भक्तों को अभय देने वाले – भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि

काल भैरव अष्टमी दो दिन पड़ रही है जो 29 नवंबर से शुरू होकर 30 नवंबर तक मनाई जाएगी. काल भैरव अष्टमी साधना के लिए कठिन मानी जाती है. मान्यता है कि काल भैरव अष्टमी के दिन जो भक्त भगवान काल भैरव की पूजा-अर्चना और उपवास करते हैं, भगवान काल भैरव उसके सभी प्रकार के रोग-दोष दूर करते हैं.

हिंदु मान्यताओं के मुताबिक शिव के अपमान स्वरूप मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी. इसलिए इस तिथि को कालभैरव अष्टमी नाम से जाना जाता है. शिव जी के दो रूप हैं एक बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव. बटुक भैरव भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप में प्रसिद्ध है. वहीं काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचंड दंडनायक हैं. कुत्ता बाबा भैरव नाथ की सवारी माना जाता है. अतः बाबा भैरवनाथ को कुत्ता अतिप्रिय होता है.

 अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्, भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!

पुराणों के मुताबिक भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठ होने का विवाद हुआ. श्रेष्ठ होने के विवाद को सुलझाने के लिए सभी देवता और मुनि शिव जी के पास पहुंचे. सभी देवताओं और मुनि की सहमति से फलस्वरूप शिव जी को श्रेष्ठ माना गया. परंतु ब्रह्मा जी इस समाधान से खुश नहीं थे. अंहकार में ब्रह्मा जी शिव जी का अपशब्द कहे. अपशब्द बातें सुनकर शिव जी को गुस्सा आ गया. इसी गुस्से के चलते कालभैरव का जन्म हुआ. उसी दिन से कालाष्टमी का पर्व शिव के रुद्र अवतार कालभैरव के जन्म दिन के रूप में मनाया जाने लगा.

बिना भगवान शिव और माता पार्वती के काल भैरव पूजा नहीं करना चाहिए।   काल भैरव जयंती अगहन मास की अष्टमी तिथि को मनायी जाती है। इसको काल भैरव अष्टमी भी कहते हैं। इस वर्ष यह जयंती दिनांक 29 नवम्बर 2018 को है। इस अष्टमी को तंत्र के देवता काल भैरव की विधिवत उपासना की जाती है।  भैरव के कई रूप हैं। प्रमुखतया 3 रूपों बटुक भैरव, महाकाल भैरव तथा स्वर्णाकर्षण भैरव की ही प्रधानता है। इसमें बटुक भैरव की उपासना ज्यादा प्रचलन में है। तांत्रिक सिद्धियों के लिए भी बटुक भैरव की ही उपासना करते हैं। तांत्रिक पूजा में भैरो पूजा का बहुत महत्व है। माता वैष्णो देवी की पूजा तो बिना भैरव दर्शन के अपूर्ण मानी जाती है। शत्रु विनाश तथा रोगों से बचने के लिए यह पूजा आवश्यक है। राहु की महादशा में भैरो पूजा अति आवश्यक है। मंगलवार तथा बुधवार को इस उपासना का बहुत महत्व है। भैरव जयंती के दिन इनकी उपासना करने से रोगों से मुक्ति मिलती है।

जो लोग सिर दर्द या माइग्रेन से पीड़ित हैं उनको आज के दिन भैरव उपासना अवश्य करनी चाहिए। शत्रु विनाश के लिए भी तथा अंतः मन के विकारों को दूर करने के लिए भी यह पूजा जरूरी है। यदि राहु जन्मकुंडली के पंचम भाव में बैठकर संतान प्राप्ति में बाधा उत्पन्न कर रहा है तो भैरो पूजा से राहु का दोष समाप्त होता है। यदि कुंडली में गुरु के साथ राहु बैठा है तो गुरू चांडाल नामक नकारात्मक परिणाम देता है, ऐसी स्थिति में भैरो पूजा नितांत आवश्यक हो जाती है।

