عيد الفطر ए चॉद उनको मेरा यह पैगाम कहना

ईद उल-फ़ित्र या ईद उल-फितर (अरबी: عيد الفطر) मुस्लमान रमज़ान उल-मुबारक के महीने के बाद एक मज़हबी ख़ुशी का तहवार मनाते हैं जिसे ईद उल-फ़ित्र कहा जाता है। ये यक्म शवाल अल-मुकर्रम्म को मनाया जाता है। ईद उल-फ़ित्र इस्लामी कैलेण्डर के दसवें महीने शव्वाल के पहले दिन मनाया जाता है। इसलामी कैलंडर के सभी महीनों की तरह यह भी नए चाँद के दिखने पर शुरू होता है। मुसलमानों का त्योहार ईद मूल रूप से भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्योहार है। इस त्योहार को सभी आपस में मिल के मनाते है और खुदा से सुख-शांति और बरक्कत के लिए दुआएं मांगते हैं। पूरे विश्व में ईद की खुशी पूरे हर्षोल्लास से मनाई जाती है

हिमालयायूके न्यूज पोर्टल की ओर से ईद मुबरूक —- शनिवार को पूरे भारत में ईद है- इस खुशी केे मौके पर – 2 लफज

ए चॉद उनको मेरा यह पैगाम कहना, खुशी का दिन और हंसी की शाम कहना,

जब देखे वो तुझे, मेरी तरफ से उनको ईद मुबारक कहना- ;;;;; चन्‍द्रशेखर जोशी- सम्‍पादक 

मुसलमानों का त्योहार ईद रमज़ान का चांद डूबने और ईद का चांद नज़र आने पर उसके अगले दिन चांद की पहली तारीख़ को मनाई जाती है। इसलामी साल में दो ईदों में से यह एक है (दूसरा ईद उल जुहा या बकरीद कहलाता है)। पहला ईद उल-फ़ितर पैगम्बर मुहम्मद ने सन 624 ईसवी में जंग-ए-बदर के बाद मनाया था।

ईद-उल-फित्र का यह त्योहार रमजान का चांद डूबने और ईद का चांद नजर आने पर इस्लामिक महीने की पहली तारीख को मनाया जाता है. मुसलमानों का ये त्योहार भाईचारे और प्रेम को बढ़ावा देने वाला त्यौहार व पर्व है. ईद को सभी आपस में मिल के मनाते हैं और खुदा से दुआएं करते हैं कि सुख-शांति और बरक्कत बनी रहे. 624 ईस्वी में पहला ईद-उल-फ़ित्र मनाया गया था. पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बद्र के युद्ध में विजय प्राप्त की थी. यह त्योहर उसी खुशी में मनाया गया था रमज़ान के पूरे महीने रोजे रखने के बाद इसके खत्म होने की खुशी में ईद के दिन कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं. सुबह उठकर ईदगाह और मस्जिदों में नमाज अदा की जाती है और ख़ुदा का शुक्र अदा किया जाता है कि उसने पूरे महीने हमें रोजे रखने की शक्ति दी.

ईद से पहले जकात और फितरा देने का महत्व- इस दिन इस्लाम को मानने वाले का फर्ज होता है कि अपनी हैसियत के हिसाब से जरूरतमंदों को दान दें. इस दान को इस्लाम में जकात और फितरा भी कहा जाता है. सभी हैसियतमंद मुसलमानों पर फर्ज है कि वो जरूरतमंदों को दान दें. रमजान में इस दान को दो रूप में दिया जाता है, फितरा और जकात. दरअसल, रमजान के महीने में ईद से पहले फितरा और जकात देना हर हैसियतमंद मुसलमान पर फर्ज होता है. इस पर रोशनी डालते हुए विश्व विख्यात इस्लामिक संस्थान दारूल उलूम देवबंद के जनसंपर्क अधिकारी अशरफ उस्मानी साहब ने बताया, ‘अल्लाह ताला ने ईद का त्योहार गरीब और अमीर सभी के लिए बनाया है. गरीबी की वजह से लोगों की खुशी में कमी ना आए इसलिए अल्लाह ताला ने हर संपन्न मुसलमान पर जकात और फितरा देना फर्ज कर दिया है.’
अल्‍लाह की रहमत-ईद के त्‍योहार पर लोग ईदगाह में नमाज पढ़ने जाते हैं. इसके बाद एक दूसरे के गले मिलते हैं और ईद मुबारक बोलते हैं. इतना ही नहीं सब लोग साथ में मिलकर खाना भी खाते हैं. कहा जाता है कि आपसी प्रेम व भाईचारे को अपनाने वालों पर अल्‍लाह की रहमत बरसती है.

ईद के दौरान चारमीनार
उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है। सिवैया इस त्योहार की सबसे जरूरी खाद्य पदार्थ है जिसे सभी बड़े चाव से खाते हैं।

ईद के दिन मस्जिदों में सुबह की प्रार्थना से पहले हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो दान या भिक्षा दे। इस दान को ज़कात उल-फ़ितर कहते हैं। उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है। सिवैया इस त्योहार की सबसे जरूरी खाद्य पदार्थ है जिसे सभी बड़े चाव से खाते हैं।

ईद के दिन मस्जिदों में सुबह की प्रार्थना से पहले हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो दान या भिक्षा दे। इस दान को ज़कात उल-फ़ितर कहते हैं।

इस ईद में मुसलमान ३० दिनों के बाद पहली बार दिन में खाना खाते हैं। उपवास की समाप्ती की खुशी के अलावा, इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रियादा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त, नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है। और सांप्रदाय यह है कि ईद उल-फ़ित्र के दौरान ही झगड़ों — ख़ासकर घरेलू झगड़ों — को निबटाया जाता है।

ईद के दिन मस्जिद में सुबह की प्रार्थना से पहले, हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो दान या भिक्षा दे। इस दान को ज़कात उल-फ़ित्र कहते हैं। यह दान दो किलोग्राम कोई भी प्रतिदिन खाने की चीज़ का हो सकता है, मिसाल के तौर पे, आटा, या फिर उन दो किलोग्रामों का मूल्य भी। प्रार्थना से पहले यह ज़कात ग़रीबों में बाँटा जाता है।

आलेख- साभार-

 

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