अहमद पटेल को हराने के लिए बाघेला का बडा दांव

वाघेला के लिए राज्यसभा का ये चुनाव अस्तित्व का चुनाव भी है, क्योंकि वे पहले ही बीजेपी छोड़ कांग्रेस में आए हैं और वे कांग्रेस से अपना इस्तीफा भी दे चुके हैं। कांग्रेस आलाकमान से नाराज शंकर सिंह वाघेला ने राज्यसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के सबसे बड़े रणनीतिकार अहमद पटेल को हराने के लिए जो दांव चला, अगर वो दांव कारगर हो गया तो फिर गुजरात की सियासत में वाघेला का कद एक बार फिर काफी बड़ा हो जाएगा.

अगर वाघेला अपने मकसद में कामयाब हो गए तो आने वाले दिनों में कांग्रेस के लिए विधानसभा चुनाव से पहले अपने विधायकों की भगदड़ को रोक पाना मुश्किल होगा. गुजरात राज्य सभा के लिए 176 विधायकों को वोट देना है। एक सीट जीतने के लिए कम से कम 45 विधायकों के वोट की जरूरत होगी।

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बुने सियासी तानेबाने का ही नतीजा है कि शंकर सिंह वाघेला इस वक्त बीजेपी के करीब होते दिख रहे हैं. भले ही खुलकर बीजेपी के साथ ना खड़े हों, लेकिन, उनकी नीयत कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने की है. 21 जुलाई को वाघेला ने अपने 77वें जन्मदिन पर 20 सालों के बाद कांग्रेस छोड़ दिया था। वाघेला के इस्तीफे से पहले ही कांग्रेस के लिए तभी खतरे की घंटी बज गई जब उसे पता चला कि 17 अगस्त को हुए राष्ट्रपति चुनाव में गुजरात कांग्रेस के 57 विधायकों में से आठ ने एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को वोट दिया था। राज्यसभा चुनाव से ठीक एक दिन पहले गुजरात कांग्रेस के 44 विधायक वापस अपने गृह-राज्य पहुंच गए हैं. लेकिन, अपनी घर वापसी के बावजूद ये विधायक अपने घर नहीं जा पा रहे हैं..
गुजरात की तीन राज्य सभा सीटों के लिए मंगलवार (आठ अगस्त) को चुनाव होना है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल और पूर्व कांग्रेसी नेता बलवंत सिंह राजपूत चुनावी मैदान में हैं। तीन सीटों के लिए चार उम्मीदवार होने से ये चुनाव कांटे को गया है। इस चुनाव में हाल ही में कांग्रेस छोड़ने वाले वरिष्ठ नेता शंकर सिंह वाघेला की भूमिका काफी अहम हो गई है। 77 वर्षीय वाघेला कांग्रेस छोड़ने से पहले तक गुजरात विधान सभा में नेता विपक्ष थे। गुजरात की राजनीति को करीब से न जानने वाले बहुत से लोगों को लगता है कि वाघेला के दिन लद चुके हैं लेकिन ये सच नहीं है। मंगलवार को अगर कोई एक नेता पासा पलटने की ताकत रखता है तो वो हैं शंकर सिंह वाघेला। मजेदार बात ये है कि इस समय वाघेला न तो कांग्रेस में हैं और न ही बीजेपी में।
राज्यसभा चुनाव से पहले गुजरात में राजनीतिक पारा गर्म है. कांग्रेस के सभी 44 विधायक अहमदाबाद लौट आए है. ये सभी विधायक पिछले कई दिनों से कर्नाटक के बेंगलूरु में एक रिसॉर्ट में रह रहे थे. अहमदाबाद पहुंचने के साथ ही इन सभी विधायकों को बस में बिठाकर आणंद के नीरजानंद रिजॉर्ट के लिए रवाना कर दिया गया.
बताया जा रहा है कि सभी विधायक मंगलवार को राज्यसभा चुनाव के लिए होने वाले मतदान तक इसी रिजॉर्ट में रहेंगे. कांग्रेस ने अपने इन विधायकों को टूट से बचाने के लिए बेंगलुरू भेजा था, जहां वो इगलटन रिजॉर्ट में रह रहे थे.