राजनीति में सफलता के लिए बंगलामुखी उपासना के साथ यदि भैरव पूजा भी तांत्रिक विधि से की जाय तो बहुत शीघ्र बड़ी सफलता मिलती है। जो लोग बहुत भयभीत रहते हैं या जिनका आत्मबल कमजोर होता है उनको विधिवत भैरव पूजा करनी चाहिए ताकि उनका जीवन निर्भय हो सके।

भैरव  के इन 8 नामों का उच्चारण करने से मनोवांछित मनोकामना की पूर्ति होती है 

1-अतिसांग भैरव  2-चंड भैरव  3-रुरु भैरव  4-क्रोध भैरव  5-उन्मत्त भैरव
6-कपाल भैरव    7-संहार भैरव   8-भीषण भैरव

काल भैरव बाबा वाराणसी में काशी कोतवाल कहे जाते हैं. कहा जाता है कि बाबा काल भैरव काशी के रक्षक हैं और अगर आप काशी विश्वनाथ के दर्शन करने के बाद काल भैरव के दर्शन नहीं करते हैं तो फिर आपके दर्शन पूरे नहीं माने जाएंगे. शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव ने मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष अष्टमी को बाबा काल भैरव के रूप में प्रकट हुए थे इसलिए इस दिन को कालभैरव अष्टमी के रूप में भी मनाया जाता है. काशी कोतवाल बाबा काल भैरव को विशेष पूजा के द्वारा प्रसन्न किया जा सकता है जिससे जीवन की बाधाएं दूर हो जाती हैं.

शास्त्रों और मान्यताओं को अनुसार वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से दो किलोमीटर दूर स्थित काल भैरव मंदिर, दिल्ली के विनय मार्ग पर स्थित काल भैरव का मंदिर जिसे बटुक भैरव भी कहा जाता है, का विशेष महत्व है. काल भैरव के दर्शन मात्र से शनि की साढ़े साती, अढ़ैया और शनि दंड से बचा जा सकता है। बाबा को सरसों के तेल का दीपक, उरद की दाल का बड़ा ,बेसन के लड्डू और मदिरा बेहद पसंद है।

मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ के  शहर गंगा तट पर बसे काशी में  रहने के लिए बाबा काल भैरव की इजाजत लेना जरूरी है। वही इस शहर के प्रशासनिक अधिकारी हैं। इसीलिए उन्हें ‘काशी का कोतवाल’ कहा जाता है।  भगवान शंकर की इस नगरी में उनके बाद बाबा काल भैरव का ही सबसे बड़ा स्थान है। बाबा विश्वनाथ इस शहर के राजा हैं और बाबा काल भैरव इस शहर के सेनापति हैं। यहां उनकी मर्जी चलती है, क्योंकि वही शहर की पूरी व्यवस्था संभालते हैं।

बाबा काल भैरव ही काशी में इंसानों को गलती करने पर सजा देते हैं। यमराज को भी यहां के इंसानों को दंड देने का अधिकार नहीं है। बाबा विश्वनाथ राजा हैं और काल भैरव उनके कोतवाल, जो लोगों को आशीर्वाद भी देते हैं और सजा भी।

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मुगल सेनापति भगवान भोले के चमत्कार को देख नतमस्‍तक हो गया था

बक्सर जिले के ब्रह्मपुर धाम का प्राचीन बाबा बरमेश्वर नाथ मंदिर सालों भर भक्तों प्यासा का केंद्र बना रहता है | ऐसी मान्यता है कि इस शिवलिंग की स्थापना भगवान ब्रह्मा ने अपने हाथों से की थी | इसका जिक्र स्कंद पुराण कथा शिवपुराण में भी मिलता है। कहां जाता है कि मध्यकाल के स्थापत्य कला का एक नमूना भी या मंदिर है | इस मंदिर की पहचान मनोकामना लिंग के रूप में भी है।

