22 नव0 -गणपति चतुर्थी पर्व- नरसिंह मंदिर -भव्‍य उदघाटन

“ऊँ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।”

भगवान नरसिंह मंदिर के भव्‍य उदघाटन ; जोगथा मल्ला उत्‍तरकाशी- 
विनायक चतुर्थी का पर्व भगवान गणेश को समर्पित है। यह पर्व हिन्दू धर्म के मानने वालों का मुख्य पर्व है। विनायक चतुर्थी को ‘गणेशोत्सव’ के रूप में सारे विश्व में हर्षोल्लास व श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। भारत में इसकी धूम यूं तो सभी प्रदेशों में होती है, परन्तु विशेष रूप से यह महाराष्ट्र में मनाया जाता है।

22 नवम्‍बर 2017 को आज के दिन श्री दयानंद सरस्‍वती विदयालय जोगथा मल्‍ला उत्‍तरकाशी में श्रीनरसिंह जी के भव्‍य मंदिर का उदघाटन श्री प्रकाश पंत जी कैबिनेट मंत्री उत्‍तराखण्‍ड सरकार द्वारा किया जा रहा है, जिसमें क्षेत्रीय विधायक श्री केदार सिंह रावत तथा क्षेत्र के हजारो हजार गणमानय नागरिक उपस्थित होगे, श्री दयानंद सरस्‍वती विदयालय जोगथा मल्‍ला के प्रबन्‍धक श्री दयानंद जगूडी जी जो मुम्‍बई के प्रसिद्व ज्‍योतिष तथा विद्वान पंडित है, के अरथक पयास से यह सब संभव हो सका, 

इस अवसर पर चन्‍द्रशेखर जोशी मुख्‍य सम्‍पादक हिमालयायूके न्‍यूज पोटल भी उपस्‍थित है,

बुधवार दी॰ 22.11.17 मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्थी पर विनायक चतुर्थी का पर्व मनाया जाएगा। भविष्य पुराण, चतुर्वर्ग चिंतामणि व कृत्य-कल्पतरु शास्त्रों ने इसे गणपति चतुर्थी कहा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गणेश जी चतुर्थी तिथि के स्वामी व केतु ग्रह के अधिपति हैं। मोक्षकारक ग्रह केतु मायावी ग्रह राहु से विरोधाभास रखता है। विनायक चतुर्थी का व्रत हर महीने में वार के अनुसार होता है। जब शुक्ल पक्ष की चतुर्थी बुधवार पर पड़ती है तो उसे बुधवारीय विनायक चतुर्थी कहते हैं। बुधवारीय विनायक चतुर्थी पर गणेश जी के सिद्धि-बुद्धि स्वरूप के पूजन का विधान है। इस स्वरूप में गणपती ने हरे वस्त्र धरण किए हुए हैं तथा चतुर्भुज धारी गणपती सुखासन में आनंदित मुद्रा में हैं। गणेश के सिद्धि-बुद्धि स्वरूप में यह अपनी दोनों पत्नियों के साथ विराजमान हैं। सिद्धि सहज सफलता देती हैं व बुद्धि व्यवहारिक ज्ञान देती है। बुधवारीय विनायक चतुर्थी पारिवारिक सुख हेतु सर्वोत्तम मानी गई है। बुधवारीय विनायक चतुर्थी के विशिष्ट पूजन, उपाय व व्रत से पारिवारिक क्लेश समाप्त होता है, दांपत्य जीवन सुखी होता है तथा रोगों से मुक्ति मिलती है।
गणेश चतुर्थी के दिन विघ्नहर्ता श्री गणेश की पूजा का विधान है. श्री गणेश सुख सम्बृद्धि के देवता है. प्रथम पूजनीय भगवान गणेश बुद्धि के देवता है। अपने नाम के ही अनुरूपगणेश सब विघ्नों /बाधाओं को हरने वाले है. ऐसी मानता है की जो व्यक्ति गनेश चतुर्थी का व्रत करता है, उसकी सारी परेशानियों को श्री गणेश हर लेते है |

22 नवम्‍बर 2017 को भगवान नरसिंह मंदिर के भव्‍य उदघाटन अवसर पर चन्‍द्रशेखर जोशी मुख्‍य सम्‍पादक तथा केन्‍दीय महासचिव कूर्माचल परिषद देहरादून ने अपने सम्‍बोधन में कहा-

