1971 से पहले के दस्‍तावेज दिखाने होगे; गृह मंत्री का बयान

एनआरसी प्रक्रिया 

संसद में मानसून सत्र चल रहा है। सदन में एनआरसी का मुद्दे पर एक बार फिर गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने बयान दिया है। संसद में बोलते हुए गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने देश में माहौल खराब करने का आरोप लगाया। राज्यसभा में बोलते हुए गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि मैं एक बार फिर कह रहा हूं कि किसी के खिलाफ कोई भी एक्शन नहीं होगा किसी भी स्थिति में। उन्होंने आगे कहा कि डर का माहौल पैदा किया जा रहा है। जिसकी मैं खुली निंदा करता हूं।

 Presented by- हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्‍तराखण्‍ड

1955 के सिटिजनशिप एक्ट के तहत केंद्र सरकार पर देश में हर परिवार और व्यक्ति की जानकारी जुटाने की जिम्मेदारी है। सिटिजनशिप एक्ट 1955 के सेक्शन 14ए में 2004 में संशोधन किया गया था, जिसके तहत हर नागरिक के लिए अपने आप को नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस यानी एनआरसी में रजिस्टर्ड कराना अनिवार्य बनाया गया था। असम और मेघालय को छोड़कर पूरे देश के लिए पॉपुलेशन रजिस्टर को 2015-16 में अपडेट किया गया था, इसके लिए आंकड़े 2011 की जनगणना के साथ ही जुटाए गए थे।  दरअसल असम में अवैध रूप से रह रहे लोग को रोकने के लिए सरकार ने नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) अभियान चलाया है, दुनिया के सबसे बड़े अभियानों में गिने जाने वाला यह कार्यक्रम डिटेक्ट, डिलीट और डिपोर्ट आधार पर है, जिसके तहत इंसान भारत का है या नहीं इसका पता लगाया जाएगा और जो लोग इसमें नहीं आएंगे उनकी पहचान पता करके उनके देश भेजा जाएगा। 

: असम के एनआरसी मुद्दे पर मचेे सियासी घमासान पर गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को संसद में जानकारी दी कि एनआरसी प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी है. उन्‍होंने साफ किया कि इस मामले में जो लोग छूट गए हैं, उनके खिलाफ अभी कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी. उन्‍होंने कहा कि यह 40 लाख परिवार नहीं हैं, बल्कि ये व्‍यक्तियोंं की संंख्‍या हैै. उन्‍होंने साफ किया कि एनआरसी में कोई भेदभाव ना तो हुआ है और ना ही किया जाएगा. उन्‍होंने यह भी कहा कि जिसे एनआरसी में नाम जुड़वाना है उसे सर्टिफिकेट पेश करना होगा. एनआरसी को लेकर हम शांति और सौहार्द बनाकर रखेंगे. 1971 से पहले के दस्‍तावेज दिखाने पर एनआरसी में नाम आ जाएगा. मामले में अनावश्‍यक डर फैलाने की कोरिश की गई है. गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि एनआरसी की प्रक्रिया 1985 में असम समझौते के जरिये तत्‍कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समय में शुरू हुई थी. इसको अपडेट करने का निर्णय 2005 में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लिया था.

राजनाथ सिंह ने कहा कि असम में एनआरसी की पूरी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में की गई थी। मैं फिर से दोहराना चाहता हूं कि ये अभी फाइनल नहीं है अभी ड्राफ्ट है। हर कोई बदलाव के लिए अपील कर सकता है। ये पूरी साफ प्रक्रिया है। अनचाहे आरोप दुर्भाग्यपूर्ण है। राज्यसभा में बोलते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स 1985 से शुरू किया गया। जब राजीव गांधी जी प्रधानमंत्री थे। इसके बाद साल 2005 में डॉक्टर मनमोहन सिंह ने इस निर्णय पर फिर से विचार किया और अपडेट किया।

उन्‍होंने कहा कि पूरी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में पूरी की गई है. उन्‍होंने कहा ‘मैं फिर दोहराना चाहता हूं कि यह अंतिम मसौदा है, अंतिम सूची नहीं है. सभी लोगों को अपील कररने का मौका मिलेगा. यह पूरी तरह पारदर्शी प्रक्रिया है.’
असम में राष्‍ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के दूसरे और अंतिम मसौदे में 40 लाख नागरिकों के अवैध होने का दावा किया गया है. इसे लेकर ममता ने बीजेपी पर निशाना साधा. उन्‍होंने इसे बीजेपी की वोट पॉलिटिक्‍स करार दिया है. उन्‍होंने मामले में सवाल भी उठाए. उन्‍होंने पूछा कि जिन 40 लाख लोगों के नाम मसौदे में शामिल नहीं किए गए हैं, वे कहां जाएंगे? क्‍या उनके लिए केंद्र सरकार ने कोई व्‍यवस्‍था की है? उन्‍होंने कहा कि अगर बीजेपी ने एनआरसी को पश्चिम बंगाल में लागू करने की कोशिश की तो इसके गंभीर परिणाम होंगे. हालांकि 2005 में ससंद में उन्‍होंने बांग्‍लादेशी घुसपैठ को गंभीर मुद्दा करार दिया था. उनके इस बदले रुख पर सियासत गर्मा गई है. बीजेपी का कहना है कि ममता अब क्‍यों एनआरसी का विरोध कर रही हैं.
एनआरसी के तहत 2 करोड़ 89 लाख 83 हजार 677 लोगों को वैध नागरिक मान लिया गया है। इस तरह से करीब 40 लाख लोग अवैध पाए गए हैं, जो अपनी नागरिकता के वैध दस्तावेज नहीं दिखा सकें हैं। जिसकों लेकर यह विवाद चल रहा है।

बीजेपी ने बनाया चुनावी मुद्दा

2014 में बीजेपी ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया और घुसपैठियों को वापस भेजने की बात कही। 2015 में कोर्ट द्वारा एनआरसी लिस्ट अपडेट करने का आदेश दे दिया गया। जिसका फायदा बाजेपी को मिला और 2016 में बीजेपी की राज्य में पहली बार सरकार बनी। जिसके बाद घुसपैठियों को वापस भेजने प्रक्रिया तेज हुई।  3 साल में राज्य के 3.29 करोड़ लोगों ने नागरिकता साबित करने कि लिए 6.5 करोड़ दस्तावेज भेजे। जिसमें लोगों को अपनी नागरिकता साबित करनी थी। इसके लिए 14 तरह के प्रमाणपत्र लगाए गए जो ये साबित कर सके कि उनका परिवार 1971 से पहले राज्य का मूल निवासी है। इसके लिए सरकार द्वारा बड़ी तादाद में रिकॉर्डस चेक किए गए।

चुनावी रणनीति के तहत प्रधानमंत्री मोदी ने हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने की बात कही थी। इसी के चलते सरकार नागरिकता संशोधन बिल पास करवाना चाहती है। घुसपैठियों में मुस्लिमों के अलावा बंग्लादेशी हिंदूओं की भी अच्छी- खासी तादाद है। आज जारी होने वाले अंतिम मसौदे को लेकर सबसे ज्यादा डरे लोगों में मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल हैं। साल 1951-1971 यानि 1971 से पहले हजारों लोग राज्य में पहुंचे हैं लेकिन इनके पास किसी तरह की कोई पहचान के कागजात नहीं हैं। ऐसे में मुस्लिम समुदाय पर तलवार लटकी हुई है। 

