गुजरात चुनाव नई इबारत लिखेगा

Top Execlusive Story; गुजरात चुनाव नई इबारत लिखेगा
2017 का विधानसभा चुनाव इस मामले में कोई नई इबारत लिखेगा; वही बीजेपी हिली हुई तो जरूर है. राहुल गांधी ने कहा है कि गुजरात चुनाव के दिन बीजेपी को करंट लगने वाला है. पहली बार गुजरात में ऐसा लग रहा है कि समाज के किसी भी भाग में खुशी नहीं है. जहां भी देखो पूरे समाज में दुख है, मुश्किल है और गुजरात में हर समाज कठनाई में है. पूरे गुजरात में आंदोलन हो रहे हैं. गुजरात के पांच बड़े उद्योगपती बेहद खुश हैं, वो पीएम, सीएम और मोदी सरकार का पूरा समर्थन कर रहे हैं.- by; www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal) 

बीजेपी का गुजरात में धार्मिक ध्रुवीकरण का किला ध्‍वस्‍त हो सकेगा, शिक्षा, स्वास्थ्य, जनसुविधाओं में ऐसी स्थिति के बावजूद बीजेपी वहां लगातार चुनाव जीत रही है. कांग्रेस इन मुद्दों को मतदाताओं के एजेंडे में स्थापित नहीं कर पा रही है. राममंदिर आंदोलन के बाद बीजेपी ने गुजरात में जो धार्मिक ध्रुवीकरण किया है, उसके आगे शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी सुविधाएं जैसे मुद्दे गौण हैं और जनता बीजेपी के धार्मिक एजेंडे को बाकी तमाम चीजों से ऊपर मानकर उसे लगातार जिता रही है. खासकर गोधरा ट्रेन हादसे और उसके बाद हुए भीषण दंगों ने गुजरात की राजनीति को निर्णायक रूप से बदल दिया है. कांग्रेस को पिछले तमाम विधानसभा चुनाव में इसकी कोई सफल काट नहीं मिल पाई है.

कांग्रेस सरकार के कामकाज की समीक्षा कर रही है और बता रही है कि सरकार किन मोर्चों पर निकम्मी साबित हुई है. वही कांग्रेस कतई नहीं चाहेगी कि उस पर मुस्लिम तुष्टीकरण जैसा कोई आरोप लगे और दूसरी तरफ बीजेपी हिंदू समीकरण बना ले. कांग्रेस की गुजरात की राजनीति तीन मुख्य बिंदुओं पर टिकी है. ये बिंदु हैं- एंटी इनकंबेंसी, मुस्लिम मुद्दों से दूरी और जाति समीकरण की नई बिसात.

कांग्रेस इस बार गुजरात में एंटी इनकंबेंसी पर बहुत बड़ा दांव खेल रही है. कांग्रेस का मानना है कि लगातार सरकार में रहने के कारण बीजेपी ने गुजरात के मतदाताओं के बीच कई तरह के असंतोष पैदा कर दिए हैं. स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा और मानव विकास के मापदंडों पर गुजरात के पिछले तीन दशक की कोई उपलब्धि ऐसी नहीं है, जिसका गर्व बीजेपी कर सके.
मिसाल के तौर पर यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि गुजरात के 41 फीसदी से ज्यादा बच्चों के शरीर का उतना विकास नहीं हो पाता, जितना होना चाहिए. राष्ट्रीय औसत 38 फीसदी है. उच्च शिक्षा में एनरोलमेंट का गुजरात का आंकड़ा 19.5 फीसदी है, जो राष्ट्रीय औसत 22.3 से कम है. गुजरात जैसे आर्थिक रूप से आगे बढ़े हुए राज्य में कोई भी उम्मीद कर सकता है कि शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में तरक्की के तमाम संकेत मिलेंगे. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया है. तमाम संकेत गुजरात की धूमिल तस्वीर ही पेश करते हैं.
गुजरात के विधानसभा चुनाव को 2019 के आम चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है. यह एक मायने में सही भी है. नरेंद्र मोदी और बीजेपी के भारत की केंद्रीय सत्ता में आने का रास्ता 2014 में गुजरात के रास्ते से ही खुला था. बीजेपी ने यह करिश्मा एक और गुजराती नेता अमित शाह की अध्यक्षता में पूरा किया था.
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और नरेंद्र मोदी ने ‘गुजरात मॉडल’ को एक ब्रैंड के तौर पर पेश किया और भारतीय वोटर ने इस ब्रैंड को जमकर सराहा और इसे तबियत से खरीद भी लिया. बीजेपी की बहुमत की सरकार बन गई.
2014 के साढ़े तीन साल बाद गुजरात में एक बार फिर महासमर छिड़ा है और इस बार बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए दांव बहुत बड़ा है. कांग्रेस ने 1985 में आखिरी बार विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी, जब कांग्रेस को विधानसभा में 149 सीटें मिली थीं. गुजरात विधानसभा में 182 सीटें हैं. इसके बाद से अरसा बीत गया, लेकिन कांग्रेस के हिस्से में गुजरात से कोई अच्छी खबर नहीं आई.

