‘जॉर्ज द जायंट किलर’; महाबली का जाना

महाबली की हालत समय चक्र के कोप की कहानी #उत्‍तराखण्‍ड गठन के दौरान जार्ज फर्नाण्‍डीस का अविस्‍मरणीय योगदान # मध्यावधि चुनाव में वह एक मात्र निर्विरोध नेता के रूप में उतरे # प्रधानमंत्री वाजपेयी के मंत्रिमंडल में वह एकमात्र ईसाई थे और अटल जी के अभिन्‍न सहयोगी थे # पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में पोखरन में न्‍यूक्लियर टेस्‍ट करके दुनिया के सामने भारत की ताकत को साबित किया # भारतीय राजनीति में अपना एक अलग मुकाम रखने वाले जॉर्ज फर्नांडिस को अंग्रेजी सहित 9 अन्य भारतीय भाषाओं के जानकारी थी। वे हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी में धारा प्रवाह बोलते व लिखते तो ही साथ में तमिल, मराठी, कन्नड़, उर्दू, मलयाली, तुलु, कोंकणी और लैटिन भाषाओं का अच्छा ज्ञान रखते थे # देश में जब 1967 के लोकसभा चुनाव हुए तो वे बंबई के एक कद्दवार नेता के खिलाफ उतरने की तैयारी कर डाली और उस समय के बड़े कांग्रेसी नेताओं में से एक एसके पाटिल को बॉम्बे साउथ की पर हरा दिया। इस सीट पर जैसे ही उन्होंने पाटिल को हराया तो लोग उन्हें ‘जॉर्ज द जायंट किलर’ कहकर बुलाने लगे # कोका कोला को देश छोड़ने का निर्देश #
# कोका कोला को देश छोडो- संसद भवन थाना परिसर में गिरफतारी देते अनिल हैगडे के साथ चन्‍द्रशेखर जोशी व अन्‍य साथी- # चन्‍द्रशेखर जोशी की कलम सेे :Trade unionist, politician, ex-defence minister Fernandes dies at 88

  भाग्य में विश्वास न करने वाले भी समय चक्र के महत्व को किसी न किसी रूप में स्वीकार करते ही हैं। इसका सबसे ज्‍यादा अनुभव  उस भुक्तभोगी को होता है अथवा उसके निकट स्वजनों को, जो सचमुच उसके हितैषी रहे हैं। हिमालयायूके  वेब एण्‍ड प्रिन्‍ट मीडिया देहरादून के सम्‍पादक  चन्‍द्रशेखर जोशी जार्ज साहब के करीबी  रहे, यू समझ लीजिये कि इस खांटी नेता से कांग्रेस के उन वरिष्‍ठ मंत्रियो के दुख दर्द दूर कराये जो समय की चक्‍की में पिसने जा रहे थे, और उत्‍तराखण्‍ड गठन के समय जार्ज साहब का योगदान कभी भूलाया नही जा सकता, कभी भारतीय राजनीति के पुरोधाओं में शुमार किये जाने वाले जार्ज फर्नांडीस ने बिहार में एक समय्ा के सबसे बडे मजदूर नेता, जिसने पूरे देश में रेल का चक्का जाम करा दिया था, इसके अलावा जार्ज फर्नांडीस ने  डेढ दशक के लालू-राबडी राज का खात्मा किया था।

अपने युग का जांइट किलर, फायर ब्रांड, ज्ञानी,आम आवाम के लिए जिंदगी का हर पल अर्पित करने वाली महान शख्सियत को अनुकरणीय श्राद्धनजलि अर्पित है। कोटि कोटि वंचित, शोषित, दुखियों के तांरणहार असंख्य युवाओं को यथास्थितीवादी राजनीति को जमींदोज कर नयी समाज का निर्माता बनाने वाले महान गुरूवर आपके चरंणों में स शपथ आज आपके निर्वाण दिवस पर वचनबध्य होता हूं, डा. लोहिया के बताऐ जिस मार्ग ,कार्यक्रमोंपर आप चले उन्हें पूरा करने अपना शेष जीवन अर्पित करता हूँ – राजापटैरिया

वे श्रमिक संगठन के भूतपूर्व नेता, तथा पत्रकार थे वे राज्यसभा और लोकसभा के सदस्य रह चुके हैं। उन्होने समता पार्टी की स्थापना की। वे भारत के केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में रक्षामंत्री, संचारमंत्री, उद्योगमंत्री, रेलमंत्री आदि के रूप में कार्य कर चुके हैं। आजकल उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है और वे एकाकी जीवन जी रहे हैं। चौदहवीं लोकसभा में वे मुजफ़्फ़रपुर से जनता दल (यूनाइटेड) के टिकट पर सांसद चुने गए। वे 1998 से 2004 तक की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की केन्द्रीय सरकार में रक्षा मंत्री थे।  1977 में, आपातकाल हटा दिए जाने के बाद, फर्नांडीस ने अनुपस्थिति में बिहार में मुजफ्फरपुर सीट जीती और उन्हें इंडस्ट्रीज के केंद्रीय मंत्री नियुक्त किया गया। केंद्रीय मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने निवेश के उल्लंघन के कारण, अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों आईबीएम और कोका-कोला को देश छोड़ने का आदेश दिया। वह 1989 से 1990 तक रेल मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान कोंकण रेलवे परियोजना के पीछे प्रेरणा शक्ति थीं। वह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार (1998-2004) में रक्षा मंत्री थे, जब कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान और भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किए एक अनुभवी समाजवादी, फर्नांडीस को बराक मिसाइल घोटाले और तहलका मामले सहित कई विवादों से डर लगता है। जॉर्ज फर्नांडीस ने 1967 से 2004 तक 9 लोकसभा चुनाव जीते।

उत्‍तराखण्‍ड राज्‍य गठन के दौरान उधम सिंह नगर को उत्‍तराखण्‍ड में शामिल न किये जाने की मांग को लेकर रूद्रपुर में प्रचंण्ड आंदोलन जारी था, तत्‍कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी ने जार्ज फर्नाण्‍डीस रक्षामंत्री तथा एनडीए संयोजक को निष्‍पक्ष फैसला करने भेजा, जार्ज पंतनगर पहुंचे, उधम सिंह नगर को उत्‍तराखण्‍ड में शामिल न किये जाने वाले लोगो से बात की, अंत में उधम सिंह नगर उत्‍तराखण्‍ड मे शामिल किये जाने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया, यह थी जार्ज के कार्य करने की शैली

इसी तरह उत्‍तराखण्‍ड मे कांग्रेस की प0 नारायण दत्‍त तिवारी सरकार के दौरान एक काबिना मंत्री सैक्‍स स्‍कैण्‍डल काण्‍ड में फंस गये, सीबीआई के मामला सुपुर्द हुआ, गिरफतारी पास आ रही थी, मुख्‍यमंत्री द्वारा आनन फानन में मंत्री पद से इस्‍तीफा दिलाकर कांग्रेस सरकार को सुरक्षित कर लिया था, अब मंत्री जी को उनके हाल पर रोते हुए छोड दिया था, मंत्री जी घर में नर्वस सिस्‍टम में चले गये थे, 10 दिन से खाना नही खाया था,  आनन फानन में उनको रक्षामंत्रालय नई दिल्‍ली ले जाकर उस समय के उसके शक्‍तिशाली नेता जार्ज साहब से आशीर्वाद दिलाया- आज भी वह लाइन भूले नही भूलती- जार्ज बोले- सीबीआई की गिरफतारी पास आ रही थी, इतनी देर क्‍यो कर दी आने में, विलापते हुए स्‍कैण्‍डल में फंसे नेता जी बोले- साहब, ये मुझे लाये ही अब, मुझे बचा लो, जार्ज साहब, मै अपने शरीर के चमडे का जूता आपके लिए बना दूंगा, मुझे जीवनदान दे दो- अपनी कुर्सी पर बैठे एनडीए के संयोजक तथा देश के रक्षामंत्री बोले- तुम्हारी गिरफतारी से पहले मुझ से गुजरना होगा, तुम्हे न्‍याय दिलाऊगा, पर मुझे नही पंडित जी- को मत भूल जाना- मेरी ओर उंगली उठाते हुए जार्ज का यह इशारा था, और जार्ज साहब जैसे शक्‍तिशाली नेता बचाव में खडे हो गये है, और जार्ज के लम्‍बे प्रयास के बाद न्‍याय मिला-  पर जिसको न्‍याय दिलवाया- उसने कभी जार्ज को धन्‍यवाद तक जाकर नही कहा- और जिस पंडित जी की ओर जार्ज ने इशारा किया- उसको धन्‍यवाद तक कहना गंवारा नही किया-

एक समय के खांटी समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडीस के  हालात उसी महाबली समय चक्र के कोप की कहानी कहते हैं।   श्री फर्नांडीस ने गैर कांग्रेसवाद के नाम पर सभी दलों को एक मंच पर लाने का उसी तरह प्रयास किया था जैसा जय प्रकाश नारायण ने किया था,  शरद यादव और नीतीश ने उन्हें राजनीतिक हासिए पर डालना शुरू कर दिया था।  

जॉर्ज फर्नांडिस एक पूर्व ट्रेड यूनियन नेता, राजनेता, पत्रकार और भारत के पूर्व रक्षामंत्री रह चुके हैं। जॉर्ज फर्नांडिस ने व्यापारिक संघ के नेता, पत्रकार, राजनेता और एक मंत्री के तौर पर अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई। आजीवन उन्होंने मजदूरों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। वे जनता दल के प्रमुख नेता थे और बाद में समता पार्टी का भी गठन किया।  अपने राजनैतिक जीवन में उन्होंने केंद्र में कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली। उन्होंने संचार, उद्योग, रेलवे और रक्षा मंत्री के रूप में कार्य किया। वे वाजपेयी सरकार में अकेले क्रिस्चियन मंत्री थे। उनके माता-पिता ने उन्हें धर्म की शिक्षा के लिए बैंगलोर भेजा था पर वे बॉम्बे चले गए और वहां जाकर एक तेज़-तर्रार व्यापार संघ नेता के रूप में उभरे। सन 1950 और 60 के दशक में बॉम्बे में उन्होंने कई हड़तालों का नेतृत्व किया। इन सब में सबसे महत्वपूर्ण हड़ताल थी सन 1974 की ‘रेलवे हड़ताल’। सन 1975 में उन्होंने आपातकाल के लिए इंदिरा गाँधी को ललकारा था और फिर भूमिगत हो गए। सन 1977 में उद्योग मंत्री के तौर पर उन्होंने गलत ढंग से कार्य करने के लिए आई.बी.एम. और कोका कोला को देश छोड़ने का निर्देश दिया।

जॉर्ज फर्नांडिस का जन्म जॉन जोसफ फर्नांडिस और एलीस मार्था फर्नांडिस के यहां मैंगलोर में 3 जून 1930 को हुआ। उनकी मां किंग जॉर्ज पंचम की बहुत बड़ी प्रशंसक थीं, जिनका जन्म भी 3 जून को हुआ था। इस कारण उन्होंने इनका नाम जॉर्ज रखा। उन्होंने अपना सेकंडरी स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट मैंगलोर के एलॉयसिस से पूरा किया। स्कूल की पढ़ाई के बाद परिवार की रूढि़वादी परंपरा के चलते बड़े पुत्र होने के नाते उन्हें धर्म की शिक्षा के लिए बैंगलोर में सेंट पीटर सेमिनेरी भेज दिया गया। 16 वर्ष की उम्र में उन्हें 1946-1948 तक रोमन कैथोलिक पादरी का प्रशिक्षण दिया गया। 19 वर्ष की आयु में उन्होंने हताशा के कारण धार्मिक विद्यालय छोड़ दिया, क्योंकि स्कूल में फादर्स उंची टेबलों पर बैठकर अच्छा भोजन करते थे, जबकि प्रशिक्षणार्थियों को ऐसी सुविधा नहीं मिलती थी। उन्होंने इस भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने 19 वर्ष की आयु में  ही काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने मैंगलोर के सड़क परिवहन उद्योग, रेस्टोरेंट और होटल में कार्यरत श्रमिकों को एकजुट किया।

