कैग की रिपोर्ट से मोदी सरकार गदगद, अब विपक्ष क्‍या करेगा?

कैग की इस रिपोर्ट से मोदी सरकार गदगद है और विपक्ष नाराज़। सरकार ने बुधवार को रफ़ाल सौदे पर तैयार सीएजी की रिपोर्ट भारी हंगामे और शोर-शराबे के बीच राज्यसभा में पेश कर दी। वित्त राज्यमंत्री पोन राधाकृष्णन ने सरकार की ओर से सीएजी रिपोर्ट राज्यसभा में पेश की। सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि रफ़ाल पर मौजूदा क़रार साल 2016 में हुए क़रार से सस्ता है। दोनों क़रारों में विमान की जो क़ीमतें तय की गई थीं, उनमें लगभग 2.86 प्रतिशत का अंतर है, यानी मौजूदा कीमत पहले की कीमत से कम है। इसमें यह भी कहा गया है कि हथियार और विमान समेत पूरा पैकेज भी सस्ता है।  सीएजी की रिपोर्ट में क़ीमत की बात तो की गई है, पर उसका विस्तार से ब्योरा नहीं दिया गया है। ज़रूरी कॉलम खाली छोड़ दिए गए हैं। यह कहा गया है कि दोनों सरकारों के बीच क़रार में गोपनीयता की शर्त थी और उसका पालन किया जाना ज़रूरी है। मजेदार बात यह है कि क़ीमतों की तुलना करने में सिर्फ प्रतिशत का उल्लेख किया गया है, वास्तविक कीमत नहीं बताई गई है। वास्तविक कीमत नहीं बताने से विपक्ष समेत किसी को यह नहीं पता चल पाएगा कि दरअसल किस कीमत पर विमान, उपकरण, हथियार और उससे जुड़ी सेवाएँ मिलीं।  इसके अलावा अलग-अलग उपकरणों और सेवाओं से जुड़े हेडिंग और सब हेडिंग खाली छोड़ दिए गए हैं, उनसे जुड़े कॉलम में कुछ नहीं भरा गया है। इससे यह पता नहीं चल पाएगा कि किस मद में कितनी कीमत पहले तय हुई थी और अंतिम क़रार में कितनी कीमत तय हुई। इससे होगा यह कि विपक्ष तुलना नहीं कर पाएगा और यह पता ही नहीं चल पाएगा कि पहले से कितना सस्ता या महँगा सौदा हुआ है।  भारत की रक्षा ज़रूरतों के हिसाब से विमान में बदलाव किए गए थे। सीएजी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इन बदलावों की कीमत पहले के बदलावों की कीमत से 17 प्रतिशत कम है। विमान के साथ जो सेवा शर्तें जुड़ी है, उनका शुल्क भी पहले से 4.7 प्रतिशत कम है। 

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने रफ़ाल पर तैयार सीएजी की रिपोर्ट को सिरे से खारिज करते हुए इस पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने इसे सीएजी यानी चौकीदार ऑडिटरर जनरल की रिपोर्ट क़रार दिया है। उनका इशारा इस ओर था कि सीएजी की रिपोर्ट निष्पक्ष नहीं है और यह सरकार के समर्थन में खड़ी दिखती है। 

रफ़ाल मामले में ‘द हिंदू’ अख़बार ने बुधवार को एक और धमाका किया है। अख़बार के संपादक एन. राम ने लिखा है कि मोदी सरकार ने जिन शर्तों पर 36 रफ़ाल विमान ख़रीदे, वे मनमोहन सिंह सरकार के समय की ख़रीद की शर्तों से बेहतर नहीं थीं। अख़बार का यह भी दावा है कि 36 में से 18 रफ़ाल विमानों की डिलीवरी मनमोहन सरकार के समय तय की गयी समय सीमा से पहले नहीं होनी थी। रक्षा मंत्रालय के इन तीनों अधिकारियों ने 1 जून 2016 को 8 पेज के एक नोट में अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी। ग़ौरतलब है कि भारत की तरफ़ से रफ़ाल मामले में मोलभाव करने वाली टीम में 7 सदस्य हैं। जिनमें से इन तीनों ने कड़े शब्दों में सौदे के ख़िलाफ़ अपनी राय रखी है। अख़बार के संपादक एन. राम ने 8 पेज के इस नोट को बुधवार को अख़बार में छापा है और उसके आधार पर ख़बर लिखी है। 

कॉम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल यानी कैग का क्या काम है? क्या उसका काम सरकार के खातों की पड़ताल कर उसकी अनियमितताओं को उजागर करना है या फिर सरकार के कामों की तारीफ़ करना या उन पर पर्दा डालना है? कैग का क्या काम है, सरकार द्वारा किए गए सौदों की विवेचना करना या उस सौदे की किसी ऐसे सौदे से तुलना करना जो सौदा कभी हुआ ही नहीं? ये सवाल रफ़ाल मामले में संसद में पेश की गई कैग की रिपोर्ट से उठ रहे हैं। कैग ने विवादास्पद रफ़ाल सौदे पर अपनी रिपोर्ट बुधवार को संसद में रखी। इस रिपोर्ट पर सदन में जमकर हंगामा हुआ और विपक्ष ने रिपोर्ट की तीख़ी आलोचना की। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रफ़ाल पर मौजूदा सौदा पहले सौदे की तुलना में 2.86 फ़ीसदी सस्ता है। मोदी सरकार ने नए रफ़ाल सौदे के संदर्भ में लगे आरोपों पर कहा था कि रफ़ाल सौदा न केवल मनमोहन सरकार के समय किए गए रफ़ाल सौदे से सस्ता है बल्कि उसकी डिलीवरी भी जल्दी होगी। कैग के मुताबिक़ मोदी सरकार के क़रार की वजह से रफ़ाल विमान मनमोहन सरकार के करार की तुलना में एक महीना पहले ही आ जाएगा। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी लगातार यह आरोप लगाते रहे हैं कि मोदी सरकार ने 30 हज़ार करोड़ रुपये अनिल अंबानी की जेब में डाल दिए और एचएएल जैसी पुरानी सार्वजनिक कंपनी के नाम पर बट्टा लगाया। रफ़ाल रक्षा सौदे पर तीख़े सवाल और आपत्तियाँ ख़ुद रक्षा मंत्रालय से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों ने उठाई हैं। तब के रक्षा सचिव मोहन कुमार ने इस बात पर आपत्ति जताई थी कि प्रधानमंत्री कार्यालय रक्षा मंत्रालय के साथ-साथ फ़्रांसीसी पक्ष से समानांतर बातचीतकर रहा था। रक्षा सचिव ने इसे अनुचित माना और कहा कि यह देश हित में नहीं है।

कैग ने अपनी रिपोर्ट में इन आपत्तियों को कोई तवज्जो नहीं दी। कैग ने साफ़ लिखा है कि न केवल यह डील पहले की तुलना में सस्ती है बल्कि विमानों की डिलीवरी भी पहले से जल्दी होगी। रफ़ाल सौदे में कैग की पूरी रिपोर्ट पढ़ने से ऐसा लगता है कि कैग सरकार के तर्कों से पूरी तरह संतुष्ट है और उसमें उसे कुछ भी गड़बड़ नज़र नहीं आता। मनमोहन सरकार के समय जो रफ़ाल सौदा होना था, उसे मोदी सरकार ने खारिज कर दिया था। यानी वह डील हुई ही नहीं। और जो सौदा हुआ ही नहीं, उसकी पड़ताल कैग कैसे कर सकता है? क्योंकि कैग का काम है, सरकार ने जो क़रार किया, उसकी पड़ताल करना, न कि ऐसे क़रार की पड़ताल करना जो आज की तारीख़ में अस्तित्व में ही नहीं है। कैग ने रिपोर्ट बनाते समय यह ग़लती की। अब यह ग़लती जानबूझकर हुई, अनजाने में हुई या सरकार को फ़ायदा पहुँचाने के लिए किया गया, यह रहस्य है।

भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक (Comptroller and Auditor General of India) भारतीय संविधान के अध्याय द्वारा स्थापित एक प्राधिकारी है जो भारत सरकार तथा सभी प्रादेशिक सरकारों के आय-व्यय का लेखांकन करता है। वह सरकार के स्वामित्व वाली कम्पनियों का भी लेखांकन करता है। उसकी रिपोर्ट पर सार्वजनिक लेखा समितियाँ ध्यान देती है। नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक ही भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा सेवा का भी मुखिया होता है। कैग भारत के संविधान द्वारा स्थापित अथॉरिटी है और यह सरकार के प्रभाव क्षेत्र से बाहर है। इसे सरकार की आमदनी और खर्च पर नजर रखने के लिए बनाया गया है। कैग की नियुक्ति देश के राष्ट्रपति द्वारा होती है और पद से हटाने की प्रक्रिया वैसी ही है, जैसी सुप्रीम कोर्ट के जज के मामले में अपनाई जाती है। इसकी सैलरी और सेवा की दूसरी शर्तें संसद द्वारा तय होती हैं और नियुक्ति के बाद उसमें इस तरह बदलाव नहीं किया जा सकता जिससे इसको नुकसान हो। कैग के ऑफिस के प्रशासनिक खर्चे कंसॉलिडेटेड फंड ऑफ इंडिया से निकाले जाते हैं।

 नियंत्रक-महालेखा परीक्षक का उत्तरदायित्व कर-दाता के हितों को सुरक्षित रखना है। भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक को राष्ट्रीय वित्त का संरक्षक कहा जाता है। भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक का कार्यालय 9 दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर नई दिल्ली में स्थित है। वर्तमान समय में इस संस्थान के मुखिया शशिकान्त शर्मा हैं। वे भारत के बारहवें नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक हैं। भारत सरकार के अंतर्गत यह अत्यधिक महत्वपूर्ण पद है, जिसके द्वारा देश की समस्त वित्तीय प्रणाली को नियंत्रित किया जाता है। भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक की व्यवस्था की व्याख्या संविधान के भाग-5 में की गई है। सरकारी खजाने में जो पैसा खर्च हो रहा है, वह क्या सही और जिनको लाभ मिलना चाहिय उन्हें वो लाभ मिल रहा या नहीं इसकी जांच बारीकी से कैग करता है। कैग बजट की छानबीन भी करता है खासकर राजस्व की। इसका मेन रोल सेंटर और स्टेट के सभी सरकारी विभागों और दफ्तरों के अकाउंट्स का ऑडिट करना और चेक करना है। इन विभागों और दफ्तरों में रेलवे, पोस्ट एंड टेलिकॉम भी शामिल हैं। यह सरकार की खुद की कंपनियों या उसकी तरफ से फाइनैंस होने वाली कंपनियों के खातों की भी स्क्रूटनी करता है। सेंटर और स्टेट गवर्नमेंट के अंदर लगभग 1,500 पब्लिक कमर्शल कंपनियां और लगभग 400 नॉन कमर्शल ऑटोनॉमस बॉडीज और अथॉरिटीज आती हैं। यूनियन और स्टेट रेवेन्यू की तरफ से फाइनैंस पाने वाली 4,400 अथॉरिटीज और बॉडीज भी कैग के दायरे में आती हैं। कैग ऑडिट को दो वर्गों – रेग्युलेरिटी ऑडिट और परफॉर्मेंस ऑडिट में बांटा गया है। रेग्युलेरिटी ऑडिट (जो कम्पलायंस ऑडिट भी कहलाता है) में फाइनैंशल स्टेटमेंट का ऐनालिसिस किया जाता है और देखा जाता है कि उसमें सभी नियम-कानून का पालन किया गया है नहीं। परफॉर्मेंस ऑडिट में कैग यह चेक करता है कि क्या सरकारी प्रोग्राम शुरू करने का जो मकसद था, वह कम से कम खर्च में सही तरीके से हासिल हो पाया है नहीं। कैग अपनी रिपोर्ट संसद और विधानसभाओं की कई समितियों जैसे पब्लिक अकाउंट्स कमेटी और कमेटी ऑन पब्लिक अंडरटेकिंग्स को देता है। ये कमिटी रिपोर्ट की स्क्रूटनी करती हैं और फैसला करती हैं कि क्या उसमें सभी पॉलिसी का पालन किया गया है। वह यह भी देखता है कि क्या किसी सरकारी निकाय की तरफ से कोई गड़गड़ी तो नहीं की गई है। फिर मामले को चर्चा के लिए संसद में पेश किया जाता है और उस पर कार्रवाई की जाती है।  संविधान ने इस पद पर आसीन व्यक्ति को सरकारी खर्चों की जांच जैसे कई महत्वपूर्ण अधिकार दिए हैं। लोकतंत्र की सार्थकता के लिए यह पद काफी महत्वपूर्ण है।

कैग (CAG) के कार्य एवं शक्तियां

अनुच्छेद 149 कैग के कर्तव्यों और शक्तियों को निर्धारित करने के लिए संसद को अधिकृत करता है।

