स्कूल का शर्मीला छात्र बन गया मानव बम?

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकवादी हमले में 44 जवान शहीद हो गए हैं। आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के एक आतंकी आदिल अहमद डार ने इस आत्‍मघाती हमले को अंजाम दिया है। इस घटना में आतंकी डार ने विस्फ़ोटकों से लदे वाहन से सीआरपीएफ जवानों की बस को टक्कर मार दी।  हमला और विस्फोट श्रीनगर-जम्मू हाइवे पर हुआ, जो राजधानी से करीब 20 किलोमीटर दूर है. पूरे देश में सबसे कड़ी सुरक्षा व्यवस्था वाला हाइवे है यह. जैश के साथ जितने आतंकी जुड़े हैं, उसकी वजह से यह हमला सुरक्षा एजेंसियों को बिल्कुल हतप्रभ कर गया है. इतना ज्यादा विस्फोटक यहां ला पाना असंभव है-

 कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर देश को यह सोचने के लिए मज़बूर कर दिया है कि कश्मीर में आतंकवादी हमले क्यों कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं और क्यों कश्मीरी युवाओं में आतंकवाद को लेकर आकर्षण बढ़ता ही जा रहा है।  भारत की सुरक्षा एजेंसियों की सबसे बड़ी चिंता यह है कि आतंकी संगठनों से जुड़ने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। इससे भी ज़्यादा चिंताजनक बात यह है कि कई पढ़े-लिखे युवा भी इन संगठनों में शामिल हो रहे हैं। एजेंसियों के अधिकारियों का कहना है कि बाहर से आए आतंकी जैश-ए-मुहम्मद या लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े हुए हैं। अधिकारियों के मुताबिक़, घाटी में 271 आतंकियों ने शरण ली हुई है और इसमें से 65 भारत से बाहर के हैं।  जम्मू-कश्मीर पुलिस की सीआईडी की रिपोर्ट के अनुसार, इन आतंकी संगठनों से जुड़ने वाले युवाओं में 32 फ़ीसदी युवा कक्षा 10 पास हैं। इन संगठनों में शामिल अंडर ग्रेजुएट और ग्रेजुएट युवाओं की संख्या 19 फ़ीसदी है। 7 फ़ीसदी पोस्ट ग्रेजुएट युवा इन संगठनों से जुड़े हैं और 7 फ़ीसदी ऐसे लोग हैं जो पढ़े-लिखे नहीं हैं। 

जो खाली बैठे हैं, बेरोज़गार हैं और जिनको आतंकवाद और हथियार आकर्षित करते हैं।  केंद्रीय गृह मंत्रालय को मिली जम्मू-कश्मीर पुलिस की सीआईडी रिपोर्ट में कश्मीर में आतंकवादी बनने वालों का लेखा-जोखा दिया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक़, आतंकी बनने वालों में 65 फ़ीसदी संख्या उन युवाओं की है जो स्वभाव से धार्मिक हैं जबकि 10 फ़ीसदी युवा ऐसे हैं जो वैसे तो धार्मिक नहीं हैं लेकिन कश्मीर में आस-पास के हालात से गुमराह होकर आतंक के रास्ते पर चल पड़े हैं। इन आतंकियों में 3 फ़ीसदी नशेड़ी और 22 फ़ीसदी वे युवा हैं जो खाली बैठे हैं, बेरोज़गार हैं और जिनको आतंकवाद और हथियार आकर्षित करते हैं। 

दुनिया में सोशल मीडिया का इस्तेमाल लगातार बढ़ता जा रहा है, कश्मीर भी इससे अछूता नहीं है। कश्मीर के युवाओं में भी सोशल मीडिया का आकर्षण दिनों-दिन बढ़ा है। वह अपनी रोजाना जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा फ़ेसबुक, ट्विटर या फिर इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म पर गुज़ारते हैं। सीआईडी की रिपोर्ट के मुताबिक़, 2015 तक कश्मीर में 70 फ़ीसदी युवा सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं।  सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म पूरी दुनिया में आतंकवादी बनाने का एक बड़ा जरिया बन गया है। जैश-ए मुहम्मद जैसे आतंकी संगठन सोशल मीडिया पर ऐसे युवाओं की तलाश में रहते हैं जिन्हें वे अपने जाल में फंसा सकते हैं और फिर जेहाद के नाम पर उनका ब्रेनवॉश कर उन्हें आतंकवादी बना देते हैं। आदिल अहमद डार और बुरहान वानी जैसे आतंकवादी बड़ी आसानी से जैश के जाल में फंसकर आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देते हैं।