जॉर्ज फर्नांडिस अक्सर अपने बारे में खुद बताया करते थे कि बंबई जाने के बाद कई दिनों तक चौपाटी की बेंच पर सोया करते थे और लगातार सोशलिस्ट पार्टी और ट्रेड यूनियन आंदोलन के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते थे। इसी के चलते फर्नांडिस की शुरुआती छवि एक जबरदस्त विद्रोही की बनती जा रही थी। जॉर्ज फर्नांडिस उस समय के सबसे मुखर वक्ता राम मनोहर लोहिया को अपना प्रेरणास्रोत मानते थे।

नौकरी की तलाश में जॉर्ज फर्नांडिस 1949 में बॉम्बे आ गए। यहां उन्हें एक अखबार में प्रूफ रीडर की नौकरी मिल गई। यहां उनका संपर्क अनुभवी यूनियन नेता प्लासिड डी मेलो और समाजवादी राममनोहर लोहिया से हुआ, जिनका उनके जीवन पर बड़ा प्रभाव रहा। बाद में वह समाजवादी व्यापार संघ आंदोलन से जुड़ गए। इसके बाद वह व्यापार संघ के प्रमुख नेता के रूप में उभरे और छोटे पैमाने के उद्योगों जैसे होटल और रेस्टोरेंट में काम करने वाले श्रमिकों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। 1961 से 1968 तक बॉम्बे नगर निगम के सदस्य रहे। इस दौरान वे शोषित कामगारों की आवाज को महानगर की प्रतिनिधत्व संस्था के साथ उठाते रहे। सन 1967 के आम चुनाव में फर्नांडिस ने मैदान में उतरने का निर्णय लिया। उन्हें बॉम्बे की दक्षिण संसदीय सीट से समयुक्त सामाजिक पार्टी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उस दौर के प्रसिद्ध नेता सदाशिव कानोजी के खिलाफ मैदान में उतारा। जॉर्ज फर्नांडिस बॉम्बे ने 1967 का चुनाव जीतकर पहली बार लोकसभा की सीढि़यां चढ़ीं। ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन का अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने 1974 में लाखों कामगारों के साथ हड़ताल कर दी, इस कारण हजारों को जेल में डाल दिया गया। फर्नांडिस ने 1994 में समता पार्टी की स्थापना की। प्रधानमंत्री वाजपेयी के मंत्रिमंडल में वह एकमात्र ईसाई थे और संचार, उद्योग, रेलवे तथा रक्षा विभागों के मंत्री रहे। मार्च 2001 में तहलका रक्षा घोटाला सामने आने के बाद जॉर्ज फर्नांडिस ने इस गड़बड़ी की नैतिम जिम्मेदारी लेते हुए रक्षा मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि आठ माह से भी कम समय में गलती स्पष्ट होने पर उन्हें उसी पद पर पुनः नियुक्त कर दिया गया।

राजनीति में उनका योगदान अहम है और संसद सदस्यों द्वारा उन्हें हमेशा स्नेह और सम्मान मिलता रहा। उनके प्रमुख योगदान में राज्यसभा में किए गए उनके कार्य तथा भारत के समाजवादी आंदोलन में दी गईं सेवाएं हैं। जनता दल के संस्थापक सदस्य, लोकसभा के सदस्य, रेलवे व रक्षा मंत्री और एनडीए के संयोजक के तौर पर जॉर्ज फर्नांडिस भारतीय राजनीति में बहुत ही अहम शख्सियत रहे हैं। उन्होंने कई किताबें लिखकर लोगों तक अपने विचार भी पहुंचाए।

1973 में फर्नांडिस ‘ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन’ के चेयरमैन चुने गए. इंडियन रेलवे में उस वक्त करीब 14 लाख लोग काम किया करते थे. यानी भारत कुल संगठित क्षेत्र के करीब सात फीसदी. रेलवे कामगार कई सालों से सरकार से कुछ जरूरी मांगें कर रहे थे. पर सरकार उन पर ध्यान नहीं दे रही थी. ऐसे में जॉर्ज ने आठ मई, 1974 को देशव्यापी रेल हड़ताल का आह्वान किया. रेल का चक्का जाम हो गया. कई दिनों तक रेलवे का सारा काम ठप्प रहा. न तो कोई आदमी कहीं जा पा रहा था और न ही सामान.

