19 नवंबर देवउठानी एकादशी -फिर भी मांगलिक कार्यों की शुरुआत नही ?

कार्तिक मास के शुक्ल पक्षा की एकादशी को देवउठानी एकादशी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा होती है. वहीं इस दिन शालीग्राम और तुलसी की पूजा होती है और उनका विवाह का आयोजन भी होता है. देवउठानी एकादशी को देवोत्थान एकादशी, देवउठानी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी आदि भी कहा जाता है. इस मौके पर लोग पूजा करते हैं और देवउठानी एकादशी व्रत कथा का पाठ करते हैं. इस बार देवउठानी एकादशी 19 नवंबर को है.

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बृहस्पति का अस्त होना- पति का कारक देव गुरु बृहस्पति, सोमवार दिनांक 12 नवंबर 2018 को दोपहर 12 बजकर 56 मिनट अस्त हो चुका है। इसे तारा अस्त होना कहते हैं। तारा अस्त होने पर हिंदू विवाह अौर अन्य मांगलिक कार्य संपन्न नहीं किए जाते। देव गुरु बृहस्पति 10 दिसंबर 2018 तक अस्त रहेंगे।  इस दौरान दोनों फिल्मी सितारों के विवाह पर ज्योतिषी संकेत उत्तम नही है “हिमालयायुके”

कार्तिक शुक्ल एकादशी वर्ष की सबसे बड़ी एकादशी होती है, क्योंकि इस दिन चातुर्मास का समापन होता है और भगवान विष्णु चार महीने के विश्राम के बाद पुनः धरती का कार्यभार संभालने के लिए जाग उठते हैं। इस दिन से चार महीने से बंद विवाह पुनः प्रारंभ हो जाते हैं। इस एकादशी को देव उठनी एकादशी, देव प्रबोधिनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है। शास्त्रों में इस एकादशी का सर्वाधिक महत्व बताया गया है। इस एकादशी के व्रत को करने का तो अपना महत्व है ही इस दिन सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए कई तरह के उपाय भी किए जाते हैं। क्योंकि भगवान विष्णु अपनी शैया से जागते ही भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए आतुर रहते हैं। इसलिए इस शुभ दिन कोई मौका अपने हाथ से न जाने दें।

सूर्य ग्रह का गोचर 16 नवंबर 2018 यानी शुक्रवार की रात 06:48 बजे तुला राशि से वृश्चिक राशि में हो रहा है और 16 दिसम्बर 2018 यानी सोमवार को सुबह 09:25 तक इसी राशि में स्थित रहेंगें। हिंदी धर्म शास्त्रों में सूर्य ही वह ग्रह है जो मानव जीवन को सर्वाधिक प्रभावित करता है। सभी प्रकार के ऐश्वर्य प्रदान करने वाला सरकारी नौकरी और जीवन में ऊचाईयों तक ले जाने के लिए यही ग्रह मुख्य है। हिन्दू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष मास में जब सूर्य राशि परिवर्तन करते हैं तो उस संक्रांति को वृश्चिक संक्रांति कहा जाता हैं। सूर्य का वृश्चिक राशि में गोचर करने पर 12 राशियों पर विशेष प्रभाव पड़ने वाला है , Logon www.himalayauk.org

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है. देवउठनी एकादशी को ही भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 मास शयन के बाद जागते हैं. दरअसल, ऐसी मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी होती है, जब भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में 4 माह के शयन के लिए चले जाते हैं. इन चार महिनों के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता. शादी विवाह नहीं होता है. देवउठनी एकादशी को भगवान विष्णु के जागने के साथ ही मांगलिक और शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है.

देवउठनी एकादशी के दिन से शादियों का शुभारंभ हो जाता है. सबसे पहले तुलसी मां की पूजा होती है. देवउठनी एकादशी के दिन धूमधाम से तुलसी विवाह का आयोजन होता है. तुलसी जी को विष्णु प्रिया भी कहा जाता है, इसलिए देव जब उठते हैं तो हरिवल्लभा तुलसी की प्रार्थना ही सुनते हैं. देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी जी का विवाह शालिग्राम से की जाती है. अगर किसी व्यक्ति को कन्या नहीं है और वह जीवन में कन्या दान का सुख प्राप्त करना चाहता है तो वह तुलसी विवाह कर प्राप्त कर सकता है.

तुलसी विवाह
देवउठानी एकादशी के दिन से शादियों का शुभारंभ हो जाता है. सबसे पहले तुलसी मां की पूजा होती है. देवउठानी एकादशी के दिन धूमधाम से तुलसी विवाह का आयोजन होता है. तुलसी जी को विष्णु प्रिया भी कहा जाता है, इसलिए देव जब उठते हैं तो हरिवल्लभा तुलसी की प्रार्थना ही सुनते हैं. देवउठानी एकादशी के दिन तुलसी जी का विवाह शालिग्राम से की जाती है. अगर किसी व्यक्ति को कन्या नहीं है और वह जीवन में कन्या दान का सुख प्राप्त करना चाहता है तो वह तुलसी विवाह कर प्राप्त कर सकता है. इस बार देवउठानी एकादशी 19 नवंबर सोमवार को है.

देवउठानी एकादशी पारण मुहूर्त
20 नवंबर को सुबह 06:47:17 से 08:55:00 तक
अवधि : 2 घंटे 7 मिनट
प्रबोधिनी एकादशी या देवउठानी या देवोत्थानी एकादशी के दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा होती है. भगवान विष्णु से जागने का आह्वान किया जाता है. इस दिन सुबह-सुबह उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत का संकल्प लें. घर के आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाएं. लेकिन धूप में चरणों को ढक दें. इसके बाद एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल, मिठाई, ऋतुफल और गन्ना रखकर डलिया से ढक दें. इस दिन रात्रि में घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाए जाते हैं. रात में पूरे परिवार के साथ भगवान विष्णु और अन्य देवी-देवताओं की पूजा करें. शाम की पूजा में सुभाषित स्त्रोत पाठ, भगवत कथा और पुराणादि का श्रवण व भजन आदि गाया जाता है.

इन मंत्रों का करें जाप
उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास
या
‘उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥’
‘उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥’
‘शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।’ इस मंत्र के उच्चारण के बाद कथा श्रवण कर प्रसाद का वितरण करें.
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