‘‘जनता के प्रधानमंत्री’’ के रूप में लोगों के दिलों में अपनी खास जगह बनायी

#www.himalayauk.org (Uttrakhand Leading Newsportal & Print Media) Mail us; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030## CS JOSHI= EDITOR

भारत माँ के सच्चे सपूत, राष्ट्र पुरुष, राष्ट्र मार्गदर्शक, सच्चे देशभक्त ना जाने कितनी उपाधियों से पुकार जाता था भारत रत्न पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी को वो सही मायने में भारत रत्न थे। इन सबसे भी बढ़कर पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी एक अच्छे इंसान थे। जिन्होंने जमीन से जुड़े रहकर राजनीति की और ‘‘जनता के प्रधानमंत्री’’ के रूप में लोगों के दिलों में अपनी खास जगह बनायी थी। एक ऐसे इंसान जो बच्चे, युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों सभी के बीच में लोकप्रिय थे। देश का हर युवा, बच्चा उन्हें अपना आदर्श मानता था।

25 Dec. जयंती पर विशेष- हिमालयायूके
​नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) और पर्यटन विभाग द्वारा 19 अक्टूबर को सफलतापूर्वक फतह की गई उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री हिमालय की चार अनाम चोटियों के नाम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर रखे गए हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक से लेकर प्रधानमंत्री तक का सफर तय करने वाले युगपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म ग्वालियर में बड़े दिन के अवसर पर 25 दिसंबर 1924 को हुआ। अटलजी के पिता का नाम पं. कृष्णबिहारी वाजपेयी और माता का नाम कृष्णा वाजपेयी था। पिता पं. कृष्णबिहारी वाजपेयी ग्वालियर में अध्यापक थे, साथ ही साथ वे हिन्दी व ब्रज भाषा के सिद्धहस्त कवि भी थे। अटलजी मूल रूप से उत्तरप्रदेश राज्य के आगरा जिले के प्राचीन स्थान बटेश्वर के रहने वाले थे इसलिए अटल बिहारी वाजपेयी का पूरे ब्रज सहित आगरा से खास लगाव था।

अटल जी की कविताओं में हिमालय हमेशा रहा। वजह ये भी रही है कि अटल सरकार के वक्त ही देश को 27वें राज्य के रूप में उत्तराखंड मिला था। उसी वक्त अटल सरकार में ही उत्तराखंड को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था। उसी वक्त उत्तराखंड को औद्योगिक पैकेज की सौगात भी दी गई थी। उत्तराखंड में अटल बिहारी वाजपेयी ने श्रीनगर, छाम, नैनीताल, मसूरी, देहरादून में जनसभाएं भी की थी। ये बात सच है कि अगर 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड देश के मानचित्र पर 27वें राज्य के रूप में वजूद में आया, तो इसमें सबसे निर्णायक भूमिका अटल की ही थी। ——

अटल बिहारी वाजपेयी जी ने आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लिया और जिसका उन्होंने अपने अंतिम समय तक निर्वहन किया। बेशक पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी कुंवारे थे लेकिन देश का हर युवा उनकी संतान की तरह था। देश के करोङ़ों बच्चे और युवा उनकी संतान थे। पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी का बच्चों और युवाओं के प्रति खास लगाव था। इसी लगाव के कारण पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी बच्चों और युवाओं के दिल में खास जगह बनाते थे। भारत की राजनीति में मूल्यों और आदर्शों को स्थापित करने वाले राजनेता और प्रधानमंत्री के रूप में पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी का काम बहुत शानदार रहा। उनके कार्यों की बदौलत ही उन्हें भारत के ढांचागत विकास का दूरदृष्टा कहा जाता है। सब के चहेते और विरोधियों का भी दिल जीत लेने वाले बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी पंडित अटल बिहारी वाजपेयी का सार्वजनिक जीवन बहुत ही बेदाग और साफ सुथरा था। इसी बेदाग छवि और साफ सुथरे सार्वजनिक जीवन की वजह से अटल बिहारी वाजपेयी जी का हर कोई सम्मान करता था। उनके विरोधी भी उनके प्रशंसक थे। पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी के लिए राष्ट्रहित सदा सर्वोपरि रहा। तभी उन्हें राष्ट्रपुरुष कहा जाता था।

अटलजी की बीए की शिक्षा ग्वालियर के वर्तमान में लक्ष्मीबाई कॉलेज के नाम से जाने वाले विक्टोरिया कॉलेज में हुई। ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से स्नातक करने के बाद अटलजी ने कानपुर के डीएवी महाविद्यालय से कला में स्नातकोत्तर उपाधि भी प्रथम श्रेणी में प्राप्त की। अटलजी एक प्रखर वक्ता और कवि हैं। ये गुण उन्हें उनके पिता से वंशानुगत मिले। अटलजी को स्कूली समय से ही भाषण देने का शौक था और स्कूल में होने वाली वाद-विवाद, काव्यपाठ और भाषण जैसी प्रतियोगिताओं में वे हमेशा हिस्सा लेते थे।

अटलजी छात्र जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में हिस्सा लेते रहे। अटलजी ने अपने जीवन में पत्रकार के रूप में भी काम किया और लंबे समय तक ‘राष्ट्रधर्म’, ‘पाञ्चजन्य’ और ‘वीर अर्जुन’ आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया। अटलजी ने आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लिया और वे आज तक उसका निर्वहन कर रहे हैं।

अटलजी भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे और उन्होंने लंबे समय तक डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी और पं. दीनदयाल उपाध्याय जैसे प्रखर राष्ट्रवादी नेताओं के साथ काम किया। अटलजी सन् 1968 से 1973 तक भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। अटलजी सन् 1957 के लोकसभा चुनावों में पहली बार उत्तरप्रदेश की बलरामपुर लोकसभा सीट से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पहुंचे। अटलजी 1957 से 1977 तक लगातार जनसंघ की और से संसदीय दल के नेता रहे।