पहले तो सरकार ने इस ध्यान नहीं दिया. लेकिन यह यूनियनों का स्वर्णिम दौर था. कुछ ही वक्त में इस हड़ताल में रेलवे कर्मचारियों के साथ इलेक्ट्रिसिटी वर्कर्स, ट्रांसपोर्ट वर्कर्स और टैक्सी चलाने वाले भी जुड़ गए तो सरकार की जान सांसत में आ गई.

ऐसे में उसने पूरी कड़ाई के साथ आंदोलन को कुचलते हुए 30 हजार लोगों को गिरफ्तार कर लिया. इनमें जॉर्ज फर्नांडिस भी शामिल थे. इस दौरान हजारों को नौकरी और रेलवे की सरकारी कॉलोनियों से बेदखल कर दिया गया. कई जगह तो आर्मी तक बुलानी पड़ी. इस निर्ममता का असर दिखा और तीन हफ्ते के अंदर हड़ताल खत्म हो गई. लेकिन इंदिरा गांधी को इसका हर्जाना भी भुगतना पड़ा और फिर वे जीते-जी कभी मजदूरों-कामगारों के वोट नहीं पा सकीं. हालांकि इंदिरा गांधी ने गरीबी और देश में बढ़ती मंहगाई का हवाला देकर अपने इस कदम के बचाव का प्रयास किया. उन्होंने हड़ताल को देश में बढ़ती हिंसा और अनुशासनहीनता का उदाहरण बताया. बाद में आपातकाल को सही ठहराने के लिए भी वे इस हड़ताल का उदाहरण दिया करती थीं

केवल अपने तेवर के चलते सन् 1950 तक वह टैक्सी ड्राइवर यूनियन के बेताज बादशाह बन गए थे। अपने बिखरे बालों और पतले चेहरे वाले जॉर्ज फर्नांडिस को खादी कपड़े में काफी पसंद किया जाने लगा था। वे अक्सर तुड़े-मुड़े खादी के कुर्ते-पायजामे और घिसी हुई चप्पलों को पहनकर चला करते थे। उस समय के मध्यवर्गीय और उच्चवर्गीय लोग उस वक्त फर्नांडिस को एक अराजकता फैलाने वाले व्यक्ति के तौर पर देखा करते थे और माना जाता था कि जहां वे जाते हैं वहां पर केवल आक्रोश फैलाया करते थे। पर बंबई के गरीबों के लिए वे धीरे-धीरे एक हीरो बनते जा रहे थे।

धीरे-धीरे समय आगे चलता रहा और जॉर्ज फर्नांडिस राजनीति के अखाड़े में मजबूत होते गए। सन् 1973 में फर्नांडिस ‘ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन’ के चेयरमैन चुने गए। इंडियन रेलवे में उस वक्त करीब 14 लाख लोग काम किया करते थे और सरकार रेलवे कामगारों की कई जरूरी मांगों को कई सालों से दरकिनार कर रही थी। ऐसे में जॉर्ज ने आठ मई, 1974 को देशव्यापी रेल हड़ताल का आह्वान किया और रेल का चक्का जाम हो गया। कई दिनों तक रेल का संचालन ठप रहा।
इसके बाद हरकत में आई सरकार ने पूरी कड़ाई के साथ आंदोलन को कुचलते हुए 30 हजार लोगों को गिरफ्तार कर लिया और हजारों को नौकरी और रेलवे की सरकारी कॉलोनियों से बेदखल कर दिया गया।

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कहा जाता है कि जॉर्ज फर्नांडिस को देश में आपातकाल लगने की सूचना रेडियो पर उस समय मिली, जब वह उड़ीसा में अपने परिवार के साथ थे। इसके बाद तत्काल उन्होंने खतरे को भांपते हुए पत्नी और बच्चे से अलग हो गए। इसके बाद वह पूरे भारत में कभी मछुआरे के भेष में तो कभी साधू के रूप में घूमते रहे। आखिर में उन्होंने अपनी दाढ़ी और बाल बढ़ जाने का फायदा उठाते हुए एक सिख का भेष धर लिया और भूमिगत होकर आपातकाल के खिलाफ आंदोलन चलाने लगे।