ऐसा माना जाता है कि यहां पहुंचकर बाबा के दरबार में हाजिरी लगाने वाले हर भक्तों की मनोकामना अवश्य ही पूरी होती है | वैसे तो मंदिर में सालों भर गहमागहमी बनी रहती है। लेकिन फाल्गुन तथा सावन माह में यहां भक्तों की भारी भीड़ रोजाना पहुंचती है | इसके अलावा जीने में आने वाले राजनेता तथा अन्य प्रशासनिक अधिकारी भी यहां पहुंच कर बाबा के दरबार में हाजिरी लगाने से नहीं चूकते हैं | बक्सर के अलावा भोजपुर, रोहतास, कैमूर, पटना शहीद झारखंड तथा यूपी के बलिया एवं गाजीपुर जिले से काफी संख्या में श्रद्धालु भक्त यहां पूजा अर्चना के लिए आते हैं | सावन माह में बक्सर से गंगाजल भरकर बाबा बरमेश्वर नाथ को जल अर्पित करने वाले कांवरियों की संख्या भी हर एक साल बढ़ती ही जा रही है | इस इस मंदिर की पहचान ऑफ मिनी देवघर के रूप में भी होने लगी है।

 

रातों-रात बदल गया था मंदिर का दरवाजा : देश के प्राय सभी प्रसिद्ध शिव मंदिरों का दरवाजा पूरब दिशा की ओर है | लेकिन इस मंदिर का दरवाजा पश्चिम दिशा की ओर है | इस बारे में यह कहा जाता है कि एक बार मुगल सेनापति कासिम अली खान पश्चिम की ओर से मंदिरों को ध्वस्त करते हुए ब्रहमपुर पहुंचा था | लेकिन मंदिर के पुजारियों ने उसे ऐसा करने से रोक दिया | तब मुगल सेनापति ने कहा था कि अगर भगवान में कोई शक्ति है तो कोई वह कोई चमत्कार करके वह दिखाएं | कहां जाता है कि जब रात में सारे सैनिक सो रहे थे उसी समय एकाएक मंदिर का दरवाजा पूरब से पश्चिम भाग में हो गया | सुबह जगने पवार मुगल सेनापति ने भगवान भोले के इस चमत्कार को देख मंदिर को बिना तोड़े ही वापस लौट गया | तभी से इस मंदिर का दरवाजा पश्चिम की ओर ही खुलता चला आ रहा है |

 

फाल्गुन मां की महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां विशाल पशुओं का मेला भी लगता है | इससे सरकार को प्रत्येक साल लाखों रुपए राजस्व के रुप में प्राप्त होता है | मेले में दूर द्वारा से व्यापारी पहुंचने लगे हैं | बाबा बरमेश्वर नाथ के दर्शन पूजन तथा जलाभिषेक के लिए प्रतियोगिता लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। लेकिन उन्हें शौचालय तथा धर्मशाला की कमी बराबर खटकती रहती है | मंदिर के पास विशाल पोखरा भी है।
रातों-रात बदल गया था मंदिर का दरवाजा : देश के प्राय सभी प्रसिद्ध शिव मंदिरों का दरवाजा पूरब दिशा की ओर है | लेकिन इस मंदिर का दरवाजा पश्चिम दिशा की ओर है | इस बारे में यह कहा जाता है कि एक बार मुगल सेनापति कासिम अली खान पश्चिम की ओर से मंदिरों को ध्वस्त करते हुए ब्रहमपुर पहुंचा था | लेकिन मंदिर के पुजारियों ने उसे ऐसा करने से रोक दिया | तब मुगल सेनापति ने कहा था कि अगर भगवान में कोई शक्ति है तो कोई वह कोई चमत्कार करके वह दिखाएं | कहां जाता है कि जब रात में सारे सैनिक सो रहे थे उसी समय एकाएक मंदिर का दरवाजा पूरब से पश्चिम भाग में हो गया | सुबह जगने पवार मुगल सेनापति ने भगवान भोले के इस चमत्कार को देख मंदिर को बिना तोड़े ही वापस लौट गया | तभी से इस मंदिर का दरवाजा पश्चिम की ओर ही खुलता चला आ रहा है |

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