सबको नौकरी देना संभव नहीं; अमित शाह

नौकरी शब्द का प्रयोग हमने नहीं किया #रेडियो में भी स्थिति अच्छी नहीं, घट गया वेतन, 6 महीने से है पेंडिंग #नौकरी शब्द का प्रयोग हमने नहीं किया था, रोजगार शब्द का प्रयोग किया था और रोजगार के लिए हमने मुद्रा बैंक से लोगों को लोन उपलब्ध कराए; अमित शाह

उत्तर प्रदेश चुनाव के मद्देनजर सभी पार्टियां राज्य की सत्ता तक पहुंचने की कोशिश कर रही हैं। इसी बीच बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पार्टी की रणनीति और राज्य की राजनीति को लेकर काफी बातें कही हैं। अंग्रेजी टीवी चैनल टाइम्स नाऊ को दिए गए अपने इंटरव्यूह में अमित शाह ने कई मुद्दों पर बातचीत की। अमित शाह से जब नौकरी पैदा करने में असफल होने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, कि सवा 100 करोड़ की आबादी वाले देश में सबको नौकरी देना समंभव नहीं। शाह ने आगे कहा, “नौकरी शब्द का प्रयोग हमने नहीं किया था, रोजगार शब्द का प्रयोग किया था और रोजगार के लिए हमने मुद्रा बैंक से लोगों को लोन उपलब्ध कराए। इससे लगभग 4 करोड़ बेरोजगार युवाओं को हमने स्वरोजगार उपलब्ध कराया है और इसका पोजिटिव असर दिखाई देता है।”
वहीं शाह ने नोटबंदी पर भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, “नोटबंदी के बाद में हुए चुनाव के नतीजे एक तरह से फैसले को लेकर जनता के रेफरेंडम की ओर इशारा करता है”। वहीं कांग्रेस-सपा के गठबंधन को लेकर भी अमित शाह ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, “बीते 15 सालों का आकलन करें तो यूपी के विकास की स्थिति बेहद खराब रही है। कानून व्यवस्था का मुद्दा भी बहुत बड़ा है। गठबंधन करके जनता की आंखों में कोई धूल नहीं झौंक सकता। मैं राज्य के कई इलाकों में घूमा हूं और मैंने बीजेपी की लहर देखी है और हम बड़े मार्जिन के साथ जीतकर यूपी में सरकार बनाने जा रहे हैं।”
वहीं बातचीत में अमित शाह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के श्मशान-कब्रिस्तान वाले बयान पर भी अपनी बात रखी। शाह ने कहा, “पीएम ने मजहब के नाम पर लोगों को बांटने का काम नहीं किया है। मोदी जी ने कहा था कि अगर रमजान के वक्त बिजली आती है तो दिवाली के वक्त भी बिजली आनी चाहिए। यह सच है कि रमजान में बिजली आती है और होली-दिवाली के वक्त नहीं आती। पीएम ने इतना कहा कि अगर रमजान में बिजली दे रहे हो तो होली-दिवाली पर भी दो, इसमें क्या गलत है।”
वहीं अमित शाह ने अखिलेश यादव के गधे वाले बयान को लेकर कहा कि अखिलेश यादव फ्रस्टेटिड हैं। इसलिए ऐसे बयान दे रहे हैं। वहीं मायावती से सपोर्ट लेकर सरकार बनाने वाली परिस्थिति बनने पर उन्होंने कहा कि हमे किसी के सपोर्ट की जरूरत नहीं, हम दो तिहाई बहुमत से बीजेपी की सरकार बनाने जा रहे हैं। इसके अलावा शाह ने कैराना की बात करते कहा, “निश्चित ही वहां से पलायन हुआ है।” आगे जब उनसे कैराना के पलायन की तुलना कश्मीरी पंडितों की स्थिति से करने को लेकर सवाल किया गया तो शाह ने कहा कि पार्टी के अलग-अलग लोग अपने हिसाब से उदाहरण देते हैं लेकिन कैराना से एक ही धर्म के लोगों का पलायन हुआ है यह वास्तविक्ता है।
इसके अलावा शाह से जब पूछा गया कि बीजेपी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार चुनावी मैदान में नहीं उतारा, तो उन्होंने जवाब दिया कि हम चुनाव में सिर्फ यह देखते हैं कि कौन जीत सकता है, हिंदू मुस्लिम नहीं देखते हैं। उनसे जब दोबारा सवाल किया गया तो उन्होंने जवाब दिया, “आप बीएसपी से पूछीए कि उन्होंने ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार क्यों चुनावी मैदान में उतारे, क्या वो पोलोराइजेशन नहीं है ? मेरे हिसाब से हिंदू-मुस्लिम टिकट देते समय नहीं देखना चाहिए।” आखिर में जीतने पर राज्य का मुख्यमंत्री कौन होगा इस पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, “पार्टी के जीतने पर पार्लियामेंट्री बोर्ड और विधायक मिलकर सीएम चुनेंगे।” वहीं नोटबंदी के दौरान हुई मौतों के बारे में पूछे जाने पर शाह ने कहा कि आने वाले चुनाव में इस बात का भी जवाब मिल जाएगा।

