पूर्णिमा दिवस को गुरु पूर्णिमा –  9 जुलाई –

 हिंदी पंचांग के अनुसार पूर्णिमा मास की 15 वी और शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि होती है और इस दिन चन्द्रमा आकाश में पूरा दिखाई देता है इस दिन को पुराणों के अनुसार बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है आषाढ़ पूर्णिमा का दिन आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष में आता है अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 2017 में यह 9 जुलाई को मनाया जायेगा | संस्कृत में “गुरु” शब्द का अनुवाद “अंधेरे के विद्वान” के रूप में किया गया है। इसलिए गुरु अज्ञानी के अंधेरे को दूर करते हैं और प्रबुद्धता के पथ पर उम्मीदवारों की ओर जाता है। गुरु पूर्णिमा का दिन परंपरागत रूप से ऐसा समय होता है जब साधक गुरु को उनके आभार और उनके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। गुरु पूर्णिमा भी योग साधना और ध्यान अभ्यास करने के लिए एक विशेष रूप से लाभकारी दिन माना जाता है।

आषाढ़ महीना (जुलाई-अगस्त) में पूर्णिमा दिवस को गुरु पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है। यह पवित्र दिन शिव से योग विज्ञान का पहला प्रसारण – आदियोगी या प्रथम योगी – सप्तर्षि को, सात मनाया ऋषियों को दर्शाता है। यह महत्वपूर्ण अवसर कन्तेसरोवर झील के तट पर हुआ, जो कि हिमालय के केदारनाथ मंदिर से कुछ किलोमीटर ऊपर स्थित है। इस प्रकार, आदियोगी इस दिन आदि गुरु या प्रथम गुरु बन गया। सप्तर्षि ने दुनिया भर में एडियोगी द्वारा प्रस्तुत जानबूझकर यह जानकारी दी थी।

गुरु पूर्णिमा क इस दिन गुरु पूजा का विधान है। वैसे तो देश भर में एक से बड़े एक अनेक विद्वान हुए हैं, परंतु उनमें महर्षि वेद व्यास, जो चारों वेदों के प्रथम व्याख्याता थे, उनका पूजन आज के दिन किया जाता है। वेदों का ज्ञान देने वाले व्यासजी ही हैं, अतः वे हमारे आदिगुरु हुए। इसीलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये मंत्र से पूजा का संकल्प ले तत्पश्चात दसों दिशाओं में अक्षत छोड़ना चाहिए। फिर व्यासजी, ब्रह्माजी, शुकदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम, मंत्र से पूजा का आवाहन करना चाहिए।
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।
यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे।[2]
शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरु’ कहा जाता है।
“अज्ञान तिमिरांधश्च ज्ञानांजन शलाकया,चक्षुन्मीलितम तस्मै श्री गुरुवै नमः “
गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। [क] बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है।
भारत भर में गुरू पूर्णिमा का पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है। प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। पारंपरिक रूप से शिक्षा देने वाले विद्यालयों में, संगीत और कला के विद्यार्थियों में आज भी यह दिन गुरू को सम्मानित करने का होता है। मन्दिरों में पूजा होती है, पवित्र नदियों में स्नान होते हैं, जगह जगह भंडारे होते हैं और मेले लगते हैं।

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