हिमालय  देखने मात्र से पाप विलुप्त ; स्कन्द पुराण के मानस खण्ड 

 हिमालय का ही तो वरदान है- जो  आज दुनियां को प्रभावित करने वाली शख्सिययत बने :हिमालय  देखने मात्र से पाप विलुप्त ; स्कन्द पुराण के मानस खण्ड 

सौ वर्ष में भी हिमालय की गरिमा का वर्णन नही किया जा सकता, जिस प्रकार प्रात- कालीन सूर्य की किरणों से ओस बिन्दु वाष्पिंत हो जाता है उसी प्रकार हिमालय देखने मात्र से मानव जाति के पाप विलुप्त हो जाते हैं- यह स्कन्द पुराण के मानस खण्ड में लिखा गया है- इन पंक्तियों को अगर किसी ने अपने जीवन में उतारा है तो वह है मीडिया की सबसे बडी शख्सियत प्रणव रॉय- जिनके मन में हिमालय के प्रति अगाध श्रद्वा व विश्वास है- यह बहुत राज का विषय भी है कि उनका हिमालय से गहरा संबंध है- इसे स्वयं प्रणव राय ने स्वीकारा है- देखा जाए तो हिमालय के प्रति अगाध श्रद्वा व विश्वास रखने वाले प्रणव राय व नरेन्द्रं मोदी आज दुनियां को प्रभावित करने वाली शख्सिययत बन चुके हैं- यह हिमालय का ही तो वरदान है- जो इनको मिला- चन्द्रशेखर जोशी द्वारा ——

हिमालय की महिमा युग-युगों से गाई गई

किसी व्यक्ति के अडिग होने की तुलना हिमालय से की जाती है। उस हिमालय से जो अपने जन्म से ही गतिशील रहा है। 6.5 करोड़ वर्ष की आयु के बावजूद हिमालय दुनिया के युवा पहाड़ों में गिना जाता है। यह ‘वाटर टावर’ पूरे एशिया को पानी देता है। पूरे भारतीय उप महाद्वीप की साइबेरिया की ठंडी हवाओं और चीन, मंगोलिया जैसे उत्तरी आक्रमणकारियों से सुरक्षा के साथ ही यहां मानसून के जरिये अच्छी वष्रा कराकर मिट्टी में सोना उगा देता है। इसकी जैव विविधता का कोई सानी नहीं है।

हिमालय की महिमा युग-युगों से गाई गई है। महाकवि कालीदास ने अपनी कालजयी रचना कुमारसंभव में इसे नगाधिराज यानी पर्वतों का राजा बताया है। कुमाऊं विवि के विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो. चारु चंद्र पंत बताते हैं कि हिमालय का जन्म तत्कालीन टेंथिस सागर में 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व एशियाई एवं भारतीय टेक्टोनिक प्लेट के टकराव से हुआ। भारतीय प्लेट आज भी हर वर्ष 55 मिमी प्रति वर्ष की दर से उत्तर की ओर गतिमान है। लिहाजा इसमें तीन स्तरों टेंथियन हिमालय, ट्रांस हिमालय, उच्च हिमालय, मध्य हिमालय एवं सब हिमालय यानी शिवालिक के बीच क्रमश: आईटीएसजेड, एमसीटी यानी मेन सेंट्रल थ्रस्ट एमबीटी यानी मेन बाउंड्री थ्रस्ट के आसपास धरती की सतह पर भूस्खलन, भूकंप आदि के बड़े खतरे विद्यमान हैं। ये सभी थ्रस्त अरुणाचल से कश्मीर तक जाते हैं, और उत्तराखंड में ये सभी मौजूद हैं। गतिशीलता के कारण एक ओर पहाड़ ऊंचे उठते जा रहे हैं, वहीं पानी इसके ठीक उलट अपने प्राकृतिक प्रवाह के जरिये पहाड़ों को काटकर सागर में बहाकर ले जाने पर आमादा है। इसके बावजूद हिमालय हिमालयकी तरह ही सीना तान कर हर तरह के खतरे को झेलने को तैयार रहता है। प्रो. पंत हिमालय की भूमिका पर कहते हैं कि यदि हिमालय होता तो भारतीय उप महाद्वीप में मानसून ही होता। साथ ही साइबेरिया की ठंडी हवाएं यहां भी पहुंचतीं और यहां जीवन अत्यधिक कठिन होता। इसी के कारण मंगोलिया चीन की ओर से कभी आक्रमणकारी इस ओर रुख नहीं कर पाये। लिहाजा हिमालय की भूमिका को समझते हुए इसके संरक्षण के लिये पूरे देश और भारतीय प्रायद्वीप के देशों को प्रयास करने चाहिए।

