जेले हाउसफुल ; जेल बने या न्याय में तेजी लाई जाए? बडा सवाल

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा जेल हैं, सरकारें भले ही क्राइम फ्री राज्य की बात करें लेकिन यहां अपराध राज्यों के मुकाबले ज्यादा ही है। इसलिए यहां भी जेल हाउसफुल हैं। यही हाल बिहार का भी है। हरियाणा में तो कैदियों की संख्या इतनी हो गई कि वहां अच्छा व्यवहार रखने वाले कैदियों को जेल से बाहर रखने के लिए फ्लैट निर्माण करवाए जाने लगे।

जेेेेले हाउस फुल है- जेलो में कैदियो को भेेेड बकरी की तरह रखा जा रहा है, कैदियो को जेल से न्‍यायालय लाने वाली सुरक्षा वाहनो में ही उनको भेड बकरी की तरह भर कर लाया जाता है- ज्‍वलंत सवाल पर देश और समाज तथा मानवाधिकार आयोग का ध्‍यान दिला रहा है हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल- विशेष प्रस्‍तुति-

    आखिर कैदियों की संख्या कम की जाए या फिर नए जेल बनाए जाएं? इसका जवाब इस प्रश्न के ठीक उलट है। नए जेलों को बनाने की जरूरत नही है। जरूरत है न्यायालयों में फैसले को लेकर तेजी लाने की। जिससे तमाम केसों को जल्दी निपटाया जाय और दोषियों को सजा व निर्दोषों को बरी किया जाय। साथ ही अपराध में कमी लाकर भी कैदियों की संख्या कम की जा सकती है, इसके लिए सरकार और प्रशासन को चुस्त दुरुस्त होना होगा। कैदियों की संख्या बढ़ी, कम करने के लिए जेल बनाया जाए या न्याय में तेजी लाई जाए? ये सवाल अभी भी बरकरार है।

 कुछ दिन पहले राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National crime record Bureau) ने देश में मौजूद जेलों को लेकर एक आंकड़ा पेश किया है, आंकड़े के अनुसार भारत में कैदियों की संख्या कुछ इस कदर बढ़ी है कि जेलों में उन्हें रखने के लिए जगह ही नहीं बची है। साल 2015-17 के दौरान जेल में क्षमता से अधिक कैदी थे, इस अवधि में कैदियों की संख्या में 7.4 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। लेकिन इसी दौरान जेलों की क्षमता में 6.8 फीसदी की ही वृद्धि की गई। दरअसल कई बार हमें ये लगता है कि अपराध करने वाला इंसान दूसरी दुनिया का है। फिल्मों मे तो हमें ये बेहद पसंद है कि जब हीरो के पिता को गोली मार दी जाती है और वह बम से अपने पिता के हत्यारों को उड़ा देता है। पर रियल लाइफ में हमें ये बिल्कुल भी पंसद नहीं हैं। सही भी है आखिर किसी अपराधी को क्यों छूट देना। पर हमारी न्याय पालिका थोड़ी सुस्त है वह कई बार बिना आरोप साबित हुए ही लोगों को जेल के भीतर रखती है और जब मामला क्लीयर होता है तो पता चलता है कि व्यक्ति जिस गुनाह की सजा काट रहा था असल में उसने वो किया ही नहीं है।

आंकड़ों की माने तो साल 2015 में कैदियों की संख्या 3.66 लाख थी जो साल 2016 में 3.80 लाख पर पहुंच गई। इसके बाद भी कैदियों की संख्या में किसी तरह की कोई कमी नहीं हुई और साल 2017 में कैदियों की संख्या 3.91 पर पहुंच गई। नए जेल निर्माण की बातें तो की गई पर उसकी फाइल सरकारी आफिसों का ही चक्कर लगाती रही, साथ ही देश की न्याय व्यवस्था ने भी किसी तरह की कोई तेजी नहीं दिखाई जिसका नतीजा ये हुआ कि साल दर साल कैदी बढ़ते चले गए।

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा जेल हैं, सरकारें भले ही क्राइम फ्री राज्य की बात करें लेकिन यहां अपराध राज्यों के मुकाबले ज्यादा ही है। इसलिए यहां भी जेल हाउसफुल हैं। यही हाल बिहार का भी है। हरियाणा में तो कैदियों की संख्या इतनी हो गई कि वहां अच्छा व्यवहार रखने वाले कैदियों को जेल से बाहर रखने के लिए फ्लैट निर्माण करवाए जाने लगे। करनाल और रोहतक जेलों के बाहर तो निर्माण पूरा भी होने लगा है।

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