अमित शाह की बहादुरी पर देश खुशी में झुमने लगा; मुस्लिम धर्मगुरु ने भी किया समर्थन

हालात कैसे संभालेगी सरकार? अनुच्छेद 370:  मोदी के विरोधी केजरीवाल का समर्थन, सहयोगी जेडीयू का विरोध – सरकार को इस बात का अंदाजा था कि इस बड़े और कड़े फ़ैसले के बाद जम्मू-कश्मीर के हालात बेक़ाबू हो सकते हैं। www.himalayauk.org (Leading Newsportal) Execlusive Article; 5 August 2019

जम्मू-कश्मीर में क़रीब दो हफ्ते का सस्पेंस ख़त्म करते हुए मोदी सरकार ने एक बड़ा फ़ैसला कर लिया। फ़ैसला बड़ा ही नहीं, कड़ा भी है। मोदी सरकार ने संवैधानिक प्रावधानों के बीच रास्ता निकालते हुए संविधान के अनुच्छेद 370 को संविधान में बनाए रखते हुए इसे पूरी तरह निष्प्रभावी बना दिया है।   राज्यसभा में भारी शोर-शराबे के बीच सोमवार को गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने की सिफ़ारिश की है। इसके साथ ही गृह मंत्री ने कहा कि जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग कर दिया गया है। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दोनों को अब केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया है, हालाँकि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा बरक़रार रहेगी। 

 गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का प्रस्ताव पेश किया है और राज्य का पुनर्गठन का प्रस्ताव रखा है. इसके साथ ही अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन का संकल्प भी पेश किया है. अमित शाह के ऐलान के बाद विपक्ष ने सदन में काफी हंगामा किया.

अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ‘ए’ के तहत जम्मू-कश्मीर राज्य को मिले सभी विशेष अधिकार ख़त्म करने का प्रस्ताव सरकार ने राज्यसभा में रखा है। जम्मू कश्मीर राज्य को दो हिस्सों में बाँट दिया गया है। जम्मू-कश्मीर एक अलग केंद्र शासित प्रदेश होगा और लद्दाख अलग केंद्र शासित प्रदेश होगा। जम्मू-कश्मीर की विधानसभा तो होगी, लेकिन लद्दाख़ की अपनी विधानसभा नहीं होगी।

मोदी सरकार के इस बड़े और कड़े फ़ैसले के बाद देश की राजनीति में भूचाल आ गया है। जिस वक्त गृह मंत्री अमित शाह राज्यसभा में इस फ़ैसले का ऐलान कर रहे थे, पीडीपी के सांसदों ने राज्यसभा में संविधान की प्रति फाड़ कर विरोध जताया। राज्यसभा में कांग्रेस के नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद भी धरने पर बैठ गए। पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने सरकार के इस फ़ैसले का विरोध करते हुए इस दिन को काला दिवस करार दिया है। 

 राज्यसभा में कांग्रेस के व्हिप भुवनेश्वर कलिता ने सोमवार को अपना इस्तीफा दे दिया. भुवनेश्वर कलिता ने कहा कि आज कांग्रेस ने मुझे कश्मीर मुद्दे के बारे में व्हिप जारी करने को कहा, जबकि सच्चाई ये है कि देश का मिजाज पूरी तरह से बदल चुका है और ये व्हिप देश की जन भावना के खिलाफ है. भुवनेश्वर कलिता ने कहा कि पंडित नेहरू ने खुद अनुच्छेद 370 का विरोध किया था और कहा था कि एक दिन घिसते-घिसते यह खत्म हो जाएगा. आज की कांग्रेस की विचारधारा से लगता है कि कांग्रेस आत्महत्या कर रही है और मैं इसमें कांग्रेस का भागीदार नहीं बनना चाहता हूं. मैं इस व्हिप का पालन नहीं करूंगा और मैं कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देता हूं.