भगवान नरसिंह नर तथा सिंह (“मानव तथा सिंह“) जो विपत्ति के समय अपने भक्तों की रक्षा के लिए प्रकट होते हैं।      

भगवान नरसिंह सिद्वपीठ तथा भक्त प्रहलाद तपस्थली स्थिर पर्वत के सन्निकट बसा यह जोगथा मल्ला ग्राम आज इस तपस्थली भूमि को हम प्रणाम करते हैं।      आज २२ नवम्बर २०१७ बुद्ववार बडा ही स्वर्णिम दिन है, भगवान नरसिंह नर मंदिर में उत्तराखण्ड के वित्त मंत्री के रूप में श्री प्रकाश पंत जी पधारे है।  इस तपस्थली में आज ईश्वर की बडी कृपा हुई है जब उत्तराखण्ड के लोकप्रिय नेता, प्रसिद्व विद्वान, बहुमुखी प्रतिभा के धनी, उत्तराखण्ड के गौरव वित्त मंत्री श्री प्रकाश पंत जी श्री सरस्वती संस्कृत विद्यालय में स्वयं उपसिथत हुए है। आज वर्षो पूर्व कही गयी भविष्यवाणी सच साबित हुई है। इस तपस्थली में श्री प्रकाश पंत जी का हार्दिक स्वागत, अभिवादन नमन करते हैं। इस बडे कार्य को करने के लिए वर्तमान युग के भागीरथ परम आदरणीय दयानंद जगुडी जी को कोटि-कोटि प्रणाम है, जिनकी मेहनत से यह सब संभव हो सका।

     श्री सरस्वती संस्कृत विद्यालय जोगथ मल्ला के इस विद्यालय में आने की भविष्यवाणी तो राज्य गठन से पूर्व ही हो गयी थी। संस्कृत विद्वान परम आदरणीय तथा इस क्षेत्र के लिए देवतुल्य रहे स्व० श्री आनंद बल्लभ जोशी जी (मूल निवासी ग्राम बडालू पिथौरागढ) ने यह भविष्यवाणी की थी। वह संस्कृत विद्वान सन् १९७८ से २००८ तक इस संस्कृत विद्यालय में प्रधानाचार्य पद पर आसीन रहे। राज्य गठन से पूर्व उनके मुखारबिंद से की गयी भविष्यवाणी सब सुनते थे कि कभी उत्तराखण्ड राज्य बनेगा उसमे कुमायूं मंडल के पिथौरागढ से प्रकाश पंत कैबिनेट मंत्री बनकर जोगथ के इस संस्कृत विद्यालय में आयेगे, आज २२ नव० २०१७ को उस महान विद्वान की भविष्यवाणी आज पूर्ण हुई, आज हम उनको याद करते हुए शत शत नमन करते हैं।

     श्री सरस्वती संस्कत विद्यालय जोगथ मल्ला के अध्यक्ष जी, प्रबन्धक प्रकाण्ड विद्वान ज्योतिषविद परम आदरणीय दयानंद जगुडी जी, क्षेत्र के लोकप्रिय विधायक श्री केदार सिंह रावत जी, श्री सरस्वती संस्कृत विद्यालय के प्रधानाचार्य एवं अध्यापक गण, क्षेत्र के ग्राम प्रधान जी, क्षेत्र के गणमान्य नागरिको तथा समस्त बुजुर्गो, माताओ, बहनो को मेरा हार्दिक अभिवादन

      श्री सरस्वती संस्कृत विद्यालय जोगथ मल्ला, जनपद उत्तरकाशी का सन् १९६० में रजिस्ट्रेशन हुआ, पर यह विद्यालय  १९४५ से आश्रम पद्वति (गुरूकुल) पद्वति से संस्कृत भाषा का अध्ययन करवा रहा। इसकी मुख्य स्थापना के लिए १९४५ में गुजरात के बडियात शहर में प्रख्यात ज्योतिषविद तथा संस्कृत विद्वान स्वर्गीय योगेश्वरानंद जी, स्व०   तुलसीराम जी, स्व० गीताराम जी, स्व० श्री मायाराम जी, स्व० श्री गोविन्दराम जी पुत्र स्व० श्री महानंदजी आदि लोगों ने इस विद्यालय की स्थापना के लिए विचार बनाया और भारतीय संस्कति के उत्थान के लिए संस्कृत विद्या के प्रचार प्रसार एवं अध्ययन अध्यापन के लिए श्री सरस्वती संस्कत विद्यालय जोगथ मल्ला विद्यालय की स्थापना कर इसकी शुरूआत की।

     उत्तराखण्ड के संस्कृत तथा ज्योतिष के इन महान विद्वानों को गायकवाड सरकार के यहा विशेष राजसम्मान मिलता था, और बडोदा के गायकवाड राजा ने अपने राज पैलेस का दिग्बंधन जोगथ के इन विद्वानो से करवाया था।

      १९४७ तक गुजरात राज्य मे बडे-बडे शहरो में इन विद्वानो द्वारा ज्योतिष तथा संस्कृत का प्रचार प्रसार किया गया तथा १९४७ में भारत की आजादी के उपरांत जब भारत के सर्वोच्च नेता जिसमें गांधी जी, नेहरू जी, डा० राजेन्द्र प्रसाद जी  जब भारत के अंतिम वायसराय लार्ड माउंटबेंटन को विदा करने इंडिया गेट आये, उस महत्वपूर्ण अवसर पर  जोगथ के इन विद्वान पंडितो, ज्योतिषविदो को भी आमंत्रित किया गया था, और इन जोगथ के इन महान विद्वानो ने पूजापाठ कर रस्म अदा करवायी, यह एक गौरवपूर्ण क्षण था।

१९५३ में जोगथ में अनवरत संस्कृत विद्या का अध्ययन सुचारू कराया गया और १९५३-१९५४ में संस्कृत विद्यालय का रजिस्ट्रेशन कराने के लिए प्रयास शुरू किया गया परन्तु रजिस्ट्रेशन के लिए जरूरी कार्यपूर्ति में व्यवधान आने के कारण १९६० में विद्यालय का रजिस्ट्रेशन हुआ और इस विद्यालय की प्रगति के लिए ग्राम की जनता ने निजी स्रोतो से धन एकत्रित कर अध्यापको का वेतन दिया और मुम्बई एवं अन्य स्थानो से दानदाताओ/यजमानो से स्वल्प धन एकत्रित किया गया। इस तरह बडी मुशिकल डगर से विद्यालय की प्रगति सुचारू रखी। उस समय से आज तक अनेक झंझावातो से गुजरते हुए यह संस्कृत विद्यालय प्रगति की ओर अग्रसर है। वर्तमान में यह विद्यालय इंटर तक की शिक्षा बालक बालिकाओ को दे रहा है।  प्रबन्धक श्री दयानंद जगुडी जी के अथक प्रयास तथा अपने निजी सम्पर्को से मुम्बई से अनेक ख्यातिप्राप्त तथा दानवीरो को यहां लाने का कार्य किया जाता है, वही अध्यापको के निष्ठा भाव के कार्य करने के कारण विद्यालय अपनी प्रगति कर रहा है।

 भगवान नरसिंह सिद्व पीठ तथा भक्त प्रहलाद की तपस्थली तथा स्थिर पर्वत के सन्निकट बसे इस तपस्थली तथा देश के प्रकाण्ड ज्योतिषविदो तथा संस्कृत के विद्वानो की इस भूमि को उत्तराखण्ड के वित्तमंत्री श्री प्रकाश पंत जी का आशीर्वाद मिलेगा, तथा इस क्षेत्र की मूलभूत समस्याओ को दूर किया जायेगा जिससे गुजरात तथा महाराष्ट्र से यहां आने वाले ख्यातिप्राप्त यहां आने से कतराये नही, जिससे संस्कृत विद्या का जो वृटवृक्ष महान ज्योतिषविदो तथा विद्वानो ने लगाया था, वह मुरझाये नही, वह वित्तमंत्री श्री प्रकाश पंत जी के सत्ताकाल में दिन दूनी रात चौगुनी करे। इससे हमारे पूर्वजो का भी अदभूत आशीर्वाद मिलेगा। कुदरत ने उत्तरकाशी को बहुत सम्पन्न बनाया है, बहुत कुछ दिया है, परन्तु यहां हेलीपैड, सडक, गेस्ट हाउस आदि मूलभूत सुविधाये मिल जाये तो इस क्षेत्र का बहुत विकास हो सकता है।

     इस हिमालय की चोटियो से निकलकर समुद्र तट में अपना सिक्का जमाने वाले विद्वान, प्रकाण्ड ज्योतिष पं० दयानंद जगुडी जी मुम्बई में विराजमान है, उनके प्रयासो से महाराष्ट्र से जब इस तपस्थली में दानवीर, ख्यातिप्राप्त गणमान्य पहुंचते हैं तो सुविधाओ के अभाव में यहां आने से तोबा कर जाते हैं। यह क्षेत्र पर्यटन क्षेत्र घोषित हो, १९४५ से कार्यरत श्री सरस्वती संस्कृत विद्यालय जोगथ मल्ला को सांस्कृतिक धरोहर का दर्जा मिले, इन भावनाओ के साथ हम और क्षेत्रीय विधायक श्री केदार सिंह रावत जी का आभार व्यक्त करते है तथा अपेक्षा करते है कि इस संस्कृत विद्यालय को उनका भरपूर सहयोग मिलेगा तथा श्रीमान प्रकाश पंत जी माननीय वित्त मंत्री उत्तराखण्ड सरकार का इस क्षेत्र में आगमन पर हार्दिक स्वागत अभिनंदन, नमन करते हैं कि उन्होंने अपना बहुमूल्य समय देकर हम सबको कृतार्थ किया है।

उत्तरकाशी शब्द का अर्थ है “उत्तर में स्थित काशी“, नाम से प्रतीत होता है कि उत्तरकाशी एक प्राचीन तथा धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासतों से समृद्ध स्थान है। इसकी तुलना वास्तविक काशी (वाराणसी) से की जाती है। पवित्र स्थान उत्तरकाशी दो नदियों स्यालमगाड व कालीगाड के बीच में स्थित है, जिन्हें क्रमशः वरूणा एवं असी के नाम से भी जाना जाता है। ठीक इसी तरह वास्तविक काशी (वाराणसी) भी दो नदियों वरूणा व असी के मध्य स्थित है। दोनों ही स्थानों में सबसे पवित्र घाट मणिकर्णिकाघाट स्थित है तथा दोनों ही स्थान विश्वनाथ मदिंर को समर्पित हैं। पौराणिक संदर्भ में उत्तरकाशी का अलग ही महत्व रहा है, प्राचीन काल में इसे बाडाहाट के नाम से भी जाना जाता था। स्कन्दपुराण के केदारखण्ड में इस स्थान का वर्णन सौम्यकाशी के नाम से किया गया है। मान्यता है कि द्वापर युग के महाभारत काल में भगवान शिव ने किरात का रूप धारण करके यहीं पर अर्जुन से युद्ध किया था। केदारखण्ड के अनुसार उत्तरकाशी पांडव संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है, यहीं दुर्योधन ने पाण्डवों को मारने के लिये लाक्षागृह का निर्माण किया था।

जनपद का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन लगभग १५५ किमी० की दूरी पर ऋषिकेश में स्थित है । जनपद का निकटतम एअरपोर्ट जौलीग्रांट देहरादून स्थित है जो कि उत्तरकाशी से लगभग १७५ किमी० की दूरी पर स्थित है ।

     उत्तरकाशी जनपद की स्थापना २४ फरवरी १९६० को उत्तरकाशी तथा रवांई तहसील को तत्कालीन टिहरी जनपद से अलग गठित करके की गई थी । प्रशासनिक दृष्टि से यह जनपद छह तहसीलों (भटवाडी, चिन्यालीसौड, डुन्डा, पुरोला, राजगढी तथा मोरी) तथा छह सामुदायिक विकासखण्डों में (भटवाडी, चिन्यालीसौड, डुन्डा, नौगाँव, पुरोला तथा मोरी) विभक्त है।

      हिंदुओ के पूज्य और पवित्र नदिया गंगा और यमुना का उद्गम स्थल उत्तरकाशी में ही है। उत्तरकाशी की साक्षरता ७६प्रतिशत है। उत्तरकाशी उत्तरखंड के उत्तरी भाग में है इसके अक्षांस और देशांतर क्रमशः ३० डिग्री ७३ मिनट उत्तर से ७८ डिग्री ४५ मिनट पूर्व तक है। समुद्रतल से उत्तरकाशी की ऊंचाई ११६५ मीटर है और देहरादून से उत्तरकाशी १४४ किलोमीटर उत्तर में है और दिल्ली से भी २९० किलोमीटर उत्तर में है। उत्तरकाशी के उत्तर में हिमाचल प्रदेश के किन्नौर और शिमला जिले है, उत्तर पूर्व में चीन है, पूर्व में चमोली और दक्षिण-पश्चम में रुद्रप्रयाग है, दक्षिण में टेहरी गढवाल है, पश्चम में देहरादून है।

उत्तरकाशी के प्रसिद्ध मन्दिर-गंगोत्री, यमुनोत्री, विश्वनाथ मंदिर, शक्ति पीठ, कुटेटी देवी, रेनुका देवी, भैरव देवता का मन्दिर, शनि मंदिर, पोखू देवता, कर्णदेवता, दुर्योधन मंदिर, कपिलमुनि आश्रम, चौरंगीखाल मंदिर है।  प्रसिद्ध मेले माघ मेला, बिस्सू मेला, कन्डक मेला, खरसाली मेला लगते है।  प्रसिद्ध पर्यटक स्थल- दयारा बुग्याल, गंगनानी, हर्षिल, यमुनोत्री, गौमुख, तपोवन, गंगोत्री, हर की दून, गोविन्द वन्यजीव विहार, गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान, नेहरु पर्वतारोहण संस्थान, लंका, भैरो घाटी है। प्रसिद्व ताल- डोडीताल (षष्ट कोणीय ताल), नचिकेता ताल, काणाताल, बंयाताल (उबलता ताल), लामाताल, देवासाडीताल, रोही साडा ताल है।

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धार्मिक धारणा है की हिन्दू धर्म में भगवान श्री गणेश की पूजा से प्रत्येक शुभ कार्य आरम्भ किया जाता है। भगवान गणेश जी को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। सनातन धर्म में 24 दिन ऐसे होते है जो पूर्णतः भगवान गणेश की आराधना के लिए समर्पित है। भगवान विनायक के जन्मदिवस पर मनाया जानेवाला यह महापर्व महाराष्ट्र सहित भारत के सभी राज्यों में हर्षोल्लास पूर्वक और भव्य तरीके से आयोजित किया जाता है। इस साल गणेश चतुर्थी का पर्व इस वर्ष 25 अगस्त 2017 के दिन मनाया जाएगा।
भगवान गणेश के जन्म दिन के उत्सव को गणेश चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन, भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। यह मान्यता है कि भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष के दौरान भगवान गणेश का जन्म हुआ था। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार गणेश चतुर्थी का दिन अगस्त अथवा सितम्बर के महीने में आता है।गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी और गणेश चौथ के नाम से भी जाना जाता है। गणेश चतुर्थी हिंदुओं का एक सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह हिंदू धर्म के लोगों द्वारा हर साल बहुत साहस, भक्ति और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह भारत में विनायक चतुर्थी के नाम से भी लोकप्रिय है। यह प्राचीन काल से पूरे भारत में हिन्दूओँ के सबसे महत्वपूर्ण देवता, भगवान गणेश जी (जिन्हें हाथी के सिर वाला, विनायक, विघ्नहर्ता, बुद्धि के देवता और प्रारम्भ के देवता आदि के नाम से जाना जाता है) को सम्मानित करने के लिये मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह (अगस्त और सितम्बर के बीच) भाद्रप्रदा के महीने में हर साल आता है। यह शुक्ल चतुर्थी (अर्थात् चाँद वृद्धि अवधि के चौथे दिन) पर शुरू होता है और अनंत चतुर्दशी पर 10 दिन (अर्थात् चाँद वृद्धि अवधि के 14 वें दिन) के बाद समाप्त होता है।
गणेश चतुर्थी का त्यौहार कई रस्में, रीति रिवाज और हिंदू धर्म के लोगों के लिए बहुत महत्व रखता है। विनायक चतुर्थी की तारीख करीब आते ही लोग अत्यधिक उत्सुक हो जाते हैं। आधुनिक समय में, लोग घर के लिए या सार्वजनिक पंडालों को भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्ति लाते है और दस दिनों के लिए पूजा करते हैं। त्यौहार के अंत में लोग मूर्तियों को पानी के बडे स्रोतों (समुद्र, नदी, झील, आदि) में विसर्जित करते हैं।गणेशोत्सव अर्थात गणेश चतुर्थी का उत्सव, १० दिन के बाद, अनन्त चतुर्दशी के दिन समाप्त होता है और यह दिन गणेश विसर्जन के नाम से जाना जाता है। अनन्त चतुर्दशी के दिन श्रद्धालु-जन बड़े ही धूम-धाम के साथ सड़क पर जुलूस निकालते हुए भगवान गणेश की प्रतिमा का सरोवर, झील, नदी इत्यादि में विसर्जन करते हैं। हिन्दू धर्म शास्त्रों में के अनुसार भगवान श्री गणेश कई रुपों में अवतार लेकर प्राणीजनों के दुखों को दूर करते हैं. श्री गणेश मंगलमूर्ति है, सभी देवों में सबसे पहले श्री गणेश का पूजन किया जाता है. श्री गणेश क्योकि शुभता के प्रतीक है. पंचतत्वों में श्री गणेश को जल का स्थान दिया गया है. बिना गणेश का पूजन किए बिना कोई भी इच्छा पूरी नहीं होती है |
