माेेेटर मार्ग न बनने से अल्‍मोडा प्रवासियो में रोष

HIGH LIGHT;  तामाढोन-गोलना मोटर मार्ग की आवाज देश की राजधानी में गूजी : प्रवासियो द्वारा जबरदस्त रोष इा क्षेत्र में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की बहुलता है इसके बाद भी उपेक्षा का शिकार:# तामाढोन-गोलना मोटर मार्ग की  हालत दयनीय # सरकार की सुस्त प्रक्रिया से अल्‍मोडा के प्रवासीगण दुूखी नजर आये #Presented by- हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्तराखण्ड www.himalayauk.org

नई दिल्ली (हिमालयायूके ब्यूरो) ;

तामाढोन-गोलना मोटर मार्ग जल्द बनाने सहित ब्लाक की अन्य समस्याओं को लेकर देश की राजधानी में आवाज उठाई । स्याल्दे क्षेत्र के प्रवासी लोगों ने दिल्ली में तामाढोन-गोलना मोटर मार्ग संघर्ष समिति स्याल्दे बनाई गई है।
तामाढोन-गोलना मोटर मार्ग संघर्ष समिति स्याल्दे (अल्मोड़ा) के दिल्ली प्रवासी सदस्यों में भारी रोष की खबर है, तामाढोन-गोलना मोटर मार्ग संघर्ष समिति स्याल्दे के बैनर तले दिनांक 2 अक्टूबर गाँधी जयन्ती के दिन इस रोड़ में पड़ने वाले गांवों के प्रवासी एवं निवासियों द्वारा एकत्रित होकर उपरोक्त समिति के तत्वावधान में एक विशाल सभा आयोजित की गई, जिसमें रोड़ का कार्य कार्यान्वित न होने के कारण जबरदस्त रोष व्‍यक्‍त किया गया । यह हमारे लिए एक दुर्भाग्य की बात है कि इस क्षेत्र के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के इलाके में आज भी सड़क नहीं बनी है, क्या उनका बलिदान देश के लिए बेकार गया, ऐसा लोगों का कहना था, जहां तक रोड़ जानी है वहाँ तक के ग्रामवार स्वतन्त्रता सेनानियों के ब्यौरा इस प्रकार है :-
1- स्व0 श्री देवीदत्त बृद्धकोटी ग्राम टिटरी
2- स्व0 श्री हीरासिंह बंगारी ग्राम गुरना
3- स्व0 श्री प्रेमसिंह चौरसिया ग्राम ग्वालबिना
4- स्व0 श्री चिन्तामणि धौढियाल ग्राम गोलना
5- स्व0 श्रीमती राधिकादेवी धौढियाल गोलना
6- स्व0 श्री नंदराम धौढियाल ग्राम गोलना
7- स्व0 श्री हरिकृष्ण उप्रेती ग्राम भेलीपार
8- स्व0 श्री हीरामणि बडोला ग्राम खलडुवा
उसके अलावा यहाँ पर उत्तराखंड आन्दोकारी वयोबृद्ध श्री रघुनाथसिंह मनराल जी जो स्वयं सभा में उपस्थित थे, सरकार की सुस्त प्रक्रिया से बड़े ही उदास नजर आ रहे थे । समिति के लोगों ने कहा कि उनके क्षेत्र का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि देश कि आजादी में सबसे अधिक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उनके यहीं से रहे। लेकिन गांवों तक आज भी सड़क नहीं पहुंची है। इस कारण गांव के लोगों को मील पैदल चलकर घर तक पहुंचना पड़ता है। अब भी उनके क्षेत्र में आठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ऐसे हैं। जिनके गांव में अब तक सड़क नहीं गई है।

उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी वयोवृद्ध रधुनाथ सिंह मनराल  ने अपने सम्‍बोधन में कहा कि क्षेत्र के कई सैनिकों ने देश के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी। कई घरों के दिए बुझ गए। ऐसे क्षेत्र में आज तक सड़क नहीं पहुंच पाई है। ऐसे क्षेत्रों की परिकल्पना शासन प्रशासन को खुद करनी चाहिए। उन्होंने कहा आजादी के 18 साल बाद उनके क्षेत्र को मूल भूत सुविधाओं से वंचित किया गया है। 

वक्‍ताओे ने अपने सम्‍बोधन में कहा कि जहाँ तक हमारे क्षेत्र से सैनिकों के बलिदान का प्रश्न आता है, बहुत से हमारे क्षेत्र के जवानों ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए हैं और आज भी कर रहें हैं, कई बार तो ऐसी भी घटना घटी है कि जब किसी जवान की विवाह की तैयारी चल रही होती है, लेकिन वह देश के लिए शहीद हो जाता है, अब जरा कल्पना करें उस परिस्थिति की, जो समझ से बाहर की बात है, आज जिस क्षेत्र की रेजिमेंट उच्च कोटि की रेजीमेंटो में से एक हो, वहाँ की हालत दयनीय है,

