अन्तर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस  ; आदिवासी समाज को मोदी से आशा

9 अगस्त  #जीवंत आदिवासी समाज की उपेक्षा क्यों? #आज भी आदिवासी लोग दुनियाभर में उपेक्षा के शिकार   #मूलभूत सुविधाओं के लिए वे आज भी तरस रहे # इनकी पहचान मिटाने की राजनीतिक साजिश # भटकी बंजारा जातियों की जनगणना नहीं की जाती # श्री नरेन्द्र मोदी के नये भारत की परिकल्पना को आदिवासी समाज बहुत ही आशाभरी नजरों से देख रहा # www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal & Daily Newspaper) publish at Dehradun & Haridwar; ; 
-ः गणि राजेन्द्र विजय:-

देश एवं दुनिया में 9 अगस्त को अन्तर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस मनाया जाता है। यह दिवस पूरी दुनिया में आदिवासी जन-जीवन को समर्पित किया गया है, ताकि आदिवासियों के उन्नत, स्वस्थ, समतामूलक एवं खुशहाल जीवन की नयी पगडंडी बने, विचार-चर्चाएं आयोजित हो, सरकारें भी सक्रिय होकर आदिवासी कल्याण की योजनाओं को लागू करें। इस दिवस को आयोजित करने की आवश्यकता इसलिये पड़ी कि आज भी आदिवासी लोग दुनियाभर में उपेक्षा के शिकार हो रहे हैं, उनको उचित सम्मान एवं उन्नत जीवन नहीं मिल पा रहा है।
वर्तमान दौर की एक बहुत बड़ी विडम्बना है कि आदिवासी समाज की आज कई समस्यायें से घिरा है। हजारों वर्षों से जंगलों और पहाड़ी इलाकों में रहने वाले आदिवासियों को हमेशा से दबाया और कुचला जाता रहा है जिससे उनकी जिन्दगी अभावग्रस्त ही रही है। केंद्र सरकार आदिवासियों के नाम पर हर साल हजारों करोड़ों रुपए का प्रावधान बजट में करती है। इसके बाद भी उनकी आर्थिक स्थिति, जीवन स्तर में कोई बदलाव नहीं आया है। स्वास्थ्य सुविधाएं, पीने का साफ पानी आदि मूलभूत सुविधाओं के लिए वे आज भी तरस रहे हैं।
जल, जंगल, जमीन की लड़ाई लड़ने वाले आदिवासियों को अपनी भूमि से बहुत लगाव होता है, उनकी जमीन बहुत उपजाऊ होती हंै, उनकी माटी एक तरह से सोना उगलती है। जनसंख्या वृद्धि के कारण भूमि की मांग में वृद्धि हुई है। इसीलिये बाहरी लोगोें ने आदिवासी क्षेत्रों में घुसपैठ किया है जिससे भूमि अधिग्रहण काफी हुआ है। आदिवासियों की जमीन पर अब वे खुद मकान बना कर रह रहे हैं, कृषि के साथ-साथ वे यहाँ व्यवसाय भी कर रहे हैं। भूमि हस्तांतरण एक मुख्य कारण है जिससे आज आदिवासियों की आर्थिक स्थिति दयनीय हुई है।.

इस तरह की स्थितियां आदिवासी समाज के अस्तित्व और उनकी पहचान के लिए खतरा बनती जा रही है। आज बड़े ही सूक्ष्म तरीके से इनकी पहचान मिटाने की राजनीतिक साजिश चल रही है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि आज भी विमुक्त, भटकी बंजारा जातियों की जनगणना नहीं की जाती है। तर्क यह दिया जाता है कि वे सदैव एक स्थान पर नहीं रहते। आदिवासियों की ऐसी स्थिति तब है जबकि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आदिवासी को भारत का मूल निवासी माना है लेकिन आज वे अपने ही देश में परायापन, तिरस्कार, शोषण, अत्याचार, धर्मान्तरण, अशिक्षा, साम्प्रदायिकता और सामाजिक एवं प्रशासनिक दुर्दशा के शिकार हो रहे हैं। आदिवासी वर्ग की मानवीय गरिमा को प्रतिदिन तार-तार किया जा रहा है। हजारों आदिवासी दिल्ली या अन्य जगहों पर रोजगार के लिए बरसों से आते-जाते हैं पर उनका आंकड़ा भी जनगणना में शामिल नहीं किया जाता है, न ही उनके राशन कार्ड बनते हैं और न ही वे कहीं के वोटर होते हैं। अर्थात इन्हें भारतीय नागरिकता से भी वंचित रखा जाता है। आदिवासियों की जमीन तो छीनी ही गई उनके जंगल के अधिकार भी छिन गए इतना ही नहीं उन्हें मूल लोकतांत्रिक अधिकार देश की नागरिकता से भी वंचित किया जा रहा है।

आदिवासी समाज की अपनी एक पहचान है जिसमें उनके रहन-सहन, आचार-विचार एक जैसे ही होते हैं। इधर बाहरी प्रवेश, शिक्षा और संचार माध्यमों के कारण इस ढांचे में भी थोड़ा बदलाव जरूर आया है। देश के विभिन्न आदिवासी क्षेत्रों की समस्याएं थोड़ी बहुत अलग हो सकती है किन्तु बहुत हद तक यह एक समान ही होती है। वैसे वर्षों से शोषित रहे इस समाज के लिए परिस्थितियां आज भी कष्टप्रद और समस्यायें बहुत अधिक हैं। ये समस्यायें प्राकृतिक तो होती ही है साथ ही यह मानवजनित भी होती है।
आदिवासियों के लिए ऋणग्रस्तता की समस्या सबसे जटिल है जिसके कारण जनजातीय लोग साहूकारों के शोषण का शिकार होते हैं। आदिवासी लोग अपनी गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी तथा अपने दयनीय आर्थिक स्थिति के कारण ऋण लेने को मजबूर होते हैं, जिसके कारण दूसरे लोग इनका फायदा उठाते हैं। किस तरह ठेकेदारों तथा अन्य लोगों से सीधे संपर्क के कारण समस्त भारतीय जनजातीय जनसंख्या ऋण के बोझ से दबी हुई है। देश में ‘गरीबी हटाओ’ जैसे कार्यक्रम भी बने, मगर उसका क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो पाया। केन्द्र एवं राज्य सरकारों ने भी गरीबी कम करने के लिए कई योजनाएं चलाई किन्तु उसे भी पूर्ण रूप नहीं दिया जा सका। साथ ही आदिवासियों से जंगलों के वन-उत्पाद संबंधित उनके परम्परागत अधिकार पूरी तरह से छिन लिए गए। आदिवासी समाज से कटकर भारत के विकास की कल्पना करना अंधेरे में तीर चलाने जैसा होगा।
आम तौर पर उनका स्वास्थ्य बढ़िया होता है पर कम पढ़े-लिखे होने के कारण और जागरूकता के आभाव में अक्सर आदिवासी अपने स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान नहीं दे पाते हैं। आदिवासियों की एक समस्या स्वास्थ्य भी है। साथ ही दूर-दराज के क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा की कमी के कारण उनको काफी असुविधा का सामना करना पड़ता है। कभी-कभी तो हालात काफी मुश्किल हो जाते हैं और तब अस्पताल के अभाव में इनके जीवन-मृत्यु तक बात पहुंच जाती है।
आदिवासी समाज का शिक्षित न होना बहुत बड़ी समस्या है। आदिवासी समाज का शिक्षा से कम सरोकार होना उनके कई समस्या से जुड़ा हुआ है। ऋणग्रस्तता, भूमि हस्तांतरण, गरीबी, बेरोजगारी, स्वास्थ्य आदि कई समस्यायें हैं जो शिक्षा से प्रभावित होती हैं। जनजातीय समूहों पर औपचारिक शिक्षा का प्रभाव बहुत कम पड़ा है। संविधान के प्रभावी होने के पश्चात अनुसूचित जनजाति के लोगों के शिक्षा स्तर में वृद्धि करना केन्द्र तथा राज्य सरकारों का उत्तरदायित्व हो गया है। सरकार के इस पक्ष के अलावा भी कुछ दूसरे पक्ष हैं जिस पर सरकार को सोचने की बहुत जरूरत है। पूर्वोतर के राज्यों को छोड़ कर अभी तक पश्चिम बंगाल के अलावा किसी भी अन्य प्रदेश में आदिवासियों को उनकी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा नहीं दी जाती है। ऐसे में यह समाज कैसे विकसित होगा जिसे अपनी मातृभाषा से ही दूर रखा गया हो। अगर हम अविभाजित बिहार की बात करें तब राज्य सरकार ने जिसमें झारखंड भी शामिल था, बरसों पहले आदिवासियों को मातृभाषा में पढ़ाने का कानून बना दिया था। राजनीतिक स्वार्थवश इस पर आगे कार्य नहीं हो सका और आज झारखंड के अलग होने के बाद भी प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में देने का प्रावधान लागू नहीं हुआ है। ऐसी स्थिति में जनजातीय लोग देश के अन्य लोगों से बहुत पीछे रह जाते हैं। हमें इस स्थिति का विश्लेषण करना चाहिए। शिक्षा प्राप्त कर लेना ही विकास का प्रभावी मापदंड नहीं होना चाहिए।