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हिन्दू कैलेण्डर में प्रत्येक चन्द्र मास में दो चतुर्थी होती है। हिन्दू धर्मग्रन्थों के अनुसार चतुर्थी तिथि भगवान गणेश की तिथि है। अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं और पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। हालाँकि विनायक चतुर्थी का व्रत हर महीने में होता है लेकिन सबसे मुख्य विनायक चतुर्थी का व्रत भाद्रपद के महीने में होता है। भाद्रपद के दौरान पड़ने वाली विनायक चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। सम्पूर्ण विश्व में गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।
गणेश चतुर्थी व्रत को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलन में है। इस कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती नर्मदा नदी के निकट बैठे थे। वहां देवी पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से समय व्यतीत करने के लिये चौपड़ का खेल खेलने को कहा। भगवान शंकर चौपड़ खेलने के लिये तैयार तो हो गये, परन्तु इस खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा? इसका प्रश्न उठा, इसके जवाब में भगवान भोलेनाथ ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका पुतला बनाकर, उस पुतले की प्राण प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा कि- “बेटा हम चौपड़ खेलना चाहते है, परन्तु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है। इसलिये तुम बताना कि हम में से कौन हारा और कौन जीता।”
चौपड़ का खेल
यह कहने के बाद चौपड़ का खेल प्रारम्भ हो गया। खेल तीन बार खेला गया और संयोग से तीनों बार पार्वती जी जीत गईं। खेल के समाप्त होने पर बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिये कहा गया, तो बालक ने महादेव को विजयी बताया। यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और उन्होंने क्रोध में आकर बालक को लंगडा होने व कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता से माफ़ी मांगी और कहा- “मुझसे अज्ञानता वश ऐसा हुआ, मैंने किसी द्वेष में ऐसा नहीं किया।” बालक के क्षमा मांगने पर माता ने कहा- “यहाँ गणेश पूजन के लिये नाग कन्याएं आयेंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे। यह कहकर माता पार्वती भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वतपर चली गईं।
गणेश का प्रसन्न होना
ठीक एक वर्ष बाद उस स्थान पर नाग कन्याएं आईं। नाग कन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया। उसकी श्रद्वा देखकर भगवान गणेश प्रसन्न हो गए और उन्होंने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिये कहा। बालक ने कहा- “हे विनायक! मुझमें इतनी शक्ति दीजिए, कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वो यह देख प्रसन्न हों।” बालक को यह वरदान देकर भगवान गणेश अन्तर्धान हो गए। बालक इसके बाद कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और वहाँ पहुंचने की कथा उसने भगवान महादेव को सुनाई। उस दिन से पार्वती जी, शिवजी से विमुख हो गईं। देवी के रुष्ठ होने पर भगवान शंकर ने भी बालक के बताये अनुसार गणेश का व्रत 21 दिनों तक किया। इसके प्रभाव से माता के मन से भगवान भोलेनाथ के लिये जो नाराजगी थी, वह समाप्त हो गई।
माता पार्वती द्वारा व्रत रखना
यह व्रत विधि भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताई। यह सुनकर माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई। माता ने भी 21 दिन तक श्री गणेश व्रत किया और दूर्वा, पुष्प और लड्डूओं से श्री गणेश जी का पूजन किया। व्रत के 21 वें दिन कार्तिकेय स्वयं पार्वती जी से आ मिले। उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का व्रत मनोकामना पूरी करने वाला व्रत माना जाता है]
देश के विभिन्न राज्यों जैसे महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और पश्चिमी और दक्षिणी भारत के अन्य भागों सहित बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह 10 दिनों का उत्सव है जो अनंत चतुर्दशी पर समाप्त होता है। यह कई तराई क्षेत्रों नेपाल, बर्मा, थाईलैंड, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, गुयाना, मारीशस, फिजी, सिंगापुर, मलेशिया, इंडोनेशिया, कंबोडिया, न्यूजीलैंड, त्रिनिदाद और टोबैगो आदि में भी मनाया जाता है।

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