बीजेपी बडा परिवर्तन कर सकती है -उपचुनाव में बड़ा झटका

HIGH LIGHT ; लोकसभा की 4 और विधानसभा की 10 सीटों पर हुए उपचुनाव में बीजेपी को बड़ा झटका लगा है। जिसके बाद सीटों पर करारी हार को लेकर विपक्ष ने भी बीजेपी हमला बोल दिया है।  #यह उपचुनाव केंद्र की बीजेपी सरकार और विपक्ष की एकजुटता के शक्ति परीक्षण की तरह है# नूरपुर और कैराना में हार ने एकबार फिर योगी के नेतृत्व और राजनीति पर सवाल उठा दिए हैं. TODAY TOP STORY; 31 MAY 2018

 उपचुनाव 2018 के परिणाम सामने आने के बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा कि चुनाव आयोग में भ्रष्टाचार को देखते हुए मैं सुझाव दूंगा कि चुनाव आयुक्तों को भी नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए लेकिन चुने जाने चाहिए।

पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने आज कहा कि शाहकोट उपचुनाव में कांग्रेस को मिली जीत सरकार की ‘‘जन केंद्रित नीतियों’ पर लोगों की एक मुहर है तथा यह शिरोमणि अकाली दल की ‘‘नकारात्मक राजनीति’ को खारिज किए जाने और आप के ‘‘उजड़ने’ का संकेत है। 

पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने आज कहा कि शाहकोट उपचुनाव में कांग्रेस को मिली जीत सरकार की ‘‘जन केंद्रित नीतियों’ पर लोगों की एक मुहर है तथा यह शिरोमणि अकाली दल की ‘‘नकारात्मक राजनीति’ को खारिज किए जाने और आप के ‘‘उजड़ने’ का संकेत है। 

हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल

2019 लोकसभा चुनाव में बहुत ज्यादा वक्त नहीं रह गया है और योगी निरंतर फलाप रिजल्‍ट दे रहे है, हिमालयायूके सूत्रों के अनुसार एक सप्‍ताह के अन्‍दर बीजेपी दिल्‍ली में महत्‍वपूर्ण मीटिग कर बडा निर्णय लेकर बडा परिवर्तन कर सकती है- यह मीटिंग पीएम हाउस में हो सकती है जहां बीजेपी ताबडतोड निर्णय लेगी, राज्‍यो में भी परिवर्तन तय- लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव में नरेंद्र मोदी को बड़ा झटका लगा है. 10 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में सिर्फ 1 सीट मिली और 4 लोकसभा सीट में बीजेपी सिर्फ 2 सीटें ही बचा पाई. 2019 से पहले मोदी वर्सेज ऑल में पीएम को मात मिली. गृह मंत्री राजनाथ सिंह 2019 लोकसभा चुनाव को लंबी छलांग बता रहे हैं और आज उपचुनाव में मिली हार को सिर्फ पीछे जाना बता रहे हैं लेकिन इस लंबी छलांग और पीछे हटने का फासला बढ़ता जा रहा है. योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में उत्तर प्रदेश में बीजेपी चार उपचुनाव हार चुकी है. योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद उत्तर प्रदेश में तीन लोकसभा और दो विधानसभा उपचुनाव हुए हैं. इनमें से बीजेपी चार उपचुनाव हार गई, जबकि केवल एक विधानसभा चुनाव जीत पाई है.

28 मई को उत्तर प्रदेश में कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा के लिए उपचुनाव हुए. दोनों सीटों पर पहले बीजेपी का कब्जा था. अब दोनों सीटें बीजेपी सी छिन चुकी है. नूरपुर विधानसभा उपचुनाव में सपा के नईमुल हसन ने बीजेपी की प्रत्याशी अवनी सिंह को हराया. जबकि, कैराना लोकसभा उपचुनाव में राष्ट्रीय लोकदल की प्रत्याशी तबस्सुम हसन ने बीजेपी की मृगांका सिंह को भारी मतों से हराया.

कैराना में भाजपा की जीत के लिए जाट वोट सबसे महत्वपूर्ण था. जाटों ने पिछले लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में भाजपा का साथ देकर इसे साबित भी किया था. लेकिन जब उपचुनाव के लिए प्रचार करने योगी कैराना पहुंचे तो वहां उन्होंने कुछ ऐसा कह दिया जिससे जाट वोट भाजपा के खिलाफ हो गया.

गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ थे. उपचुनाव में बीजेपी ने उपेंद्र दत्त शुक्ल को मैदान में उतारा. सपा ने प्रवीण कुमार निषाद को उनके खिलाफ खड़ा किया. सपा प्रत्याशी प्रवीण कुमार ने बीजेपी प्रत्याशी को करीब 22000 वोटों से हरा दिया. फूलपुर के सांसद केशव प्रसाद मौर्य थे. उपचुनाव में बीजेपी ने कौशलेंद्र सिंह को मैदान में उतारा. सपा ने उनके खिलाफ नागेंद्र प्रताप सिंह को मैदान में खड़ा किया. सपा प्रत्याशी ने बीजेपी प्रत्याशी को करीब 60 हजार वोटों से हरा दिया. सीएम योगी के सीएम बनने के बाद कानपुर की सिकंदरा विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक मथुरा पाल का निधन हो गया. उपचुनाव में उनके बेटे अजित सिंह पाल, बीजेपी प्रत्याशी, ने सपा के सीमा सचान को करीब 12000 वोटों से हराया. उसके बाद सभी चार उपचुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है. सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के प्रदेश राजनीति में लौटने के बाद गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ. दोनों सीटों पर सपा की जीत हुई. मई 2018 में कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा के लिए उपचुनाव हुए. कैराना में रालोद की तबस्सुम हसन ने बीजेपी की मृगांका सिंह को करीब 55 हजार वोटों से हरा दिया. नूरपुर में सपा के नईमुल हसन ने बीजेपी की अवनी सिंह को करीब 6200 लोटों से हराया. इस चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए बीजेपी ने एड़ी चोटी की जोड़ लगा दी थी.

उपचुनाव की धुरी माने जा रही कैराना लोकसभा सीट बीजेपी के हाथ से निकल गई. कैराना में महागठबंधन की उम्मीदवार तबस्सुम हसन ने बीजेपी उम्मीदवार मृगांका सिंह को हराया. ये सीट बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन की वजह से खाली हुई थी. मृगांका सिंह हुकुम सिंह की बेटी हैं. आरएलडी की तबस्सुम हसन को एसपी, बीएसपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का समर्थन हासिल था. महाराष्ट्र में भी बीजेपी को भंडारा गोदिंया सीट गंवानी पड़ी, बीजेपी पालघर की सीट बचाने में कामयाब रही. नगालैंड में बीजेपी की सहयोगी पार्टी एनडीपीपी आगे है. विधानसभा उपचुनाव में भी विपक्ष ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी है, बीजेपी को ज्यादातर जगह हार का सामना करना पड़ा है. विधानसभा की 10 सीटों में जेएमएम ने दो, कांग्रेस ने तीन तो वहीं बीजेपी, आरजेडी, सीपीएम, टीएमसी और एसपी ने एक-एक सीट पर जीत दर्ज की. इस उपचुनाव में विपक्षी एकता से बीजेपी को तगड़ा झटका लगा है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक इन नतीजों ने एक बार फिर विपक्ष को 2019 के लिए घेराबंदी करने की नई ऊर्जा दी है.

 

कर्नाटक के बाद कैराना में हार कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद बीजेपी सरकार नहीं बना पाई क्योंकि विपक्ष एक हो गया था, उत्तर प्रदेश के कैराना में भी यही हुआ. अखिलेश-मायावती और कांग्रेस ने मिलकर अजित सिंह की लोकदल के प्रत्याशी का समर्थन कर दिया और बीजेपी को अपनी सीट गंवानी पड़ी. यूपी में विरोधियों के एकजुट होने का ये प्रयोग पहली बार नहीं हुआ है. गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में भी बीजेपी को शिकस्त इसीलिए मिली थी क्योंकि सारे अखिलेश के प्रत्याशी को मायवती ने समर्थन दे दिया था. यहां भी आरएलडी उम्मीदवार तबस्सुम हसन को समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का सीधा समर्थन था और बीएसपी ने भी विरोध नहीं किया था.

