देश के ख्यातिप्राप्त उत्तराखण्ड कैडर के आई0ए0एस0

डॉ कमल टावरी भारत सरकार के पूर्व सचिव – एक अद्भुत व्यक्तित्व # देश के ख्यातिप्राप्त उत्तराखण्ड कैडर के आई0ए0एस0 का  नाम जब एक बार उत्‍तराखण्‍ड के मुख्‍य सचिव को लेकर चला- तो उत्‍तराखण्‍ड के राजनीतिक हल्‍के में स्‍तब्‍धता सी छा गयी थी- कारण ? 

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धारा की दिशा बदलने का भगीरथ प्रयास – Anuj Agarwal
मौलिक भारत के ट्रस्टी और भारत सरकार के पूर्व सचिव डॉ कमल टावरी एक अद्भुत व्यक्तित्व हैं। बड़े जीवट के व्यक्ति डॉ टावरी अपनी प्रशासनिक सेवा के लंबे दौर में ग्रामीण विकास, कृषि, कुटीर उद्योगों , किसान, मजदूर और कामगारों से अधिक जुड़े रहे जो सिविल सेवा में एक अपवाद जैसा है। देश की दो तिहाई ग्रामीण आबादी को देश की मुख्यधारा में लाने के लिए अपने सेवानिवृत्त जीवन के पिछले एक दशक में उनकी कोशिशें और प्रयास भी उसी गति से जारी रहे किंतु कभी उनकी दिशा भटकी तो कभी सरकार का सहयोग नहीं मिला। लेकिन वो पूरे देश मे ऐसे लोगों का समूह बनाते रहे जो भारत की मिट्टी, संस्कृति और मौलिक जीवन धारा से जुड़े थे। मौलिक सोच और जमीनी काम वाले हजारों जुझारू लोगो का नेटवर्क अब उनके साथ है। हमारे काम और चिंतन से खासे प्रभावित तो वे बर्षों से थे पर पिछले दो बर्षो में वे डायलॉग इंडिया और मौलिक भारत से औपचारिक रूप से जुड़ गए। डायलॉग इंडिया की उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए की जाने वाली रैंकिंग से जब वे नजदीक से जुड़े तो उनको उच्च शिक्षा संस्थानों और ग्रामीण भारत के पुनरुत्थान के बीच एक कड़ी दिखी जिसकी उन्होंने कई बार मुझसे विस्तार से चर्चा की। उनकी दृष्टि और कार्ययोजना ने मुझे प्रभावित किया। पिछले एक बर्ष में उन्होंने अपने पूरे नेटवर्क को मथा और सभी से विस्तृत चर्चा कर ग्रामीण भारत के सम्पूर्ण काया पलट की कार्ययोजना बनायी। उन्होंने देश की पंचायतों, किसान नेताओं,लघु व मध्यम उद्योगों, बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जोड़कर मानव संसाधन मंत्रालय को अपनी कार्ययोजना समझायी। इसके बाद मंत्रालय की सहमति से हमने अपने साथ जुड़े संगठन इंडो यूरोपियन कंफेडरेशन ऑफ स्माल एन्ड मीडियम इंडस्ट्री का आल इंडिया कॉउन्सिल ऑफ टेक्निकल एडुकेशन के साथ एक समझौते को अंजाम दिया गया। मौलिक भारत, डायलॉग इंडिया और राष्ट्रीय पंचायत परिषद इसमें सहभागी बन गए और आगाज हुआ एक क्रांतिकारी पहल का।

 