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने की सिफ़ारिश किए जाने का बीजेपी के धुर विरोधी रहे कई दलों ने भी समर्थन किया है। इसमें अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, बीएसपी और एसपी जैसी पार्टियाँ प्रमुख हैं। इसके अलावा एनडीए के बाहर के दल, बीजेडी, वाईएसआरसीपी, एआईएडीएमके ने भी सरकार का समर्थन किया है। एनडीए की सहयोगी शिवसेना ने भी समर्थन किया है। हालाँकि एनडीए का सहयोगी दल जनता दल यूनाइटेड ने सरकार के इस फ़ैसले का ज़बर्दस्त विरोध किया है। पार्टी ने साफ़ कहा कि वह इस मुद्दे पर बीजेपी से अलग रुख रखती है। जनता दल यूनाइटेड ने साफ़ तौर पर कहा है कि यह बीजेपी का फ़ैसला है, एनडीए का नहीं। सरकार ने यह फ़ैसला करने से पहले उनसे कोई सलाह मशवरा नहीं किया है। इस प्रस्ताव पर वोटिंग के दौरान उनके सांसद सदन में मौजूद नहीं रहेंगे।

इस फ़ैसले के बाद बीजेपी ख़ेमे में ग़ज़ब का उत्साह है। पार्टी की तरफ से हर मंच पर कहा जा रहा है कि पार्टी ने अपने वादे के मुताबिक़ अपने मुख्य मुद्दों पर अमल करना शुरू कर दिया है। बता दें कि भारतीय जनसंघ के जमाने से ही जम्मू-कश्मीर से बीजेपी  का लक्ष्य रहा है कि अनुच्छेद 370 को हटाकर जम्मू-कश्मीर को राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल किया जाए, राज्य को मिले सभी विशेषाधिकार ख़त्म किया जाएँ।

 जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना सैफ अब्बास ने समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि कश्मीर में 370 धारा की वजह से एक मुल्क में रहते हुए भी हम अजनबी थे. हिन्दुस्तान का नागरिक अगर हिंदुस्तान के ही दूसरे सूबे में जाकर प्रॉपर्टी नहीं खरीद सकता या बिजनेस नहीं कर सकता था तो ये चीजें सोचने वाली हैं. इस मसले को बहुत पहले ही खत्म हो जाना चाहिए था लेकिन राजनेता अपने निजी फायदे के लिए इसे 70 साल तक घसीटते रहे

हालाँकि बीजेपी के लिए अभी अपने इस फ़ैसले को संसद के दोनों सदनों में पास कराने की चुनौती है, लोकसभा में तो बीजेपी इस फ़ैसले को आसानी से पास करा लेगी। वहाँ उसका प्रचंड बहुमत है, लेकिन राज्यसभा में बीजेपी का बहुमत नहीं है और अभी यह भी देखना होगा कि बाकी राजनीतिक दल इस मोदी सरकार के इस फ़ैसले को किस तरह लेते हैं।

अमित शाह की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि लद्दाख के लोगों की लंबे समय से मांग रही है कि लद्दाख को केंद्र शासित राज्य का दर्ज दिया जाए, ताकि यहां रहने वाले लोग विकास की मुख्यधारा में शामिल हो सकें. अमित शाह ने राज्यसभा में कहा कि उन्हें अच्छा लगता अगर विपक्ष उनसे ये सवाल पूछती कि सरकार जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक स्थिति में ये बदलाव किन कानूनी प्रावधानों के आधार पर कर रही है. अमित शाह ने बताया, “देश के राष्ट्रपति को अनुच्छेद 370(3) के तहत पब्लिक नोटिफिकेशन से धारा 370 को सीज करने के अधिकार हैं, आज सुबह राष्ट्रपति महोदय ने एक नोटिफिकेशन निकाला है जिसमें उन्होंने कहा कि संविधान सभा के अधिकार अब जम्मू-कश्मीर विधानसभा में निहित होते हैं, क्योंकि संविधान सभा अब है ही नहीं…चूंकि वहां राष्ट्रपति शासन है इसलिए जम्मू-कश्मीर असेंबली के सारे अधिकार संसद में निहित हैं और राष्ट्रपति के आदेश को हम साधारण बहुमत से पारित कर सकते हैं. “

