ज्योतिष व आयुर्वेद की आधारभूमि एक है- रोग और आरोग्य का आश्रय शरीर तथा मन है

ज्योतिष में लग्न अर्थात प्रथम भाव व्यक्ति के स्वास्थ्य व व्यक्तित्व को दर्शाता है। लग्नेश की सुदृढ़ स्थिति जीवन को स्वस्थ व सुखमय बनाती है।

हमारा शरीर पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश इन पांच महाभूतों से निर्मित है। यत्पिंडे तत्ब्रह्मांडे अर्थात जो पिंड में है वही ब्रह्मांड में है। जीवन का विज्ञान आयुर्वेद भी शरीर में पंचभूतों की उपस्थिति स्वीकार करता है। यह मनुष्य या संपूर्ण जीव मात्र के स्वास्थ्य संरक्षण व संवर्धन व रोग निवारण के लिए कृत संकल्प है। हिताहितं सुखं दुःखमायुस्तस्य हिताहितम्। मानं च तच्च यत्रोक्तमायुर्वेदः स उच्यते । अर्थात जिस शास्त्र में हितमय, अहितमय, सुखमय, दुखमय आयु तथा आयु के लिए हितकर और अहितकर द्रव्यगुण, कर्म, आयु का प्रमाण एवं लक्षण द्वारा वर्णन होता है उसका नाम आयुर्वेद है। 1. ज्योतिष व आयुर्वेद की आधारभूमि एक है। 2. आयुर्वेद व ज्योतिष में व्यक्ति में पंचभूतों, षड् रसों व त्रि धातु की स्थिति मानी गई है। 3. ज्योतिष षड् रसों को ग्रह विशेष के साथ संबंधित करता है और ग्रह बल के आधार पर व्यक्ति में इनका न्यूनाधिक्य स्वीकार करता है। आयुर्वेद षड् रसों को त्रि धातु अर्थात वात, पित्त, कफ के असंतुलन में औषधि रूप में प्रयुक्त करता है। 4. ज्योतिष त्रि धातु अर्थात वात-पित्तादि को सूर्यादि ग्रहों का गुण धर्म मानता है। 5. ज्योतिष में निदान के रूप में मंत्र, रत्न, यंत्र व उपासनाएं वर्णित हैं। ज्योतिष रत्न धारण व आयुर्वेद भी रत्न का रत्नौषधि भस्म या अन्य रूप में प्रयोग बताता है और औषधि निर्माण में मंत्र उपासना का भी महत्व है। 6. ज्योतिष रोगोपचार के मंत्र, यंत्र उपासना आदि उपायों के साथ औषधि प्रयोग की सलाह देता है। लेकिन असाध्य रोगों के विषय में जहां आयुर्वेद को विराम मिलता हो वहां से ज्योषित आरंभ होता है।

आयुर्वेद में रोगों का स्वरूप ‘‘विकारोः धातु वैषम्य’’ के रूप में स्वीकार किया गया है। विकार दोषों की अपेक्षा रखते हैं। वृद्ध वाग्भट्ट ने भी कहा है ‘‘वायुः पित्तं कफश्चेति त्रयोः दोषाः समासतः’’ और ‘‘रजस्तमश्च मनसो द्वौ च दोषा वुदाहतौ।’’ इस संबंध में चरक ने भी यही कहा है – वायुः पित्तं कफश्चोक्तिः शारीरो दोष संग्रहः। मानसः पुनरुद्दिष्टो रजश्च तम एव च। अर्थात वायु, पित्त तथा कफ तीनों शरीर के दोष हैं और रज तथा तम। ये दोनों मानस दोष है। रोग और आरोग्य का आश्रय शरीर तथा मन है, शारीरिक रोगों को उत्पन्न करने वाले वात, पित्त तथा कफ है। ये तीनों जब तक समावस्था में रहते हंै तब तक ही आरोग्य रहता है। इन तीनों का नाम धातु भी है, अर्थात ये शरीर को धारण करते हैं। परंतु जब ये दूषित हो जाते हैं तब रोगों को पैदा करते हैं- उस समय इन्हें दोष कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र नव ग्रहों को भी वात, पित्त, कफ कारक के आधार पर विभाजित करता है। सूर्य की पित्त प्रकृति कही है। चंद्रमा त्रिदोष में वात और कफ पर विशेष अधिकार रखता है। मंगल पित्त प्रधान है। बुध वात, पित्त व कफ का सम्मिश्रण है गुरु कफ प्रकृति वाला है। शुक्र वात और कफ प्रधान है। शनि वात पर अधिकार रखता है। साथ ही यह भी कहा गया है कि बलवान ग्रह से संबंधित धातु शरीर में पुष्ट होती है। निर्बहन ग्रह से धातु निर्बल हो रहती है यथा किसी जन्म पत्रिका में सूर्य कमजोर होने पर पित्त दोष, चंद्रमा की क्षीणता या पीड़ित होने से कफ व वात दोष, बुध से त्रिदोष, गुरु से कफ रोग अर्थात ग्रह से संबंधित धातु की शरीर में स्थिति उसके ग्रह की स्थिति पर निर्भर करती है।

त्रिधातुओं की तरह ही षड रसों को भी ग्रहों के अधीन कहा गया है। सूर्य का रस कटु, चंद्रमा का नमकीन, मंगल का तीखा, बुध का मिश्रित, गुरु का मीठा, शुक्र का खट्टा, शनि का कषाय रस कहा है। आयुर्वेद में वर्णित छः रसों का ही वर्णन यहां भी है। आयुर्वेद में औषधि रूप से रस दोषों को शांति करने वाला कहा गया है। चरक संहिता सूत्र स्थान 63 में रस को पृथ्वी व जल का आश्रित कहा गया है। शरीर में पंच महाभूतों की स्थिति है, और रस पृथ्वी व जल के आश्रित हंै, अतः रसों की स्थिति भी शरीर में है। अष्टांड. संग्रह सूत्रस्थाना में शरीर में रस स्थिति का वर्णन हों महर्षि चरक ने भी मधुर, अम्ल (खट्टा), लवण, कटु, तिक्त और कषाय षड रस कहे हैं। स्वादुरम्लोऽथ लवणः कटुकस्तिक्त एव च। कषायश्चेति षड्कोऽयं रसाना संग्रहः स्मृतः। इन छः रसों में से मधुर, अम्ल तथा लवण वात को शांत करते है। कषाय (कसैला), मधुर, तथा तिक्त पित्त को शांत करते हैं। कषाय कटु व तिक्त, कफ को शांत करते हंै। जो इस दोष को शांत नहीं करता उसको बढ़ाने वाला होता है जैसे मधुर, खट्टा व नमकीन वात को शांत करते हैं जबकि कटु, तिक्त व कषाय वात को बढ़ाते हंै। स्वाद्वम्ललवणा वायुं, कपायस्वादुतिक्तकाः। जयन्ति पित्तं, श्लेष्मां कपायकटुतिक्तकाः।। ज्योतिष में लग्न अर्थात प्रथम भाव व्यक्ति के स्वास्थ्य व व्यक्तित्व को दर्शाता है। लग्नेश की सुदृढ़ स्थिति जीवन को स्वस्थ व सुखमय बनाती है।

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