देश के ख्यातिप्राप्त उत्तराखण्ड कैडर के आई0ए0एस0

Ram Mahesh Mishra

भारत के एक जाने-माने प्रशासक की, केन्द्र व राज्य सरकार के पूर्व शासन सदस्य की, एक वरिष्ठ IAS ऑफ़िसर की सादगी नमन करने योग्य।  डॉ. कमल टावरी को खादी के अति-सामान्य वस्त्रों में । छोटा कुर्ता पहने, लुंगी बांधे, कन्धे पर अँगोछा डाले वह सामान्य किसान की भाँति। वह उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड कैडर के ख्यातिप्राप्त प्रशासक रहे तथा भारत सरकार में सचिव स्तर से सेवानिवृत्त हुए। वे वर्ष 1968 में सैन्य अफ़सर की सेवा से आईएएस में आए थे। भारत के एक जाने-माने प्रशासक की, केन्द्र व राज्य सरकार के पूर्व शासन सदस्य की, एक वरिष्ठ IAS ऑफ़िसर की सादगी नमन करने योग्य। जब हमने देश की राजधानी में डॉ. कमल टावरी को खादी के अति-सामान्य वस्त्रों में देखा। छोटा कुर्ता पहने, लुंगी बांधे, कन्धे पर अँगोछा डाले वह सामान्य किसान की भाँति दिख रहे थे। वह उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड कैडर के ख्यातिप्राप्त प्रशासक रहे तथा भारत सरकार में सचिव स्तर से सेवानिवृत्त हुए। वे वर्ष 1968 में सैन्य अफ़सर की सेवा से आईएएस में आए थे।

मेरे सामने की घटना है, जब श्री टावरी ने खादी के ही कपड़े पहनने का संकल्प लखनऊ के जवाहर भवन में ग्राम्य विकास आयुक्त के सभागार में लिया था। तब वह उत्तर प्रदेश के ग्राम्य विकास सचिव थे। कड़क स्वभाव के बेलौंस शैली में बात करने वाले और लीक से हटकर काम करने वाले गांधीग्राम वर्धा (महाराष्ट्र) के मूल निवासी श्री टावरी जी से बड़े-बड़े मन्त्रिगण भी बहुत सँभलकर बात किया करते थे। वह कथित सज़ा वाली पोस्ट पर भी तैनात होते, तो उसे कुछ समय में महत्वपूर्ण बना देते। वे खादी सेक्टर में राज्य व केन्द्र के मुखिया के रूप में 12 वर्षों तक सेवारत रहे। मुझे याद है, डॉ. टावरी विभाग में 28-30 सीटर छोटी बस ख़रीदवाते, यात्रा में विभिन्न अधिकारियों व लोकसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों को साथ बस में बिठाते। भीतर माईक सिस्टम लगा होता, विचार रखने वाला व्यक्ति उस पर बोलता, वक़्ता की वह सीट ड्राइवर के पीछे तिरछी फ़िक्स की जाती। लम्बी-लम्बी बैठकों का समय बचता और सड़क पर रणनीतियाँ बन जातीं। उधर कई कारों का पेट्रोल भी बचता। गन्तव्य स्थल पर लोकल ऑफ़िसर, DM, कमिश्नर आदि अपनी कारों से पहुँच जाते। रोड मीटिंग के वक्ताओं में हम भी होते थे। रेलवे फाटक पर गाड़ी रुकती तो वो पैदल चल पड़ते और काफ़ी दूर निकल जाते, न कोई सुरक्षा और कोई तामझाम। आगे वाहन उन्हें ले लेता। फ़ैज़ाबाद