UK;Devbhoomi; जाख देवता का नर रूप में अंगारों पर नृत्य/आशीर्वाद

नर देवता अग्निकुण्ड में नाचता है,अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं  परन्तु उसके नंगे पैरों पर लेशमात्र भी प्रभाव नहीं पड़ता  अग्निकुण्ड की राख भभूत हर मर्ज की दवा  जाखराजा के दर्शन करते हैं, उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। अंगारों से इतनी तेज आंच आती है कि कोई भी इनके सामने खड़ा नहीं रह सकता है. (www.himalayauk.org) Web & Print Media 

photo: भगवान के नर रुप में अवतरित पश्वा कई बाद्यय यन्त्रों की थापों पर आवेशित होकर अर्घनग्न शरीर के साथ इस कुण्ड में प्रवेश करते हैं 

जाख देवता के मंदिर में प्रतिवर्ष बैशाखी पर्व पर जाख देवता नर के रूप रूप में अवतरित होकर धधकते अंगारों पर नृत्य करते हैं। केदारनाथ घाटी के प्रसिद्ध जाख मेले में जैसे ही धधकते अंगारों पर जाख देवता के पश्वा ने अग्निकुंड में प्रवेश कर नृत्य करते है, वहां पहुंचे सैकड़ों श्रद्धालुओं के शीश श्रद्धा से झुक जाते है दौरान पूरा मंदिर प्रांगण यक्षराज के जयकाराें से गूंज उठता है ।
गुप्तकाशी के जाखधार में दो गते बैसाख को आयोजित होने वाले प्रसिद्ध जाख मेले के आयोजन को लेकर बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते है। मेले से पूर्व कोठेड़ा के पुजारियों, देवशाल के वेदपाठियों और नारायणकोटि के सेवक-श्रद्धालुओं द्वारा विधि-विधान से अग्नि कुंड की रचना की जाती है। बैसाख संक्रांति को ही अग्नि प्रज्वलित की जाती है और अग्निकुंड की रात को चार पहर की पूजा की जाती है।
यक्षराज जाख देवता के पश्वा ने नारायणकोटि गांव से कोठेड़ा और देवशाल होते हुए अपराह्न पौने तीन बजे जाख मंदिर में बने अग्निकुंड में प्रवेश करते है  वैसे ही पूरा परिसर यक्षराज के जयकाराें से गुंजायमान हो उठा। कई जोड़े ढोल-दमांऊ की गर्जना और पारंपरिक बाध्य यंत्रों की थाप पर जाख देवता धधकते अग्निकुंड अद्भुत नृत्य करते है। नृत्य के बाद पावन राख को प्रसाद के रूप में श्रद्धालु अपने साथ ले जातेे है ।

गुप्तकाशी से 7 किमी. दूर जाखधार में प्रति वर्ष वैशाख में लगने वाला ‘बिखोत मेला’ नयी सोच के लोगों के लिये शोध का विषय है। यहाँ तेरह गाँवों का देवता जाख, भक्त लोगों की वर्षा या धूप की फरियाद अवश्य पूरी करता है। जाख, यक्ष का दूसरा रूप है। वनवास में रह रहे पांडव जब एक पोखर में प्यास बुझाने पहुँचे तो पोखर के रखवाले यक्ष के जवाब न देने के कारण मर गये। अन्ततः युधिष्ठिर ने सभी प्रश्नों का उत्तर देकर अपने भाइयों के प्राण बचाये। किंवदन्ती है कि वह जलाशय यही है। अब उस जलाशय में पेड़ों के टुकड़े काटकर धधकती अग्नि में जाख देवता लाल-लाल अंगारों पर नाचता है। माना जाता है कि उस पल देवता को कोयलों की जगह पानी ही नजर आता है। आश्चर्य वाली बात यह है कि नर देवता लगभग 3 मिनट तक इस अग्निकुण्ड में नाचता है, परन्तु उसके नंगे पैरों पर लेशमात्र भी प्रभाव नहीं पड़ता। हजारों हजार लोग  इस दृश्य को देखते हैं।  स्थानीय लोगों के साथ देश-विदेश के पर्यटक भी उपस्थित रहते हैं।  अग्निकुण्ड की राख लोग अपने घर ले जाते हैं। मान्यता है कि यह भभूत हर मर्ज की दवा है। यह रहस्य अभी भी वैज्ञानिकों के लिये खोज का विषय है।
गुप्तकाशी क्षेत्र अंतर्गत जाख मंदिर में बैशाखी पर्व पर विशेष रूप से आस्थावान लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। जाखमेला धार्मिक भावनाओं एवं सांस्कृतिक परम्पराओं से जुड़ा हुआ है। इस मेले में भगवान जाखराजा के पश्वा दहकते अंगारों के बीच नृत्य कर श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देते हैं, मेले का यह दृश्य आस्थावान लोगों को अपने ओर आकर्षित करता है। दूर दराज से बड़ी संख्या में भक्त इस अवसर पर दर्शन हेतु पहुंचते हैं।
ऊखीमठ के विभिन्न गांवों के साथ ही बड़ी संख्या में लोगों की आस्था जाख मेले से जुड़ी हुई है। यह मेला प्रतिवर्ष बैशाखी के दिन ही लगता है। चौदह गांवों के मध्य स्थापित जाखराजा मंदिर में प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष वर्ष भी देवशाल व कोठेडा के ग्रामीणों के आपसी सहयोग से मेले की तैयारियां शुरू कर दी गई है।

मेला शुरू होने से दो दिन पूर्व से भक्तजन बड़ी संख्या में पौराणिक परंपरानुसार नंगे पांव, सिर में टोपी और कमर में कपड़ा बांधकर लकडियां, पूजा व खाद्य सामग्री एकत्रित करते हैं तथा भव्य अग्निकुंड तैयार किया जाता है। इस अग्निकुंड के लिए हर वर्ष अस्सी कुंतल से अधिक कोयला एकत्रित किया जाता है।

वैशाखी के पर्व पर मेले के दिन नारायणकोटी गांव से ढोल-दमाऊ के साथ भगवान जाखराजा के पश्वा कोठेडा व देवशाल होते हुए मंदिर परिसर पहुंचते हैं। इसके बाद पूजा-अर्चना एवं ढोल सागर पर देवता के पश्वा को अवतरित किया जाता है। तब देवता के पश्वा नंगे पांव अग्निकुंड में प्रवेश करके दहकते अंगारों के बीच काफी देर तक नृत्य करते हैं।

और वहीं से अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। इस मेले को देखने के लिए दूर-दराज के गांवों के लोग बड़ी संख्या में आते हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से जाख मेले में आकर जाखराजा के दर्शन करते हैं, उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। 
उत्तराखण्ड की केदारघाटी में कई पौराणिक रहस्य आज भी छिपे हुए हैं. यहां कई तीर्थ स्थल ऐसे हैं जो प्रचार प्रसार के अभाव में अपनी विश्वस्तरीय पहचान नहीं बना पा रहे हैं.
ऐसा ही एक स्थल है जहां पर भगवान जाख नर रुप में अवतरित होकर दहकते हुए अंगारों में नृत्य करते हैं और उसके गवाह बनते है हजारों भक्त. रुद्रप्रयाग गौरीकुण्ड राजमार्ग के गुप्तकाशी कस्बे से करीब 5 किमी दूर जाखधार में हर वर्ष बैशाखी के दूसरे दिन एक बड़ा घार्मिक अनुष्ठान होता है.
इस आयोजन में हजारों की तादाद में श्रद्धालु उमड़ते हैं. जाखधार में भगवान जाख देवता का मन्दिर है. मान्यता है कि सम्वत 1111 में यहां पर भगवान का प्राकटय हुआ था. प्राचीन किवंदन्तियों के अनुसार यहां के स्थानीय चरवाहे भेड़ बकरियों के साथ जंगल गए थे जहां पर उन्हें एक अलग सा पत्थर का टुकड़ा दिखाई दिया. चरवाहे ने पत्थर को अपनी घास की कण्डी में यह समझ कर रख लिया कि भेड़ो की ऊन को साफ करने के काम आएगा. घर वापसी पर वह पत्थर भारी हो गया और कण्डी पर लगी डोरी टूट गई और पत्थर जाखधार में ही स्थापित हो गया.
बाद में चरवाहे के सपने में भगवान जाखराज ने दर्शन दिए और वहां पर विराजमान होने की बात कही. जाखदेवता को यक्षराज भी कहा जाता है. और वर्षा के देवता के तौर पर भी इनको जाना जाता है. कोई इन्हें शिव स्वरुप मानता है तो कोई उन्हें विष्णु स्वरुप मानता है. स्थानीय पुजारी कहते हैं कि जब भगवान यक्षराज दहकते हुए अंगारों में नृत्य करते हैं तो वह नारायण स्वरुप रहते हैं अन्यथा वह शिव स्वरुप हैं.
बैशाखी के दिन से ही पूरी परंपराओं और विधान के अनुसार जंगल से भारी लकड़ियां इक्कठा की जाती हैं और उनको प्रज्वलित किया जाता है स्थानीय बांझ पेड़ की इन लकड़ियां के जलते हुए अंगारों से इतनी तेज आंच आती है कि कोई भी इनके सामने खड़ा नहीं रह सकता है.
भगवान के नर रुप में अवतरित पश्वा कई बाद्यय यन्त्रों की थापों पर आवेशित होकर अर्घनग्न शरीर के साथ इस कुण्ड में प्रवेश करते हैं और नृत्य करते हैं कई बार तो भगवान पांच बार कुण्ड में प्रवेश करते हैं मगर जब भगवान नाराज हाेते है, तब सिर्फ एक बार प्रवेश करते हैं ; वैशाख होने वाले इस आयोजन को लेकर लोगों में काफी उत्साह रहता है और यही कारण है कि भगवान के नारायण स्वरुप को देखने के लिए यहां पर हजारों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं बाद में उसी अग्नि कुण्ड की राख को प्रसाद के रुप में अपने घरों को ले जाते हैं.

Only Presents by HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal & Daily Newspaper) Mob. 9412932030, 8218227994

Mail; csjoshi_editor@yahoo.in & himalayagauravukhrd@gmail.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *