अदभूत गिर गाय-मूत्र में सोना,दूध में रोगप्रतिरोधक क्षमता

जूनागढ़ एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को मिला गिर की गायों के मूत्र के सैंपल में सोना :
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गीर, भारतीय मूल की गाय है। यह दक्षिण काठियावाड़ में पायी जाती है। ये गायें 12-15 साल जीवित रहतीं हैं और अपने पूरे जीवनकाल में 6-12 बछड़े उत्पन्न कर सकतीं हैं। गिर भारत के एक प्रसिद्ध दुग्ध पशु नस्ल है। यह गुजरात राज्य के गिर वन क्षेत्र और महाराष्ट्र तथा राजस्थान के आसपास के जिलों में पायी जाती है। यह गाय अच्छी दुग्ध उत्पादताकता के लिए जानी जाती है।इस गाय के दूध में सोने के तत्व पाए जातें हैं जिससे रोगप्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है।

गिर गाय भारत में आने वाले ज़ीबू नस्ल में से एक है। ज़ीबू विश्व में सबसे पुरानी नस्लों में से एक है और इस नस्ल का उद्गम जीआईआर जंगल और काठियावाड़ के आसपास के जंगल में जुनागढ़, गुजरात के गिर सोमनाथ, अमरेली और राजकोट जिले में है।यह नस्ल गुजरात की मूल है लेकिन महाराष्ट्र और राजस्थान में पाई जाती है। गुजरात में लगभग 3000 शुद्ध नस्ल गिर गाय हैं गिर अंतरराष्ट्रीय मवेशी बन गयी है क्योंकि यह लगभग भारत और अन्य कई देशों में लगभग पाई जाती है।

इस गाय के शरीर का रंग सफेद, गहरे लाल या चॉकलेट भूरे रंग के धब्बे के साथ या कभी कभी चमकदार लाल रंग में पाया जाता है। कान लम्बे होते हैं और लटकते रहते हैं। इसकी सबसे अनूठी विशेषता उनकी उत्तल माथे हैं जो इसको तेज धूप से बचाते हैं। यह मध्यम से लेकर बड़े आकार में पायी जाती है। मादा गिर का औसत वजन 385 किलोग्राम तथा ऊंचाई 130 सेंटीमीटर होती है जबकि नर गिर का औसतन वजन 545 किलोग्राम तथा ऊंचाई 135 सेंटीमीटर होती है। इनके शरीर की त्वचा बहुत ही ढीली और लचीली होती है। सींग पीछे की ओर मुड़े रहते हैं।

यह गाय अपनी अच्छी रोग प्रतिरोध क्षमता के लिए भी जानी जाती है। यह नियमित रूप से बछड़ा देती है। पहली बार 3 साल की उम्र में बछड़ा देती है  गिर गायों में थन अच्छी तरह विकसित होते हैं। यह गाय प्रतिदिन 12 लीटर से अधिक दूध देती है। इसके दूध में 4.5 प्रतिशत वसा होती है। गिर का एक बियान में औसत दुग्ध उत्पादन 1590 किलोग्राम है। ये पशु विभिन्न जलवायु के लिए अनुकूलित होते हैं और गर्म स्थानों पर भी आसानी से रह सकतें हैं।

गिर भारत के एक प्रसिद्ध दुग्ध पशु नस्ल है। यह गुजरात राज्य के गिर वन क्षेत्र और महाराष्ट्र तथा राजस्थान के आसपास के जिलों में पायी जाती है। यह गाय अच्छी दुग्ध उत्पादताकता के लिए जानी जाती है।इस गाय के दूध में सोने के तत्व पाए जातें हैं जिससे रोगप्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है।

इस गाय के शरीर का रंग सफेद, गहरे लाल या चॉकलेट भूरे रंग के धब्बे के साथ या कभी कभी चमकदार लाल रंग में पाया जाता है। कान लम्बे होते हैं और लटकते रहते हैं। इसकी सबसे अनूठी विशेषता उनकी उत्तल माथे हैं जो इसको तेज धूप से बचाते हैं। यह मध्यम से लेकर बड़े आकार में पायी जाती है। मादा गिर का औसत वजन 385 किलोग्राम तथा ऊंचाई 130 सेंटीमीटर होती है जबकि नर गिर का औसतन वजन 545 किलोग्राम तथा ऊंचाई 135 सेंटीमीटर होती है। इनके शरीर की त्वचा बहुत ही ढीली और लचीली होती है। सींग पीछे की ओर मुड़े रहते हैं।

यह गाय अपनी अच्छी रोग प्रतिरोध क्षमता के लिए भी जानी जाती है। यह नियमित रूप से बछड़ा देती है। पहली बार 3 साल की उम्र में बछड़ा देती है

गिर गायों में थन अच्छी तरह विकसित होते हैं। यह गाय प्रतिदिन 12 लीटर से अधिक दूध देती है। इसके दूध में 4.5 प्रतिशत वसा होती है। गिर का एक बियान में औसत दुग्ध उत्पादन 1590 किलोग्राम है। ये पशु विभिन्न जलवायु के लिए अनुकूलित होते हैं और गर्म स्थानों पर भी आसानी से रह सकतें हैं।

