अपने इश्कमिजाज नेचर के लिए बदनाम है यह राजनेता

पाकिस्तान आम चुनाव के नतीजे सामने आ गये हैं. पूर्व क्रिकेटर इमरान खान (Imran Khan) की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ, पाकिस्तान आम चुनाव जीत गई है. मगर सरकार बनाने के लिए इमरान खान की पार्टी को गठबंधन करने की जरूरत होगी.इमरान खान को सरकार बनाने के लिए सहयोगियों की जरूरत होगी और तब जाकर वह गठबंधन की सरकार बना पाएंगे. पाकिस्तान चुनाव आयोग द्वारा जारी आज अंतिम परिणाम के मुताबिक, पीटीआई 251 सीटों में से 110 सीटें जीत चुकी है.   नेशनल एसेंबली में कुल 272 सीटें हैं. हालांकि, रिपोर्ट्स का कहना है कि अभी भी 20 सीटों पर गिनती जारी है.प्रस्‍तुति- हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्‍तराखण्‍ड (Web & Print Media) 

किसी एक पार्टी को अपने दम पर सरकार बनाने के लिए सीधे तौर पर निर्वाचित सीटों में से कम से कम 137 सीटों की जरूरत होगी. पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में कुल 342 सदस्य होते हैं जिनमें से 272 को आम चुनावों में सीधे तौर पर चुना जाता है जबकि शेष 60 सीटें महिलाओं और 10 सीटें धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित हैं. आम चुनावों में पांच फीसदी से ज्यादा वोट पाने वाली पार्टियां इन आरक्षित सीटों पर समानुपातिक प्रतिनिधित्व के हिसाब से अपने प्रतिनिधि भेज सकती हैं.

अपने इश्कमिजाज नेचर के लिए बदनाम पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर व पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी के अध्यक्ष इमरान खान पाकिस्तान चुनाव में जीत के बाद प्रधानमंत्री बनने की ओर अग्रसर हैं। पाकिस्तान क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान इमरान खान शुरू से ही अपने अफेयर और रिश्तों को लेकर अकसर सुर्खियों में रहे। 65 साल के इमरान खान की प्रेमिकाओं की लिस्ट लंबी है जिसमें पाकिस्तान की पूर्व पीएम बेनजीर भुट्टो भी शामिल रही हैं।
पाकिस्तान की पूर्व पीएम बेनजीर भुट्टो जब 21 साल की थीं तो वह इमरान खान के काफी करीब थीं। ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी में छात्र जीवन के दौरान दोनों का लंबा अफेयर रहा लेकिन कुछ वजहों से यह रिश्ता निकाह में नहीं बदल सका। इमरान की बायॉग्रफी में इस रिश्ते का जिक्र भी है। बॉलिवुड ऐक्ट्रेस जीनत अमान से भी इमरान के रिश्ते की खबरें चलीं थीं। पाकिस्तान ने 70-80 के दशक में भारत का दौरा किया था और तब दोनों के बीच रोमांस की चर्चा जोरों पर रहीं। हालांकि यह प्यार शादी के मुकाम तक नहीं पहुंच सका था

इमरान खान की पहली शादी जैमिमा खान से हुई। इनका असल नाम जैमिमा गोल्‍ड स्‍मिथ था। वह ब्रिटेन के करोड़पति व्‍यवसायी की बेटी थीं। जैमिमा से इमरान की पहली शादी लंबे लव अफेयर के बाद हुई। इसके बावजूद दोनों की शादी ज्‍यादा दिन तक टिक न सकी। 2004 में दोनों का रिश्‍ता टूट गया। जैमिमा से इमरान के दो बच्‍चे भी हैं। एक सुलेमान और दूसरा कासिम। बता दें कि जैमिमा से शादी के वक्‍त इमरान की उम्र 42 साल थी और जैमिमा की सिर्फ 21 साल।

रेहम खान का हाथ थाम लिया
इमरान खान की पहली शादी टूटी तो लोगों को लगा कि अब वो अकेले हो गए हैं, लेकिन ऐसा नहीं था। कुछ समय बाद इन्‍होंने अपनी दूसरी शादी का प्‍लान बनाया और रेहम खान का हाथ थाम लिया। रेहाम ओर इमरान के बीच उम्र में 19 साल का फर्क था। रेहाम पेशे से पत्रकार थीं। 2015 में दोनों की शादी हुई, लेकिन ये शादी भी ज्‍यादा नहीं टिकी। शादी के महज 10 महीने में ही दोनों का तलाक हो गया। गौरतलब है कि रेहम से निकाह इमरान को बहुत भारी पड़ा क्योंकि हाल ही रेहम खान द्वारा लिखी किताब में इमरान की निजी जिंदगी को लेकर जमकर बखिए उधड़े गए हैं।

रेहम ने अपनी किताब में जहां इमरान पर समलैंगिक होने का खुलासा किया है वहीं भारत में उनके 5 बच्चे होने का भी राज खोला है।
इमरान का संबंध सीता व्हाइट से भी था। सीता ने जून, 1992 में एक बच्ची को जन्म दिया, जिसका नाम ताइरियन है। इमरान ने पहले इसे अपनी बच्ची मानने से इंकार कर दिया था, फिर 1997 में पितृत्व टेस्ट में उनके इस बच्ची का पिता होने की पुष्टि हुई थी। आगे चलकर सीता की अचानक मौत हो गई, जिसके बाद इमरान ने ताइरियन को अपना लिया।

इमरान खान की तीसरी शादी बुशरा मानेका से पूरे रीति-रिवाज के साथ 18जनवरी 2018 को हुई। बुशरा मानेका एक आध्यात्मिक गुरु हैं। उन्होंने लाहौर के एचिसन कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। उन्होंने इससे पहले खवार फरीद मनेका से शादी की थी, जो इस्लामाबाद में सीनियर कस्टम ऑफिसर थे। कुछ साल पहले वे खवार फरीद मनेका से अलग हो गईं। वे मूल रूप से दक्षिणी पंजाब से हैं। बुशरा के 5 बच्चे हैं, जिनमें 2 बेटे और 3 बेटियां हैं। इमरान खान और बुशका मानेका की पहली बार वर्ष 2015 में लोधरन में हुए उपचुनाव के दौरान हुई। लोधरन में एनए-154 सीट के लिए उपचुनाव हुआ था। जहां इमरान खान चुनाव प्रचार करने पहुंचे थे। इसी दौरान दोनों की पहली बार मुलाकात हुई थी।

पाकिस्तान आम  चुनावों में बड़े चेहरों को शिकस्‍त का भी सामना करना पड़ा है. इनमें मौलाना फजल-उर-रहमान, सिराज-उल-हक, पीर सदरुद्दीन शाह, महमूद खान अचजाजई, मुस्‍तफा कमाल, असफंदयार वली खान और अन्‍य शामिल हैं. वहीं, दूसरी तरफ हर उस सीट को जीतने में कामयाब रहे, जहां-जहां वह चुनाव में खड़े हुए थे.

पाकिस्तान के चुनावी टूर्नामेंट में विजेता की ट्रॉफी क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान के हाथ

पाकिस्तान के चुनावी टूर्नामेंट में विजेता की ट्रॉफी क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान के हाथ रही है. आम चुनावों में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी 119 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी है. मगर किसी क्रिकेट मैच के विपरीत सियासत के खेल में इस जीत के बाद इमरान और उनकी टीम के लिए अब अपनी सत्ता की पारी बचाने की कवायद शुरू होगी.

यह सवाल उठना लाज़िमी है कि सेना की मदद से सत्ता के कप्तान बने इमरान फौज को ही गुगली फेंक दें और सूत्र अपने हाथ में ले लें? हालांकि, पाकिस्तानी सियासी तारीख के पुराने उदाहरणों और नवाज़ शरीफ जैसे नेताओं का हश्र देख इमरान ऐसा कोई जोखिम नहीं उठाना चाहेंगे. गौरतलब है की नवाज़ शरीफ को सियासत का ऊंचे पायदान पर पहली बार लाने वाले जनरल जिया उल हक थे. मगर बाद में परवेज़ मुशर्रफ और 2013 के बाद जनरल परवेज़ कियाने और मौजूद सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा से उनके टकराव ने उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. पाकिस्तान के आम चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के प्रमुख इमरान खान को फिलहाल देश की ताकतवर सेना का ‘लाडला’ माना जा रहा है, लेकिन करीब छह साल पहले उन्होंने बयान दिया था कि पाकिस्तान में ‘सेना के दिन अब लद गए हैं.’ पूर्व क्रिकेटर अब सेना के ‘लाडले’ बन गए हैं और सेना उनकी मदद के लिए पर्दे के पीछे रहकर काम कर रही है. साल 1947 में पाकिस्तान की आजादी के बाद से अब तक लगभग आधे समय वहां सेना का ही शासन रहा है. पाकिस्तान की लोकतांत्रिक तौर पर चुनी गई असैन्य सरकारों में भी सेना का दखल रहा है. भारत को लेकर भी इमरान की राय में अब बदलाव नजर आता है. साल 2012 में इमरान भारत के साथ ‘बेहतरीन रिश्ते’ चाहते थे, लेकिन इस बार के चुनावों में उन्होंने भारत पर पाकिस्तानी सेना को ‘कमजोर’ करने और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मिलकर ‘साजिश’ रचने के आरोप लगाए.

पाकिस्तान के युवाओं में इमरान खान का काफी प्रभाव है। उनको पाकिस्तान क्रिकेट का आईकन माना जाता है। महज 13 साल की उम्र से इमरान ने क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था, जिसके बाद पाकिस्तान के लिए अपना डेब्यू 1971 में बर्मिंघम में इंग्लैंड के खिलाफ 18 साल की उम्र में किया। करीब दो दशक तक क्रिकेट खेलने के दौरान उन्होंने 1982-1992 तक पाकिस्तानी क्रिकेट टीम की कमान संभाली। इतने लंबे समय तक कप्तान रहने वाले वे पहले बल्लेबाज हैं। उन्होंने साल 1992 में पाकिस्तान को पहला और इकलौता क्रिकेट वर्ल्ड कप जिताया। इमरान खान को पाकिस्तान का सबसे सफल खिलाड़ी और कप्तान माना जाता है।

नवाज शरीफ को भारत का लाडला करार दिया
पाकिस्तान में इमरान खान ने अपनी छवि एक राष्ट्रवादी नेता के रूप बनाई। देशहित से जुड़े मुद्दे पर उन्होंने खुलकर अपनी बात रखी। खासकर भारत के खिलाफ बयानबाजी का कोई मौका नहीं छोड़ा। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भारत का लाडला करार दिया। इमरान खान ने देशभक्ति के मसले को लेकर नवाज शरीफ को जमकर घेरा, जिसका फायदा उनको चुनाव में मिला। उन्होंने पाकिस्तान में अमरीकी सेना के दखल का भी खुलकर विरोध किया। इसके अलावा इमरान खान ने पाकिस्तान को पहला वर्ल्ड कप दिलाया और फिर क्रिकेट से संन्यास लेकर समाज सेवा में जुटे रहे।

सेना को खुश करने के लिए कुछ खतरनाक गेंदें भी फेंक सकते हैं
मौजूदा चुनावों में जीत दर्ज करने के बाद इमरान ने कहा कि पाकिस्तान भारत के साथ रिश्ते सुधारने के लिए तैयार है और अगर भारत एक कदम आगे बढ़ाएगा तो वो दो कदम आगे बढ़ाएंगे. उन्होंने कश्मीर में मानवाधिकारों के कथित हनन का मुद्दा उठाते हुए कहा कि कश्मीरी लोगों को तकलीफ से गुजरना पड़ रहा है.ऐसे में भारत को इस बात के लिए तैयार रहना होगा कि इमरान उन्हें सत्ता का कप्तान बनाने वाली सेना को खुश करने के लिए कुछ खतरनाक गेंदें भी फेंक सकते हैं. बीते दो दशक के वक्त में इमरान खान नियाज़ी की शख्सियत के कई रंग नज़र आये हैं. एक विश्वकप विजेता खिलाड़ी और युवाओं के नायक से भ्रष्टाचार विरोधी योद्धा और फिर सेना के चहेते राजनेता व कट्टरपंथियों से साठगांठ करने वाले लीडर तक पहुंचे सफर में इमरान खान ने के बार यू-टर्न लिए हैं. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की पढ़ाई, एक बेहतरीन खिलाड़ी की अंतर्राष्ट्रीय पहचान व खुली सोच वाले नेता की पहचान के बावजूद सत्ता की खातिर वो ईशनिंदा कानून का समर्थन करते नज़र आते हैं.

पाकिस्तान की राजनीति में सेना का दखल इतना ज्यादा है कि इससे मुक्त होना लगभग नामुमकिन है। अब जबकि पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पी.टी.आई.) के इमरान खान सरकार बनाने और प्रधानमंत्री बनने के करीब हैं तो भारत की खुफिया एजैंसियां भी इमरान खान के पाकिस्तान की सत्ता पर काबिज होने के साइड इफैक्ट का आकलन करने में जुट गई हैं। खुफिया एजैंसियों से जुड़े अफसरों का कहना है कि आने वाले दिनों में इन दोनों राज्यों में बड़े आतंकी हमले हो सकते हैं। आई.एस.आई. अब पूरी तरह से सत्ता पर हावी हो जाएगी। खुफिया एजैंसियों का आकलन है कि सेना और आई.एस.आई. ने मिशन पंजाब और जम्मू-कश्मीर तैयार किया हुआ है। पहले वे पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता के कारण इस मिशन पर फोकस नहीं कर पा रहे थे। अब उनका सारा फोकस इन दोनों राज्यों पर होगा।

सूत्रों का कहना है कि अगर इमरान खान प्रधानमंत्री बनते हैं तो सीमा पर घुसपैठ की संभावना बढ़ेगी। वह प्रधानमंत्री बनते ही अपनी इमेज को बेहतर करने के लिए भारत विरोधी बयान भी देंगे। इमरान खान को आई.एस.आई. का पूर्व चीफ हमीद गुल राजनीति में लेकर आया था। गुल पर तालिबान को बढ़ावा देने के आरोप लगते रहे हैं। गुल ने ही इमरान खान को क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया था। गुल ने ही इमरान खान को राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी बनाने के लिए तैयार किया था।

जानकारों के मुताबिक फिलहाल इमरान की जीत को पाकिस्तानी फौज की फतह के तौर पर ही देखा जाना चाहिए. पूर्व विदेश राज्यमंत्री और संसद की विदेश मामलों संबंधी समिति के अध्यक्ष डॉ शशि थरूर कहते हैं की सियासत के इस मैच में इमरान खान की कोच भी सेना है और सिलेक्टर भी. सो, इमरान और उनकी पार्टी न केवल सेना के मुताबिक चलना चाहेगी बल्कि ऐसा करना उसकी मजबूरी भी होगी. पीटीआई को अपने दम पर बहुमत नहीं मिला है और ऐसे में सरकार बनाने के लिए उसे उन छोटे दलों पर निर्भर रहना होगा जिन्हें पाकिस्तान में मुल्ला-मिलिट्री एलायंस कहा जाता है. सेना के रहमोकरम पर जीने वाली यह कट्टरपंथी पार्टियां चुनावों में जहां एक वोटकटवा होती है वहीं ज़रूरत पड़ने पर फौज को अपने हिसाब से सत्ता का समीकरण बैठने में भी मदद करती हैं. इनकी मदद से ही इमरान की पीटीआई 137 का जादुई आंकड़ा छुएगी.

पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह के मुताबिक सेना की मदद से सत्ता की कुर्सी तक पहुंचे इमरान की सरकार सेना और उसके इशारे पर काम करने वाले दलों पर निर्भर होगी. ऐसे में सेना ही तय करेगी की इमरान की सरकार भारत से कब, कैसे और कितनी बात करेगी. किन मुद्दों पर वो बात करेंगे.

गुरुवार को चुनाव नतीजों में बढ़त की तस्वीर साफ होने के बाद अपने विजय संबोधन में इमरान ने भारत से रिश्तों और कश्मीर के मुद्दे पर फौज के साथ कदमताल की बानगी भी दिखा दी. भारत से बेहतर संबंधों का रस्मी हवाला देने के साथ ही पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेने को तैयार इस पठान नेता ने कहा कि “दोनों मुल्कों के संबंधों में मूल मुद्दा कश्मीर का ही है.” इमरान ने कश्मीर में कथित मानवाधिकार उल्लंघन, भारतीय सैनिकों की मौजूदगी की बातें उसी सुर में कही जो सेना को सुहाती हैं.

पाकिस्तान में चीन का दबदबा और दखल दोनों बढ़ेगा.

विदेश नीति के जानकार इस बात की आशंका से भी इनकार नहीं करते कि कश्मीर से लेकर भारत के अन्य अलगाववादी गुटों को शह देने के पाकिस्तानी कार्यक्रम में आने वाले दिनों के दौरान कुछ तेज़ी नज़र आ सकती है. इतना ही नहीं, खस्ताहाल अर्थव्यवस्था, ईंधन संकट, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की गिरती साख और आतंकवाद से बदरंग होती छवि वाले पाकिस्तान की कमान संभाल रहे इमरान के लिए अपने चुनावी वादों को पूरा करना भी टेढ़ी खीर होगा. ऐसे में पाकिस्तान में चीन का दबदबा और दखल दोनों बढ़ेगा.

भारत और पाकिस्तान के चुनावी कलेंडर का हवाला देते हुए पूर्व विदेशमंत्री नटवर सिंह कहते हैं कि अगले एक साल तक पाकिस्तान के साथ बातचीत की किसी नई पहल या शांति प्रयासों की कोई जगह नहीं है. पाकिस्तान में चुनाव के बाद नई सरकार कामकाज समझने और संभालने में अभी एक-दो महीने का वक्त लगेगा. तब तक भारत में आम चुनाव की तैयारियां शुरू हो चुकी होंगी. 

भारतीय खेमा अभी इमरान के बयानों पर किसी प्रतिक्रिया से पहले पाकिस्तान के सियासी हालात को तौलना चाहता है. खासकर ऐसे में जबकि चुनाव नतीज़ों को लेकर सत्ता से बाहर हुई नवाज़ शरीफ की पार्टी पीएमएल (एन) और पीपीपी ने सवाल उठाये हैं. सूत्रों का कहना है अभी पाकिस्तान की चुनावी प्रक्रिया ही पूरी नहीं हुई है. पाकिस्तानी चुनाव आयोग ने नतीज़ों का ऐलान भी नहीं किया है. ऐसे में इमरान खान ने जो भी कहा वो केवल एक उम्मीदवार का बयान है. उचित समय पर भारत सरकार अपनी आधिकारिक प्रतिक्रिया देगी.

पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त रहे टीसीए राघवन भी इस राय से इत्तेफाक जताते हुए कहते हैं कि इमरान खान की नीतियों पर फिलहाल किसी ठोस आकलन पर पहुंचना जल्दबाज़ी होगी. चुनावी धुंध छंटने के बाद ही तस्वीर साफ होगी. राघवन कहते हैं की पाकिस्तान में सेना हमेशा से एक ताकतवर संस्था रही है. इमरान की जीत में उसकी भूमिका भी साफ हो गई. मगर पाक सेना भी भारत के साथ संबंधों को पूरी तरह खराब कर नहीं करना चाहेगी. ऐसे में बेहतर होगा की उनकी इमरान सरकार की शुरुआती गेंदों को देखकर भारत अपनी रणनीति तय करे.

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