गंगा की अविरल धारा और संकल्प उपवास

बड़ी-बड़ी आंखों में चमक, घुंघराले बाल गहरा सांवला रंग, सादे से सफेद कपड़े पहने 26 वर्षीय युवक स्वामी सानंद से प्रेरित हो गंगा संरक्षण के लिए गंगा की अविरल निर्मल प्रवाह के लिए उपवास पर है। वे नमक, नींबू, जल और शहद लेते हैं। आवश्यकता पड़ने पर भी लेंगे क्योंकि वे सानंद जी की परंपरा पर ही उपवास में बैठे हैं। उनके शब्दों में यह संकल्प तपस्या है। उनके वरिष्ठ साथी ब्रह्मचारी दयानंद जी कहते हैं कि जब तक गंगा पर बांध नहीं हटेंगे गंगा निर्मल नहीं होगी। एक के बाद एक त्याग बलिदान की परंपरा चालू रहेगी। कंप्यूटर साइंस से ग्रेजुएट ब्रह्मचारी अबोधआनंद जी को जब डॉ सरकारी डॉक्टर चेक अप करने आये। तो समझाने लगा कि तपस्या, उपवास सही नहीं है। अबोधानंद जी ने उनको अंगेजी में लिखे प्रश्नों की सूची दी और कहा कि इनका जवाब दीजिए उसके बाद ही आप चेक कीजिएगा।

ये ब्रह्मचारी निगमानंद जी व स्वामी सानंद जी के बलिदान से प्रभावित हैं। इस युवक की आंखों की चमक हृदय को भेद देती है। मैंने आदरणीय सुंदरलाल बहुगुणा जी के लम्बे उपवासो को देखा है और अब उनके 93 वर्षीय शरीर में इन उपवासों के बुरे प्रभाव भी देखे हैं। बहुत से लोग मेरी तरह उपवास से सहमत नहीं होंगे। हम आंदोलन में विश्वास करते हैं, जनता को जगाने में विश्वास करते हैं। लोगों के बीच जाते हैं। मुकदमे दायर करते हैं। धरने, प्रदर्शन करते हैं। जेल जाते हैं। मगर इस संकल्प उपवास का हम सम्मान करते हैं। लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति अपनी तरह से सत्ता को समझाने के लिए विभिन्न तरीके अपनाता है। मुझे इन संकल्प उपवास जो की नितांत व्यक्तिगत या धार्मिक निर्णय भले ही लगता है, मगर कहीं इसमें गांधी के सत्याग्रह की झलक भी नजर आती है। देश का एक बड़ा वर्ग अध्यात्मिक है। शायद वही इस उपवास से प्रेरित हो सके ? संतोष की बात है कि यह युवक गंगा के नाम पर व्यापारी बने ठगों को अच्छी तरह पहचानते है।

 

साथियों, जिंदाबाद

उत्तराखंड के हरिद्वार में मातृ सदन आश्रम में ब्रह्मचारीअबोधआनंद जी के संकल्प उपवास का आज 43वां दिन है । 24 अक्टूबर को उन्होंने अपना उपवास चालूू किया था।

कुछ ही दिन पहले जिलाधिकारी के निर्देश पर पुलिस उनको आश्रम से उठाकर ले गई थी । जबरदस्ती उन्हें आईवी लगाई जिससे उनकी तबीयत बहुत बिगड़ी। किसी तरह वापस मातृ सदन लौटे हैं । वहां पर भी प्रशासन ने अगले दिन चेकअप के नाम पर 2 घंटे तक आश्रम को बंद करके रखा , भोजन भी नहीं बनाने दिया अन्य लोगों को भी।  तहलका पत्रिका में नवंबर 30 के अंक में मेरा एक लेख गंगा और उनके उपवास के संबंध में छपा है।पढ़ने की सुविधा के लिए नीचे वर्ल्ड फाइल में भेज रहा हूं । आप यदि इसे कहीं उपयोग करना चाहे तो तहलका पत्रिका का आभार देते हुए कहीं पर भी छाप सकते हैं।

सस्नेह

विमल भाई

 

गंगा के किनारे स्वामी शिवानंद जी का “मातृ सदन” नाम से एक छोटा सा आश्रम है। बहुत सादा और आडंबर हीन मगर हर समय सरकार व प्रशासन के लिए सर दर्द बना रहता है।

स्वामी शिवानंद जी सहित यहाँ 7 साधु है। गंगा खनन के खिलाफ शहादत देने वाली स्वामी निगमानंद जी भी स्वामी शिवानंद जी के शिष्य रहे हैं । उन्हीं की स्वीकृति के साथ निगमानंद जी तपस्या पर थे। जिनकी अस्पताल में सरकारी निगरानी में संदिग्ध शहादत हुई ।

हरिद्वार व ऋषिकेश के पाखंड भरे आश्रमों की यहां कोई छाया नहीं। ना कोई पाखंडी मातृ सदन से सहमत है । गंगा के नाम पर बड़ी मूर्तियां, बड़े सम्मेलन, सेमिनार, भक्तों को तथाकथित ज्ञान प्रवचन, अजीबोगरीब नाम और पोशाक में पहने, गोरी चमड़ी वाले शिष्यों की कतार, योग का धंधा और इन सबके साथ चलती उनकी दुकानदारी वाले बाबाओ का भी मातृ सदन से कोई लेना देना नहीं। स्वामी शिवानंद स्वयं भी कई बार बिना जलके भी तपस्या कर चुके हैं। मातृ सदन कोई कर्मकांडी विचारात्मक साधु संतों का जमावड़ा नहीं। गंगा में खनन के खिलाफ राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण, सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, स्थानीय अदालतों में भी उनके मुकदमे चालू है। साधु परंपरा को निभाते हुए उपवास को उन्होंने एक आंदोलन की शक्ल के रूप में रखा है। मातृ सदन ने युवा सन्यासी निगमानंद जी को खोया है। ब्रह्मचारी अबोधानंद जी ने हरिद्वार के जिलाधिकारी को खुले मंच पर चुनौती दी थी कि वे गंगा पुरस्कार के लायक नहीं। जिस पर कथित रूप से जिलाधिकारी ने उनको स्वंय मारपीट की। मरणासन्न अवस्था में वे किसी तरह बच पाए थे।

गंगा की अविरल और निर्मल प्रवाह के लिए अपने जीवन के अंतिम काल में भी कठोर तपस्या और फिर सरकारी हत्या के निशाना बने स्वामी सानंद जो पहले आईटी कानपुर में प्रोफेसर रहे। फिर देश के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सचिव भी रहे। 2008 की उनकी पहली उपवास विधि के लिए शिवानन्द जी के आश्रम में ही स्थान मिला था। अपने जीवन के अंतिम दिनों में गरिमामय तपस्या करने के लिए भी शिवानंदजी का आश्रम ही मिल पाया। वे अपने उपवास के लिए 5 लोगों के पास गए जिनमें बिजावर स्वामी और ऋषिकेश के भव्य आश्रम और गंगा की छाती पर कब्जा करके मूर्ति बनाने वाले चिदानंद मुनि जी भी थे। मगर किसी ने उनको स्थान नहीं दिया। जहां मंत्री, विधायक, सांसद, ऋषिकेश हरिद्वार के आश्रमों में हो रहे गंगा भक्ति के नाटकों में भव्यता से जाते हैं। वहीं शिवानंदजी के आश्रम में जयराम रमेश जी तथा गंगा की अविरलता और निर्मलता पर दूसरे सकारात्मक चर्चा के लिए पहुंचे। गंगा पर गहरे विचार मंथन भी होते रहे हैं।

मोदी सरकार -काफी भरोसा था जो बाद में टूटा

मोदी सरकार आने के बाद सानंद भी काफी आश्वस्त हो गए थे उनको राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद पर भी काफी भरोसा था जो बाद में टूटा । उनको उनको समझ में आ गया कि यह वास्तव में गंगा के लिए कुछ करने वाले नहीं है। ऐसे ही सुंदरलाल बहुगुणा जी का भी संघ पर कई बार भरोसा आया ।मगर संघ ने कभी सच्चे रूप में गंगा पर बांधों के खिलाफ कोई कार्य नहीं किया। विश्व हिंदू परिषद के महासचिव पंकज जी ने हरिद्वार कुंभ की समय जब मैंने उन्हें कहा कि इतने साधु हैं क्यों नहीं आप लोग इन साधुओ को बांध क्षेत्रों पर जाकर धरना देने के लिए प्रेरणा देते? उनका जवाब था नहीं नहीं इससे सरकार को परेशानी होगी। उस समय भाजपा शासित उत्तराखंड के मुखिया श्रीमान निशंक थे।

मैंने विश्व हिंदू परिषद के चरित्र पर गंगा के संदर्भ में एक लेख लिखा था। गंगा के राजनीतिक व्यापारी के नाम से 12 साल पहले लिखे इस लेख का उपयोग उमा भारती के राजनीतिक गुरु गोविंद आचार्य जी ने अपनी गंगा यात्रा के दौरान खूब किया। बाद में उमा भारती को गंगा ने अपने मगरमच्छ पर बैठाकर सत्तासीन कराया । फिर संघ के सभी चेलो के बीच सामंजस्य हो गया। चलते चलते ये खबर भी है कि उमा जी के आध्यात्मिक गुरु का अस्सी नदी और गंगा के संगम पर यानी गंगा के पेट पर, भव्य आश्रम इन्ही राजनैतिक गुरुजी की निगहबानी में बना है। तो सत्ता बड़ी ठगनी होती है और इन सब ने मिलकर सानंद जी को भी ठग ही लिया। काश स्वामी जी का भ्रम पहले टूट पाता!