अगर किसी वजह से राज्यसभा में बीजेपी प्रस्ताव नहीं पास करा पाती तो इसके लिए बीजेपी संसद के दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन को बुलाकर भी पास करा सकती है। साल 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने पोटा विधेयक के राज्यसभा में गिरने के बाद उसे संसद के दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाकर ही पास कराया था।

सरकार को यह राज्यसभा में पास कराने में दिक्क़त होगी, ऐसा लगता नहीं है, क्योंकि गृह मंत्री अमित शाह ने जिस भरोसे और आत्मविश्वास के साथ राज्यसभा में अपने तर्क रखे हैं, कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों के लिए उन तर्कों को काटना बहुत मुश्किल होगा। अमित शाह ने कांग्रेस को आईना दिखाते हुए बताया है कि जिस तरह 1952 और 1962 में दो बार कांग्रेस ने अनुच्छेद 370 में संसद के रास्ते संशोधन किए थे, ठीक उसी तरह मोदी सरकार भी यह संशोधन करने जा रही है। उन्होंने बताया कि जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू होने की वजह से वहाँ की विधानसभा के सारे अधिकार संसद में नहीं थे और संसद जम्मू कश्मीर के बारे में कोई भी फ़ैसला करने में पूरी तरह सक्षम है।

सरकार को इस बात का अंदाजा था कि इस बड़े और कड़े फ़ैसले के बाद जम्मू-कश्मीर के हालात बेक़ाबू हो सकते हैं। लिहाजा जम्मू-कश्मीर में हालात संभालने के लिए पहले सुरक्षा बलों की सौ कंपनियाँ यानी 10,000 जवान भेजे गए। उसके कुछ दिन बाद ही 25,000 जवान और भेजे गए। सोमवार को 8,000 जवानों की जम्मू-कश्मीर में तैनात की गई है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार को जम्मू-कश्मीर में बड़े पैमाने पर उपद्रव की आशंका है। इसीलिए सरकार ने हालात संभालने के लिए पहले से पुख़्ता इंतजाम किए हैं। 

केंद्र सरकार के इस फ़ैसले से जम्मू-कश्मीर की आम जनता में नाराज़गी और ग़ुस्सा फैल सकता है। इसे संभालना मोदी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। वहाँ की क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियाँ नेशनल कॉन्फ्रेंस,  पीडीपी, कांग्रेस की स्थानीय इकाई और हाल ही में वजूद में आई पूर्व आईएएस अधिकारी शाह फ़ैसल की पार्टियाँ सरकार के इस फ़ैसले का विरोध कर रहे हैं। पूरे राज्य में धारा 144 लगी हुई है। इसलिए भीड़ के रूप में इकट्ठा होकर इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ लोग बाहर नहीं निकल सकते। सरकार ने फ़ैसला करने से पहले रात में ही राज्य की मुख्य पार्टियों के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती और उमर अब्दुल्ला को नज़रबंद कर दिया था। सरकार के इस कदम को राज्य की सभी पार्टियाँ लोकतंत्र के ख़िलाफ़ बता रहे हैं।

राजनीति पार्टियाँ कुछ भी कहें, मोदी सरकार अपने अजेंडे पर अपने हिसाब से चल रही है। उसे किसी के विरोध की परवाह नहीं है। राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा है कि बीजेपी ने भले ही नारा ‘कांग्रेस मुक्त’ सरकार भारत का दिया हो लेकिन वह ‘मुस्लिम मुक्त’ भारत की दिशा में कदम बढ़ा रही है। जम्मू-कश्मीर के देश का अकेला राज्य है, जहाँ का मुख्यमंत्री मुसलमान होता है। चूंकि जम्मू-कश्मीर की मौजूदा विधानसभा में मुसलिम बहुल कश्मीर घाटी में विधानसभा की 42 सीटें हैं और हिंदू बहुल जम्मू में 37 सीटें हैं। चार सीटें लद्दाख क्षेत्र में आती हैं। कश्मीर घाटी की ज्यादा सीटें होने की वजह से मुख्यमंत्री हमेशा मुसलमान ही होता है। 

