झारखंड मतदान जारी ; बीजेपी का सीधा मुक़ाबला गठबंधन से- स्थिति दमदार नही

30 Nov. 2019 : Himalayauk Bureau # झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण का मतदान जारी है। 81 सदस्यीय विधानसभा वाले इस राज्य में  आज 13 सीटों पर चुनाव हैं। इन सीटों पर विपक्ष का पलड़ा भारी लगता है। इसकी वजह यह है कि इन सीटों पर बीजेपी के सामने झामुमो-कांग्रेस-आरजेडी एकजुट होकर मैदान में उतरी हैं। कुछ सीटों पर तिकोना मुक़ाबला है, लेकिन कुछ जगहों पर बीजेपी को छोड़कर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे लोगों ने पार्टी को मुसीबत में डाल रखा है। झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए झामुमो ने कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के साथ गठबंधन बनाया है।  महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद कांग्रेस अचानक ऊर्जावान दिखने लगी है।

शनिवार को जिन 13 सीटों के लिए मतदान है, उनमें से सभी सीटों पर बीजेपी और गठबंधन के उम्मीदवारों के बीच सीधी टक्कर है। ये हैं चतरा, गुमला, विशुनपुर, लोहारदगा, मणिका, लातेहार, पनकी,डाल्टनगंज, विश्रामपुर, छतरौर, हुसैनाबाद, गढ़वा और भवनाथपुर। बीजेपी हुसैनाबाद से निर्दलीय उम्मीदवार विनोद कुमार सिंह का समर्थन कर रही है। बाकी सभी 12 सीटों पर उसने अपने उम्मीदवार उतारे हैं। 

झारखंड मुक्ति मोर्चा यानी झामुमो, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल यानी राजद के बीच एक फ़ॉर्मूले पर सहमति बन गई है। माना जा रहा है कि इसकी घोषणा आज की जाएगी। महागठबंधन से बीजेपी को कड़ी चुनौती मिलने की संभावना है।  गठबंधन की ओर हर सीट पर एक ही उम्मीदवार है। इन 13 सीटों में से कांग्रेस ने 6, झामुमो ने 4 और आरजेडी ने 3 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं।  इन सभी सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवारों का सीधा मुक़ाबला विपक्षी गठबंधन के उम्मीदवार से है, यानी विपक्षी वोट बँट नहीं रहा है। इन 13 सीटों में से कांग्रेस 6, झामुमो 4 और आरजेडी ने 3 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं।  

ऑल इंडिया झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) ने पिछले विधानसभा चुनाव बीजेपी के साथ मिल कर लड़ा था। इस बार वह उसके ख़िलाफ़ चुनाव मैदान में है। आजसू ने इस बार लातेहार में अपना उम्मीदवार उतारा है, जो बीजेपी के सामने है। पिछले चुनाव में यह सीट आजसू ने जीती थी। ज़ाहिर है, बीजेपी के लिए लातेहार सीट निकालना आसान नहीं होगा। 

पूर्व मुख्य मंत्री बाबू लाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास पार्टी भी चुनावी मैदान में है। मरांडी की पार्टी अपने बूते चुनाव लड़ रही है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि उसके पीछे बीजेपी का परोक्ष समर्थन है क्योंकि वह विपक्षी वोटों को काट सकेगी, जिससे सत्तारूढ़ दल को फ़ायदा होगा। कांग्रेस ने रामेश्वर ओरांव को लोहरदगा में उतारा है। कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार पनकी, बिश्रामपुर, भवनाथपुर, मणिका और डाल्टनगंज में भी उतारे हैं। झामुमो ने गुमला, लातेहार, गढ़वा और विष्णुपुर में अपने उम्मीदवार उतारे हैं तो आरजेडी चतरा, छतरपुर और हुसैनाबाद में मैदान में है। 

साल 2011 की जनगणना के अनुसार, झारखंड में अनुसूचित जनजातियों के लोगों की जनसंख्या 86, 45,042 है, जो पूरी जनसंख्या 3.19 करोड़ का लगभग 28 प्रतिशत है। इसी तरह राज्य में अनूसूचित जातियों की आबादी 11.8 प्रतिशत या 37 लाख के आसपास है। झारखंड में दूसरे पिछड़े वर्ग यानी ओबीसी की जनसंख्या 27 प्रतिशत यानी लगभग 85 लाख है। 

क्या झामुमो ने झारखंड विधानसभा चुनावों में वोटों के ध्रुवीकरण के लिए एससी, एसटी, ओबीसी आरक्षण का कार्ड खेला है? क्या एससी, एसटी, ओबीसी को अपने पाले में लाने और अगड़ों-पिछड़ों के बीच के विभाजन को और तीखा करने के मक़सद से झारखंड मुक्ति मोर्चा ने घोषणा की है कि वह सत्ता में आई तो इन वर्गों के लोगों के लिए सरकारी नौकरियों में 67 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की जाएगी?

झामुमो ने मंगलवार को जारी अपने घोषणापत्र में कहा है कि उसकी सरकार बनी तो अनुसूचित जनजातियों के लिए 28 प्रतिशत, दूसरे पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत और अनुसूचित जातियों के लिए 12 प्रतिशत आरक्षण लागू करेगी।  यानी यह साफ़ है कि राज्य की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा इस फ़ैसले से लाभान्वित होगा। अब तक राज्य में इन तीनों श्रेणियों को कुल मिल कर लगभग 50 प्रतिशत आरक्षण मिलता है। यानी यह साफ़ है कि राज्य सरकार को बिल ला कर महत्वपूर्ण बदलाव करने होंगे। 

2014 के राज्य विधानसभा  चुनाव  में बीजेपी और ऑल इंडिया झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) को 81 में से 42 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, यानी उसे बहुमत मिल गया था। उसके बाद इस बार के लोकसभा चुनावों में राज्य में बीजेपी-आजसू को 14 में से 13 सीटें मिलीं। इन दोनों ही नतीजों को ज़बरदस्त जीत माना जा सकता है। 

लोकनीति-सीएसडीएस ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत की मुख्य वजह उसे अगड़ी जातियों और ओबीसी से बड़े पैमाने पर वोट मिलना है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अगड़ों में 50 प्रतिशत से ज़्यादा मतदाताओं ने बीजेपी को वोट दिया तो 40 प्रतिशत ओबीसी मतदाताओं की पसंद भी बीजेपी ही थी।  राज्य में 25 सीटें ऐसी हैंं, जहाँ एसटी वोट ज़ोरदार बहुमत में हैं और वे ही जीत-हार का फ़ैसला करते हैं। इन 25 में से बीजेपी को 11 और झामुमो को 12 सीटों पर जीत हासिल हुई। कांग्रेस को 10.8 प्रतिशत वोट तो मिले, पर इन 25 आदिवासी-बहुल सीटों में से एक पर भी जीतने में कामयाब नहीं हुई। 

ओबीसी और अनुसूचित जाति के लोगों को अपनी ओर खींचने की झामुमो की कोशिश की एक बड़ी वजह साफ़ हो जाती है जब हम 2014 के वोटिंग पैटर्न पर थोड़ी और गहराई से नज़र डालते हैं। मोटे तौर पर बीजेपी की छवि ग़ैर-आदिवासियों और दिकू (बाहरी) लोगों की पार्टी के रूप में रही है। उसे ग़ैर-आदिवासियों के वोट का बड़ा हिस्सा मिला।नीति-सीएसडीएस ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2014 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने इस ग़ैर-आदिवासी वोट बैंक को और मजबूत किया।

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