शरद यादव अपनी नाराजगी दूर करने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह चाहते हैं

शुक्रवार सुबह 11 बजे नीतीश कुमार विश्वासमत हासिल करेंगे. सबसे बड़ी पार्टी होने के बजाय सरकार बनाने का मौका नहीं देने पर लालू यादव सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं- शरद यादव से मिलने जाएंगे अरुण जेटली. अपनी नजरअंदाजी से नाराज हैं शरद यादव. केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह चाहते हैं शरद.उन्हें मनाने उनके घर जाएंगे जेटली. 

नीतीश बोलते थे हम मिट्टी में मिल जाएंगे लेकिन बीजेपी से हाथ नहीं मिलाएंगे. उन्होंने हमसे झूठ बोला: लालू यादव – पीएम ने नीतीश कुमार के डीएनए पर सवाल उठाए थे. उन्होंने साबित कर दिया कि बीजेपी और जे़डीयू का डीएनए अवसरवादी है: कांग्रेस
नीतीश कुमार के लिए शुक्रवार (28 जुलाई) का दिन अहम है। उन्हें बिहार विधानसभा में बहुमत साबित करना है। कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि जदयू के कुछ बागी विधायक उनका खेल बिगाड़ सकते हैं। शरद यादव और लालू यादव मिलकर नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल सकते हैं। बहरहाल, घटनाक्रम इतनी तेजी से आगे बढ़ रहा है कि इन दोनों नेताओं द्वारा नीतीश के खिलाफ कुछ भी कदम उठाने से पहले नीतीश कुमार विधानसभा में बहुमत परीक्षण पास कर सकते हैं। 28 जुलाई को नीतीश कुमार को बिहार विधानसभा में बहुमत सिद्ध करना है। इधर, राजद अध्यक्ष लालू यादव का कहना है कि वे सुप्रीम कोर्ट में जेडीयू-भाजपा की सरकार बनने के खिलाफ अपील पर विचार कर रहे हैं। 

बिहार का सीएम मेरा छोटा भाई नीतीश कुमार कांग्रेस के सीताराम सिंह की हत्या का मुजरिम है – लालू

नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद लालू प्रसाद यादव ने ट्वीट कर बीजेपी-जेडीयू सरकार पर निशाना साधा. लालू का यह ट्वीट नीतीश कुमार का जवाब है. इस्तीफा देने के बाद नीतीश ने कहा था कि कफन में जेब नहीं होती जो भी है यहीं रह जाएगा.
लालू का जवाब – नीतीश कुमार, क़फ़न में जेब नहीं होती लेकिन कुकर्मों का दाग़ ज़रूर होता है। जनता और मालिक सबके सब कर्मों का लेखा-जोखा रखते है। धीरज रखिए

243 सदस्यों वाली बिहार विधान सभा में जदयू के 71 विधायक हैं जबकि बीजेपी और सहयोगी दलों के कुल 58 विधायक हैं। इन दोनों के जोड़ से आंकड़ा 129 तक जा पहुंचता है जो बहुमत के लिए जरूरी 122 मतों से सात ज्यादा है लेकिन घात-प्रतिघात की आशंकाओं के बीच जरूरी आंकड़े कम ना पड़ जाएं इसलिए पहले से ही कोशिशें जारी हैं। इसी क्रम में दो निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन पहले से ही हासिल किया जा चुका है। जदयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव, राज्यसभा सांसद अली अनवर और वीरेन्द्र कुमार अपनी-अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। माना जा रहा है कि इन नेताओं के विश्वस्त विधायक विश्वास मत परीक्षण में खेल कर सकते हैं। जिन विधायकों के बारे में बागी होने की खबरें हैं उनमें से अधिकांश मुस्लिम और यादव हैं। पश्चिम बंगाल जदयू के अध्यक्ष भी कह चुके हैं कि बीजेपी के साथ गठबंधन करने से जदयू के मुस्लिम विधायक पार्टी से किनारा कर सकते हैं। खबरें हैं कि जदयू के बीस विधायक बागी हो सकते हैं। हालांकि, डैमेज कंट्रोल की कोशिशें जारी हैं। बावजूद, इसके अगर 10 विधायक भी बागी हुए तो नीतीश कुमार के लिए विश्वास मत जीतना मुश्किल हो सकता है। इन विधायकों के सामने समस्या यह आ गई है कि उनलोगों ने साम्प्रदायिक शक्तियों का विरोध कर चुनाव जीता था लेकिन अब उनकी पार्टी ने उन्हीं ताकतों के साथ मिलकर सरकार बना ली है। ऐसे में इन नेताओं को अपने वोटरों को यह समझाने में काफी परेशानी हो सकती है। लगे हाथ दोबारा चुनाव जीतने में भी उन्हें मुश्किल हो सकती है। लिहाज, ये विधायक नीतीश के खिलाफ बागी होकर हर तरह की मुश्किल झेलने को तैयार हो सकते हैं लेकिन साम्प्रदायिक शक्तियों के सामने घुटने नहीं टेकने को तैयार हो सकते। 

बिहार में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने के नीतीश कुमार के फैसले से उनकी ही पार्टी (जनता दल यूनाइटेड) के कुछ नेता नाराज हैं। पार्टी महासचिव अरुण श्रीवास्तव ने कहा है कि शरद जी नीतीश कुमार के फैसले को लेकर चिंतित हैं। एक-दो दिन में शरद जी सभी राष्‍ट्रीय पार्टियों के नेताओं से बात करेंगे। इस बीच, केरल से जेडीयू के राज्यसभा सांसद वीरेंद्र कुमार और अली अनवर ने पार्टी के वरिष्‍ठ नेता शरद यादव से उनके दिल्‍ली स्थित आवास पर मुलाकात की है। इससे पहले शरद यादव खुद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से बात कर चुके हैं। राहुल गांधी ने नीतीश के कदम को सबसे बड़ा धोखा करार दिया है।

बिहार के लिए यह ऐतिहासिक अवसर है, जब 37 साल बाद केंद्र और राज्य में एक ही गठबंधन की सरकार होगी। विश्लेषक यह मानकर चल रहे हैं लोकतांत्रिक राजनीति सिर्फ पार्टियों के आपसी शह-मात का खेल है, उसमें जनता की राय सिर्फ चुनावों में मायने रखती है. सो ज्यादतर विश्लेषणों में पार्टियों और उनके नेताओं की कथनी-करनी पर जोर है, लोगों की राय जानने पर नहीं. विश्लेषक मानकर चल रहे हैं कि बिहार की सियासत में कुछ ऐसा हुआ है जो अपनी चाल और चरित्र में अप्रत्याशित है.

इस साल की शुरुआत में ही इस बात के संकेत मिल गए थे कि नीतीश कुमार और बीजेपी के नेतृत्व के बीच पुरानी मित्रता के अंकुर नए सिरे से उगाने की कोशिश शुरू हो चुकी है. इस साल जनवरी में गुरु गोविंद सिंह की 350 वीं जयंती पर पटना में महोत्सव का आयोजन हुआ तो मंच पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक-दूसरे की भरपूर सराहना की और इशारो-इशारों में जता दिया कि नीतीश को आगे चलकर ‘कमल’ में रंग भरना है.

नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक की प्रशंसा इस मैत्री का अगला कदम था और मैत्री की परिणति अब नए गठबंधन और नई सरकार के रूप में नजर आ रही है जिसके लिए मंच केंद्र के इशारे पर सुशील मोदी ने तैयार किया. लालू यादव और उनके परिवार पर सुनियोजित ढंग से भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और नीतीश को मौका मिला कि वे अपनी बेदाग छवि की ओट करके 20 माह पुराने महागठबंधन से अपने को अलग कर सकें.

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