15 दिवसीय ऐपण कार्यशाला का आयोजन सम्‍पन्‍न

15 दिवसीय ऐपण कार्यशाला का आयोजन उत्तराखण्ड की पारम्परिक धरोहर लोक कला ऐपण को वृहद स्तर पर पहचान दिलाये जाने तथा इसके संरक्षध संवद्र्वन विकास एवं इस कला को महिलाओ की आर्थिकी से जोडकर उन्हें सुदृढ करने के उद्देष्य से संस्कृति विभाग उत्तराखण्ड द्वारा भातखण्डे हिन्दुस्तानी संगीत महाविद्यालय परिसर देहरादून में दिनांक 28 जनवरी से 11 फरवरी 2008 तक 15 दिवसीय ऐपण कार्यशाला का आयोजन किया गया।

HIGH LIGHT# कूर्माचल परिषद के केन्‍द्रीय महासचिव चन्‍द्रशेखर जोशी ने प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्री, राज्‍यपाल श्री कोश्‍यारी जी को पत्र भेजकर संरक्षण मांगा था- उत्‍तराखण्‍ड शासन ने महासचिव चन्‍द्रशेखर जोशी को वार्ता हेतु आमंंत्रित किया # संस्कृति विभाग उत्तराखण्ड द्वारा 15 दिवसीय ऐपण कार्यशाला का आयोजन #

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उत्तराखण्ड की पारम्परिक धरोहर लोक कला ऐपण को वृहद स्तर पर पहचान दिलाये जाने तथा इसके संरक्षध संवद्र्वन विकास एवं इस कला को महिलाओ की आर्थिकी से जोडकर उन्हें सुदृढ करने के उद्देष्य से संस्कृति विभाग उत्तराखण्ड द्वारा भातखण्डे हिन्दुस्तानी संगीत महाविद्यालय परिसर देहरादून में दिनांक 28 जनवरी से 11 फरवरी 2008 तक 15 दिवसीय ऐपण कार्यशाला का आयोजन किया गया।

ऐपण लोकसभा में रूचि रखने वाले तथा इस कार्यषाला में प्रतिभाग के लिए दैनिक समाचार पत्रों में विज्ञप्ति प्रकाषित कर आवेदन पत्र आमंत्रित किये गये थे जिसके तहत 20 महिलाओ द्वारा कार्यषाला में प्रषिक्षण प्राप्त करने हेतु आवेदन पत्र जमा किये गये।

गुरू शिष्‍य परम्परा के अन्तर्गत आयोजित इस ऐपण कार्यषाला में श्रीमती मीरा जोषी, निवासी अल्मोडा द्वारा ऐपण कार्यशाला में प्रशिक्षण प्राप्त कर शिष्‍यो को ऐपण कला का प्रशिक्षण दिया गया।

15 दिनो तक चली इस कार्यशाला में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे शिष्‍यो को श्रीमती मीरा जोशी द्वारा हमारी लोक संस्कृति में ऐपण का महत्व एवं इस लोकसभा में हमारी धार्मिक आस्था का समावेष के अतिरिक्त ऐपण में रंगो के महत्व का गूढ ज्ञान भी शिष्‍यो को दिया गया।

11 फरवरी 2020 को निदेशक संस्कृति सुश्री बीना भटट ने ऐपण कार्यशाला का समापन किया गया तथा कार्यषाला के दौरान शिष्‍यो द्वारा तैयार की गयी ऐपा का निरीक्षण कर उनका उत्साहवद्र्वन किया गया।

इसके अलावा निदेशक संस्कृति द्वारा ऐपण कला प्रतियोगिता में प्रतिभागी सभी महिलाो को प्रषस्ति प. भी प्रदान किये गये।

निदेशक संस्कृति सुश्री बीना भटट ने कहा कि उत्तराखण्ड की पारम्परिक एवं ऐतिहासिक लोककला हमारी विरासत है अैर इसे जीवित रखना हम सबका पहला कर्तव्य है। इस कला को जीवित रखने के लिए हमे इसे रोजगार से जोडकर प्रस्तुत करना भी आवष्यक है।

उन्होने ऐपण कार्यशाला में प्रशिक्षक श्रीमती मीरा जोशी के कार्य को सराहते हुए कहा कि उन्होने इतने कम समय में प्रतिभागी महिलाओ को इस कला की बारिकीयो से परिचित कराते हुए सिखाने का प्रयास किया।

कार्यषाला में समन्वयक के रूप में श्री बलराज नेगी एवं श्रीमती पूनम रावत द्वारा अपना योगदान दिया गया जबककि इस कार्यषाला मे कु0 निकिता, सुनीता जैन, लीला देवी, सविता चैरे, विनीता षर्मा, रेखा भटट, रानू बिश्ट, अरूणा गर्ग, मंजू पाण्डे, रीतू अग्रवाल, कु0 तनिश्की, महिमा पंवार, सुनीता काला, रानी जायसवाल, मीनाक्षी भटट, बबीता लोहनी केन्द्रीय सां0 सचिव कूर्माचल परिशद, कु0 खुषी एवं कु0 आरती तथा दीपा षर्मा सचिव कांवली कूर्माचल परिशद ने ऐपण कला का प्रषिक्षण प्राप्त कर प्रमाण पत्र लिया।

ज्ञात हो कि आरएसएस सुप्रीमो श्री मोहन भागवत जी ने अपने देहरादून भ्रमण पर कूर्माचल परिषद देहरादून से मुलाकात तथा लम्‍बी बैठक कर उनकेे कार्य को विस्‍तार से जाना था- इसी क्रम में महासचिव चन्‍द्रशेखर जोशी ने बताया कि कूर्माचल परिषद सांस्‍क़तिक विरासत को सहेेजने संंजोने के कार्य मे वर्षो से लगी है,

महासचिव ने पत्र भेजकर ऐपण के बारे में इस तरह का पत्र लिखा था

विषय- उत्‍तराखण्‍ड की गौरवशाली परंपरा लोककला ऐपण को आपके संरक्षण के संबंध में

महोदय,   समृद्ध सांस्कृतिक विरासत व अनमोल परंपराओं के कारण सदियों से उत्तराखंड की देवभूमि देश,दुनिया में एक अलग ही पहचान रखती है,  कूर्माचल परिषद के केन्‍द्रीय महासचिव चन्‍द्रशेखर जोशी के नाते हम आपके संज्ञान में लाना चाहते है कि कुमाऊनी ऐपण का जो रूप सदियों पहले था वही रूप आज भी है, उत्‍तराखण्‍ड में पूर्ववर्ती राज्‍य सरकार ने कूर्माचल परिषद की मांग पर पूर्व राज्‍य सरकार ने इस कला को विलुप्‍त होने से बचाने के लिए ऐपण विभाग तक बना दिया था और राज्‍य सरकार के हर कार्यालय में ऐपण चित्र लगाने की प्रेरणा दी थी, परन्‍तु  उत्‍तराखण्‍ड में वर्तमान सरकार इसके प्रति उदासीन हो गयी है

अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत व अनमोल परंपराओं के कारण सदियों से उत्तराखंड की देवभूमि देश,दुनिया में एक अलग ही पहचान रखती है।यहां पर एक से एक अनूठे लोकपर्व मनाए जाते हैं जो यहां की प्रकृति, भूमि ,जंगल, देवताओं को समर्पित रहते हैं। इसी के साथ ही यहां पर ऐसी कई सारी लोक कलाएं भी मौजूद है जो इस धरती की पहचान बन चुकी हैं।इन्हीं में से एक लोक कला/लोक चित्रकला है जिसे ऐपण(Aipan) कहा जाता है।कुमाऊनी ऐपण का जो रूप सदियों पहले था वही रूप आज भी है बल्कि यूं कह सकते हैं कि समय के साथ-साथ यह और भी समृद्ध हो चला है। यह कुमाऊं की एक लोक चित्रकला की शैली है जो कि पहचान बन चुकी है कुमाऊं की गौरवशाली परंपरा की।

   उत्‍तराखण्‍ड में लोककला, संस्‍क़ति को सहेजने सजोने में लगी केन्‍द्रीय कूर्माचल परिषद ने उत्‍तराखण्‍ड सरकार से मांग की थी कि ऐपण को प्रोत्‍साहित करने के कार्य को आगे बढाये, इसके लिए राज्‍य स्‍तर से कोई कार्यवाही न होते देख माननीय प्रधानमंत्री जी को पत्र भेज कर इस कला का पूरा विवरण देते हुए इसे संरक्षित किये जाने की मांग हम करते है, ज्ञात हो कि दिल्‍ली राज्‍य सरकार ने भी उत्‍तराखण्‍ड मूल के पर्वतीय लोक गायक को दिल्‍ली राज्‍य में इस संबंध में महत्‍वपूर्ण जिम्‍मेदारी सौपी है, तो ऐसा ही प्रयास उत्‍तराखण्‍ड में किये जाने की आवश्‍यकता है ऐपण कला को पहचान देने की जरूरत है.

ऐपण को कुमाऊं में प्रत्येक शुभ कार्य के दौरान पूरी धार्मिक आस्था के साथ बनाया जाता है। त्यौहारों के वक्त इसे घर की देली, मंदिर, घर के आंगन में बनाने का विशेष महत्व है। ऐपण यानि अल्पना एक ऐसी लोक कला, जिसका इस्तेमाल कुमाऊं में सदियों से जारी है। यहां ऐपण कलात्मक अभिव्यक्ति का भी प्रतीक है। इस लोक कला को अलग-अलग धार्मिक अवसरों के मुताबिक बनाया किया जाता है। शादी, जनेऊ, नामकरण और त्योहारों के अवसर पर हर घर इसी लोक कला से सजाया जाता है। ज्योतिषियों के मुताबिक ऐपण हर अवसर के मुताबिक बनाए जाने वाली कला है। आज भी बगैर ऐपण के कोई शुभ कार्य नहीं होते हैं। ऐपण में सम बिंदु और विषम रेखाओं को शुभ माना गया है। देखने में भले ही ये ऐपण आसान से नजर आते है, लेकिन इन्हें बनाने में ग्रहों की स्थिति और धार्मिक अनुष्ठानों का खास ध्यान रखा जाता है।  देश के हर हिस्से में रहने वाले कुमाऊंनी के घर पर आपको ऐपण देखने को मिल जाएंगे। इसके साथ ही सात समुंदर पार रहने वाले कुमाऊंनी विदेशी धरती में रहते हुए भी इस कला और अपनी संस्कृति से जुड़े हुए है।

सदियों पुरानी परंपरा आज भी बरकरार है और सबसे अच्छी बात यह है कि नई पीढ़ी के लोगो को इस कला को सीखाने में कूर्माचल परिषद का अविस्‍मरणीय योगदान  हैं, आज भी अपने घरों को इससे सजाना पसंद करते हैं।सभी शुभ अवसरों पर ऐपण बनाई जाती है और उनके ऊपर ही कलश की स्थापना की जाती है।  देहरादून में कूर्माचल परिषद की वरिष्‍ठ पदाधिकारी बबीता शाह लोहनी इस लोक कला को भावी पीढी को सिखाने, बताने के लिए पूरे जी जान से जुटी है, बबीता कहती है कि पुराने दौरे में ऐपण बनाने में चावल और गेरू का इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन बदलते वक्त के साथ आज इनकी जगह पेंट और ब्रूश ने ले लिया है। यही नहीं त्योहारों के मौसम में अब तो बाजारों में रेडीमेड ऐपण भी मिलने लगे हैं,

कूर्माचल परिषद के केन्‍द्रीय महासचिव चन्‍द्रशेखर जोशी के नाते अवगत कराना है कि कुमाऊं में कुछ खास अवसरों पर जैसे दीपावली, देवी पूजन ,लक्ष्मी पूजन ,यज्ञ,हवन ,जनेऊ संस्कार, छठ कर्म, शिवपूजन,विवाह, व्रत-त्योहार में घर की चोखटों,दीवारों, आंगनों ,मंदिरों को ऐपण से सजाने की परंपरा है।परंपरागत ऐपण प्राकृतिक रंगों से बनाए जाते हैं जैसे गेरू (एक प्रकार की लाल मिट्टी जो पहाड़ में पाई जाती है) और चावल के आटे (चावल के आटे में पानी मिलाकर उसे थोड़ा पतला बनाया जाता है जिसे स्थानीय भाषा में बिस्वार कहते हैं) से बनाई जाती है। इसमें महिलाएं विभिन्न प्रकार के चित्र बनाकर घर के आंगनों ,दरवाजों, दीवारों, मंदिरों को सजाती हैं जिन्हें ऐपण कहते हैं।जो घर की सुंदरता को तो बढ़ाते ह़ी है साथ ही साथ मन में पवित्रता का भाव भी पैदा कर देते हैं। कुमाऊं की इस अनमोल धरोहर को सजाने, संवारने ,सहेजने का पूरा श्रेय यहां की महिलाओं को जाता है।सच में     महिलाओं ने ह़ी इस कला को जीवित रखा हैंमहिलाएं इस चित्रकला के माध्यम से अपने मन के भाव व अपनी शुभकामनाओं की अभिव्यक्ति उस ईश्वर के प्रति व अपने घर के प्रति करती है।इससे न सिर्फ घर सुंदर दिखता है बल्कि पवित्र भी हो जाता है।मन व माहौल एक नये उत्साह और उमंग से भर जाता है।

कूर्माचल परिषद के केन्‍द्रीय महासचिव चन्‍द्रशेखर जोशी के नाते अवगत कराना है कि  अन्य प्रांत व अन्य देशों में रहने वाले लोगों का ध्यान भी अब हमारी इस महान विरासत की तरफ आकर्षित हुआ है।जिससे यह धीरे धीरे एक उद्योग के रूप में विकसित हो गया।और यह स्थानीय बाजार से निकल कर अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुच गया।अब सिर्फ कुमाउनी लोग ह़ी नही बल्कि अन्य लोग भी इनसे अपना घर सजाना पसंद करने लगे हैं।इससे सबसे बड़ा फायदा यह हुआ हैं कि इससे एक ओर जहां हमारी महान पुरानी धरोहर बची रहती है वही दूसरी ओर कई सारे बेरोजगारों को रोजगार मिला है।बेरोजगारों के लिए यह रोजगार का साधन बनता जा रहा है।जो कि उत्तराखंड के युवाओं के लिए अच्छा हैं उनको अपने गाँव शहर में ह़ी रोजगार मिल सकेगा।जिससे उन्हें पलायन के लिए मजबूर नही होना पडेगा।  कुमाऊं में दीपावली के मौके पर ऐपण बनाने की परंपरा आज भी कायम है. कुमाऊं में होने वाले किसी भी शुभ कार्य में हाथ से बनाये गये ऐपण का महत्व काफी माना जाता है. ऐपण एक ऐसी लोककला है, जो बिना किसी संरक्षण के पीढ़ी दर पीढ़ी लगातार समृद्ध होती जा रही है.

कूर्माचल परिषद की मांग पर पूर्व मुख्‍यमंत्री हरीश रावत ने इस कला को विलुप्‍त होने से बचाने के लिए ऐपण विभाग तक बना दिया था और राज्‍य सरकार के हर कार्यालय में ऐपण चित्र लगाने की प्रेरणा दी थी, यह वास्‍तुदोष निवारण भी माना जाता है, हरीश रावत ने इ ऐपण कला को जीवित रखने का प्रयास किया है।

गाँव घरो में तो आज भी हाथ से ऐपण तैयार कियें जातें है। ऐपण बनाने के लिए गेरू तथा चावल के विस्वार (चावल को भीगा के पीस के बनाया जाता है ) का प्रयोग किया जाता है। समारोहों और त्योहारों के दौरान महिलाएं आमतौर पर ऐपण को फर्श पर, दीवारों को सजाकर, प्रवेश द्वार, रसोई की दीवारों, पूजा कक्ष और विशेष रूप से देवी देवताओं मंदिर के फर्श पर कुछ कर्मकाण्डो के आकड़ो के साथ सजाती है।
 कूर्माचल परिषद ने ऐपण कला को जीवित रखने का प्रयास किया है। पहाड के ग्रामीण अंचलों में यह परंपरा काफी समृद्ध है।  ऐंपण कला सिखाने के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण शिविर लगाये जाने की आवश्‍यकता है।   इसमें महिलाओं को लक्ष्मी चौकी, विवाह चौकी , दिवाली की चौकी तैयार करने के तरीके सिखाए जाने चाहिए। ऐपण बनाने का हुनर सीख कर जहां हम सब अपनी इस कला से जुड़ेगे और रोजगार को भी बढावा मिलेगा अत- ज्यादा सा ज्यादा लोगो को ऐपण से जोड़ना चाहिए

ऐपण बनाने वक्त महिलाएं चांद ,सूरज, स्वस्तिक, गणेश जी, फूल,पत्ते, बेल बूटे, लक्ष्मी पैर ,चोखाने ,चौपड़ ,शंख,दिये,धंटी आदि चित्र खूबसूरती से जमीन पर उकेरती हैं।जिस जगह पर ऐपण बनाने होते हैं उस जगह की पहले गेरू से पुताई की जाती हैं उसके बाद उसमें बिस्वार से डिज़ायन बनाये जाते हैं।लक्ष्मी के पैर जब भी उकेरे जाते हैं तो बाहर से अंदर दिशा को आते हुए बनाए जाते हैं।एक जोड़ी लक्ष्मी पैर के बीच में एक छोटा सा गोला या स्वस्तिक बना दिया जाता है जिससे धन दौलत का प्रतीक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में शुभ और मंगल बना रहता है ।

ऐपण (Aipan) के मुख्य डिजायन -चौखाने , चौपड़ , चाँद , सूरज , स्वस्तिक , गणेश ,फूल-पत्ती, बसंत्धारे,पो, तथा इस्तेमाल के बर्तन का रूपांकन आदि शामिल हैं। ऐपण के कुछ डिजायन अवसरों के अनुसार भी होते हैं।

अलग अलग शुभ अवसरों में अलग अलग तरह की चौकियां बनाई जाती हैं। जैसेदीपावली में लक्ष्मी चौकी तथा लक्ष्मी के पाए / पैर बनाए जाते हैं ,शिव पूजन में शिव चौकी, गणेश पूजन में स्वस्तिक चौकी ,शादी ब्याह में धूलिअर्ग की चौकी और कन्या चौकी , मातृृ पूजन में अष्टदल कमल चौकी ,नामकरण में पंच देवताओं के प्रतीक चौकी(एक गोल चक्र में पांच बिंदु बनाये जाते हैं ) ,यज्ञोपवीत संस्कार में व्रतबंध चौकी, शिव पूजन में शिव चौकी आदि

लोककलाओं को सहेजने में आगे है कुमाऊं ; लोककलाओं को सहेजने में कुमाऊं वासियों का कोई सानी नहीं है. यही वजह है कि यहां के लोगों ने सदियों पुरानी लोककलाओं को आज भी जिंदा रखा है. ऐसी ही एक कला है ऐपण, जिसका उपयोग कुमाऊं में प्रत्येक शुभ कार्य में पूरी धार्मिक आस्था के साथ किया जाता है. ऐपण यानि अल्पना एक ऐसी लोककला जिसका इस्तेमाल कुमाऊं में सदियों से जारी है. यहां ऐपण कलात्मक अभिव्यक्ति का भी प्रतीक है. इस लोककला को अलग-अलग धार्मिक अवसरों के मुताबिक चित्रित किया जाता है. शादी, जनेऊ, नामकरण और त्योहारों के अवसर पर हर घर इसी लोककला से सजाया जाता है.

From; Chandra Shekhar Joshi

General Secretary: Kurmanchal Parishad

Address; Nanda Devi Enclave, Post: Banjarawala, Dehradun, Uttrakhand

Mob,. 9412932030 Mail; csjoshi_editor@yahoo.inhimalayauk@gmail.com

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