चुनाव में बेरोज़गारी मुद्दा क्‍यो नहीं – नोटबंदी के बाद 50 लाख लोगों की नौकरियां गई

 चुनाव में बेरोज़गारी मुद्दा क्‍यो नहीं बनता- नोटबंदी के बाद 50 लाख लोगों की नौकरियां गई

अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर ससटेनेबल एम्पलॉयमेंट द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, 8 नवंबर 2016 की आधी रात लागू हुई नोटबंदी के बाद 50 लाख लोगों की नौकरियां चली गई हैं. इसके अलावा किसानों की स्थिति को लेकर देश में जारी बहस के बीच पिछले पांच वर्षो में कृषि परिवारों की आय में वृद्धि का कोई तुलनात्मक अनुमान उपलब्ध नहीं है. देश में किसानों की स्थिति कैसी है, किसानों के परिवारों की हालत कैसी, उनकी आय की क्या स्थिति है, इन सबको लेकर पिछले पांच सालों में कोई अध्ययन सरकार द्वारा नहीं किया गया है. किसानों की स्थिति को लेकर देश में जारी बहस के बीच पिछले पांच वर्षो में कृषि परिवारों की आय में वृद्धि का कोई तुलनात्मक अनुमान उपलब्ध नहीं है. राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) ने 2013 के बाद से कृषि परिवारों की स्थिति के आकलन का कोई सर्वेक्षण नहीं किया. संसद के हाल में सम्पन्न बजट सत्र के दौरान एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने यह बात बतायी. अखिलेश का PM पर तंज- रोजगार छीनने का विश्व रिकार्ड बना कर ही हमेशा के लिए जाएंगे

2019 के चुनाव में बेरोज़गारी की बात बहुत हो रही है, मगर इस पर न तो सरकार की तरफ से कुछ ठोस आ रहा है और न ही विपक्ष की तरफ से. पक्ष और विपक्ष की उदासीनता के बीच बेरोज़गारों को भी समझ नहीं आ रहा है कि वे अपने मुद्दों का क्या करें. 20 मार्च के इंडियन एक्सप्रेस में जे मजूमदार की खबर छपी है. इस खबर के अनुसार वर्क फोर्स यानी काम करने वालों की तादाद में तेज़ी से गिरावट आई है. पांच साल पहले की तुलना में इस वक्त कम लोग काम पर लगे हुए हैं. 1993-94 के बाद पहली बार आई कार्य बल में गिरावट आई है. NSSO ने 2017-18 के लिए Periodic Labour Force Survey किया था, यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवंबर 2016 को लिए गए नोटबंदी के फैसले के बाद बीते दो सालों में 50 लाख लोगों की नौकरियां चली गई हैं. एक नई रिपोर्ट के अनुसार, खासकर असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले 50 लाख लोगों ने नोटबंदी के बाद अपना रोजगार खो दिया है. बेंगलुरु स्थित अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट (CSE) द्वारा मंगलवार को जारी ‘State of Working India 2019′ रिपोर्ट में यह कहा गया है कि साल 2016 से 2018 के बीच करीब 50 लाख पुरुषों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है. 

सीएसई के अध्यक्ष और रिपोर्ट लिखने वाले मुख्य लेखक प्रोफेसर अमित बसोले ने हफिंगटनपोस्ट से कहा कि, इस रिपोर्ट में कुल आंकड़े हैं. इन आंकड़ों के हिसाब से 50 लाख रोजगार कम हुए हैं. कहीं और नौकरियां भले ही बढ़ी हों लेकिन ये तय है कि पचास लाख लोगों ने अपना नौकरियां खोई हैं. यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है. बसोले ने आगे बताया कि कि डेटा के अनुसार, नौकरियों में गिरावट नोटबंदी के आसपास हुई (सितंबर और दिसंबर 2016 के बीच चार महीने की अवधि में) और दिसंबर 2018 में अपने स्थिरांक पर पहुंची. 

रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा नोटबंदी की घोषणा किए जाने के आसपास ही नौकरी की कमी शुरू हुई, लेकिन उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर इन दोनों के बीच संबंध पूरी तरह से स्थापित नहीं किया जा सकता है. यानी रिपोर्ट में यह साफ तौर पर बेरोजगारी और नोटबंदी में संबंध नहीं दर्शाया गया है. 

सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्लॉयमेंट’ की ओर से जारी इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अपनी नौकरी खोने वाले इन 50 लाख पुरुषों में शहरी और ग्रामीण इलाकों के कम शिक्षित पुरुषों की संख्या अधिक है. इस आधार पर रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया है कि नोटबंदी ने सबसे अधिक असंगठित क्षेत्र को ही तबाह किया है.

2016 के बाद भारत में रोजगार‘ वाले शीर्षक के इस रिपोर्ट के 6ठे प्वाइंट में नोटबंदी के बाद जाने वाली 50 लाख नौकरियों का जिक्र है. रिपोर्ट के मुताबिक, 2011 के बाद से कुल बेरोजगारी दर में भारी उछाल आया है. 2018 में जहां बेरोजगारी दर 6 फीसदी थी. यह 2000-2011 के मुकाबले दोगुनी है.

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में बेरोजगार ज्यादातर उच्च शिक्षित और युवा हैं. शहरी महिलाओं में कामगार जनसंख्या में 10 फीसदी ही ग्रेजुएट्स हैं, जबकि 34 फीसदी बेरोजगार हैं. वहीं, शहरी पुरुषों में 13.5 फीसदी ग्रेजुएट्स हैं, मगर 60 फीसदी बेरोजगार हैं.  इतना ही नहीं, बेरोजगारों में 20 से 24 साल की संख्या सबसे अधिक है. सामान्य तौर पर पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा प्रभावित हुई हैं. पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों में बेरोजगारी और श्रम भागीदारी दर बहुत ज्यादा है.

राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2011-12 से लेकर वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान पांच साल में देश में पुरुष कार्यबल में करीब दो करोड़ की कमी आई. एनएसएस की इस रिपोर्ट को हाल ही में सरकार ने दबा दिया. एनएसएसओ की आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) रिपोर्ट 2017-18 की समीक्षा में बताया गया है कि वर्ष 2017-18 के दौरान सिर्फ 28.6 करोड़ पुरुष देश में रोजगार में थे जबकि 2011-12 में 30.4 करोड़ पुरुष रोजगार में थे. यह समीक्षा अभी सार्वजनिक नहीं हुई है. 

भारत का पुरुष कार्यबल 1993-94 में 21.9 करोड़ था, जिसके बाद पहली बार इसमें कमी दर्ज की गई है. पुरुष कार्यबल 2011-12 दौरान बढ़कर 30.4 करोड़ हो गया जबकि 2017-18 में घटकर 28.6 करोड़ रह गया. पीएलएफएस की रिपोर्ट जुलाई 2017 से लेकर जून 2018 के बीच तैयार की गई. 

नकदी संकट से जूझ रही निजी क्षेत्र की विमानन कंपनी जेट एयरवेज (Jet Airways) को लेकर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) पर निशाना साधा है. अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि लगता है ये प्रधान जी अपने कार्यकाल में सबसे ज़्यादा लोगों का रोज़गार छीनने का विश्व रिकार्ड बना कर ही हमेशा के लिए जाएंगे. बता दें, जेट एयरवेज के ऋणदाता एयरलाइन के पुनरोद्धार के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन अभी कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है. 

अखिलेश यादव ने ट्वीट किया है, ‘‘विकास’ पूछ रहा है: प्रधान जी बहुत ‘उड़ान-उड़ान’ कर रहे थे, तो फिर जेट एयरवेज को बचाने के लिए उसके हज़ारों कर्मचारियों की आवाज़ क्यों नहीं सुन रहे हैं? लगता है ये प्रधान जी अपने कार्यकाल में सबसे ज़्यादा लोगों का रोज़गार छीनने का विश्व रिकार्ड बना कर ही हमेशा के लिए जाएंगे.’

‘विकास’ पूछ रहा है : प्रधान जी बहुत ‘उड़ान-उड़ान’ कर रहे थे, तो फिर जेट एयरवेज को बचाने के लिए उसके हज़ारों कर्मचारियों की आवाज़ क्यों नहीं सुन रहे हैं?
लगता है ये प्रधान जी अपने कार्यकाल में सबसे ज़्यादा लोगों का रोज़गार छीनने का विश्व रिकार्ड बना कर ही हमेशा के लिए जाएंगे.

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