कांग्रेस को डर है कि आठ अगस्त को होने वाली वोटिंग से पहले कभी भी खेल खराब ना हो जाए. लिहाजा वोटिंग के दिन सुबह-सुबह कांग्रेसी विधायक गांधीनगर के लिए प्रस्थान करेंगे. कांग्रेस के मुख्य सचेतक शैलेश परमार ने आणंद में संवाददाताओं से कहा, हमारे सभी विधायक वापस लौट आये हैं और आणंद के एक रिसॉर्ट में रूके हुए हैं. हवाईअड्डे से सभी विधायकों को सीधा निजाणंद नामक रिसॉर्ट में ले जाया गया है.
रक्षा बंधन के त्योहार के बावजूद घर जाने के बजाए इन्हें निगरानी में ही रखा गया है. डर है कहीं विरोधियों की तरफ से दिए जा रहे लॉलीपॉप को देखकर इन सबका हृदय परिवर्तन ना हो जाए. डर है ये विधायक विरोधी खेमे के संपर्क में आ गए तो फिर बेंगलुरु-प्रवास का पूरा का पूरा प्लान एक झटके में टांय-टांय फिस्स हो जाएगा. अब इसी डर ने इन विधायकों को एक रात और रिसार्ट में गुजारने पर मजबूर कर दिया है. फर्क सिर्फ इतना है कि वोटिंग के पहले की आखिरी रात बेंगलुरु के रिसार्ट में नहीं बल्कि गुजरात के आणंद जिले की रिसार्ट में कटेगी.
इस बार गुजरात में राज्यसभा की तीन सीटों के लिए वोटिंग हो रही है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का राज्यसभा पहुंचना तय है. लेकिन, असली लड़ाई तीसरी सीट को लेकर है. इस सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता और सोनिया गांधी के राजनैतिक सलाहकार अहमद पटेल मैदान में हैं.
लेकिन, कांग्रेस के बागी नेता शंकर सिंह वाघेला ने उनके लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के गुजरात में क्लीन स्वीप की रणनीति के तहत राज्यसभा की तीसरी सीट के लिए बलवंत सिंह राजपूत को मैदान में उतारा गया है. बलवंत सिंह शंकर सिंह वाघेला के समधी हैं. अब अपने समधी को जिताने की वाघेला की कोशिश अहमद पटेल को परेशान कर रही है.
बलवंत सिंह के उम्मीदवार बनने के बाद से ही गुजरात कांग्रेस के 6 विधायकों ने अपनी सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. इनमें से तीन ने तो सीधे बीजेपी का दामन भी थाम लिया है. कांग्रेस के 57 में से 6 विधायकों के इस्तीफे के बाद अब उसके पास 51 विधायक बचे हैं.
इ़न 51 विधायकों में से महज 44 ही इस वक्त कांग्रेस की निगरानी में हैं जिन्हें आणंद जिले के रिसार्ट में लाया गया है. कांग्रेस को डर है कि कहीं इन 44 में से भी कुछ विधायक खिसक गए या पाला बदल कर वोट कर दिया तो फिर अमहद पटेल का फिर से राज्यसभा जाना मुश्किल हो जाएगा.

अहमद पटेल को राज्यसभा चुनाव में जीत के लिए 45 मतों की जरुरत है. कांग्रेस का दावा है कि 44 विधायकों के अलावा एनसीपी के दो विधायक उसका साथ देंगे और वो आसानी से जीत का आंकड़ा छू लेगी. कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने कहा है कि हमें अपनी जीत को लेकर विश्वास है. सभी विधायक हमारे साथ हैं.

वाघेला का राजनीतिक जीवन की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनसंघ से हुई थी। वो पहली बार 1977 में सांसद बने थे। वो भारतीय लोक दल के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़े थे। भारतीय लोक दल जनसंघ समेत सात दलों का गठबंधन था जो इंदिरा गांधी के खिलाफ एकजुट हुई थीं। 1985 में वो बीजेपी के राज्य सभा सदस्य बने। लेकिन जब बीजेपी गुजरात में सत्ता में आई तो वाघेला मुख्यमंत्री न बनाए जाने से रुष्ट थे। वाघेला ने 1995 में बीजेपी में दो फाड़ कर दिए थे। वो पार्टी के 55 विधायकों को लेकर मध्य प्रदेश चले गए थे। उस समय मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार थी। वाघेला ने राष्ट्रीय जनता पार्टी (आरएसपी) बनाकर कांग्रेस की मदद से सरकार बना ली थी हालांकि उसके बाद वो दोबारा कभी गुजरात की सत्ता में वापस नहीं आ सके।

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