अगर यही फॉर्मूला 2019 में रहता है तो मोदी की डगर मुश्किल हो सकती है. 2014 लोकसभा चुनाव में यूपी की 80 में से 73 सीटें एनडीए के खाते में गई थीं. अब 2017 विधानसभा चुनाव में मिले वोट को आधार मानें तो अगर एसपी-बीएसपी और कांग्रेस साथ लड़ेंगे तो 80 में से 61 सीटों पर गठबंधन की जीत होगी और एनडीए सिर्फ 19 सीटों पर सिमट सकता है.

एक और उपचुनाव में बीजेपी अभी खराब प्रदर्शन से जूझ ही रही थी कि शिवसेना फिर से बागी तेवर दिखाने के मूड में आ गई है. सूत्र बताते हैं कि वह जल्द ही महाराष्ट्र सरकार से हटने का ऐलान कर सकती है. हालांकि वह सरकार से हटने के बाद राज्य में बीजेपी सरकार को बाहर से समर्थन दे सकती है. महाराष्ट्र की पालघर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी के राजेंद्र गावित ने गुरुवार को शिवसेना के प्रत्याशी को 29 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से हरा दिया. इसके बाद शिवसेना ने ईवीएम में गड़बड़ी करने का आरोप लगाया और जीत के लिए बीजेपी के बजाए चुनाव आयोग को श्रेय दिया.

बिहार के अररिया जिले की जोकीहाट विधानसभा सीट का नतीजा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए शुभ संकेत नहीं है. आरजेडी के शहनवाज आलम ने जेडीयू के मुर्शीद आलम को करीब 41,000 वोटों से हराया. इस जीत को तेजस्वी यादव ने अवसरवाद पर लालूवाद की जीत करार दिया है. अब ऐसे में सियासी गलियारे में ये सवाल उठने लगा है कि क्या नीतीश कुमार को बीजेपी का साथ रास नहीं आ रहा है? ये सवाल वाजिब भी है. इससे पहले अररिया लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भी नीतीश कुमार की पार्टी को मुंह की खानी पड़ी थी. सबसे खास बात ये कि दोबारा बीजेपी के साथ आने के बाद नीतीश कुमार का मुस्लिम वोट खिसकता नजर आ रहा है. अररिया में मुस्लिमों की वोटों की ठीक-ठाक संख्या है. जोकीहाट पर साल 2005 से ही जेडीयू जीतती आ रही है. लेकिन नतीजे इस बात का संकेत दे रहे हैं कि मुस्लिम जेडीयू से ‘नाराज’ हैं. महागठबंधन से अलग होने के बाद से ही लगातार तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार पर हमलावर रहे हैं. वे लगाता नीतीश कुमार पर जनादेश का अपमान करने का आरोप लगाते रहे हैं. नतीजा इस बात का भी संकेत है कि तेजस्वी यादव लोगों को ये समझाने में कामयाब रहे हैं. ये नतीजे इस बात को भी दर्शाते हैं कि लालू यादव की सोशल इंजीनियरिंग के सामने नीतीश कुमार पस्त हो गए हैं.

13 साल से अररिया की जोकीहाट सीट जेडीयू के पास थी लेकिन इस बार जेडीयू को उतने भी वोट नहीं मिले जितना हार का फर्क रहा. अररिया की जोकीहाट सीट पर आरजेडी प्रत्याशी को 81 हजार 240 वोट मिले जबकि एनडीए प्रत्याशी को 40 हजार 16 वोट मिले. जीत का अंतर रहा 41 हजार 224 रहा. अब मोदी के लिए बिहार में डगर मुश्किल हो सकती है. पिछले साल जुलाई में नीतीश ने लालू को छोड़कर नरेंद्र मोदी का दामन थामा था. लेकिन अभी साल भी नहीं बीता और नीतीश ने मोदी सरकार के सबसे बड़े फैसले नोटबंदी की भी निंदा कर दी और विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए दबाव बनाने लगे. अगर नीतीश-लालू के 2019 में साथ आने का फॉर्मूला दोबारा बन जाता है तो मोदी के लिए यहां भी मुश्किल हो जाएगी.

हिमालयायूके वेब एण्‍ड प्रिन्‍ट मीडिया में 25 मई को सटीक विश्‍लेषण प्रकाशित हुआ था कि 50 हजार से बीजेपी हारेेेेगीजो बिल्‍कुल सही साबित हुआ- सम्‍पादक  

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