हिमालय का ही तो वरदान है- जो  आज दुनियां को प्रभावित करने वाली शख्सिययत बने :

नरेंद्र मोदी की उम्र 12 वर्ष थी। मोदी अपने परिवार के साथ महेसाणा जिले के वडनगर में रहा करते थे। तभी एक साधू वडनगर आया। मोदी की मां हीराबा से उस साधू ने बेटों की कुंडली मांगी। हीराबा ने मोदी के साथ उनके बड़े भाई सोमभाई की भी कुंडली दिखाई। साधू ने सोमभाई की कुंडली देखकर कहा… इसका जीवन तो सामान्य ही रहेगा, लेकिन तुम्हारे छोटे बेटे मोदी का जीवन उथल-पुथल भरा रहेगा। इसकी कुंडली में ऐसा योग है कि यह या तो एक दिन राजा बनेगा या फिर शंकराचार्य की तरह एक महान संत की सिद्धि हासिल करेगा। इसी बीच मोदी की पूजा-पाठ में भी बहुत रुचि हो गई। वे अधिकतर समय पूजा-पाठ में ही व्यतीत करने लगे तो परिजन को चिंता होने लगी कि कहीं ये सचमुच में ही साधू न बन जाए। मोदी को सभी ने बहुत समझाया, लेकिन उनके दिमाग से साधू बनने की बात निकल ही नहीं रही थी। इसी के चलते परिवार ने मोदी की शादी करवा देने का फैसला लिया। उन्हें लगा कि शादी हो जाने के बाद वह परिवार में व्यस्त हो जाएगा। परिवार ने आनन-फानन में न सिर्फ मोदी की शादी के लिए वधु जशोदाबेन की तलाश कर ली, बल्कि उनके ही गांव जाकर मोदी की शादी भी कर दी। यह वह समय था, जब बड़ों के फैसलों का छोटे विरोध नहीं कर सकते थे और इस समय बाल विवाह प्रचलित था। इस समय देश में सबसे ज्यादा चर्चा का विषय मोदी द्वारा अपनी पत्नी जशोदाबेन के नाम का जिक्र करना ही है। उनकी पत्नी का नाम जशोदाबेन है। इसीलिए अब मोदी की शादी के गुजरे इतिहास के कई पन्ने खुल रहे हैं। इन सभी के बीच मोदी पर किताब लिखने वाली लेखिका कालिंदी रांदेरी ने कई बातों से पर्दा उठाया है।

शादी के बाद मोदी ने मैट्रिक की परीक्षा पास की। अब वे बड़े हो चुके थे और परिवार ने तय किया कि अब मोदी की पत्नी को घर बुला लेना चाहिए। अभी तक जशोदाबेन का गौना नहीं हुआ था और वे अपने माता-पिता के साथ ही रहा करती थीं। यह बात सुनते ही मोदी ने न कह दिया और कहा कि उन्हें वैवाहिक जीवन में कोई रुचि नहीं। वे साधू बनना चाहते हैं और इसके लिए हिमालय पर जाने की तैयारी कर रहे हैं।

परिजन मोदी को मनाते रहे, लेकिन मोदी अपनी जिद पर ही अड़े रहे। हालांकि मोदी मां हीराबेन का बहुत सम्मान करते थे। वे उनका आदेश नहीं टाल सकते थे। इसलिए उन्होंने मां से कहा कि मैं तुम्हारी मर्जी और आशीर्वाद के बगैर नहीं जा सकूंगा, लेकिन फिर भी मैं आपसे कहना चाहता हूं कि मुझे साधू बनना है। मोदी की जिद के आगे खुद मां हीराबा झुक गईं और उन्होंने मोदी को वैवाहिक बंधन से मुक्ति पाने और साधू बनने का आशीर्वाद दे दिया।

इसके बाद मोदी हिमालय की कंदराओं में जा पहुंचे और साधुओं के साथ रहने लगे। साधुओं के साथ वे ईश्वर की तलाश में दर-दर भटकते रहे। हालांकि उनकी उम्र अब भी बहुत छोटी थी, लेकिन फिर भी वे जीवन के वास्तविक अर्थ की तलाश में निकल पड़े थे। उनकी छोटी सी उम्र को देखते हुए एक साधू ने उन्हें समझाया कि ईश्वर की तलाश समाज की सेवा करके भी की जा सकती है। इसके लिए साधू बने रहने की कोई जरूरत नहीं। 

इसके बाद मोदी हिमालय से वडनगर वापस आ गए। लेकिन फिर भी उन्होंने अपना वैवाहिक जीवन शुरू नहीं किया। दरअसल वे अपने घर सिर्फ एक दिन के ही लिए आए थे। परिवार भी अब पूरी तरह समझ चुका था कि मोदी को सांसारिक जीवन में रुचि नहीं। परिजन ने उनकी पत्नी जशोदाबेन के परिजन को भी सूचना दे दी थी कि वे मोदी को वैवाहिक बंधन से मुक्ति दे दें। इसके लिए पूरे परिवार ने जशोदाबेन के परिवार से माफी मांगी। मोदी के परिजन को इस फैसले का दुख था, लेकिन मोदी अपनी जिद पर अडिग थे।

लेखिका कालिंदी रांदेरी के शब्दों में.. मैं जब मोदी की मां हीराबा से मिली तो उनकी आंखों में आंसू ही थे। उनका कहना था कि मोदी के मर्जी के खिलाफ उनकी शादी कराना जीवन की सबसे बड़ी भूल थी। हीराबा ने बताया कि मोदी के पिता को तो अंतिम समय तक इस बात का रंज रहा कि उन्होंने जबर्दस्ती मोदी पर शादी थोप दी थी। 

मोदी की बारात बैलगाड़ी में गई थी। विवाह के बाद मोदी अपने परिवार के साथ वापस घर आ गए थे। परिवार ने निश्चय किया था कि मोदी की मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद बहू का गौना करवा लिया जाएगा। लेकिन इसके बाद ही मोदी वैवाहिक बंधनों से अपने आपको मुक्त कर हिमालय की कंदराओं में जा पहुंचे। वे हिमालय से वापस आए भी तो सिर्फ एक दिन के लिए ही।

सन् 2009 में पत्रकार एमवी कामत के साथ मिलकर ‘नरेंद्र मोदी, द आर्किटेक्ट ऑफ मॉडर्न स्टेट’ नामक किताब लिखने वाली कालिंदी रांदेरी बताती हैं कि जब मैंने मोदी से उनकी किताब लिखने के बारे में बात की तो मोदी ने इच्छा जाहिर की थी कि किताब में उनके बचपन के साथ उनकी शादी के बारे में भी लिखा जाए। कालिंदी बताती हैं कि जब मैंने मोदी से उनकी शादी के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि इस बारे में आप मेरे बड़े भाई सोमभाई से बात कीजिए। वे आपको इस बारे में विस्तार से पूरी बात बताएंगे। इसके बाद कालिंदी ने सोमभाई से बात की उन्होंने खुलकर पूरी बात बताई और इस तरह यह जानकारी सामने आई। कालिंदी बताती हैं कि मोदी का पूरा परिवार उनकी शादी के बारे में खुलकर बात करता है। हालांकि सभी का यही कहना है कि मोदी पर जबर्दस्ती शादी थोपकर परिवार ने बहुत बड़ी गल्ती की थी।

इसके अलावा

प्रणॉय राय  ; ने कुछ यूं बताया अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में। 

मीडिया की दुनिया की बड़ी शख्सियत प्रणॉय राय का मसूरी से भी काफी लगाव रहा है, यहां उन्‍होंने काफी समय बिताया है, वह कहते हैं कि राधिका और मैंने कोशिश की है कि एक महीने में तीन दिन हम पहाड़ों पर बिताएं और वैसे भी हिमालय से हमारा गहरा संबंध है। यह दुर्भाग्य है कि हर महीने ऐसा नहीं हो पाता है, लेकिन यह एक सपना है जिसे पूरा करना है। मेरी केवल यही इच्छा है कि हिमालय में हमारे पास वाईफाई मोबाइल फोन्स, इंटरनेट, डीटीएच, स्मार्टफोन्स, टैबलेट्स इत्यादि न हों।