भारत का नियंत्रक-महालेखा परीक्षक संघ और राज्यों के लेखों के संबंध में ऐसे कर्तव्यों का पालन और ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा जो संसद द्वारा विहित किए जाएं। अनुच्छेद-149 से 151 के अंतर्गत नियंत्रक महालेखा परीक्षक के कर्तव्यों और शक्तियों का उल्लेख किया गया है।

भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के कार्यों और शक्तियों के प्रयोग में स्वतंत्रता के उद्देश्य से 1971 में एक अधिनियम पारित किया गया, जिसे 1976 में संशोधित करके नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के कर्तव्यों के परिप्रेक्ष्य में कुछ उपबंध निश्चित किए गए, जो इस प्रकार हैं –

भारत और प्रत्येक राज्य तथा विधान सभा या प्रत्येक संघ राज्यक्षेत्र की संचित निधि से सभी प्रकार के व्यय की संपरीक्षा और उन पर यह प्रतिवेदन कि क्या ऐसा व्यय विधि के अनुसार है।

संघ और राज्यों की आकस्मिकता निधि और लोक लेखाओं से हुए सभी व्ययों की संपरीक्षा और उन पर प्रतिवेदन। संघ या राज्य के विभाग द्वारा किए गए सभी व्यापार तथा विनिर्माण के हानि और लाभ लेखाओं की संपरीक्षा और उन पर प्रतिवेदन। संघ और प्रत्येक राज्य की आय और व्यय की संपरीक्षा जिससे कि उसका यह समाधान हो जाए की राजस्व के निर्धारण, संग्रहण और उचित आबंटन के लिए पर्याप्त परीक्षण करने के उपरांत नियम और प्रक्रियाएं बनाई गई हैं। संघ और राज्य के राजस्वों द्वारा पर्याप्त रूप से वित्त पोषित सभी निग्कयों और प्राधिकारियों की, सरकारी कंपनियों की, अन्य निगमों या निकायों की, जब ऐसे निगमों या निकायों से संबंधित विधि द्वारा इस प्रकार अपेक्षित हो, प्राप्ति और व्यय की संपरीक्षा और उस पर प्रतिवेदन।

कानून के अनुसार आवश्यकता पड़ने पर, अन्य संस्थाएं का ऑडिट

वह राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल के अनुरोध पर अन्य किसी संस्था के खाते का ऑडिट (लेखा परीक्षा) करता है

कैग (CAG) के कुछ तथ्य

अनुच्छेद 148 से 151 में कैग के शक्तियों एवं कार्यों का वर्णन किया गया है।

कैग की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति के द्वार की जाती है और इसे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश को जिस प्रकार से हटाया जाता है उसी प्रकार से हटाया। कैग भारत सरकार और राज्य सरकार के व्यय के खातो की लेखा जांचना (auditing) करने का उत्तरदायी होता है, कैग सुनिश्चित करता है की धन का विवेकपूर्ण ढंग से, विधि पूर्वक वैध साधनों के माध्यम से उपयोग किया गया है और वित्तीय अनियमित्ता की भी जांच करता है।

डा. अम्बेडकर के अनुसार, कैग भारतीय संविधान का चौथा स्तम्भ है, अन्य तीन हैं, सर्वोच्च न्यायालय, लोक सेवा आयोग, चुनाव आयोग। कैग का कार्यकाल, वेतन और सेवानिवृत्त होने की आयु का निर्धारण संसद में पारित किये गए कानून के अनुसार किया जायेगा। इसका कार्य कल 6 वर्ष होता है और सेवानिवृत्त होने की आयु 65 वर्ष होती है। कैग के हाथों में मामलो आने के बाद वह किसी अन्य सरकारी या सावर्जनिक पद को ग्रहण करने का अधिकारी नहीं होता है। कैग के रूप में नियुक्त व्यक्ति तीसरी अनुसूची में दिए प्रयोजन के अनुसार, अपना कार्यभार सँभालने से पूर्व राष्ट्रपति के समक्ष शपथ लेते है।

कैग की इस रिपोर्ट से मोदी सरकार गदगद है और विपक्ष नाराज़। मोदी सरकार पर यह आरोप लग रहा था कि मनमोहन सरकार की तुलना में मोदी सरकार ने तिगुने दाम पर रफ़ाल विमान ख़रीदे और रफ़ाल सौदे का मक़सद उद्योगपति अनिल अंबानी को फ़ायदा पहुँचाने का था।  कैग को इन सवालों की तह में नहीं जाना था, न ही वह गया। कैग का मक़सद होता है सरकार के खातों की पड़ताल करना, सरकार के किए गए खर्चों की जाँच-परख करना और यह बताना कि उसने क़ानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार सरकारी पैसे ख़र्च किए हैं या नहीं। फ़्रांसीसी रक्षा मंत्रालय से मोलभाव करने वाली भारतीय टीम के 7 में से 3 सदस्यों ने इस बात पर आपत्ति जताई थी कि रफ़ाल क़रार से क्यों भ्रष्टाचार विरोधी प्रावधान हटा लिए गए? संप्रभु गारंटी और बैंक गारंटी नहीं ली गई। इन 3 अधिकारियों ने 8 पेज के अपने विरोध पत्र में यह कहा था कि मोदी सरकार के रफ़ाल सौदे की सेवा शर्तें मनमोहन सरकार के समय की सेवा शर्तों की तुलना में बेहतर नहीं है। विरोध पत्र में यह भी कहा गया था कि मोदी सरकार ने मंहगा रफ़ाल ख़रीदा और विमानों की डिलीवरी भी देर होगी। रक्षा सचिव के सलाहकार सुधांशु मोहंती ने यह सुझाव दिया था कि एस्क्रॉ अकाउंट खोलकर दसॉ को भुगतान किया जाना चाहिए।

‘द हिंदू’ अख़बार ने बुधवार को ही यह ख़बर छापी है कि रफ़ाल विमानों की क़ीमत बेंचमार्क क़ीमत से तक़रीबन 57 फ़ीसदी ज़्यादा है। बजाय इस मसले पर आपत्ति दर्ज कराने के कैग ने भारत की मोलभाव टीम को ही आड़े हाथों लिया और अपनी रिपोर्ट में लिखा कि इस टीम को बेंचमार्क क़ीमत तय करते समय व्यावहारिक रुख अख़्तियार करना चाहिए। सरकार में किसी भी सामान को ख़रीदने के पहले यह तय कर लिया जाता है कि ज़्यादा से ज़्यादा कितनी क़ीमत इस सामान की दी जा सकती है, इसे ही बेंचमार्क क़ीमत कहते हैं। मोलभाव टीम इस सीमा के अंदर कम से कम दाम पर सौदा करने की कोशिश करती है।

अब सवाल यह उठता है कि क्या भारतीय मोलभाव टीम इतनी ग़ैर पेशेवर है कि वह बाज़ार भाव के हिसाब से सही बेंचमार्क क़ीमत ही तय नहीं कर पाती और सौदा उसके डेढ़ गुने दाम पर तय होता है? इसके दो अर्थ निकलते हैं या तो भारतीय मोलभाव टीम को अपना काम नहीं आता और उसे यह भी नहीं पता है किस दाम में रफ़ाल विमान मार्केट में बिक रहा है। जिस टीम को इतनी बुनियादी जानकारी नहीं है, उस टीम पर कैसे विश्वास किया जा सकता है कि वह सही मोलभाव कर पाएगी।

इस पूरे मामले में सबसे दिलचस्प बात यह है कि कैग ने मोदी सरकार के रफ़ाल सौदे की तुलना मनमोहन सरकार के समय हुए रफ़ाल सौदे से की है और उस आधार पर मोदी सरकार के क़रार को बेहतर ठहराने की कोशिश की। यानी वही तर्क दिए हैं जो मोदी सरकार विपक्ष के आरोपों के जवाब में देती है।

सरकार बार-बार यह कहती है कि रफ़ाल का सौदा दो सरकारों के बीच का सौदा था इसलिए किसी भी तरीक़े की बैंक गारंटी या संप्रभु गारंटी की आवश्यकता नहीं है। कैग अपनी रिपोर्ट में फिर वही ग़लती दोहराता है जो उसने मौजूदा क़रार की तुलना मनमोहन सरकार के क़रार से तुलना कर की।

कैग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि इस तरीक़े का अंतर्देशीय क़रार पहले भी इंग्लैंड, अमेरिका और रुस के साथ हो चुका है। फ़्रांस के साथ इस तरीक़े का यह पहला क़रार है। चूँकि अंतर्देशीय क़रार में बैंक गारंटी और संप्रभु गारंटी की ज़रूरत नहीं होती, इसलिए यहाँ भी उसकी ज़रूरत नहीं थी।

कैग ने यह बताना उचित नहीं समझा कि दूसरे देशों के साथ हुए अंतर्देशीय क़रार में हथियारों की सप्लाई करने का काम एक सरकारी संस्था को ही करना था जबकि रफ़ाल में विमान डिलीवरी का काम एक निजी कंपनी दसॉ का है। यही कारण है कि रक्षा मंत्रालय के अधिकारी बार-बार यह जोर दे रहे थे कि किसी तरीक़े से फ़्रांसीसी सरकार को पैसे के भुगतान के मामले में हिस्सेदार बनाया जाए। इसके लिए या तो संप्रभु गारंटी मिले या फिर एस्क्रॉ अकाउंट खोला जाए। कैग अधिकारियों की आपत्तियों को दरकिनार कर देता है। कैग की इस रिपोर्ट में जो सबसे बड़ा सवाल है कि कैग ने अपनी पूरी रिपोर्ट में विमानों की क़ीमत का जिक़्र नहीं किया है और जो सारिणी बनाई गई है, वह अपने आप में एक मजाक है। सारिणी के सारे खानों को खाली छोड़ दिया गया है। सवाल यह है कि इस बात की पड़ताल कैसे होगी कि कैग ने क़ीमतों को लेकर जो आकलन किया है, वह सही है या ग़लत है।  कैग ने सरकार की ग़ोपनीयता की शर्त को जस का तस मान लिया और एक लोकतंत्र विरोधी तर्क को सही साबित कर दिया। ऐसे में यही लगता है कि कैग की रिपोर्ट रफ़ाल पर सरकार की विवेचना कम करती है, सरकार को बचाती ज़्यादा है।

राहुल गाँधी ने बुधवार को पत्रकारों से बात करते हुए सरकार को निशाने पर लिया और सीएजी पर तंज कसा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की सरकार के समय जो बातचीत चल रही थी, उसके मुताबिक जितने पैसे में 126 विमान मिल रहे थे, नरेंद्र मोदी की सरकार ने उतने ही पैसों में सिर्फ 36 विमान खरीदे हैं। उन्होंने इसे भ्रष्टाचार की जड़ बताते हुए कहा कि सरकार को यह बताना चाहिए कि इतने पैसे में 36 विमान ही क्यों लिए गए। कांग्रेस नेता ने यह भी कहा कि जहाँ तक भारतीय ज़रूरतों के मुताबिक विमानों में बदलाव करने की बात है, तो यह पहले से तय था। उनकी पार्टी के समय जो बातचीत चल रही थी, उसमें भी इस तरह के बदलाव करने की बात तय हुई थी। 

राहुल गाँधी ने रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण पर हमला बोलते हुए कहा कि मंत्री ने रफ़ाल सौदे पर सदन के अंदर झूठ बोला है और देश को गुमराह किया है। सीएजी की रपट में कहा गया है कि रफ़ाल सौदा ढाई प्रतिशत सस्ता हुआ है, जबकि सीतारमण ने कहा था कि 9 प्रतिशत सस्ता हुआ है। सीएजी की रिपोर्ट को सच मान लें तो भी रक्षा मंत्री का झूठ पकड़ा जाता है। 

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि सीएजी की रिपोर्ट में कहीं भी विमान की वास्तविक कीमत नहीं बताई गई है। सिर्फ़ प्रतिशत बताया गया है। सही और पूरी कीमत क्यों नहीं है वहाँ? यदि कीमत बताई जाती तो पता चलता कि पहले की कीमत क्या थी और जिस कीमत पर क़रार पर दस्तख़त हुआ, वह कीमत क्या है। पर सीएजी ने सिर्फ प्रतिशत दिया है। 

राहुल गाँधी ने नरेंद्र मोदी सरकार को निशाने पर लेते हुए कहा कि यदि वाकई कोई घपला नहीं हुआ है तो सरकार संयुक्त संसदीय जाँच से इनकार क्यों कर रही है। सरकार इतनी ही साफ़ है तो जेपीसी की माँग मान ले। 

मोदी सरकार लगातार यह दावा कर रही है कि वायु सेना की हालत अच्छी नहीं है और उसे जल्द से जल्द लड़ाकू विमानों की ज़रूरत है। लेकिन ‘द हिंदू’ अख़बार का दावा है कि मोदी सरकार के समय किए गए क़रार के मुताबिक़ रफ़ाल विमानों की डिलीवरी में मनमोहन सिंह सरकार से ज़्यादा वक़्त लगता।‘द हिंदू’ अख़बार ने यह दावा रफ़ाल मामले में भारतीय टीम की तरफ़ से फ़्रांसीसी टीम से मोलभाव करने वाली टीम के तीन सदस्यों की राय के आधार पर किया है। ये तीन अधिकारी हैं – एमपी सिंह, सलाहकार (ख़र्च), एआर सुले वित्तीय प्रबंधक (वायु) और राजीव वर्मा संयुक्त सचिव ख़रीद प्रबंधक (वायु)।  तीनों अधिकारियों ने अपने नोट में लिखा है कि रफ़ाल सौदे की जो अंतिम क़ीमत है वह 7.87 बिलियन यूरो पड़ती है, जो किसी भी तर्क से सही नहीं लगती है या यह नहीं कहा जा सकता है कि फ़्रांसीसी पक्ष ने किसी भी तरीक़े से भारतीय पक्ष को रियायत दी है। यानी, उसकी सेवा शर्तें किसी भी हालत में मनमोहन सरकार के समय की सेवा शर्तों से बेहतर नहीं हैं। अख़बार आगे लिखता है कि यह बात प्रधानमंत्री मोदी और फ़्रांस के राष्ट्रपति फ्रास़्वां ओलां के संयुक्त बयान के ठीक उलट है। 10 अप्रैल 2015 को दोनों देशों के राजनेताओं ने अपने बयान में यह वायदा किया था कि रफ़ाल पर नया क़रार पहले से बेहतर होगा और साथ ही साथ विमानों की डिलीवरी भी पहले से जल्दी होगी।  इन तीनों अधिकारियों ने आठ पेज के अपने विरोध पत्र में लिखा है कि मनमोहन सिंह सरकार के समय किए क़रार के मुताबिक़ पहले 18 रफ़ाल विमान टीओ +36 से टीओ +48 महीनों के अंदर डिलीवर होने थे। जबकि मोदी सरकार के दौरान किए गए क़रार के बाद पहले 18 नए विमान टीओ +36 से टीओ + 53 महीनों में मिलेंगे। यानी, यह साफ़ है कि नए क़रार के मुताबिक़, विमानों की डिलिवरी में कम से कम 5 महीने और ज़्यादा लगेंगे।  तीनों अधिकारियों के विरोध पत्र में विमानों की क़ीमत पर भी गहरे सवाल खड़े किए गए हैं और पूरी प्रक्रिया को कटघरे में ला खड़ा किया। इन अधिकारियों के मुताबिक़, रक्षा ख़रीद परिषद द्वारा विमानों की ख़रीद के लिए बातचीत शुरू करने से पहले कांट्रेक्ट नेगोशिएटिंग कमेटी एक बेंचमार्क क़ीमत तय करती है। बेंचमार्क क़ीमत का मतलब होता है कि किसी भी हालत में इस क़ीमत से ज़्यादा रक़म नहीं दी जाएगी। अख़बार का दावा है कि फ़्रांसीसी पक्ष ने शुरुआत में रफ़ाल विमानों की एक निश्चित क़ीमत तय की थी। जिसे बाद में बदलकर “एस्केलेशन फ़ॉर्मूले” के तहत कर दिया गया। एस्केलेशन फ़ॉर्मूले का मतलब होता है कि समय लगने के साथ-साथ विमान की क़ीमत भी उसी अनुपात में बढ़ती जाती है। तीनों अधिकारियों के विरोध पत्र में यह साफ़ लिखा है कि फ़्रांसीसी सरकार की तरफ़ से जो अंतिम क़ीमत तय की गई वह बेंचमार्क क़ीमत से 55.6 प्रतिशत ज़्यादा थी।  अख़बार तीनों अधिकारियों के विरोध पत्र के हवाले से लिखता है कि रफ़ाल का सौदा भारत सरकार के लिए घाटे का सौदा था। क्योंकि “यूरोफ़ाइटर टाइफ़ून” रफ़ाल की तरह का ही लड़ाकू विमान था। टाइफ़ून बनाने वाली कंपनी मैसर्स ईएडीएस ने रफ़ाल की तुलना में 20 प्रतिशत कम में अपने विमान देने की पेशकश की थी।  इन अधिकारियों ने अपने विरोध पत्र में लिखा है कि विमानों की बेंचमार्क क़ीमत तय करते समय मोलभाव करने वाली भारतीय टीम ने यह पाया था कि मैसर्स ईएडीएस 20 प्रतिशत कम क़ीमत पर ही विमान देने को तैयार है और उसमें भी कोई एस्कलेशन कॉस्ट नहीं होगी। भुगतान की शर्तों में सिर्फ़ मामूली फ़ेरबदल ही पाया गया था। अख़बार यह दावा करता है कि भारत सरकार रफ़ाल की तुलना में 25 प्रतिशत कम में क़ीमत पर ही रफ़ाल जैसा ही विमान ख़रीद सकती थी।  द हिंदू’ अख़बार ने पिछले दिनों दो और बड़े ख़ुलासे किए थे। हिंदू अख़बार ने पहले यह दावा किया था कि रक्षा मंत्रालय की टीम से अलग प्रधानमंत्री कार्यालय फ़्रांस के रक्षा मंत्रालय की टीम से रफ़ाल के सौदे के संदर्भ में ‘समानांतर बातचीत’ कर रहा था। उस वक़्त के रक्षा सचिव जी मोहन कुमार ने इस ‘समानांतर बातचीत’ पर तगड़ी नाराज़गी जताई थी और कहा था कि फ्रांसीसी टीम इसका फ़ायदा उठा सकती है और समानांतर बातचीत से भारतीय हितों को नुक़सान हो सकता है। रक्षा सचिव ने यहाँ तक कहा था कि अगर प्रधानमंत्री कार्यालय को रक्षा मंत्रालय की टीम पर भरोसा नहीं है तो वह अपनी टीम बनाकर सीधे बातचीत कर सकता है। 

एन. राम ने इसके बाद ‘द हिंदू’ अख़बार में एक और बड़ा ख़ुलासा किया था। उन्होंने लिखा था कि मोदी सरकार ने रफ़ाल सौदे के समय न तो संप्रभु गारंटी ली और न ही बैंक गारंटी। मोदी सरकार फ़्रांसीसी सरकार से सिर्फ़ लेटर ऑफ़ कम्फ़र्ट यानी उनसे आश्वासन मिलने भर से संतुष्ट हो गई कि अगर दसॉ कंपनी कोई गड़बड़ करती है तो फ़्रांसीसी सरकार उसे सुधारने का काम करेगी। 

अख़बार ने यह भी लिखा था कि रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों की राय के ख़िलाफ़ मोदी सरकार ने रफ़ाल के भुगतान के लिए “एस्क्रॉ अकाउंट”  भी खोलने से मना कर दिया था। एस्क्रॉ अकाउंट का मतलब कि एक ऐसा अकाउंट खुलवाना जिसमें रफ़ाल विमान के भुगतान के लिए भारत सरकार पैसा जमा तो करती लेकिन वह पैसा दसॉ कंपनी को तब मिलता जब भारत के कहने पर फ़्रांसीसी सरकार उसको रिलीज़ करने के लिये हरी झंडी दिखाती। यानी भारतीय पैसा फ़्रांसीसी सरकार के पास अमानत के तौर पर रहता और अगर दसॉ कंपनी कुछ गड़बड़ करती तो फ़्रांसीसी सरकार भारत के कहने पर भुगतान पर रोक लगा सकती थी।

‘द हिंदू’ के बाद इंडियन एक्सप्रेस ने यह ख़बर भी छापी कि प्रधानमंत्री मोदी के 36 रफ़ाल विमानों की ख़रीद के एलान के दो हफ़्ते पहले उद्योगपति अनिल अंबानी फ़्रांसीसी सरकार के रक्षा मंत्रालय के तीन अधिकारियों से मिले थे। इस ख़बर के छपने के बाद कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गाँधी के एक ई-मेल जारी कर यह आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री मोदी ने रफ़ाल सौदे की गोपनीय जानकारी उद्योगपति अनिल अंबानी को लीक की और वह अंबानी के लिए मिडिलमैन का काम कर रहे थे। राहुल गाँधी ने इस ख़ुलासे के बाद प्रधानमंत्री मोदी पर देशद्रोह का आरोप भी लगाया था। अब एन. राम द्वारा बुधवार को किए गए बड़े ख़ुलासे के बाद मोदी सरकार की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले ये ख़ुलासे प्रधानमंत्री मोदी की साख पर बट्टा लगा रहे हैं। साथ ही साथ मोदी सरकार का यह दावा भी खोखला साबित हो रहा है कि रफ़ाल मामले में सुप्रीम कोर्ट से उन्हें ‘क्लीन चिट’ मिली है, लिहाजा किसी को इस पर सवाल उठाने का हक़ नहीं है। 

अब प्रश्न यह उठता है कि इन नए ख़ुलासों की रोशनी में क्या सुप्रीम कोर्ट रफ़ाल पर अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करेगा ?
हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्तराखण्ड

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