बाबा रामदेव मोदी जी के सत्तासीन होने के बाद मौन हो गए

2010 की कुंभ से पहले मार्च में गंगा के बांधों पर दिल्ली के कांस्टीट्यूशनल क्लब में सभा की अध्यक्षता करने वाले बाबा रामदेव ने लेखक से गंगा के विषय पर अलग से बात की थी। लेखक ने तब उनको यह बताने का प्रयास किया था अविरलता रहेगी तो निर्मलता भी होगी। उन्होंने लोहारी नागपाला बांध के सवाल पर और हरिद्वार में सड़क पर धरना दिया था। बाबा रामदेव मोदी जी के सत्तासीन होने के बाद मौन हो गए। अब शायद गंगाजल बोतलों में बेचने का कोई व्यापारिक कर्म करके गंगा की सेवा करने का सोचते होंगे।

आज स्वामी सानंद जी हमारे बीच नहीं है। जाते जाते वे उन तमाम लोगों को भी कुछ सोचने पर और करने पर मजबूर कर गए जो मोदी सरकार के आने के बाद चुप बैठ गए थे। बहुत सारे लोग गंगा गंगा कहने, गंगा सफाई का हल्ला मचाने, गंगा आरती, समग्र गंगा, नदी पूजन, सरकारी पदों पर जाने जैसे कामों में लग गए थे। जिससे मोदी सरकार को कोई परेशानी न हुई। शायद अब इन लोगो की आत्मा अब बांध रहित गंगा की अविरलता ही गंगा की निर्मलता को बनाएगी, ऐसा समझकर गंगा की सच्ची सेवा में उन्हें धकेलेगी ।
संघ और उसके अनुषंगिक संगठनों से तो अविरल निर्मल गंगा की कोई अपेक्षा करनी ही नहीं चाहिए। वह हमेशा गंगा का मात्र राजनैतिक व्यापार करते रहे हैं। जिस मोदी का हिंदुओं की कथित ठेकेदार इस परिषद ने पीएम के लिए नाम आगे किया था। उसी पीएम को सानंद जी पत्र लिखते लिखते चले गए। अपने पत्र में उन्होंने गंगा के लिए प्राण उत्सर्ग की बात कही थी और इसके लिए जिम्मेदार मोदी को ही कहा था। मोदी जी अपनी जिम्मेदारी निभा गए।

यह भी देखन हैं कि स्वामी सानंद जी का जो वंदन पूजन है वह भी एक नया धार्मिक कर्मकांड बनकर न रह जाए। जैसा कि प्राय: किसी ऐसी परिस्थिति में होता है। मातृ सदन की ओर से शुरू की गई ये उपवास परंपरा भी मात्र प्रतीकात्मक ना बने बल्कि इससे धार्मिक लोगों में भी नई चेतना विकसित हो।

पर्यावरण पर काम करने वाली संगठन बांधों के खिलाफ बरसों से आंदोलन करने, उनके कानूनी व जमीनी संघर्षों को चलाने वाले संगठन तो कार्यरत हैं ही। परन्तु जो गंगा में पाप धोने आकांक्षा से जाते हैं वह भी गंगा व तमाम नदियों के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझें। नदियों की आरती ही नही उनके जन्म से सागर तक के अविरल प्रवाह की आवश्यकता को समझे। सफाई का मतलब घाटों की सफाई ही ना होकर जीवन पद्धति में वह परिवर्तन आए जिससे कि प्रदूषण जनित कचरा पैदा ना हो।

गंगा रक्षण के स्वामी सानंद जी के वक्तव्य और उपवास में कहीं बांधों से विस्थापितों की समस्याओं का जिक्र नहीं उठा। यह भी एक कारण रहा है कि उत्तराखंड के बांध प्रभावितों का प्राय: समर्थन नहीं मिल पाया । उनके एकल निर्णय के साथ तमाम तरह के लोग जुड़े किंतु विस्थापन को उन सब ने भी कभी बहुत महत्वपूर्ण नहीं लिया या लिया ही नहीं। इसका सरकार ने नकारात्मक प्रचार के लिये फायदा लिया। सुंदरलाल बहुगुणा जी भी पर्यावरण की बात अधिक करते रहे और पुनर्वास के मसले को उन्होंने उतनी तेजी से नहीं उठाया जितना की नर्मदा बचाओ आंदोलन ने उठाया।

यहां इस बात का जिक्र करना भी जरूरी है कि मेधा पाटकर ने पर्यावरण और पुनर्वास के मुद्दों को बखूबी उठाया। सरदार सरोवर बांध की दीवार बनने के बावजूद भी आंदोलन जिंदा है और हजारों की संख्या में लोग जुड़ते हैं। नर्मदा मैया की पूजा-अर्चना भी करते हैं साथ में पर्यावरण और पुनर्वास के तमाम मुद्दों को भी व्यवस्थित रूप से उठाते हैं । इस रणनीति को गंगा के बांधों पर काम करने वाले इक्के दुक्के जन संगठन ही पुरजोर तरह से उठा रहे हैं।

ब्रह्मचारी अबोधानंद जी यदि इस बात को बिना किसी दवाब के समझे और अपने वक्तव्यों में ले तो सरकार पर नई दवाब भी होगा, वो निहत्थी हो जाएगी। वैसे उनके आज के संकल्प उपवास के सफल होने की कामना तो है ही। वे अपने जीवन को मातृ सदन के अन्य साधको के साथ और भी सकारात्मक कामों में लगा सकें ऐसी ही सदिच्छा है।

विमल भाई

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