चीन में बौद्ध धर्म के प्रवेश से पहले भगवान शिव की ही पूजा की जाती थी

चन्द्रशेखर जोशी-देहरादून की विशेष रिपोर्ट

हिन्दू धर्म में भगवान शिव को अथाह श्रद्धा और आदर के साथ पूजा जाता है। शिव को विनाशक भी कहा जाता है और रक्षक भी। क्या आप जानते हैं कि प्राचीन चीन में भी महादेव को उतना ही आदरणीय माना जाता था। कहने का अर्थ यह है कि बौद्ध धर्म की प्रधानता वाले चीन में बौद्ध धर्म के प्रवेश से पहले भगवान शिव की ही पूजा की जाती थी। चीन और भारत की सभ्यताएं, विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक हैं, जिनका आपसी रिश्ता सैकड़ों साल पुराना है। प्राचीन चीनी दस्तावेजों में इस बात का उल्लेख है कि चीनी लोगों के पूर्वजों ने दक्षिण की ओर स्थित पर्वतों को पार करने के बाद ही चीन की स्थापना की थी। कश्मीर के वाशिंदे, जिन्हें ‘चीन’ कहा जाता था और दक्षिण भारत के कई हिस्सों में रहने वाले लोगों ने ‘शेंजी’ नामक उपनिवेश की स्थापना की थी, जिसमें धीरे-धीरे चीन के अलग-अलग प्रांतों के साम्राज्य भी शामिल हो गए। एक समय बाद यह प्रांत इतना विशाल हो गया कि इसके सिर पर विश्व के सबसे बड़े साम्राज्य होने का भी सेहरा सजा। भारत के रहने वाले ‘चिन’ लोगों ने इस प्रांत की स्थापना की, जिसे बाद में चीन और वहां के लोगों को चीनी कहा जाने लगा। सभी विद्वान भी सर्वसम्मत होकर इस बात को स्वीकार करते हैं कि ‘चीन’ के नाम का उद्भव भारत से ही हुआ है। महाभारत काल (जिसका संबंध 3100 ईसापूर्व से है) में भी उत्तरी और पूर्वी साम्राज्यों के शासक, जिन्हें ‘चीन’ कहा जाता था, का नाम दर्ज है। चाणक्य के अर्थशास्त्र में भी चीन का उल्लेख मिलता है। इस किताब के अनुसार करीब 221 ईसा पूर्व में शिन हुआंग टी ने ‘चीन’ नामक साम्राज्य की स्थापना की थी जिसे बाद में चीन के नाम से जाना गया। वहीं दूसरी ओर यह कहा गया है कि ‘चीन’ संस्कृत भाषा का ही एक शब्द है जिसका अर्थ है ‘पूर्व जाने के लिए प्रदेश’।
भारत से हुए चीन के उद्भव के अलावा यह भी प्रमाणित किया गया है कि प्राचीन चीन में वैदिक धर्म की ही मान्यता थी और साथ ही वहां हिन्दू देवी-देवताओं की ही पूजा-अर्चना की जाती थी। वैदिक धर्म को भारत में इतने बेहतरीन ढंग से संरक्षित कर के रखा गया है कि कोई भी दूसरा राष्ट्र खुद को वैदिक परंपरा का उत्तराधिकारी या आरंभकर्ता करार नहीं दे सकता। वैदिक परंपरा को सनातन धर्म के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन चीनी सभ्यता में भी इस सनातन धर्म से जुड़ी परंपरा के निशान मिलते हैं। उदाहरण के लिए शाही तांग साम्राज्य (618-907 ईसापूर्व) में चीनी कैलेंडर के साथ-साथ हिन्दू कैलेंडर का भी प्रयोग किया जाता था।
इसके अलावा हिन्दू धर्म में जिन धर्मराज यम को मौत और यमलोक का देवता कहा गया है, उन्हें चीनी परंपराओं में भी यनमो वांग नाम से पुकारा जाता है। इतना ही नहीं चीन के तांग साम्राज्य के शासक शुयांग जॉंग ने 726 ईसवीं में आई भयंकर बाढ़ से राज्य को बचाने के लिए हिन्दू धर्म से जुड़े भिक्षु वज्रबोधि को तांत्रिक विधियां करने के लिए आमंत्रित किया था।

क्वानज़ाउ के शिनमेन क्षेत्र में स्थित फुजियान प्रांत में प्राचीन शिव मंदिर के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं, जहां 5 फीट लंबा शिवलिंग आज भी देखा जा सकता है। शिव के इस मंदिर में बेहद प्राचीन पत्थर देखा जा सकता है, जिसे शिवलिंग माना जा रहा है। यह मंदिर पूरी तरह ध्वस्त है लेकिन फिर भी इसके अवशेषों और शहर की दीवारों पर वैदिक धर्म से संबंधित नक्काशी मिलती है।
लो-यांग जिले के सुआन वु क्षेत्र में एक ऐसा खंबा है, जिस पर ऊपर से लेकर नीचे तक संस्कृत भाषा में ही लिखा गया है। इस क्षेत्र में महाकाल अर्थात शिव से जुड़ी मान्यताओं को भी महसूस किया जा सकता है, जिसके आधार पर यह कहना गलत नहीं है कि यहां बौद्ध धर्म के अलावा शैव धर्म का भी प्रचलन है।
चीनी सूत्रों के अनुसार यह बात सामने आई है कि चीन के इन्हीं मंदिरों से प्रभावित होकर पल्लव साम्राज्य के राजा नरसिंह वर्मन द्वितीय ने तमिलनाडु में शिव मंदिर की स्थापना की थी। इसके अलावा चीनी दस्तावेजों में यह भी उल्लेख मिलता है कि चीन में आठ ऐसे मंदिर थे जहां ब्राह्मण रहा करते थे।

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