प्रणॉय राय  ने कुछ यूं बताया अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में। साथ ही अपनी पत्नी और एनडीटीवी के सह-संस्थापन राधिका रॉय के बारे में दी अपनी राय और साथ ही राजदीप सरदेसाई और अर्णब गोस्वामी को निखारने से लेकर अपनी हिमालय की यात्रा के बारे में बताया। उन्‍होंने बताया कि राधिका ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ और ‘इंडिया टुडे’ में एक प्रिंट जर्नलिस्ट थी। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में टेलिविजन का अध्ययन करने से पहले वह एनडीटीवी की संस्थापक थीं।(मैंने उसके बाद जॉइन किया)। यदि मैं एक वाक्य में कहूं तो मैं कहूंगा कि वही है जिसने एनडीटीवी को एक संस्थान के रूप में निर्मित किया। हमें उम्मीद है कि यह सौ सालों से भी ज्यादा चलेगा। शुरू से अबतक एनडीटीवी को स्थापित करने और गुणवत्ता और नैतिकता के उच्च मानदंड का प्रतिपालन जो एनडीटीवी ने हमेशा किया है- ये ऐसे काम हैं जो किसी भी महान मीडिया संस्था का मूल सिद्धांत हैं, इस सबका श्रेय उन्हीं (राधिका) को जाता है।
उच्चतम पत्रकारिता, प्रोडक्शन, और नैतिक मानकों के लिए पहचाने जाने वाली इस संस्थान को ऐसा बनाने के पीछे पिछले 25 सालों में राधिका का जुनून और उसकी प्रेरणा रही है और इस देश में मीडिया क्षेत्र के लिए उसका सबसे बड़ा योगदान रहा है।
25 सालों की यात्रा के बारे में उन्‍होंने कहा कि यह बहुत ही कठिन काम रहा है और मजेदार भी। इस साल ये 25 साल क्लाइमेक्स के तीन पॉइंट्स में एक साथ आए, पहला, सबसे बड़े शो ‘द 25 ग्रेटेस्ट लिविंग इंडियंस’के रूप में। इस शो के लिए देशभर से बड़ी संख्या में प्रतिक्रियाएं मिलीं। एनडीटीवी पर यह हम सभी के लिए सबसे बड़ा इनाम था। दूसरा, 2014 में एनडीटीवी सभी प्रक्रार की मीडिया ( प्रिंट और टेलिविजन दोनों में) में देश का सबसे भरोसेमंद ब्रैंड बन गया। तीसरा, दर्शकों की संख्या के लिहाज से यह सबसे बड़ा लीडर हो गया (देशभर के ग्रामीण और शहरी इलाकों से लिए गए अन-टैम्पर्ड सैंपल के आधार पर) और यह हमारे लिए एक और बड़ा इनाम है। 25 साल पूरे करने का इससे अच्छा क्या तरीका हो सकता है!
इस सवाल के जवाब पर कि आज आप देश में लगभग हर टेलिविजन न्यूज पर्सनैलिटी के मेंटर रह चुके हैं, इनमें से कुछ आज बड़ी भूमिका में भी है। क्या आपको इस पर गर्व होता है? आपने उन्हें क्या बातें सिखाई हैं?
प्रणॉय राय का कहना है कि सिर्फ उन्हें अच्छा काम करते देख मुझे गर्व होता है, बल्कि हम अभी भी अच्छे दोस्त हैं। हम उन्हें मिस भी करते हैं। इसमें एक बात और जोड़ दूं कि ऑनस्क्रीन वे लोग किस तरह भी नजर आते हों, लेकिन वे ऑफस्क्रीन अच्छे इंसान हैं। मुझे विश्वास है कि उनमें से हर एक में एनडीटीवी का डीएनए है। और हमारे कई महान प्रोड्यूसर और कैमरे के पीछे काम करने वाले सभी लोग (एंकर या संवाददाताओं से शायद अधिक महत्वपूर्ण) और दूसरे चैनलों के साथ काम करने वाले एंकर्स- इन सबकी बात करूं तो ईमानदारी से अभी भी सबसे बेहतर एनडीटीवी कै साथ ही है।

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