रेडियो में भी स्थिति अच्छी नहीं, घट गया वेतन, 6 महीने से है पेंडिंग
‘रेडियो कश्मीर, श्रीनगर’ (Radio Kashmir Srinagar) की न्यूज यूनिट के अस्थायी कर्मचारियों (casual employees) ने आरोप लगाया है कि उन्हें पिछले छह महीने से भुगतान नहीं किया गया है। यहां सिर्फ तीन स्थायी (permanent) कर्मचारी हैं जबकि अस्थायी कर्मचारियों की संख्या 100 से ज्यादा है।
इन कर्मचारियों का कहना है कि एक तो उनके वेतन का भुगतान नहीं किया जा रहा है, वहीं प्रबंधन द्वारा इस तरह की अफवाह फैलाई जा रही है कि न्यूज यूनिट को दिल्ली शिफ्ट किया जा रहा है जैसे 90 के दशक में किया गया था, जब घाटी में आतंकवाद चरम पर था।
नाम न छापने की शर्त पर एक अन्य कर्मचारी ने बताया, ‘प्रबंधन द्वारा फैलाई जा रही खबरों को इस वजह से और मजबूती मिल रही है कि पिछले छह महीने से तमाम गुहार लगाने के बावजूद उन्हें भुगतान नहीं किया जा रहा है। पिछले 15 साल से इ‍तनी कठिन परिस्थितियों में अपनी जान को जोखिम में डालकर स्टेशन को चलाने के बावजूद हमें नजरअंदाज किया जा रहा है।’
कर्मचारियों का कहना है कि पिछले दो दशक में ऐसा पहली बार हुआ है जब इस तरह की स्थिति सामने आई है। हालांकि न्यूज यूनिट को दिल्ली शिफ्ट करने के संकेत दो साल पहले ही मिलने लगे थे जब तत्कालीन रीजनल न्यूज यूनिट हेड ने बिना किसी कारण के नौ लोगों को हटा दिया गया था। इसके बाद दो प्रोग्राम उद्घोषकों को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। ये लोग यहां 1993 से कार्य कर रहे थे।
आरोप है कि बिना किसी सूचना के उर्दू और कश्मीर भाषा के अलावा अन्य न्यूज रीडर्स के पारिश्रमिक में भी कटौती की गई है। पहले जहां यह 1600 रुपये था, जिसे घटाकर अब 1100 रुपये कर दिया गया है। हालांकि तत्कालीन रीजनल न्यूज यूनिट हेड का कहना है कि न्यूज यूनिट को दिल्ली स्थानांतरित करने की कोई योजना नहीं है और यह सिर्फ अफवाह फैलाई जा रही है। उनका कहना है कि दिल्ली से फंड मिलने में थोड़ी देरी हो रही है, जिस वजह से ही भुगतान रुका हुआ है। इस दिशा में बातचीत चल रही है। वहीं नौ कर्मचारियों को हटाने के संबंध में उनका कहना था कि जब दिल्ली से फंड मिला था तो यहां स्टाफ की भर्ती की गई थी। अब अतिरिक्त स्टाफ को हटाया जा रहा है।

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