पश्चिम बंगाल में एनआरसी का विरोध कर रहीं राज्‍य की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी का रुख 13 साल पहले इसके उलट था. उस समय लोकसभा में वह टीएमसी से इकलौती एमपी थीं और पश्चिम बंगाल में वामपंथी सरकार थी. ममता ने लोकसभा में पश्चिम बंगाल में घुसपैठ के मुद्दे को 22 मिनट में 14 बार उठाया. लोकसभा में 4 अगस्‍त 2005 के रिकॉर्ड के अनुसार बनर्जी ने लोकसभा में कहा कि यह एक गंभीर मामला है. वोटर लिस्‍ट में भारतीयों के साथ-साथ बांग्‍लादेशियों का नाम भी शामिल है. उस समय पश्चिम बंगाल से माकपा के सांसद बासुदेव आचार्य ने उन्‍हें कई बार रोकने का प्रयास किया. माकपा संप्रग सरकार का हिस्‍सा थी. डिप्‍टी स्‍पीकर चरणजीत सिंह अटवाल ने उन्‍हें यह कहते हुए यह मुद्दा उठाने से रोक दिया था कि उनके नोटिस को नामंजूर कर दिया गया है. इस पर ममता ने डिप्‍टी स्‍पीकर की कुर्सी की ओर पेपर उछाला था.
ममता इसलिए यह मुद्दा उठाना चाहती थीं क्‍योंकि 26 जुलाई को जब विपक्ष के नेता लाल कृष्‍ण आडवाणी ने बांग्‍लादेश से भारी घुसपैठ विषय पर चर्चा के लिए स्‍थगन प्रस्‍ताव लाए थे तब ममता संसद में मौजूद नहीं थीं. यह प्रस्‍ताव सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दो हफ्ते बाद आया था. सुप्रीम कोर्ट ने घुसपैठ के मुद्दे पर ट्रिब्‍यूनल के गठन का निर्देश दिया था. लोकसभा के रिकॉर्ड के मुताबिक आडवाणी ने 26 जुलाई को कहा था कि कानून बनने के बाद भी हम अब तक किसी अवैध नागरिक को डिपोर्ट नहीं कर पाए हैं. वोट बैंक की राजनीति इस देश को खा जाएगी. सत्‍तारूढ़ दल को इस मुद्दे पर कदम उठाना होगा. पश्चिम बंगाल के मुख्‍यमंत्री इस मुद्दे की गंभीरता को समझते हैं और वह इसका समर्थन भी कर रहे हैं. उस समय पश्चिम बंगाल के मुख्‍यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य थे और ममता बनर्जी विपक्ष की नेता थीं. माकपा के बासुदेव आचार्य ने आडवाणी के प्रस्‍ताव का विरोध किया था. उन्‍होंने संसद में कहा कि आडवाणी अचानक ही यह प्रस्‍ताव लाए हैं. उनके मुताबिक सुप्रीम कोर्ट को आदेश को अक्षरश: लागू करना चाहिए. ऐसा कैसे हो सकता है. इसके बाद 4 अगस्‍त को जब ममता को बताया गया कि उनका नोटिस नामंजूर हो गया है तो बनर्जी ने सवाल उठाया. उन्‍होंने कहा-ऐसा इसलिए क्‍योंकि यह बंगाल में हो रहा है? आचार्य ने इसका विरोध किया. बनर्जी ने आचार्य से कहा कि आपकी पार्टी मुझे रिजेक्‍ट कर सकती है, लेकिन संसद में आप मुझे रिजेक्‍ट नहीं कर सकते. इंडियन एक्‍सप्रेस के मुताबिक तृणमूल कांग्रेस ने ममता के 2005 और 2018 में बदले हुए स्‍टैंड पर कोई भी प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया.

सरकार द्वारा एनआरसी यानि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स नाम का एक अभियान चलाया गया है। जिसके तहत सरकार असम में अवैध रूप से रह रहे लोगों को राज्य से बाहर किया जाना है। यह अभियान दुनिया के सबसे बड़े अभियानों में गिना जाता है। जो डिटेक्ट, डिलीट और डिपोर्ट के आधार पर काम करता है। यानि सबसे पहले अवैध रूप से रह रहे लोगों की पहचान की जाती है, उसके बाद उन्हें भारत से हटाते हुए उनके देश वापस भेज दिया जाएगा। असम में रह रहे घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए यह अभियान लगभग 37 सालों से चल रहा है। 1971 में पाकिस्तान से आजाद होकर बने बांग्लादेश और उस दौरान हुए संघर्ष में कई लोग पलायन कर भारत आ गए थे और यहीं रहने लगे। इसके बाद स्थानीय लोगों और घुसपैठियों के बीच हिंसक वारदातें भी हुई। इसके चलते 1980 के दशक से उन्हें वापस भेजने की मांग की जा रही है। घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए आंदोलन द्वारा इसकी मांग की गई। सबसे पहले 1979 में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन और असम गण परिषद ने आंदोलन शुरू किया। 6 साल चलने वाले इस आंदोलन ने हिंसक रूप भी लिया और हजारों की तादाद में इसमें लोगों की मौत भी हुई।  बढ़ती हिंसा को देखते हुए 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने असम गण परिषद और स्टूडेंट यूनियन से मुलाकात की और केंद्र सरकार और आंदोलकारियों के बीच एक समझौता हुआ जिसमें कहा गया कि 1951- 71 से आए लोगों को नागरिकता दी जाएगी और इसके बाद वालों को वापस भेज दिया जाएगा। लेकिन यह समझौता फेल हो गया। इसके बाद लगातार सामाजिक और राजनीतिक तनाव बढ़ता गया। एक बार फिर 2005 में राज्य और केंद्र में एनआरसी लिस्ट अपडेट करने के लिए समझौता हुआ और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।

 

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