बीजेपी पहले ही जम्मू-कश्मीर विधानसभा के परिसीमन का फ़ैसला कर चुकी है और परिसीमन की प्रक्रिया भी जारी है। अगर आबादी के हिसाब से देखा जाए तो कश्मीर घाटी की आबादी जम्मू के मुक़ाबले कम है। परिसीमन होने के बाद यह तय है कि जम्मू में विधानसभा की सीटें ज्यादा होगी और कश्मीर में सीटें कम हो जाएँगी। उस स्थिति में बीजेपी जम्मू कश्मीर में अपनी सरकार बनाने में कामयाब हो सकती है। लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश होगा। वहां विधानसभा नहीं होगी। तो लद्दाख में आने वाली 4 विधानसभा सीटें जम्मू-कश्मीर विधानसभा से कम हो जाएँगी।बीजेपी की तरफ से कहा जा रहा है कि राज्य में सतत विकास और जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए यह फ़ैसला बेहद ज़रूरी था। दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने से वहाँ विकास की गति बढ़ेगी। पूंजी निवेश आएगा। नए उद्योग खुलेंगे। स्थानीय लोगों को रोज़गार मिलेगा। 

राजनीतिक प्रेक्षक मोदी सरकार के इस फैसले को उनके अपने सिद्धांत ‘सबका साथ, सबका विकास और सब के विश्वास’ के ख़िलाफ़ मानते हैं। उनका कहना है कि किसी राज्य के बारे में बड़ा फ़ैसला करने से पहले वहाँ की जनता को विश्वास में लिया जाना जरूरी है। जम्मू-कश्मीर की जनता में  केंद्र सरकार को लेकर में पहले से अविश्वास का माहौल हैं। ऐसे में इस फ़ैसले पर जम्मू-कश्मीर की जनता का विश्वास हासिल करना मोदी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। मोदी सरकार इस चुनौती से कैसे पार पाएगी, यह देखना बेहद दिलचस्प होगा।

 केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म कर दिया है. गृहमंत्री अमित शाह ने आज यानी सोमवार को अनच्छेद 370 हटाने की जानकारी राज्यसभा में दी. इसके बाद सदन में काफी हंगामा हुआ. लेकिन देश के करीब 11 राज्यों में ऐसी ही धारा लागू है जो केंद्र सरकार को विशेष ताकत देती है. ये धारा 371 है. इस धारा की बदौलत केंद्र सरकार उस राज्य में विकास, सुरक्षा, सरंक्षा आदि से संबंधित काम कर सकती है.

11 राज्य हैं जहां धारा-371 लागू है…

महाराष्ट्र/गुजरात- आर्टिकल 371

महाराष्ट्र और गुजरात, दोनों राज्यों के राज्यपाल को आर्टिकल-371 के तहत ये विशेष जिम्मेदारी है कि वे महाराष्ट्र के विदर्भ, मराठवाड़ा और गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ के अलग विकास बोर्ड बना सकते हैं. इन इलाकों में विकास कार्य के लिए बराबर फंड दिया जाएगा. टेक्निकल एजुकेशन, वोकेशनल ट्रेनिंग और रोजगार के लिए उपयुक्त कार्यक्रमों के लिए भी राज्यपाल विशेष व्यवस्था कर सकते हैं.

कर्नाटक – आर्टिकल 371जे, 98वां संशोधन एक्ट-2012

हैदराबाद और कर्नाटक क्षेत्र में अलग विकास बोर्ड बनाने का प्रावधान है. इनकी सालाना रिपोर्ट विधानसभा में पेश की जाती है. बताए गए क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए अलग से फंड मिलता है लेकिन बराबर हिस्सों में. सरकारी नौकरियों में इस क्षेत्र के लोगों को बराबर हिस्सेदारी मिलती है. इसके तहत राज्य सरकार के शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में हैदराबाद और कर्नाटक में जन्मे लोगों को तय सीमा के तहत आरक्षण भी मिलता है.

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना – 371डी, 32वां संशोधन एक्ट-1973

इन राज्यों के लिए राष्ट्रपति के पास यह अधिकार होता है कि वह राज्य सरकार को आदेश दे कि किस जॉब में किस वर्ग के लोगों को नौकरी दी जा सकती है. इसी तरह शिक्षण संस्थानों में भी राज्य के लोगों को बराबर हिस्सेदारी या आरक्षण मिलता है. राष्ट्रपति नागरिक सेवाओं से जुड़े पदों पर नियुक्ति से संबंधित मामलों को निपटाने के लिए हाईकोर्ट से अलग ट्रिब्यूनल बना सकते हैं.

मणिपुर – 371सी- 27वां संशोधन एक्ट-1971

राष्ट्रपति चाहे तो राज्य के राज्यपाल को विशेष जिम्मेदारी देकर चुने गए प्रतिनिधियों की कमेटी बनवा सकते हैं. ये कमेटी राज्य के विकास संबंधी कार्यों की निगरानी करेगी. राज्यपाल सालाना इसकी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपते हैं.

मिजोरम – 371जी – 53वां संशोधन एक्ट-1986

जमीन के मालिकाना हक को लेकर मिजो समुदाय के पारंपरिक प्रथाओं, शासकीय, नागरिक और आपराधिक न्याय संबंधी नियमों को भारत सरकार का संसद बदल नहीं सकता. केंद्र सरकार इस पर तभी फैसला ले सकती है जब राज्य की विधानसभा कोई संकल्प या कानून न लेकर आए.

नगालैंड – 371ए – 13वां संशोधन एक्ट- 1962

जमीन के मालिकाना हक को लेकर नगा समुदाय के पारंपरिक प्रथाओं, शासकीय, नागरिक और आपराधिक न्याय संबंधी नियमों को संसद बदल नहीं सकता. केंद्र सरकार इस पर तभी फैसला ले सकती है जब राज्य की विधानसभा कोई संकल्प या कानून न लेकर आए. ये कानून तब बनाया गया जब भारत सरकार और नगा लोगों के बीच 1960 में 16 बिंदुओं पर समझौता हुआ.

अरुणाचल प्रदेश – 371एच- 55वां संशोधन एक्ट- 1986

राज्यपाल को राज्य के कानून और सुरक्षा को लेकर विशेष अधिकार मिलते हैं. वह मंत्रियों के परिषद से चर्चा करके अपने फैसले को लागू करा सकते हैं. लेकिन इस चर्चा के दौरान मंत्रियों का परिषद राज्यपाल के फैसले पर कोई सवाल नहीं उठा सकता. राज्यपाल का फैसला ही अंतिम फैसला होगा.

असम – 371बी – 22वां संशोधन एक्ट- 1969

राष्ट्रपति राज्य के आदिवासी इलाकों से चुनकर आए विधानसभा के प्रतिनिधियों की एक कमेटी बना सकते हैं. यह कमेटी राज्य के विकास संबंधी कार्यों की विवेचना करके राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौपेंगे.

सिक्किम – 371एफ – 36वां संशोधन एक्ट – 1975

राज्य के विधानसभा के प्रतिनिधि मिलकर एक ऐसा प्रतिनिधि चुन सकते हैं जो राज्य के विभिन्न वर्गों के लोगों के अधिकारों और रुचियों का ख्याल रखेंगे. संसद विधानसभा में कुछ सीटें तय कर सकता है, जिसमें विभिन्न वर्गों के ही लोग चुनकर आएंगे. राज्यपाल के पास विशेष अधिकार होते हैं जिसके तहत वे सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए बराबर व्यवस्थाएं किए जा सकें. साथ ही राज्य के विभिन्न वर्गों के विकास के लिए प्रयास करेंगे. राज्यपाल के फैसले पर किसी भी कोर्ट में अपील नहीं की जा सकेगी.

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