खासकर 1998 के बाद से तो प्रदेश में बीजेपी का राज बिना किसी बाधा के निरंतर चल रहा है और इस दौरान नरेंद्र मोदी का लंबा कार्यकाल भी रहा, जिसपर सवारी करते हुए उन्होंने भारत की राजनीतिक तकदीर और तस्वीर बदल दी.
कांग्रेस को लगभग 30 साल से गुजरात में एक जिताऊ समीकरण की तलाश है. इस बार कांग्रेस ने ओबीसी नेता अशोक गहलोत को गुजरात के प्रभारी बनाकर एक नई राजनीति का संकेत दिया है. अब वह राजनीति और रणनीति कसौटी पर कसी जा रही है.

बीजेपी और कांग्रेस दोनों का ध्यान इन दो वोटिंग ब्लॉक को रिझाने पर है. बीजेपी ने पाटीदारों के सबसे प्रमुख धार्मिक केंद्र ऊंझा के उमिया देवी मंदिर को चुनाव से ठीक पहले पौने नौ करोड़ रुपए देने की घोषणा करते दिखा दिया है कि पटेल वोट उसके लिए कितना महत्वपूर्ण है. पटेल इस समय बीजेपी से बहुत खुश नहीं हैं. सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण हासिल करने की पटेलों की उम्मीदों को बीजेपी ने पूरा नहीं किया है. बल्कि इस मांग को उठाने वाले एक दर्जन से ज्यादा पटेल युवक आरक्षण आंदोलन के दौरान मारे गए और पटेल नेताओं पर दमन चक्र भी चला. हार्दिक पटेल उस नाराज गुजराती अस्मिता के प्रतीक हैं.
अभी यह कहना मुश्किल है कि हार्दिक पटेल को बीजेपी से जितनी शिकायत है, क्या उतनी ही शिकायत तमाम पटेलों को बीजेपी से है. बहरहाल पटेल वोट को लेकर बीजेपी हिली हुई तो जरूर है.
राहुल गांधी को शायद लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी कर देश को सन्न कर देने वाले फैसले के एक साल बाद यह मुद्दा हिमाचल प्रदेश और गुजरात असेंबली इलेक्शंस में कांग्रेस को जीत दिलाने वाला फॉर्म्यूला साबित होगा.
अगर वह हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को बरकरार रखने में कायम होते हैं और गुजरात से बीजेपी को सत्ता से बाहर कर पाते हैं तो वह खुद को एक लीडर के तौर पर स्थापित कर पाएंगे और 2019 में मोदी को चुनौती देने की हैसियत में होंगे. गुजरात चुनाव के नतीजे राजनीति और मीडिया की भविष्य की बहस की शक्ल तय करेंगे. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए इन चुनावों की कितनी बड़ी अहमियत है. ऐसा इस वजह से भी है क्योंकि गुजरात पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का गृह राज्य है. बीजेपी ने गुजरात में 1995 से कोई इलेक्शन नहीं हारा है.
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