सुदामा की वह कौन सी स्तुति- जिससे भगवान अपने दुर्लभ रूप के दर्शन देने के लिए विवश हो गए

सुदामा की वह कौन सी स्तुति –जिससे भगवान अपने दुर्लभ रूप के दर्शन देने के लिए विवश हो गए ? He Bhaktbrindon ke praan pyare Namami Radhe Namami Krishnam Presented by Chandra Shekhar Joshi- Editor

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आद्या  शक्ति स्वरूपाय परमाह्लदकारिणी , समश्लिष्टम् उभयरूपम् राधा कृष्णम नमाम्यहम 

हे भक्तवृंदो के प्राण प्यारे ,नमामि राधे नमामि कृष्णम। 
हे भक्तवृंदो के प्राण प्यारे ,नमामि राधे नमामि कृष्णम। 

तुम्ही हो माता पिता हमारे ,
तुम्ही हो माता पिता हमारे,
नमी राधे नमामि कृष्णम। 
हे भक्तवृंदो के प्राण प्यारे ,नमामि राधे नमामि कृष्णम। 

आदिशक्ति श्री राधे रानी ,
जय जग जननी जय कल्याणी। 
युगल मूर्ति श्री राधे कृष्णा ,
 दर्शन करात मिटे नहीं तृष्णा। 

दोनों हैं दोनों के नैन – तारे 
दोनों हैं दोनों के नैन – तारे ,
नमामि राधे नमामि कृष्णम। 
हे भक्तवृंदो के प्राण प्यारे ,नमामि राधे नमामि कृष्णम।

सुर मुनि कितने स्वप्ना संजोते , 
योगी जप तप  कर युग खोते ।  
तब जाकर इस युगल मूर्ति के,
बाल रूप में दर्शन होते। 

यह श्रिष्टि साड़ी यही पुकारे ,
यह श्रिष्टि साड़ी यही पुकारे ,
 नमामि राधे नमामि कृष्णम। 
हे भक्तवृंदो के प्राण प्यारे ,नमामि राधे नमामि कृष्णम।

तुम्ही हो माता पिता हमारे ,
तुम्ही हो माता पिता हमारे,
नमी राधे नमामि कृष्णम। 
हे भक्तवृंदो के प्राण प्यारे ,नमामि राधे नमामि कृष्णम।
हे भक्तवृंदो के प्राण प्यारे ,नमामि राधे नमामि कृष्णम।

श्रीहरि कहते है-  पूर्व जन्‍म के भोग बाकी रह जाते है, बचे हुए दुख, सुखो  को भोगना बाकी है, कर्म फलो के भोग समाप्‍त होने पर शरीर का त्‍याग करना पडेगा, तब शास्‍वत शांति प्राप्‍त हो जायेगी, परन्‍तु जब तक कर्म फल भोगना है तब तक शरीर रखना होगा, जो माया के आधीन होगा,ईश्‍वर के दूर होते ही शरीर माया के अधिकार हो जायेगा

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