वक्‍ताओे ने अपने सम्‍बोधन में कहा कि जहाँ तक हमारे क्षेत्र से सैनिकों के बलिदान का प्रश्न आता है, बहुत से हमारे क्षेत्र के जवानों ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए हैं और आज भी कर रहें हैं, कई बार तो ऐसी भी घटना घटी है कि जब किसी जवान की विवाह की तैयारी चल रही होती है, लेकिन वह देश के लिए शहीद हो जाता है, अब जरा कल्पना करें उस परिस्थिति की, जो समझ से बाहर की बात है, आज जिस क्षेत्र की रेजिमेंट उच्च कोटि की रेजीमेंटो में से एक हो, वहाँ की हालत दयनीय है, अब यदि बात क्षेत्र के विकास की आती है तो हमें निराश होना पड़ता है, कि आजादी के इतने सालों बाद भी हमारा क्षेत्र विकास से अछूता क्यों रहा, क्या हमारा एक दूसरे से सम्बाद नहीं है,

वक्‍ताओे ने रोषपूर्ण सम्‍बोधन में कहा कि क्या हमारे जनप्रतिनिधि हमारे क्षेत्र की समस्याओं के प्रति जागरूक हैं, यदि नहीं तो हमें अपने संगठन की एकता और ताकत से उन्हें परिचित कराना होगा कि, जनप्रतिनिधि जनता के लिए होता है,या तो काम करो या फिर आराम करो, आप नहीं तो कोई और, हमारे लिए वही विशेष होंगे जो हमारे क्षेत्र के लिए काम करेंगे, पार्टियां,सरकारें आती जाती रहती हैं जो क्षेत्र के लिए काम करेंगे हमारा समर्थन उन्हीं के लिए होगा ।

वक्‍ताओे ने रोषपूर्ण सम्‍बोधन में कहा कि क्या हमारे जनप्रतिनिधि हमारे क्षेत्र की समस्याओं के प्रति जागरूक हैं, यदि नहीं तो हमें अपने संगठन की एकता और ताकत से उन्हें परिचित कराना होगा कि, जनप्रतिनिधि जनता के लिए होता है,या तो काम करो या फिर आराम करो, आप नहीं तो कोई और, हमारे लिए वही विशेष होंगे जो हमारे क्षेत्र के लिए काम करेंगे, पार्टियां,सरकारें आती जाती रहती हैं जो क्षेत्र के लिए काम करेंगे हमारा समर्थन उन्हीं के लिए होगा ।

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चलो स्याल्दे बिखौती का मेला (अल्मोड़ा)

यह मेला अल्मोड़ा जनपद के द्वाराहाट कसबे में संपन्न होता है | स्याल्दे-बिखौती का प्रसिद्ध मेला हर साल बैसाख महीने में आयोजित होता है | हिन्दुओ के नए साल के साथ ही इस मेले की भी शुरुवात होती है , जो की चैत्र मास की आखरी तारीख से शुरू होता है | यह मेला द्वाराहाट से आठ कि.मी. दूर प्रसिद्ध शिव मंदिर विभाण्डेश्वर में लगता है । मेला दो भागों में लगता है । पहला चैत्र मास की अन्तिम तिथि को विभाण्डेश्वर मंदिर में तथा दूसरा वैशाख माह की पहली तिथि को द्वाराहाट बाजार में | चैत्र मास की अन्तिम रात्रि को विभाण्डेश्वर में इस क्षेत्र के तीन धड़ों या आलों के लोग एकत्र होते हैं | विषुवत् संक्रान्ति ही बिखौती नाम से जानी जाती है । इस दिन स्नान का विशेष महत्व है । मान्यता है कि जो उत्तरायणी पर नहीं नहा सकते या कुम्भ स्नान के लिए नहीं जा सकते उनके लिए इस दिन स्नान करने से विषों का प्रकोप नहीं रहता । 
अल्मोड़ा जनपद के पाली पछाऊँ क्षेत्र का यह एक प्रसिद्ध मेला है | इस क्षेत्र के लोग मेले में विशेष रुप से भाग लेते हैं । मेले के दौरान गांवों में एक खास अंदाज में एक-दूसरे के हाथ थाम और कदम से कदम मिलाते हुए कुमाऊं के प्रसिद्ध लोक नृत्यों झोडे, चांचरी, छपेली आदि का परंपरागत वस्त्रों व अंदाज में लोग आनंद लेते मिल जाते हैं | इस बारे में जनश्रुति है कि शीतला देवी के मंदिर से लौटने के दौरान एक बार किसी कारण दो गांवों के दलों में खूनी संघर्ष हो गया। हारे हुए दल के सरदार का सिर खड्ग से काट कर और जिस स्थान सिर गाड़ा गया , उस स्थान पर स्मृति चिन्ह के रूप में एक पत्थर रख दिया गया , जिसे ‘ओड़ा’ कहा जाता है। तभी से बनी ‘ओड़ा भेटने’ की परम्परा के अनुसर इस ओड़े पर चोट मार कर ही मेले में आगे बढ़ा जा सकता है । पहले इसके लिए ग्रामीणों को अपनी बारी आने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता था, लेकिन इसके लिए अब आल, गरख और नौज्यूला धड़ों के बीच एक सुव्यवस्थित व्यवस्था तय कर दी गई है । पारम्परिक मूल्यों के बावजूद यह मेला आज भी किसी तरह से अपनी पहचान बनाये हुए रखा है |

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