स्कूल में आदिल अहमद दार शर्मीला और अंतर्मुखी यानी खुद में ही सीमित में रहने वाला छात्र था. बमुश्किल ही वो खेल या किसी गतिविधि में शामिल होता था. उसके एक दोस्त ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वो औसत छात्र था. हमेशा क्लासरूम में अकेला रहता था. 12वीं क्लास के बाद उसने पढ़ाई बंद कर दी थी. पुलिस सूत्रों के मुताबिक, मार्च 2018 में वह जैश-ए मोहम्मद में शामिल हो गया.

300 किलो विस्फोटक के साथ एसयूवी गाड़ी को सीआरपीएफ के काफिले से टकरा देने से पहले उसने एक वीडियो रिकॉर्ड किया था. इसमें उसने युद्ध का एक किस्म से महिमामंडन किया था. वीडियो संदेश से साफ होता है कि जैश-ए मोहम्मद किस निर्दयता के साथ काम करता है और कैसे उसने गांव के एक शर्मीले के बच्चे को मानव बम में तब्दील कर दिया.

हमले के बाद सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस वीडियो में दार ने कहा था, ‘हमारे लोगों को सलाम, जिन्होंने भारतीयों की ताकत के सामने समर्पण नहीं किया. हम आपसे अत्याचार रोकने के लिए रहम की भीख नहीं मांग रहे हैं. हम वो हाथ तोड़ देंगे, जो हम पर अत्याचार क लिए उठेंगे. यह कदम मसूद अजहर के भतीजे की हत्या के खिलाफ बदला है.’

सुरक्षा संस्थानों से जुड़े सूत्रों का कहना है कि यह हमला काफी कुछ कहता है. कैसे जैश इस मामले में अपनी रणनीति बदल रहा है. सुरक्षा बलों ने पिछले कुछ सालों में 250 से ज्यादा आतंकी मारे हैं. इसमें तमाम संगठनों के टॉप कमांडर्स शामिल हैं. दार उर्फ वकास दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले में काकपोरा गांव के गांदी बाग का निवासी था. वह 21 मार्च, 2018 को जैश के साथ जुड़ा. उसके साथ कुछ और कश्मीरी युवक थे. आरोप है कि सुरक्षा बलों ने जैश के साथ जुड़ने के बाद पिछले साल जून में कई घर जला दिए, जिसमें उसका घर भी शामिल था.

हमले के बाद सुरक्षा बलों ने दक्षिण कश्मीर के बहुत से गांवों में सघन जांच शुरू की है. लेकिन नुकसान तो हो ही गया. पिछले तीन दशक में इस तरह का यह दूसरा हमला है. सुरक्षा बलों को नुकसान के मामले में यह यकीनन सबसे बड़ा हमला है.

 जिस तरह हमले की योजना बनी और इसकी तामील की गई, वो यकीनन एजेंसियों के लिहाज से बड़ी सुरक्षा चूक है. यह बात जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भी स्वीकारी है. उन्होंने कहा, ‘हमारे पास इंटेलिजेंस इनपुट थे, लेकिन चूक की वजह से हम उस गाड़ी का पता नहीं कर पाए, जिसमें विस्फोटक भरे हुए थे.’

आदिल अहमद डार की पहचान पुलवामा के काकापोरा के रहने वाले के तौर पर हुई है। जानकारी मिल रही है कि आदिल 2018 में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद में शामिल हुआ था। इस हमले के बाद जैश-ए-मुहम्मद ने आदिल डार का एक वीडियो जारी किया है। वीडियो को देखकर लगता है कि हमले से पहले उसका ब्रेनवॉश किया गया था। वीडियो को देखकर लगता है कि पुलवामा के आत्मघाती हमले पर निकलने से पहले फ़िल्माया गया है। डार ने इस वीडियो में दावा किया है कि वह पिछले साल जैश-ए-मुहम्मद में शामिल हुआ था और उसको इस हमले की जिम्मेदारी दी गई थी। 

किसी स्थानीय कश्मीरी का आत्मघाती हमलावर बनने का शायद यह पहला मामला है। अभी तक आत्मघाती हमले सीमापार के आतंकियों के जरिये कराए जाते थे जिनका धर्म के नाम पर ब्रेनवॉश किया जाता था और उन्हें यह समझाया जाता था कि वे जिहाद कर रहे हैं। लेकिन अब एक स्थानीय कश्मीरी के आत्मघाती बनने से ख़तरा काफ़ी बढ़ गया है। इससे इस बात का पता चलता है कि आतंकी संगठन ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है और उन्हें आत्मघाती हमले करने के लिए स्थानीय लोग मिलने लगे हैं। यह भारत के लिए एक ख़तरनाक संकेत है। 

धमाका इतना ज़बरदस्त था कि बस के परखच्चे उड़ गए और आस पास शव बिखर गए। विस्फोट की यह घटना श्रीनगर-जम्मू राजमार्ग पर अवंतिपुरा इलाक़े में हुई। 

 हमले की जिम्मेदारी लेने वाले आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद ने दिसंबर 2001 को संसद भवन पर हुए आतंकी हमले को भी अंजाम दिया था। जैश-ए-मुहम्मद का उद्देश्य भारत से कश्मीर को अलग करना है। इसकी स्थापना मौलाना मसूद अजहर ने की थी। मौलाना मसूद अज़हर को छुड़ाने के लिए ही साल 1999 में आतंकियों ने कंधार में विमान का अपहरण किया था।

सितंबर 2002 को लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद के दो आतंकियों ने गुजरात के गांधी नगर में अक्षरधाम मंदिर में हमला किया था। 2016 को पठानकोट में जैश-ए-मोहम्मद ने पठानकोट एयरफ़ोर्स स्टेशन पर हमला किया था और इसमें 7 जवान शहीद हो गए थे।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘दक्षिण कश्मीर में इंटेलिजेंस की स्थिति पिछले कुछ साल में बहुत मजबूत हुई है. इसके बावजूद गाड़ी में विस्फोटक भरने और विस्फोट करने का काम जैश ने किया है. यह चिंताजनक है. विस्फोटक कहां से लाए गए. इन्हें एक साथ कैसे रखा गया, इसकी जांच करने के बाद ही मामले की तह तक पहुंचा जा सकता है.’

चिंता की बात यह भी है कि पिछले साल मारे गए 250 और उससे पहले 29 साल में मारे गए हजारों आतंकी जो नहीं कर पाए, वो काम दार ने किया है. पुलिस सूत्रों के मुताबिक शहीद हुए 42 जवानों में ज्यादातर छुट्टी से लौटे थे. वे 78 गाड़ियों के काफिले का हिस्सा थे, जो करीब 2,500 जवानों के साथ जा रहा था.

मसूद अजहर ने जनवरी 2000 में जैश का गठन किया था. 1999 में उसे कंधार विमान अपहरण के मामले में छोड़ा गया था. उसे छोड़ने के बाद कश्मीर समस्या ने एक अलग रुख ले लिया था. कलाश्निकोव के साथ दिखने वाले लोगों की जगह फिदायीन दस्ता लेने लगा था.

कई साल की खामोशी के बाद जैश ने 2013 के अंत में वापसी की, जब मसूद अजहर ने 2001 संसद हमले के दोषी अफजल गुरु की कहानी आईना उसके मरने के बाद रिलीज की. 240 पेज की इस किताब में जैश प्रमुख ने अफजल गुरु की तारीफ की और भारत सरकार पर इस बात के लिए हमला बोला कि उसने अफजल को बेरोजगार, चेन स्मोकर युवा के तौर पर पेश किया, जिसे मामूली कीमत पर खरीदा जा सकता था. उसकी मौत के एक साल पूरे होने पर अफजल गुरु स्क्वॉड नाम का आउटफिट बनाया गया. इस स्क्वॉड ने पूरे कश्मीर और बाहर भी अफजल गुरु के नाम पर हमले करने शुरू किए.

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