गुजरात ; फंसी बीजेपी को मोदी का ही आसरा

गुजरात का आक्रोश है#बीजेपी के भरत भाई मोदी ने राहुल गांधी के मंच पर जाकर बीजेपी खेमे में खलबली मचा दी है. #ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर ; बीजेपी जीतेगी ही नहीं। कांग्रेस 125 सीटें जीतेगी #मछुआरों ने इस बार बीजेपी के बजाए कांग्रेस को ही वोट देने की बात कही# बीजेपी को लेकर इनके भीतर की नाराजगी राहुल पर भरोसे के तौर पर सामने आ रही है# मछुआरों के भीतर राहुल गांधी की एक झलक पाने की होड़ लगी थी#युवा, बुजुर्ग और महिला सभी राहुल गांधी को लेकर काफी उत्साहित दिखे# भरत भाई मोदी लंबे समय से बीजेपी से जुड़े रहे हैं लेकिन इस बार वो राहुल गांधी से प्रभावित दिख रहे हैं #पटेलों में अभी भी नाराजगी है.# www.himalayauk.org (HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND) Available in FB, Twitter & whatsup App Groups & All Social Media. 

फंसी बीजेपी को मोदी का ही आसरा- मोदी के आने से लोगों के मन में ठीक उसी तरह से परिवर्तन हो जाएगा जैसे पहले इंदिरा गांधी के वक्त में हुआ करता था.

पूरे गुजरात में पटेलों का प्रतिशत 14 फीसदी है. इनमें से सौराष्ट्र की 54 सीटों में अधिकांश सीटों पर पटेलों का प्रभुत्व है. बीजेपी को लग रहा है कि मोदी जी की रैली जब होगी तो सबकुछ बदल जाएगा.  मोदी जी को मैदान में उतरने दीजिए फिर सब ठीक हो जाएगा. बीजेपी के नेताओ की एक ही रट है कि ‘मोदी जी को आने दीजिए रैली के बाद सब ठीक हो जाएगा. ‘ना भाजप छे, ना कांग्रेस छे, सब कुछ मोदी के चेहरे पर निर्भर छे.’   29 नवंबर को प्रधानमंत्री पाटीदारों के गढ़ मोरवी में रैली करेंगे, फिर सोमनाथ, भावनगर के पाली और दक्षिणी गुजरात के नवसारी में मोदी का चुनावी भाषण होगा. बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं के भीतर मोदी के नाम पर भरोसा है. उनकी आखिरी उम्मीद मोदी पर ही जा टिकती है. हर सवाल का आखिरी जवाब भी मोदी ही हैं. 2002 से ही गुजरात में हर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मोदी के समर्थन और विरोध के इर्द गिर्द ही चुनाव जा टिकता है. बीजेपी को लग रहा है 27 नवंबर से मोदी की चुनावी रैली की शुरुआत के साथ ही मोदी फैक्टर के सामने हार्दिक पटेल का फैक्टर खत्म हो जाएगा. मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को भी राज्य के मुखिया होने के बावजूद अपने से ज्यादा मोदी पर ही भरोसा है.  मोदी के आने से लोगों के मन में ठीक उसी तरह से परिवर्तन हो जाएगा जैसे पहले इंदिरा गांधी के वक्त में हुआ करता था.

लेकिन, इस बार कहानी थोड़ी अलग है. 

गुजरात के युवा ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए हैं। माना जाता है कि अल्पेश की अपनी समाज में काफी पकड़ है और कुछ सीटों पर अल्पेश का होना कांग्रेस के लिए काफी फायदेमंद और निर्णायक हो सकता है। अल्पेश का कांग्रेस में शामिल होना गुजरात चुनाव के लिहाज से राष्ट्रीय मीडिया के लिए भी बड़ी खबर थी। अल्पेश ठाकोर ने कहा कि सरकार को गरीबों की भाषा कभी समझ में आती ही नहीं, मुझे कहा गया था कि बीजेपी का खेस (पट्टा) पहन लो, बाद में कुछ करेंगे। उन्‍होने कहा कि सरकार बनेगी तो नया कानून बनाएंगे। कम से कम हम जिसे कहेंगे, उसे गृहमंत्री बनाया जाएगा, जिससे ये काम कर सकेंगे। अल्पेश ठाकोर ने कहा कि हार्दिक और हमारे बीच कम्युनिकेशन अच्छा है। हम सहजता से बात करते हैं। हमारा गुनाह बस इतना है कि हम गरीबों की बात करते हैं।

::भरत भाई मोदी ने ही राहुल गांधी के सामने अपनी मांग रखी- दूरगामी असर
राहुल की रैली के दौरान पोरबंदर में सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की हो रही थी कि मछुआरा समाज की तरफ से राहुल गांधी के साथ मंच साझा करने वाला तो बीजेपी का कार्यकर्ता है. यहां तक कि खुद राहुल गांधी ने भी मंच से इस मुद्दे को हवा दे दी. राहुल ने कह दिया कि ‘बीजेपी का कार्यकर्ता भी कांग्रेस से डिमांड कर रहा है. हम इसे मानेंगे क्योंकि गुजरात में कांग्रेस की सरकार आ रही है.’ मछुआरा समाज के कार्यक्रम के आयोजन में समाज की तरफ से पोरबंदर माछीमार बोट एसोसिएशन के अध्यक्ष भरत भाई मोदी ने ही राहुल गांधी के सामने अपना पक्ष रखा. भरत भाई मोदी लंबे वक्त से बीजेपी से जुड़े रहे हैं.बोट एसोसिएशन के अध्यक्ष भरत मोदी का कहना है, ‘पहले यह समस्या नहीं थी. लेकिन, इसकी शुरुआत 90 के दशक में शुरु हो गई जब प्रदूषण के चलते मछली किनारे नहीं आती. मजबूरन हमें फिशिंग के लिए समुद्र में दूर जाना पड़ता है’. भरत मोदी कहते हैं कि ‘पाकिस्तान की सीमा नजदीक होने के चलते मछुआरे भटक जाते हैं और गलती से अगर उधर चले जाते हैं तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है.’ इससे पहले वो बीजेपी के पोरबंदर जिले के महामंत्री भी रह चुके हैं. ऐसे में चुनावी माहौल में राहुल गांधी के मंच पर उनके जाने से हवा के रुख का अंदाजा लग सकता है.
भरत मोदी का कहना था कि ‘हम बीजेपी के साथ हैं लेकिन, जब बात समाज की आती है तो हम समाज के साथ रहेंगे. इसके लिए राहुल गांधी तो क्या हमें पाकिस्तान भी जाकर बात करनी पड़े तो करेंगे.’ इस बार पोरबंरदर के तट पर बसे मछुआरों में रोष का माहौल देखने को मिल रहा है. भरत मोदी का राहुल के मंच पर जाना उसी रोष का प्रतीक बन गया है. राहुल की रैली के दौरान उनके भाषण को गौर से सुन रहे गोविंद भाई खारवा का कहना था कि ‘मेरी मां है, बीवी है और चार बच्चे हैं लेकिन, हमारा सहारा तो बस नाव ही है. लेकिन पिछली बार जो वादा बीजेपी ने किया था वो पूरा ही नहीं किया.’ मछुआरे नाराज हैं. ड्रेगिंग यानी समुद्र के किनारे वाले इलाके में पानी की सफाई कराने के लिए मछुआरों ने खुद अपनी जेब से बीस लाख रुपए खर्च किए हैं. पोरबंदर विधानसभा क्षेत्र में 30 हजार से ज्यादा मछुआरा वोटर हैं जो निर्णायक भूमिका में माने जाते हैं.

 
अल्पेश ठाकोर ने कहा कि हमने बहुचराजी से अहमदाबाद तक बेरोजगार रैली निकाली। पूरी रैली शांतिपूर्ण थी, यह सरकार को अच्छा नहीं लगा। हमने गुजरात में जातियों को बंटने नहीं दिया। यदि नौकरी मांगने जाएं तो कहते हैं कि रोजगार मांगने यहां नहीं आओ। तो आखिर युवा कहां जाएं? इस सवाल का जवाब किसी नेता के पास नहीं है। बीजेपी का कोई नेता यह नहीं बता रहा कि इस दौरान कितने रोजगार पैदा हुए।
अल्पेश ठाकोर ने कहा कि बीजेपी जीतेगी ही नहीं। कांग्रेस 125 सीटें जीतेगी। यह चुनाव विकास और जातिवाद के बीच लड़ाई है? रोजगार मांगना, शराबबंदी की मांग करना जातिवाद है? बीजेपी इसे जातिवाद का मोहरा बनाना चाहती है। यह जातिवाद नहीं, गुजरात का आक्रोश है।

कौन हैं अल्पेश ठाकोर?
– ठाकोर ओबीसी, एससी-एसटी एकता मंच और ठाकोर क्षत्रिय सेना के फाउंडर हैं। अल्पेश ने पाटीदार आरक्षण आंदोलन का विरोध किया था। जब हार्दिक पटेल ने 2015 में पाटीदारों को सरकारी नौकरियों और एजुकेशन में OBC के तय कोटे के तहत रिजर्वेशन देने के लिए आंदोलन शुरू किया तो ठाकोर ने भी उनके जवाब में ओबीसी, एससी और एसटी कम्युनिटी के लिए आंदोलन शुरू कर दिया। इसी साल जुलाई में ठाकोर की अगुआई में गुजरात के किसानों ने कर्ज माफी की मांग करते हुए हाईवेज पर कई लीटर दूध बहा दिया था। एक साल पहले ठाकोर की अगुआई में अवैध शराब कारोबार के खिलाफ भी आंदोलन चला था। ठाकोर राज्य में बाबा साहेब अंबेडकर की भव्य प्रतिमा लगवाने के लिए भी आंदोलन कर चुके हैं।

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