देश की तमाम सुरक्षा एजेंसियों को धता बताकर वह अपने मिशन पर लगे रहे और गुप्त रूप से बहुत सक्रिय रहे। 15 अगस्त को उन्होंने जनता के नाम एक अपील भी जारी करके तहलका मचा दिया।

बड़ौदा डायनामाइट कांड

जॉर्ज और उनके साथियों को जून 1976 में गिरफ्तार कर लिया गया और इसके बाद उनके सहित 25 लोगों के खिलाफ सीबीआई ने मामला दर्ज किया गया, जिसे बड़ौदा डायनामाइट केस के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि आपातकाल की घोषणा के बाद से ही जॉर्ज फर्नांडिस डायनामाइट लगाकर विस्फोट और विध्वंस करने का फैसला किया। इसके लिए ज्यादातर डायनामाइट गुजरात के बड़ौदा से आया पर दूसरे राज्यों से भी इसका इंतजाम किया गया था।
आंदोलन से परेशान सरकारी तंत्र ने जॉर्ज फर्नांडिस के भाई लॉरेंस फर्नांडिस को हिरासत में ले लिया था और पुलिस ने बहुत बुरी तरह से टॉर्चर भी किया था, जिसके चलते उनकी टांगें हमेशा के लिए खराब हो गईं थीं।

इंदिरा गांधी द्वारा चुनावों की घोषणा के साथ ही इमरजेंसी का अंत हो गया और जॉर्ज फर्नांडिस ने 1977 का लोकसभा चुनाव जेल में रहते हुए ही मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट से रिकॉर्ड मतों से जीता। इसके बाद जब जनता पार्टी की सरकार में वे उद्योग मंत्री बनाए गये।
इसके बाद जब जनता पार्टी में टूट हुई तो जॉर्ज फर्नांडिस ने समता पार्टी का गठन किया और भाजपा का समर्थन किया।

जॉर्ज फर्नांडिस ने अपने राजनीतिक जीवन में कुल तीन मंत्रालयों का कार्यभार संभाला- उद्योग, रेल और रक्षा मंत्रालय। पर वे इनमें से किसी में भी बहुत सफल नहीं रहे। कोंकण रेलवे के विकास का श्रेय उन्हें भले जाता हो, लेकिन उनके रक्षा मंत्री रहते हुए परमाणु परीक्षण और ऑपरेशन पराक्रम का श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी को ही दिया गया।

वैसे तो रक्षामंत्री के रूप में जॉर्ज का कार्यकाल खासा विवादित रहा। ताबूत घोटाले और तहलका खुलासे में उनके संबंधों को खूब तूल दिया गया। पर बाद में मामले में जॉर्ज फर्नांडिस को अदालत से तो क्लीन चिट मिल गई थी।

एक और उपलब्धि

कहा जाता है कि जॉर्ज फर्नांडिस भारत के एकमात्र रक्षामंत्री हैं, जिन्होंने 6,600 मीटर ऊंचे सियाचिन ग्लेशियर का 18 बार दौरा किया था। वह रक्षामंत्री रहते हुए अपने बंगले के दरवाजे कभी बंद नहीं करते थे। वह किसी नौकर की सेवा भी नहीं लेते थे और अपने काम स्वयं किया करते थे।

पारिवारिक रिश्ते व विवाद

जॉर्ज फर्नांडिस का विवाह 22 जुलाई 1971 को जवाहर लाल नेहरू के मंत्रिमंडल में शिक्षा राज्य मंत्री और जाने माने शिक्षाविद हुमायूं कबीर की बेटी लैला से हुई। कहा जाता है कि इसके पहले दोनों के बीच लगभग 3 महीने की लव-स्टोरी भी चली थी। पर जीवन के तमाम उतार चढ़ाव के दौरान लैला 1984 में जॉर्ज की जिंदगी से निकल गईं।

इसके बाद जया जेटली से जॉर्ज फर्नांडिस की नजदीकियों की खबरें आईं। फिर अचानक 25 साल बाद लैला ने जॉर्ज की जिंदगी में लौटने की पहल की और अपने बीमार पति की देखभाल करने लगीं। वर्ष 2010 में लैला बेटे सुशांतो फर्नांडीज के साथ कृष्णा मेनन मार्ग स्थित जॉर्ज के सरकारी निवास पर पहुंचीं थी।

जॉर्ज फर्नांडिस अब 88 वर्ष के हो चुके हैं और पिछले आठ सालों से लैला उनकी देखभाल कर रही हैं। कहा जाता है कि जॉर्ज की याददाश्त जा चुकी हैं और वह पूरी तरह बिस्तर पर ही पड़े रहते हैं।

लैला ने जॉर्ज फर्नांडिस के अपने प्रति प्रेम व लगाव को कुछ तरह से जाहिर किया था और कहा था कि ‘मैंने एक बार तलाक के कागज जॉर्ज के पास भेजे, लेकिन उन्होंने इस पर साइन नहीं किए, बल्कि बदले में अपनी मां के सोने के कंगन उन्हें भेज दिए थे।’

Former defence minister George Fernandes died on Tuesday morning in Delhi. He had been ailing for the past few years. He was 88 years old.

Fernandes, who was suffering from Alzheimer’s disease, had been bed-ridden for more than eight years, family sources said.

He had a cold and cough and was taken to the Max Hospital in Saket by his wife, Liela Fernandes, earlier in the day, when doctors said that the veteran leader was already dead.

His son, who lives in New York, is expected back in a day or two, after which the funeral will take place, the sources said, according to IANS.

 The last rites of the former parliamentarian will be performed tomorrow in New Delhi. News agency ANI quoted former Samata Party president Jaya Jaitly, who worked closely with the former defence minister, as saying, “Last rites of George Fernandes to be held tomorrow after the arrival of his son. Right now, the body is being embalmed.”

Jaitly claimed that George Fernandes wished to buried after the death. “He had expressed his wished earlier to be cremated but during his last days, he said he wanted to be buried. So, we will cremate the body and bury the ashes, to fulfil both his wishes,” she said.

Bihar government announced two-day state mourning on the death of George Fernandes. Bihar Chief Minister Nitish Kumar and Fernandes were party colleagues in the Janata Dal (United) for several years. Fernandes, who was part of the Janata Dal in 1989-90, formed his own political outfit, the Samata Party in 1994. Fernandes merged his Samata Party with the Janata Dal (United) in 2003. Nitish Kumar is the president of the Janata Dal (United) or the JD(U).

Born on June 3, 1930, George Fernandes was, at the age of 16, sent to train as a priest, but his calling was different. He moved to Bombay in 1949 and got involved in the socialist trade union movement. Known to be a firebrand unionist and a fiery orator, he organized many strikes and bandhs there.

One strike that is remembered even now was the railways strike in 1974, where the entire nation was brought to a halt. Workers from all over the country joined the strike. It was later called off amid reports of ‘divisions’ in the union.

In 1967, he defeated Congress veteran S K Patil in parliamentary elections from the South Bombay and went on to win eight more Lok Sabha elections, last being in 2004.

Fernandes went underground during the Emergency imposed in 1975 during Prime Minister Indira Gandhi’s rule and was arrested and tried in Baroda dynamite case, where he and 24 others were charge with smuggling dynamite to blow up government establishments and railway tracks in protest against state of Emergency. In 1977, after the Emergency was lifted, Fernandes won the Muzaffarpur seat in Bihar while in jail. The Janata Party and its allies came to power, headed by Morarji Desai, who became the first non-Congress Prime Minister of India. Fernandes was appointed as Union Minister for Industries.

During his tenure as union minister, he ordered American multinationals IBM and Coca-Cola to leave the country, due to alleged investment violations. He was the driving force behind the Konkan Railway project during his tenure as railway minister from 1989 to 1990. George

 He was a defence minister in the National Democratic Alliance (NDA) Government (1998–2004), when the Kargil War broke out between India and Pakistan, and India conducted its nuclear tests at Pokhran. Following Kargil war, allegations surfaced about a scam in procurment of coffins, forcing Fernandes, then defence minister, to step down in 2004 . However, two commissions of inquiry absolved him in the case.

Fernandes’ last presence in Parliament was as a Rajya Sabha member in 2009-2010.

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