषासुर के अंदर अहंकार की ज्वाला भड़क उठी। वह तीनों लोकों में अपना आतंक मचाने लगा।

इस बात से तंग आकर ब्रह्मा, विष्णु, महेश के साथ सभी देवताओं ने मिलकर माँ शक्ति के रूप में दुर्गा को जन्म दिया। कहते हैं कि माँ दुर्गा और महिषासुर के बीच नौ दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ और दसवें दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया। इस दिन को अच्छाई पर बुराई की जीत के रूप में मनाया जाता है।

एक दूसरी कथा के अनुसार, त्रेता युग में भगवान राम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले शक्ति की देवी माँ भगवती की आराधना की थी। उन्होंने नौ दिनों तक माता की पूजा की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर माँ स्वयं उनके सामने प्रकट हो गईं। उन्होंने श्रीराम को विजय प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। दसवें दिन भगवान राम ने अधर्मी रावण को परास्त कर उसका वध कर लंका पर विजय प्राप्त की। इस दिन को विजय दशमी के रूप में जाना जाता है।

नवरात्रि की शुभकामनाएँ।

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उत्तराखण्ड का पहला
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