अंचल में उन्हें काफ़ी तेज़ क़दमों से चलते देखकर एक ग्रामीण जनप्रतिनिधि ने मुझसे कहा था- ये सज्जन तो फ़ैज़ाबाद के पूर्व कमिश्नर टावरी जी जैसे दिखायी दे रहे हैं। …डॉ. टावरी साथियों से कहते, देखो! अच्छी वॉक हो गयी। इसीलिए 72 की वय में भी वे 55 के लगते हैं। एक घटना का उल्लेख करके इस पोस्ट को पूरा करना चाहता हूँ। तब डॉ. टावरी गृह मन्त्रालय-भारत सरकार में अतिरिक्त सचिव थे, हमने उन्हें गायत्री परिवार के एक कार्यक्रम में गोण्डा ज़िला मुख्यालय पर आमन्त्रित किया। उनने प्राइवेट यात्रा की सहमति दी। वह पहुँचे, ज़िला प्रशासन में किसी को मालूम नहीं था। कार्यक्रम के बाद एक निजी स्थान पर लंच हुआ, लखनऊ प्रस्थान के पहले उन्होंने देवीपाटन मण्डल के कमिश्नर और गोण्डा के DM व SSP का नाम हमसे पूछा। मोबाईल युग आ चुका था, हमने प्रमुख अफ़सरों को बता देने की राय दी। सहमति होने पर कमिश्नर को हमने सूचित किया कि डॉ. टावरी अभी ‘आयुक्त आवास’ पहुँच रहे हैं। वह बोले ना ना, मैं ख़ुद आ रहा हूँ और लेकर चलूँगा। कमिश्नर श्री सुधाकर सिंह 5 मिनट में वहाँ आ गए। DM अवकाश पर थे, SSP भी तुरत-फुरत वहाँ आ गए। बातचीत में टावरी साहब ने पूछ लिया- गोण्डा में कितने गाँव ऐसे हैं, जहाँ आज़ादी के बाद के इन 50 वर्षों में कोई मुकदमा नहीं चला। दोनों अधिकारी तपाक से बोले! सर, आज के समय में यह कहाँ सम्भव है!! टावरी जी ने कहा कि क्या आपने पता कराया है? जवाब “ना” में मिला। एक घण्टे में पता करने का आदेश मिला। SSP श्री माहेश्वरी ने अपने CA को मेरे मोबाईल से जिले के सभी थानों से आधे घण्टे में सूचना मंगाने को कहा। ठीक 30 मिनट बाद स्टेनो/सीए ने सूचित किया कि फ़लाँ-फ़लाँ थानों के अमुक तीन गाँव इस श्रेणी के मिले हैं। डॉ. टावरी ने दोनों प्रशासकों से पूछा- क्या इन गाँवों का सम्मान नहीं किया जाना चाहिए? वे उनसे बोले- युगऋषि पूज्यवर पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य ने कहा है कि “अच्छों को प्रोत्साहित किया ही जाना चाहिए” क्योंकि इससे अच्छाइयाँ आँधी-तूफ़ान की तरह बढ़ती हैं।मण्डलायुक्त ने उन्हें आश्वासन दिया कि मैं सम्बन्धित गाँवों को जल्द सम्मानित करूँगा। हमारे UP CM श्री योगी जी तथा राष्ट्र के PM श्री मोदी जी को ऐसे गाँवों की तलाश प्रदेश/देश भर में कराकर उनका सम्मान प्रान्तीय/राष्ट्रीय कार्यक्रमों में करना चाहिए। मैं डॉ. कमल टावरी का सादर अभिनन्दन करता हूँ और उनके निरोग दीर्घायुष्य की कामना करता हूँ। उनके सफल जीवन में सक्रिय सहयोगी बनीं उनकी शिक्षाविद पत्नी श्रीमती डॉ. शीला टावरी जी को सादर साधुवाद देता हूँ।

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जी हाँ, देश भर में एआईसीटीई से जुड़े दस हज़ार से भी अधिक तकनीकी संस्थान हैं जिनमें 80 लाख विद्यार्थी तकनीकी शिक्षा ले रहे हैं। इसके अलावा 3 करोड़ से अधिक एल्युमनी भी हैं। इनमें आधों को भी कारपोरेट और सरकारी क्षेत्र नोकरी नहीं दे पाते और देश मे शिक्षित बेरोजगारों की बाढ़ आई हुई है। एक और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की दशा बिगड़ी हुई है और दूसरी ओर शहर अत्यधिक जन दबाब में बिखर गए हैं। यह देश के लिए अत्यंत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। देश की वर्तमान सरकार इस स्थिति को बदलना चाहती है। सरकार के समर्थन से देश के 6.5 लाख ग्रामो को तकनीकी रूप से शिक्षित युवाओं की फौज से जोड़ने के लिए एक संकल्प हम सबने मिलकर लिया। इसी संकल्प के तहत “विकसित गांव विकसित राष्ट्र” बिषय पर एआईसीटीई मुख्यालय में दो दिन की राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। इसमे हमने पिछले दो बर्षो के अपने अथक परिश्रम, देश भर के सेकड़ो दौरों, बैठकों से एकसूत्र में पिरोए गए पूरे देश से जमीनी काम करने वाले लोगों को दिल्ली में बुलाया ताकि वे एआईसीटीई के प्रबंधकों और विशेषज्ञों के सामने कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बड़े बदलाबो के लिए किए गए सफल प्रयोगों का प्रस्तुतिकरण किया गया। सभी संबंधित केन्द्र सरकार के मंत्रालयों को भी बुलाया गया और सांसद आदर्श ग्राम योजना को आधार बनाकर आगे की कार्ययोजना बनाई गई।
इस आयोजन की निम्न उपलब्धि रहीं –
1) पूरे देश से लगभग 600 लोग इस आयोजन में अपने खर्चे पर आए। इनको आने जाने, रहने खाने का कोई खर्च नहीं दिया गया। यानि जमीनी काम करने और उसे आगे बढ़ाने वाले संस्थान, संस्था और लोगों को ही आमंत्रित किया गया।
2) लगभग 150 से अधिक सफल प्रयोगों को इस कांफ्रेंस में प्रदर्शित किया गया। अब इनको एक पोर्टल पर एक साथ उपलब्ध कराया जाएगा।
3) कांफ्रेंस की सफलता से प्रभावित होकर एआईसीटीई ने औपचारिक रूप से घोषणा कर दी कि शुरुआत में एक हज़ार और अगले दो से तीन बर्षो में पचास हज़ार तक गाँव अपने से संबद्ध संस्थानों को गोद मे लेने की कार्ययोजना बनाई है।
4) अब तकनीकी संस्थानों के लिए एक अवसर है जो गोद लिए गावों का सर्वे और मैपिंग कर कृषि, कुटीर उधोगों और व्यापार के नए अवसरों को तलाशे और गाँव के लोगो से अपने विद्यार्थियों को जोड़े। यह विन विन सिचुएशन जैसा होगा यानि शुभ लाभ जिसमें ग्रामीणों को भी अपनी कमाई बढ़ाने के लिए विशेषज्ञों की मदद मिलेगी और विशेषज्ञों को भी संबंधित क्षेत्र में नोकरी या अपना काम शुरू करने के अवसर। साथ ही सभी प्रकार की सरकारी एजेंसियों को ईस कार्य मे सहभागी बनने का स्पष्ट रोडमैप।
5) तकनीकी संस्थानों के विद्यार्थियों के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास के माध्यम से रोजगार के नए अवसर सामने आ गए हैं, जिनसे उनके अनिश्चितता भरे भबिष्य के लिए नए अवसर खुल गए हैं। रोजगार न दे पाने के कारण बंद होते उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए यह पहल एक संजीवनी जैसी है। इसी कारण सरकार सभी स्तरों पर इस पहल को आगे बढ़ाने की इच्छुक है।
6) हम सभी समाजसेवियों के लिए यह अवसर है कि देश मे फैल हुए 40 हज़ार से भी अधिक उच्च शिक्षा संस्थानों को देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जोड़ने, संस्था के संचालकों और विद्यार्थियों को इस दिशा में प्रेरित और प्रशिक्षित करने के लिए ताकि अगले कुछ बर्षो में ग्रामीण भारत की आमदनी दोगुनी या अधिक हो सके और उसका ढांचागत विकास व्यवस्थित तरीके से हो सके।
मित्रों, ऐसे में जबकि सरकार की नीतियों में व्यवहार में कारपोरेट क्षेत्र को ही कृषि क्षेत्र की कीमत पर आगे बढ़ाने का खेल चलता रहा है, पहली बार हम सबके प्रयासों से औपचारिक और व्यवहारिक रूप से सरकार की नीतियों में 360 डिग्री का परिवर्तन आया है। अब हम सबकी कोशिश यही होनी चाहिए कि इसकी दिशा न बदले और गति तीव्र होती जाए। इस पहल का व्यापक बनाने के लिए 20 समाजसेवी लोगों ने अवैतनिक पूर्णकालिक रूप से समय देने का निर्णय लिया है। हम अगले तीन महीने पूरे देश को पुनः मथने जा रहे हैं और उसके बाद पुनः एक बार दिल्ली में एकत्र होंगे अपनी उपलब्धियों और कमियों की समीक्षा के लिए।
भवदीय
अनुज अग्रवाल, महासचिव
मौलिक भारत

Presented by; CHANDRA SHEHAR JOSHI- EDITOR

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