गैर आदिवासी लोगों के बसने के कारण उनकी भाषा भी छिन रही है क्योंकि उनकी भाषा समझने वाला अब कोई नहीं है। जिन लोगों की भाषा छिन जाती है उनकी संस्कृति भी नहीं बच पाती। उनके नृत्य को अन्य लोगों द्वारा अजीब नजरों से देखे जाते हैं इसलिए वे भी सीमित होते जा रहे हैं। जहां उनका ‘सरना’ नहीं है वहां उन पर नए-नए भगवान थोपे जा रहे हैं। उनकी संस्कृति या तो हड़पी जा रही है या मिटाई जा रही है। हर धर्म अपना-अपना भगवान उन्हें थमाने को आतुर है। हिंदुत्ववादी लोग उन्हें मूलधारा यानी हिंदुत्व की विकृतियों और संकीर्णताओं से जोड़ने पर तुले हैं और उनको रोजी-रोटी के मुद्दे से ध्यान हटा कर अलगाव की ओर धकेला जा रहा है।
गुजरात में आदिवासी जनजीवन के उत्थान और उन्नयन के लिये मैं लम्बे समय से प्रयासरत हूं और विशेषतः आदिवासी जनजीवन को उन्नत बनाने, उन क्षेत्रों में शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, संस्कृति-विकास की योजनाओं लागू करने के प्रयास किये जा रहे हैं, इसके लिये हम लोगों ने सुखी परिवार अभियान के अन्तर्गत अनेक स्तरों पर प्रयास किये हैं, जिनसे सर्वसुविधयुक्त करीब 12 करोड की लागत से जहां एकलव्य आवासीय माडल विद्यालय का निर्माण हुआ है, वहीं कन्या शिक्षा के लिये ब्राह्मी सुन्दरी कन्या छात्रावास का कुशलतापूर्वक संचालन किया जा रहा हैं। इसी आदिवासी अंचल में जहां जीवदया की दृष्टि से गौशाला का संचालित है तो चिकित्सा और सेवा के लिये चलयमान चिकित्सालय भी अपनी उल्लेखनीय सेवाएं दे रहा है। अब हम लोग रोजगार की दृष्टि से इसी क्षेत्र में व्यापक संभावनाओं को तलाश रहे है। शिक्षा के साथ-साथ नशामुक्ति एवं रूढ़ि उन्मूलन की अलख जगा रहे हैं। पढ़ने की रूचि जागृत करने के साथ-साथ आदिवासी जनजीवन के मन में अहिंसा, नैतिकता एवं मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था जगाना हमारा ध्येय है। हर आदिवासी अपने अन्दर झांके और अपना स्वयं का निरीक्षण करे। आज आदिवासी समाज इसलिए खतरे में नहीं है कि सरकारों की उपेक्षाएं बढ़ रही है। ये उपेक्षापूर्ण स्थितियां सदैव रही है- कभी कम और कभी ज्यादा। सबसे खतरे वाली बात यह है कि आदिवासी समाज की अपनी ही संस्कृति एवं जीवनशैली के प्रति आस्था कम होती जा रही है। अन्तराष्ट्रीय आदिवासी दिवस मनाने की सार्थकता तभी है जब हम इस जीवंत समाज को उसी के परिवेश में उन्नति के नये शिखर दें। इस दृष्टि से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नये भारत की परिकल्पना को आदिवासी समाज बहुत ही आशाभरी नजरों से देख रहा है।

प्रेषकः

(ललित गर्ग)
60, मौसम विहार, डीएवी स्कूल के नजदीक,
दिल्ली-110051
फोनः 22727486, 9811051133

################################

Presents by; csjoshi_editor@yahoo.in;

Availble in; FB, Twitter, whatsup Broadcasting Groups & All Social Media Plateform;

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *