112 फुट उंची शिव की भव्य मूर्ति का उद्धाटन मोदी द्वारा

महायोग यज्ञ की शुरुआत – “शिव और पार्वती का साथ हिमालय और समुद्र का साथ; मोदी #महायोग—
सहज योग में ध्यान धारण कैसे क्रियान्वित होता है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महाशिवरात्रि के मौके पर शिव की भव्य मूर्ति का उद्धाटन करने कोयंबटूर के ईशा योग केंद्र पहुंचे हैं. योग केंद्र में योग के संस्थापक आदियोगी या ‘शिव’ की प्रतिमा का अनावरण -इसकी खास बात है कि ये 112 फुट उंची आवक्ष प्रतिमा है. आदियोगी को श्रद्धांजलि के रूप में प्रधानमंत्री अग्नि को प्रज्वलित करके दुनिया भर में महायोग यज्ञ की शुरुआत – गौरतलब है कि भारत सरकार की टूरिज्म मिनिस्ट्री ने अपने ‘अतुल्य भारत’अभियान में इस भव्य चेहरे की प्राण-प्रतिष्ठा को एक डेस्टिनेशन के तौर पर शामिल किया है. प्रतिमा उन 112 मार्गों को दर्शाती है, जिनसे इंसान योग विज्ञान के जरिए अपनी परम प्रकृति को हासिल कर सकता है. – – कोयंबटूर में जगदगुरु वासुदेव के साथ मोदी। दोनों ने मंदिर की परिक्रमा भी की। Presents by www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportl) 

कोयंबटूर. नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को महाशिवरात्रि के मौके पर यहां के ईशा योग केंद्र में शिव की 112 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया। प्रतिमा को ईशा फाउंडेशन के फाउंडर सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने डिजाइन किया है। मोदी ने वासुदेव के साथ मंदिर की परिक्रमा की। इस जगह को ‘ध्यानलिंगा’ कहा जाता है। प्रतिमा को पत्थर की जगह स्टील के टुकड़े जोड़कर देसी तकनीक से तैयार किया गया है। नंदी की प्रतिमा को भी तिल के बीज, हल्दी, भस्म और रेत-मिट्टी से बनाया गया है। इस मौके पर मोदी ने कहा, ”योग जिव्हा से शिवा तक का सफर है। जीव से शिव तक की यात्रा ही योग है। …और भारत ने ही दुनिया को योग तोहफे में दिया है।”
मोदी ने ध्यानलिंग मंदिर में पूजा अर्चना की। इस दौरान जग्गी वासुदेव भी उनके साथ रहे। वासुदेव ने मोदी को मंदिर के बारे में जानकारी दी। इसके बाद पीएम ने यहां शिवलिंग की आरती की। इस दौरान मंत्रोच्चारण जारी रहा। मोदी ने यहां पंचभूत आराधना भी की। प्रोग्राम में तमिलनाडु के नए सीएम पलानीसामी और केरल की गवर्नर किरण बेदी भी मौजूद थीं। करीब दो लाख लोगों ने इस प्रोग्राम में शिरकत की। संतों ने मंत्रोच्चारण भी किया। भगवान शिव को आदियोगी या दुनिया का पहला योग गुरू भी कहा जाता है।
मोदी ने कहा, “वासुदेव जी और बाकी लोगों का शुक्रिया जो मुझे यहां बुलाया। कई देव हैं लेकिन शिव को महादेव कहा जाता है। कई मंत्र हैं लेकन शिव के मंत्र को महामृत्युंजय मंत्र कहा जाता है। कई रात्रि हैं लेकिन शिव की इस रात को महाशिवरात्रि कहा जाता है। मैं सोमनाथ की धरती से हूं। लेकिन राजनीति ने मुझे सोमनाथ से विश्वनाथ यानी काशी तक पहुंचाया। मैं जहां जाता हूं वहां शिव मेरे साथ होते हैं।”
“सदियों से शिव के अनगिनत भक्त हैं। उनकी अलग भाषाएं हैं लेकिन उनकी आस्था सिर्फ शि‌व हैं। आने वाले वक्त में यहां जहां हम इकट्ठे हुए हैं। ये स्थान लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा। यहां आकर लोग शिवमय हो जाएंगे। आज योग बहुत दूर निकल चुका है। पश्चिम में भी योग अपनाया जा चुका है। योग जिव्हा से शिवा तक का सफर है। योग से व्यक्ति समस्ति तक पहुंचता है। यही योग है। अनेकता में एकता भारत की पहचान है। ”
“शिव और पार्वती का साथ हिमालय और समुद्र का साथ है। ये एकता की पहचान है। शिव के गले में सांप है। गणेश का वाहन चूहा है। संदेश ये है कि वो साथ रहते हैं। यानी अनेकता है लेकिन हम एक हैं। अनेकता हमारे लिए संघर्ष की बात नहीं है। ये हमारी संस्कृति की पहचान है।”
“प्रकृति भी ईश्वर समान है। सत्य एक है, लेकिन हम इसे नाम कुछ भी दे सकते हैं। ये समाज में एकता को बढ़ावा देता है। हम सत्य के लिए ही तो जीते और मरते हैं। ये भारतीय सभ्यता के लिए सम्मान है। कुछ लोग अपने अज्ञान की वजह से सत्य को अस्वीकार कर देते हैं। सिद्धातों को पुराना बताने की कोशिश की जाती है। उन्हें पश्चिम की बात ज्यादा समझ में आती है।”
“महिलाओं का सशक्तीकरण जरूरी है। हमारी संस्कृति में महिलाओं की भूमिका सेंटर में हैं। हमारे यहां देवियां पूजी जाती हैं। हमारे यहां कई महिला संत हुईं। चारों दिशाओं में हुईं। उन्होंने समाज के सामने उदाहरण रखे। कहा गया है- नारी तो नारायणी। पुरुष के लिए- नर करनी करे तो नारायण हो जाए। मतलब नारी तो नारायणी है ही लेकिन पुरुष के लिए शर्त है। ”
“आज तनाव की वजह से कई बीमारियां हो रही हैं। लोग शराब इसलिए पी रहे हैं क्योंकि तनाव ज्यादा है। मुझे इससे बेहद दुख होता है। लेकिन, योगा से ये सब दूर किया जा सकता है। इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि अगर शरीर मंदिर है तो योगा इसे और खूबसूरत बना सकता है। ये जीवन को संवारने और रोग मुक्ति का साधन है। ये भोग मुक्ति का भी साधन है।”

वासुदेव ने कहा हम इस मंदिर में अपने प्यारे प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी का स्वागत करते हैं। इसके बाद मोदी ने मंदिर में जल चढ़ाया। पीएम ने लिंग भैरवी मंदिर में भी पूजा की। मोदी ने इसके बाद अनावरण किया। इसके बाद मोदी ने महायोगा यज्ञ की शुरुआत के लिए अग्नि प्रज्जवलित की। मोदी ने यहां भगवान शिव का वाद्ययंत्र डमरू भी बजाया। इसके बाद जगदगुरु ने मोदी को यहां की पारंपरिक सूत की माला पहनाई। मोदी ने इस मौके पर एक किताब ‘आदियोगी’ का विमोचन भी किया। मोदी के इस प्रोग्राम में सिंगर कैलाश खेर ने आदियोगी गीत भी प्रस्तुत किया। वासुदेव ने इस मौके पर कहा- मुसीबतों के वक्त हम ऊपर की तरफ देखते हैं। एक विचारधारा का दूसरी विचारधारी से टकराव हिंसा में बदल गया। इससे मानवता का बहुत नुकसान हुआ। मोदी शायद दुनिया के पहले ऐसे हेड ऑफ स्टेट हैं जिन्होंने हजारों लोगों के साथ खुले में योग किया। फिर इसे दुनिया तक पहुंचाया।
यहां महायोग यज्ञ भी है। इस प्रोग्राम का मकसद है, आने वाले साल में 10 लाख लोग योग के एक सरल तरीके को कम से कम 100 लोगों को सिखाएं। अगली महाशिवरात्रि तक कम से कम 10 करोड़ लोगों तक इसे पहुंचाएं। महाशिवरात्रि महोत्‍सव शाम 6 बजे शुरू हुआ जो सुबह 6 बजे तक चलेगा।

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महायोग— Execlusive: 
सहज योग में ध्यान धारण कैसे क्रियान्वित होता है? सहज योग-(सह+ज=हमारे साथ जन्मा हुआ) जिसमें हमारी आन्तरिक शक्ति अर्थात कुण्डलिनी जागृत होती है, कुण्डलिनी तथा सात ऊर्जा केन्द्र जिन्हैं चक्र कहते हैं,जो कि हमारे अन्दर जन्म से ही विद्यमान हैं।ये चक्र हमारे शारीरिक,मानसिक, भावनात्मक तथा आध्यात्मक पक्ष को नियन्त्रित करते हैं । इन सभी चक्रों में अपनी-अपनी विशेषता होती है,सबके कार्य बंटे हुये हैं ।कुण्डलिनी के जागृत होने पर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में फैली हुई ईश्वरीय शक्ति के साथ एकाकारिता को योग कहते हैं । और कुण्डलिनी के सूक्ष्म जागरण तथा अपने अन्तरनिहित खोज को आत्म साक्षात्कार (Self Realization) कहते हैं ।आत्म साक्षात्कार के बाद परिवर्तन स्वतः आ जाता है ।वर्तमान तनावपूर्ण तथा प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण में भी सामज्स्य बनाना सरल हो जाता है और सुन्दर स्वास्थ्य,आनंद,शान्तिमय जीवन तथा मधुर सम्बन्ध कायम करने में सक्षम होते हैं ।
ध्यान धारण से लाभ-
1-शॉत एवं एकाग्र चित्त – (Silent and Concentrated Attention) (स्वाधिष्ठा चक्र से)
2-स्मरण शक्ति तथा सृजनशीलता में वृद्धि- (Increased Memory and Creativity) (स्वाधिष्ठान तथा मूलाधार चक्र द्वारा )
3-बडों के प्रति आदर तथा सम्मान- (Respect towards Elders) (स्वतः जागृति, नाभि चक्र द्वारा)
4-स्व अनुशासन,परिपक्व और जिम्मेदारी पूर्ण आचरण – (Self Discipline) (आज्ञा चक्र द्वारा)
5-आई क्यू के स्तर में वृद्धि- (Increased IQ, ) (सहस्रार चक्र द्वारा)
6-जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोंण- (Positive Attitude) ( बॉयॉ पक्ष, इडा नाडी)
7-आत्म विश्वास में वृद्धि- (Self Confidence) (ह्दय चक्र)
अन्य लाभः- सबके प्रति प्रेम एवं करुंणॉमय आचरण (उदार ह्दयचक्र के कारण प्रेम एवं आनंद का भाव) । सहन शीलता और धैर्य में वृद्धि (प्रकाशित आज्ञाचक्र – क्षमा शक्ति का उदय)। हमारे शरीर में कुण्डलिनी महॉनतम् शक्ति है जिसने कुण्डलिनी का उत्थान कर दिया उस साधक का शरीर तेजोमय हो उठता है। इसके कारण शरीर के दोष एवं अवॉच्छित चर्वी समाप्त हो जाती है।अचानक साधक का शरीर अत्यन्त संतुलित एवं आकर्षक दिखाई देने लगता है। आंखें चमकदार और पुतलियॉ तेजोमय दिखाई देती हैं। संत ज्ञानेश्वर जी ने कहा है कि सुषुम्ना में उठती हुई कुण्डलिनी द्वारा बाहर छिडका गया जल अमृत का रूप धारण करके उस प्राणवायु की रक्षा करताहै जो “उठती हैं, अन्दर तथा बाहर शीतलता का अनुभव प्रदान करती है” ।। जब आप निर्विचारिता में होते हैं तो आप परमात्मा की श्रृष्ठि का पूरा आनंद लेने लगते हैं,बीच में कोई वाधा नहीं रहती है ।विचार आना हमारे और सृजनकर्ता के बीच की बाधा है । हर काम करते वक्त आप निर्विचार हो सकते हैं, और निर्विचार होते ही उस काम की सुन्दरता, उसका सम्पूर्ण ज्ञान और उसका सारा आनंद आपको मिलने लगता है ।।

– माता जी निर्मला देवी 

मानव इतिहास में यह पहली बार घटित हुआ है कि बिना किसी प्रयत्न के, पूर्ण हृदय से की गयी प्रार्थना मात्र से ही आप अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करते हैं व आपका चित्त पूर्ण रूप से शांत हो जाता है। आप निर्विचारिता के साथ-साथ हाथों में शीतल चैतन्य लहरियों का अनुभव करते हैं जो कि पहले के योगियों को घर-बार छोड़कर वनों व आश्रमों में वर्षों तपस्या करने के बाद हजारों में से एक-दो को ही इसकी अनुभूति होती थी। निर्विचार अवस्था में व्यक्ति वर्तमान क्षण में होता है जो कि एकमात्र वास्तविकता है। परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी पृथ्वी पर अवतरित आदि शक्ति का अवतरण हैं। उनके सम्मुख पूर्ण हृदय से की गयी याचना करने मात्र से व्यक्ति को अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है, वह ज्योतिर्मय हो उठता है। यही सहजयोग आज महायोग है, क्योंकि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्र्चात् मनुष्य अपनी आत्मा से एकाकारिता प्राप्त कर आत्मस्वरूप चेतन को महसूस करता है। हाथों से बह रही ठंडी-ठंडी चैतन्य की लहरियॉं उसे वास्तविकता का ज्ञान कराती हैं। यह चैतन्य लहरियां विद्युत चुम्बकीय तरंगों की तरह होती हैं, जिसका स्त्रोत हृदय में स्थित आत्मा है। इन तरंगों को हम माप सकते हैं। एक स्टेशन (ब्रह्मशक्ति) से ये संचालित होता है और एक एन्टीना (आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के हाथ व सहस्त्रार) इन्हें ग्रहण करके दूरदर्शन उपकरण (व्यक्ति की बुद्धि, विचार) तक भेजता है। विद्युत चुम्बकीय लहरें केवल त्रिआयामी होती हैं जबकि सहजयोग में प्राप्त होने वाली चैतन्य लहरियॉं बहुआयामी होती हैं। इनमें भावनात्मक, मानसिक एवं शारीरिक शक्तियॉं मिश्रित होती हैं। ये सर्वव्यापी हैं। मनुष्य एक एन्टीना की तरह इन्हें प्राप्त कर पुनः संचारित करता है। दूसरे किसी व्यक्ति से आते हुए इन चैतन्य लहरियों को हम महसूस कर सकते हैं व उस व्यक्ति के चाों एवं नाड़ियों की स्थिति बगैर उसके पास जाए, उससे चर्चा किए बिना ही जान सकते हैं। यह बात अत्यन्त अविश्र्वसनीय प्रतीत होती है, परन्तु हमारे मस्तिष्क का सृजन इन्हीं तरंगों (चैतन्य लहरियॉं) से हुआ है तो ऐसा होना ही था। अन्य लोगों को यह चैतन्य लहरियॉं देने से ये तरंगें और भी अच्छी तरह से प्रवाहित होने लगती हैं, क्योंकि इनका स्रोत सामुहिकता को, पूर्ण को चाहता है।

परमपूज्य श्री माता जी निर्मला देवी की कृपा द्वारा इस महायोग से प्राप्त चैतन्य लहरियों के माध्यम से आज लाखों लोग अपने शरीर के पंच तत्वों में संतुलन स्थापित कर पूर्ण रूप से शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक व आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर हो रहे हैं। इस महायोग में व्यक्ति अकेले व्यष्ठि में साधना करके बहुत अधिक उन्नति नहीं कर सकता। सामुहिकता में ही इस साधना का वरदान है। चैतन्य का आदान-प्रदान कर हम आज के इस महायोग का पूर्ण लाभ अर्जित कर सकते हैं जिसका कि वर्णन सभी धर्मग्रन्थों में हमें मिलता है कि कलयुग में ही यह महायोग घटित होगा जबकि आदिशक्ति मानव रूप में अवतरित होंगी जो कि उनका “महामाया’ रूप होगा।

 

सहजयोग में आत्म साक्षात्कार पाने के पश्र्चात हमें सच व झूठ का ज्ञान होने लगता है। पहले हम प्रत्यक्ष में अनुभव करते हैं, तत्पश्र्चात् हमारा विश्र्वास बढ़ जाता है और हमारी शंका भी दूर हो जाती है तब हम सत्य के अंग-प्रत्यंग बन जाते हैं। सहजयोग को हमें अपने जीवन में धारण करना है, क्योंकि यह एक जीवन्त प्रिाया है। यह जीवन जीने की अपूर्व कला है और जीवन रक्षा की परम औषधी है। सभी कर्मों में योग करना श्रेष्ठ बताया गया है, क्योंकि इसके बिना हमारा व्यक्तित्व अधूरा रह जाता है, पर योग वही हो जो आत्म साक्षात्कार प्रदान करे, हमें परमपिता परमेश्र्वर से मिलाए। सहजयोग में यह कार्य सहज ही हो जाता है। इसीलिए इसे महायोग भी कहा गया है। हमारा व्यक्तित्व जड़ और चेतन दोनों के मेल से बना है। इसमें चेतना ही सत्य है, क्योंकि वह अपरिवर्तनशील है – केवल शरीर रमता है। हमें यह जानना है कि हम इन दोनों में से कौन हैं। आत्म साक्षात्कार के बाद हम जानते हैं कि हम शरीर नहीं “आत्मा’ हैं, जो कि अमर है। इस सत्य को पाने का नाम ही योग है। अतः योग हमें मृत्यु पर विजय दिलाता है और जीवन की शाश्र्वत सत्ता की हम में स्थापना करता है। अपनी चेतना में हम सत्य रूपी आत्मा को पा जाते हैं। श्रीमाताजी “निर्मला देवी’ की असीम अनुकंपा से यह अब संभव हो गया है। परमात्मा ही सत्य है तथा वे समस्त ब्रह्माण्ड के एकमात्र स्वामी, रचयिता, पालनकर्ता और संहार कर्ता हैं। हम लोग उनके अंग-प्रत्यंग हैं। कहीं कोई चिंता, भय, आशंका और मृत्यु नहीं है। केवल आनन्द ही आनन्द है और अमरता है। जीवन ही सत्य है और अंनत है। मौत तो केवल भ्रम है, मिथ्या है, कृत्रिम है।

अंधकार है कहॉं? नर्क है कहॉं? अज्ञानता है कहॉं? केवल प्रकाश ही प्रकाश है स्वर्ग का आनंद है, ज्ञान है। अखंड चेतना का साम्राज्य फैला हुआ है। प्रभु के साम्राज्य में मुक्त विचरण जैसा आनंद और कहॉं है? परमात्मा ने हमें यह सब कुछ दिया है जिसका कि प्रत्यक्ष अनुभव आज विश्र्व के 130 से भी अधिक देशों के लोगों ने सहज में ही सहजयोग द्वारा पाया है।

महासागर ने बूंद को अपने को दिया है, पर बूंद अत्यंत विनम्रता से समर्पण करके महासागर को प्राप्त कर सकती है, और वह हो सकता है। आज नजर उठा कर जहॉं देखिए, वहॉं हम पाते हैं कि सब कुछ कृत्रिम बनता जा रहा है। कृत्रिम मानव, कृत्रिम वर्षा, कृत्रिम हृदय आदि। कृत्रिमता से असंतुलन और प्रदूषण फैल रहे हैं जो कि जीवन के लिए एक बड़ा खतरा है। आत्म साक्षात्कार के बिना आज का मानव अंधेरे में चल रहा है। वह अपने आपको असहाय और असुरक्षित महसूस करता है। आज वह जो कुछ भी कर रहा है, उससे वह विनाश की ओर अग्रसर है। मानवीय चेतना के प्रदूषित हो जाने से वातावरण प्रदूषित हो रहा है। खाद्य, जल, वायु, ध्वनि आदि अनेक प्रकार के प्रदूषण हो रहे हैं। नैतिकता या चारित्रिक प्रदूषण समाज को कमजोर बना रहे हैं। व्यापारिकता में फंस कर धन-दौलत और झूठी प्रतिष्ठा अर्जित करने के लालच में इन्सान यह सब कर रहा है तथा इसके दुष्परिणाम की ओर उसका ध्यान नहीं है। आज अन्तरिक्ष में जाना कोई महान कार्य नहीं है। उत्तरी, दक्षिणी ध्रुव की खोज करना, भू-गर्भ और सागर के तल में जाना, हिमालय की चोटी पर चढ़ना आज कोई विशेष बात नहीं है। विशेष बात तो अपने तत्व को पाना है। सहज योग द्वारा यदि अन्तरिक्ष और अन्य ग्रहों जैसे चन्द्रमा, मंगल आदि पर जाने से स्वर्ग (स्वःग) अर्थात् “स्वः में जाने’ को मिलता तो वहॉं से लौटकर धरती पर वापस क्यों आना चाहिए? यदि दूसरे ग्रहों पर जाने के बाद भी आदमी मरेगा तो इससे अच्छा है कि धरती मॉं की गोद पर ही प्राण त्यागे। इसके लिए इतना अधिक परिश्रम, पैसे और समय की बर्बादी करना कौन-सी बुद्धिमानी है? यह सब अतिामण है। अपनी मौत को बुलावा देना है, पाना है तो अपने तत्व को पाना, अपनी अमरता को पाना, आनन्द को पाना चाहिए। आज सहजयोगी कितने भाग्यशाली हैं जो अपने आस-पास इतने असन्तुलित वातावरण व विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अमर जीवन-ज्योति को पा आनन्द में जीवन जी रहे हैं।

 

 

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