अब तक गौमूत्र में सोना होने का जिक्र सिर्फ पौराणिक कथाओं में ही मिलता रहा है लेकिन अब वैज्ञानिकों ने भी इस बात का पुष्टि कर दी है कि गौमूत्र में सोना होता है. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक जूनागढ़ एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने गिर की 400 गांवों के मूत्र के विश्लेषण के बाद पाया कि उसमें सोने के अंश हैं. गाय के एक लीटर मूत्र में 3 मिलीग्राम से लेकर 10 मिली ग्राम तक सोने के कण पाए गए. ये सोना आयोनिक रूप में मिला, जोकि पानी में घुलनशील गोल्ड साल्ट है.

गिर की गायें गुजरात के गिर के जंगलों और सौराष्ट्र में पाई जाती हैं. इन्हें इनकी मजबूत कद-काठी और गायों की अन्य प्रजातियों से कहीं ज्यादा दूध देने के लिए जाना जाता है. इन गायों की डिमांड इतनी ज्यादा है कि एक गिर गाय की औसत कीमत 60 हजार रुपये से शरू होती है जो कई बार लाखों में भी चली जाती है.

गिर गाय एक लैक्टेशन (दूध देने) चक्र के दौरान अधिकतम 5 हजार लीटर तक दूध दे सकती है, जोकि औसतन 2000 से 2500 लीटर तक होता है. हाल ही में गिर गायें तब चर्चा में आई थीं जब गुजरात ने इन्हें मध्य प्रदेश को देने से मना कर दिया था. इससे पहले गुजरात सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद गिर के शेरों को भी मध्य प्रदेश को देने से मना कर चुका है.

यह नसल राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में पायी जाती है। इसे देसण, गुजराती, सूरती, काठियावाड़ी, और सोरठी भी कहा जाता है। इसका शरीर लाल रंग का होता है जिस पर सफेद धब्बे, सिर गुबंद के आकार का और लंबे कान होते हैं। यह गाय प्रति ब्यांत में औसतन 2110 दूध देती है। गिर गाय भारत में आने वाले ज़ीबू नस्ल में से एक है। ज़ीबू विश्व में सबसे पुरानी नस्लों में से एक है और इस नस्ल का उद्गम जीआईआर जंगल और काठियावाड़ के आसपास के जंगल में जुनागढ़, गुजरात के गिर सोमनाथ, अमरेली और राजकोट जिले में है।यह नस्ल गुजरात की मूल है लेकिन महाराष्ट्र और राजस्थान में पाई जाती है। गुजरात में लगभग 3000 शुद्ध नस्ल गिर गाय हैं गिर अंतरराष्ट्रीय मवेशी बन गयी है क्योंकि यह लगभग भारत और अन्य कई देशों में लगभग पाई जाती है।

जेएयू के बायोटेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉक्टर बीए गोलाकिया के नेतृत्व में रिसर्चर्स की टीम ने गाय के मूत्र के सैंपल्स का विश्लेषण करने के लिए गैस क्रोमैटोग्राफी-मास स्पेक्टोरमेट्री (जीसी-एमसी) विधि का प्रयोग किया डॉक्टर गोलाकिया ने कहा, ‘अब तक हमने गाय के मूत्र में सोने की मौजूदगी और इसके चिकित्सीय गुणों के बारे में हमारे प्राचीन ग्रंथों से सुना था. इस बात को प्रमाणित करने के लिए कोई विस्तृत वैज्ञानिक विश्लेषण मौजूद नहीं था इसलिए हमने गांव के मूत्र पर रिसर्च करने का निर्णय लिया. हमने गिर गाय के मूत्र के 400 सैंपल्स का विश्लेषण किया और उसमें सोने का अंश मिला.’

गोलाकिया ने कहा कि गाय के मूत्र में पाए जाने वाले सोने को निकाला जा सकता है और केमिकल प्रक्रिया से उसे ठोस बनाया जा सकता है. दिलचस्प बात ये है कि इन वैज्ञानिकों ने न सिर्फ गायों बल्कि भैंसों, भेड़ों और बकरियों के मूत्र के सैंपल का भी विश्लेषण किया लेकिन सोना सिर्फ गाय के मूत्र में ही मिला. साथ ही इन जानवरों में से सिर्फ गाय के मूत्र में ही एंटी-बायोटिक तत्व पाए गए. गिर की गायों के मूत्र में पाए गए 5100 तत्वों में से 388 तत्व औषधीय रूप से जबर्दस्त कीमती हैं और इनसे कई असाध्य बीमारियां ठीक हो सकती हैं. गिर की गायों के मूत्र के सैंपल का विश्लेषण करने के बाद अब जेएयू के वैज्ञानिक देश की सभी 39 देशी प्रजातियों की गायों के मूत्र के सैंपल्स का विश्लेषण करेंगे.

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