विक्रमादित्य की आराध्य तांत्रिक देवी- माता हरसिद्धि- रात को उज्‍जैन,सुबह गुजरात

HIGH LIGHT; हरसिद्धि मंदिर में उज्जैन के राजा रहे विक्रमादित्य की आराध्य देवी का वास # इनकी कृपा से शहर में कोई भूखा नहीं सोता। किसी के पास पैसे की तंगी नहीं रहती है शिवपुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति के हवन कुंड में माता के सती हो जाने के बाद भगवान भोलेनाथ सती को उठाकर ब्रह्मांड में ले गए थे। इस दौरान माता सती के अंग जिन स्थानों पर गिरे, वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए। कहा जाता है इस स्थान पर माता के दाहिने हाथ की कोहनी गिरी थी और इसी कारण से यह स्थान भी एक शक्तिपीठ बन गया है #मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित शेषनारायण गोस्वामी ने बताया कि गर्भगृह में सबसे ऊपर विराजमान हैं मां अन्नपूर्णा, जिनकी वजह से उज्जैनी में हमेशा भंडारे चलते रहते हैं #  उनकी कृपा से उज्जैन में कोई भूखा नहीं सोता है। बीच में मां लक्ष्मी के स्वरुप में है, जिनकी वजह से किसी को भी लक्ष्मी की कमी नहीं आती। सबसे नीचे विराजित हैं महाकाली # मंदिर के मुख्य पीठ पर प्रतिमा के स्थान पर ‘श्रीयंत्र’ है। इस पर सिंदूर चढ़ाया जाता है, अन्य प्रतिमाओं पर नहीं और उसके पीछे भगवती अन्नपूर्णा की प्रतिमा है। गर्भगृह में हरसिद्धि देवी की प्रतिमा की पूजा होती है। मंदिर में महालक्ष्मी, महाकाली, महासरस्वती की प्रतिमाएँ हैं। मंदिर के पूर्वी द्वार पर बावड़ी है, जिसके बीच में एक स्तंभ है, जिस पर संवत 1447 अंकित है तथा पास ही में सप्तसागर सरोवर है। मंदिर के जगमोहन के सामने दो बड़े दीप स्तंभ हैं #

उज्जयिन्यां कूर्परं व मांगल्य कपिलाम्बरः।
भैरवः सिद्धिदः साक्षात् देवी मंगल चण्डिका।

Presented by- हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्‍तराखण्‍ड

गुजरात स्थित पोरबंदर से करीब 48 कि.मी. दूर मूल द्वारका के समीप समुद्र की खाड़ी के किनारे मियां गांव है। खाड़ी के पार पर्वत की सीढिय़ों के नीचे हर्षद माता (हरसिद्धि) का मंदिर है। मान्यता है कि उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य यहीं से आराधना करके देवी को उज्जैन लाए थे। तब देवी ने विक्रमादित्य से कहा था कि मैं रात के समय तुम्हारे नगर में तथा दिन में इसी स्थान पर वास करूंगी। यहां प्रमुख आरती भी प्रात: 9 बजे होती है।
मध्य प्रदेश के उज्जैन का प्रसिद्ध शक्तिपीठ हर सिद्धि माता मंदिर महाकाल ज्योतिर्लिंग मंदिर के पास ही स्तिथ है | यह 51 शक्तिपीठो में से एक है और इस मंदिर को हर सिद्धि माता के नाम से भी जाना जाता है | इस मंदिर में माँ काली की मूरत के दाये बांये माँ लक्ष्मी और देवी सरस्वती की मुर्तिया है | महा काली की मूरत गहरे लाल रंग में रंगी हुई है | माँ का श्री यन्त्र भी मंदिर परिसर में लगा हुआ है |
शिवपुराण के अनुसार यहाँ श्रीयंत्र की पूजा होती है। इन्हें विक्रमादित्य की आराध्या माना जाता है। स्कंद पुराण  में देवी हरसिद्धि का उल्लेख है। मंदिर परिसर में आदिशक्ति महामाया का भी मंदिर है, जहाँ सदैव ज्योति प्रज्जवलित होती रहती है तथा दोनों नवरात्रों में यहाँ उनकी महापूजा होती है-

यह माता राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी थी | कहा जाता है की राजा विक्रमादित्य ने अपना 11 बार शीश दान माँ के सामने किया और हर बार माँ ने फिर से उनके शीश को जोड़ दिया यह मंदिर शिप्रा मंदिर के किनारे भेरूगढ़ में स्तिथ है |

नवम्यां पूजिता देवी हरसिद्धि हरप्रिया
कहा जाता है है सती माँ का बांया हाथ या उपरी होठ या दोनों इस जगह गिरे थे और इस शक्ति पीठ की स्थापना हुई थी | इसी जगह महान कवी कालीदास ने माँ के प्रशंसा में काव्य रचना की थी |
यह माता राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी थी | कहा जाता है की राजा विक्रमादित्य ने अपना 11 बार शीश दान माँ के सामने किया और हर बार माँ ने फिर से उनके शीश को जोड़ दिया यह मंदिर शिप्रा मंदिर के किनारे भेरूगढ़ में   है | इंदौर से यह जगह 50 किमी की दूरी पर है | हवाई यात्रा से : नजदिकी हवाई अड़डा इंदौर रेल यात्रा से : उज्जैन भारत के मुख्य शहरो से अच्छी तरह रेल मार्ग से जुडा हुआ है |
यहां देवी का नाम हरसिद्धि रखे जाने के बारे में स्कंदपुराण में कथा है कि एक बार कैलास पर्वत पर चंड और प्रचंड नाम के दो दानव ने जब बिना किसी अधिकार के प्रवेश करने का प्रयास किया तो नंदी ने उन्हें रोक दिया। असुरों ने नंदी को घायल कर दिया। जब भगवान शिव ने असुरों का यह कृत्य देखा तो उन्होंने भगवती चंडी का स्मरण किया। उसी समय देवी प्रकट हुईं। शिव के आदेश पर देवी ने दोनों असुरों का वध कर दिया। इससे महादेव प्रसन्न हो गए। कहा तुमने इन दोनों दानवों का वध किया है। इसलिए आज से तुम्हारा नाम हरसिद्धि प्रसिद्ध होगा। मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ते ही वाहन सिंह की प्रतिमा है।

द्वार के दाईं ओर दो बड़े नगाड़े रखे हैं, जो प्रातः सायं आरती के समय बजाए जाते हैं। मंदिर के सामने दो बड़े दीप स्तंभ हैं। इनमें से एक ‘शिव’ है, जिसमें 501 दीपमालाएँ हैं, दूसरा ‘पार्वती’ है, जिसमें 500 दीपमालाएँ हैं तथा दोनों दीप स्तंभों पर दीपक जलाए जाते हैं। कुल मिलाकर इन 1001 दीपकों को जलाने में एक समय में तीन टिन रिफाइंड तेल यानी की कुल 45 लीटर तेल लग जाता है और सब मिलाकर इस काम पर एक समय का खर्च 7000 रुपये का है, जिसमें लेबर भी शामिल रहती है। यह सब कुछ दानी सज्जनों द्वारा प्रायोजित होता है। लोग पहले से ही इसकी बुकिंग करवा देते हैं।
प्रसंगवश हरसिद्धि देवी का एक मंदिर द्वारका (सौराष्ट्र) में भी है। दोनों स्थानों (उज्जयिनी तथा द्वारका) पर देवी की मूर्तियाँ एक जैसी हैं। इंदौर से 80 किलोमीटर दूर पुणे मार्ग पर स्थित उज्जैन प्राचीन काल से ही तीर्थस्थल रहा है। यहाँ का महाकालेश्वर मंदिर (ज्योतिर्लिंग) तथा बड़ा गणेश मंदिर, चिंतामणि गणेश मंदिर आदि दर्शनीय हैं।

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