अटलजी ने अपने ओजस्वी भाषणों से देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू तक को प्रभावित किया। एक बार अटलजी के संसद में दिए ओजस्वी भाषण को सुनकर नेहरूजी ने उनको ‘भविष्य का प्रधानमंत्री’ तक बता दिया था और आगे चलकर नेहरूजी की यहभविष्यवाणी सच भी साबित हुई।

अटलजी का व्यक्तित्व बहुत ही मिलनसार है। उनके विपक्ष के साथ भी हमेशा संबंध मधुर रहे। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में विजयश्री के साथ बांग्लादेश को आजाद कराकर पाक के 93,000 सैनिकों को घुटनों के बल भारत की सेना के सामने आत्मसमर्पण करवाने वाली देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अटलजी ने संसद में ‘दुर्गा’ की उपमा से सम्मानित किया था।

1975 में इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाने का अटलजी ने खुलकर विरोध किया था। आपातकाल की वजह से इंदिरा गांधी को 1977 के लोकसभा चुनावों में करारी हार झेलनी पड़ी और देश में पहली बार गैरकांग्रेसी सरकार जनता पार्टी के नेतृत्व में बनी जिसके मुखिया मोरारजी देसाई थे। तब अटलजी को विदेश मंत्री जैसा महत्वपूर्ण विभाग दिया गया। अटलजी ने विदेश मंत्री रहते हुए पूरे विश्व में भारत की छवि बनाई और विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी में भाषण देने वाले वे देश के पहले वक्ता बने। अटलजी 1977 से 1979 तक देश के विदेश मंत्री रहे।

1980 में जनता पार्टी के टूट जाने के बाद अटलजी ने अपने सहयोगी नेताओं के साथ ‘भारतीय जनता पार्टी’ की स्थापना की। अटलजी इसके पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। 1996 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। भाजपा द्वारा सर्वसम्मति से संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद अटलजी देश के प्रधानमंत्री बने, लेकिन वे केवल 13 दिन तक ही देश के प्रधानमंत्री रहे। उन्होंने अपनी अल्पमत सरकार का त्यागपत्र राष्ट्रपति को सौंप दिया। 1998 में भाजपा फिर दूसरी बार सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और अटलजी दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने। लेकिन 13 महीने बाद तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के समर्थन वापस लेने से उनकी सरकार गिर गई।

इस बीच अटलजी ने प्रधानमंत्री रहते हुए दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए पोखरण में 5 भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट कर संपूर्ण विश्व को भारत की शक्ति का एहसास कराया। अमेरिका और यूरोपीय संघ समेत कई देशों ने भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए लेकिन उसके बाद भी भारत, अटलजी के नेतृत्व में हर तरह की चुनौतियों से सफलतापूर्वक निबटने में सफल रहा।

अटलजी ने दूसरी बार प्रधानमंत्री रहते हुए पाकिस्तान से संबंधों में सुधार की पहल की और पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए उन्होंने 19 फरवरी 1999 को ‘सदा-ए-सरहद’ नाम से दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा शुरू कराई। इस सेवा का उद्घाटन करते हुए अटलजी ने पाकिस्तान की यात्रा करके नवाज शरीफ से मुलाकात की और आपसी संबंधों में एक नई शुरुआत की।

लेकिन कुछ ही समय पश्चात पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ की शह पर पाकिस्तानी सेना व पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों ने कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ करके कई पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया। भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान द्वारा कब्जा की गई जगहों पर हमला किया और पाकिस्तान को सीमा पार वापस जाने को मजबूर किया। एक बार फिर पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी और भारत को विजयश्री मिली। कारगिल युद्ध की विजयश्री का पूरा श्रेय अटलजी को दिया गया।

कारगिल युद्ध में विजयश्री के बाद हुए 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर अटलजी के नेतृत्व में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बाद भाजपा ने अटलजी के नेतृत्व में 13 दलों से गठबंधन करके ‘राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन’ के रूप में सरकार बनाई और अटलजी की सरकार ने अपना 5 साल का कार्यकाल पूर्ण किया। इन 5 वर्षों में अटलजी ने देश के अंदर प्रगति के अनेक आयाम छुए और राजग सरकार ने गरीबों, किसानों और युवाओं के लिए अनेक योजनाएं लागू कीं। अटल सरकार ने भारत के चारों कोनों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना की शुरुआत की और दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई व मुंबई को राजमार्गों से जोड़ा गया।

2004 में कार्यकाल पूरा होने के बाद देश में लोकसभा चुनाव हुए और भाजपा के नेतृत्व वाले राजग ने अटलजी के नेतृत्व में ‘शाइनिंग इंडिया’ का नारा देकर चुनाव लड़ा लेकिन इन चुनावों में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला। लेकिन वामपंथी दलों के समर्थन से कांग्रेस ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व में केंद्र की सरकार बनाई और भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ा। इसके बाद लगातार अस्वस्थ रहने के कारण अटलजी ने राजनीति से संन्यास ले लिया। अटलजी को देश-विदेश में अब तक अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 2015 में भारत के सर्वोच्च सम्मान ‘भारतरत्न’ से पूर्व प्रधानमंत्री अटलजी को उनके घर जाकर सम्मानित किया।

भारतीय राजनीति के युगपुरुष, श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ, कोमल हृदय संवेदनशील मनुष्य, वज्रबाहु राष्ट्रप्रहरी, भारतमाता के सच्चे सपूत, अजातशत्रु पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का आज (25 दिसंबर 2019) को 95वी जयंती है।  

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *