कर्नाटक -इन मुद्दों की काट खोज पाना आसान नहीं

कर्नाटक में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. अप्रैल-मई में कर्नाटक विधानसभा चुनाव होने हैं। प्रदेश में सिद्धारमैया नेतृत्व में कांग्रेस सरकार है।  कर्नाटक विधानसभा की 224 सीटों के लिए 12 मई को मतदान होगा, नतीजे 15 मई को आएंगे।  हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल की प्रस्‍तुति-

सिद्धारमैया सरकार चुनाव से पहले हर हथकंडा आजमाकर अपना वोट बैंक मजबूत करने में लगी हुई है। खासकर बीजेपी और कांग्रेस के लिए राज्य की सत्ता नाक की लड़ाई बन चुकी है. बीजेपी के लिए इन मुद्दों की काट खोज पाना आसान नहीं हो पा रहा है।  राज्य में जाति, समुदाय की राजनीति काफी महत्वपूर्ण है. राज्य में पिछड़ों, दलितों और मुसलमानों की भारी जनसंख्या को देखते हुए कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सोशल इंजीनियरिंग की AHINDA नीति पेश की है. अब देखना यह होगा कि बीजेपी इसका क्या तोड़ निकालती है. राज्य में 12 मई काे चुनाव हैं. इसके लिए मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपनी सोशल इंजीनियरिंग की नीति AHINDA पेश की है. AHINDA कन्नड़ में शॉर्ट फॉर्म है जिसका मतलब है दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़ी जाति. गौरतलब है कि सिद्धारमैया ने राज्य में करीब 150 करोड़ रुपये के खर्च से साल 2015 में एक जाति जनगणना भी कराई थी. लेकिन उसकी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया. हालांकि, यह लीक हो गई है.
इसके मुताबिक राज्य में सवर्ण लिंगायत समुदाय का हिस्सा 16-17 फीसदी से घटकर महज 9.8 फीसदी रह गया है. इसी तरह वोक्कालिंगा समुदाय का हिस्सा 14-15 फीसदी से घटकर करीब 8 फीसदी ही रह गया है. जनगणना के मुताबिक राज्य की 6.5 करोड़ जनसंख्या में सबसे ज्यादा 24 फीसदी हिस्सा दलितों का है. राज्य में मुसलमानों का हिस्सा 12.5 फीसदी है. अनुसूजित जन‍जातियों और कुरुबास (जिस समुदाय से मुख्यमंत्री सिद्धारमैया आते हैं) की जनसंख्या 7-7 फीसदी है. ब्राह्मणों की जनसंख्या महज 2 फीसदी ही है. इस तरह AHINDA में कर्नाटक की कुल जनसंख्या का करीब 80 फीसदी हिस्सा आता है.

बीजेपी मुश्किल में फंस गई

लिंगायतों को अलग धर्म की मान्यता देने पर सिद्धारमैया को घेरने वाली बीजेपी मुश्किल में फंस गई है। कर्नाटक दौरे पर पहुंचे बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने शिद्धगंगा मठ में 110 वर्षीय लिंगायत संत, शिवकुमार स्वामी से मुलाकात की और अप्रैल-मई में होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में पार्टी की सफलता के लिए उनका आशीर्वाद लिया। लेकिन मंगलवार को चित्रदुर्ग शहर में मुरुघा मठ पहुंचे अमित शाह को एक अजीब स्थिति का सामना करना पड़ा।  दरअसल यहां मुरुघा मठ के संत शिवमूर्ति मुरुगाराजेन्द्र स्वामीजी ने अमित शाह को एक ज्ञापन सौंप दिया, जिसमें कर्नाटक सरकार द्वारा सिफारिश किए गए लिंगायतों के लिए अल्पसंख्यक धर्म के दर्जे की स्वीकृति मांगी गई है। इसके बाद परेशान दिखने वाले बीजेपी नेता व्यस्त कार्यक्रम का हवाला देते हुए मठ से निकल गए। 

अपने ज्ञापन में मुरुगाराजेन्द्र ने कहा, ‘लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के लिए कर्नाटक में लिंगायत आंदोलन चल रहा है। यद्यपि यह प्रतीत होता है कि लिंगायत और वीरशैव के बीच संघर्ष है। यह सिर्फ अस्थायी है क्योंकि दोनों संप्रदायों के लोग भावुक बयान जारी कर रहे हैं। कर्नाटक सरकार ने उचित रूप से लिंगायत के लिए अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा देने की सिफारिश की है। यह समुदाय को विभाजित करने का कदम नहीं है, बल्कि एकजुट करने का माध्यम है।’ बीजेपी ने कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के इस निर्णय को हिंदू समाज को बांटने का प्रयास बताया था। भाजपा के मुख्यमंत्री उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय के हैं, जिनका इस समुदाय में काफी प्रभाव माना जाता है। जबकि कांग्रेस इस समुदाय को अपनी तरफ आकर्षित करना चाहती है। शाह के मठ दौरे को लिंगायत समुदाय को अपने पक्ष में करने के प्रयास के तौर पर देख रहे हैं। लिंगायत और वीरशैव लिंगायत दक्षिण भारत में सबसे बड़ा समुदाय हैं, जिनकी आबादी यहां कुल 17 प्रतिशत है। 

 

अर्थ का अनर्थ हो गया- अमित शाह की रैली में – कर्नाटक में सिद्धारमैया सरकार द्वारा चुनाव के पहले खेला गया लिंगायत कार्ड भले ही बीजेपी के लिए परेशानी बन गया हो, लेकिन उससे भी बड़ी मुसीबत बीजेपी के लिए हिंदी से कन्नड़ ट्रांसलेट करने वाले नेता बन गए हैं. ताजा मामला बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की दवानागिरी की रैली का है. यहां अमित शाह ने सिद्धारमैया सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि, ” सिद्धारमैया सरकार कर्नाटक का विकास नहीं कर सकती. आप मोदी जी पर विश्वास करके येदुरप्पा को वोट दीजिये. हम कर्नाटक को देश का नंबर वन राज्य बनाकर दिखाएंगे.” लेकिन अमित शाह के इस बयान की किरकिरी तब हुई जब धारवाड़ से बीजेपी सांसद प्रह्लाद जोशी ने इसे कन्नड़ में गलत ट्रांसलेट कर दिया. उन्होंने कहा कि, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गरीब, दलित और पिछड़ों के लिए कुछ भी नहीं करेंगे. वो देश को बर्बाद कर देंगे. आप उन्हें वोट दीजिये.” 

कन्नड़ ट्रांसलेटर ने बताया कि, ” इस बार बीजेपी अपने नेताओं से ट्रांसलेशन में मदद ले रही है. इस कारण कई जगह सही बातें भी मजाक बन जाती है.

चित्रदुर्ग में अमित शाह ने अपने आधे भाषण में ट्रांसलेटर की मदद ली. फिर आधा भाषण उन्होंने हिंदी में दिया. उन्होंने जब हिंदी में कन्नड़ के लोगों से पूछा कि क्या आप येदुरप्पा को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं? तो यह बात लोगों को समझ नहीं आई और उन्होंने नहीं कह दिया.

अमित शाह ने मंगलवार को अनजाने में भाजपा की येदियुरप्पा सरकार को सबसे भ्रष्ट करार दे दिया था। भाजपा अध्यक्ष ने एक सभा में राज्य की कांग्रेस सरकार को गरीब और दलित विरोधी बताया। पर उनके ट्रांसलेटर ने इसे गलती से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नाकामी बता दिया।

 

इस लीक डेटा ने राज्य की सभी राजनीतिक दलों को अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया है. बीजेपी लिंगायत और वोक्कालिंगा को मनाने की पूरी कोशिश कर रही है. दलित वोटों को लुभाने के लिए जेडी एस ने कर्नाटक में मायावती की बीएसपी से गठजोड़ किया है.
सेंटर फॉर स्टडीज ऑफ डेवलपिंग स्टडीज (CSDS) ने साल 2008 के चुनाव में कर्नाटक में पड़े वोटों का सामाजिक- जातिवार विश्लेषण किया है. इस अध्ययन के मुताबिक पिछले चुनाव में कर्नाटक में उच्च सामाजिक पृष्ठभूमि के वोट तीनों प्रमुख दलों में लगभग बराबर बंटे थे. कांग्रेस को इस वर्ग के 34 फीसदी, बीजेपी को 33 फीसदी और जेडी (एस) को 31 फीसदी वोट मिले थे.
हालांकि जाति के हिसाब से देखें तो वोटों में काफी अंतर है. स्टडी के अनुसार सर्वण लिंगायत के 51 फीसदी वोट बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली बीजेपी को मिले थे. येदियुरप्पा खुद लिंगायत समुदाय से आते हैं. कांग्रेस को लिंगायत समुदाय के सिर्फ 25 फीसदी और जनता दल एस को 15 फीसदी वोट मिले थे.
जाति के हिसाब से देखें तो सवर्णो के सबसे ज्यादा 41 फीसदी वोट बीजेपी को, 33 फीसदी कांग्रेस को और 13 फीसदी जेडी (एस) को मिले थे. एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाली पार्टी जेडी (एस) को वोक्कालिंगा समुदाय के 40 फीसदी वोट मिले थे. कांग्रेस को इस समुदाय के 35 फीसदी, जबकि बीजेपी को सिर्फ 18 फीसदी वोट मिले थे.
AHINDA का सबसे ज्यादा वोट कांग्रेस को मिला था
निचले सामाजिक पृष्ठभूमि के वोटों की बात करें तो इसमें कांग्रेस का बहुत अच्छा जनाधार है. पिछले चुनाव में कांग्रेस को इस वर्ग के 54 फीसदी वोट मिले थे, जबकि बीजेपी और जेडी (एस) को 18-18 फीसदी वोट मिले थे. ओबीसी वर्ग में से 38 फीसदी वोट कांग्रेस को, 29 फीसदी वोट बीजेपी को और 20 फीसदी वोट जेडी (एस) को मिले थे.
दलितों, आदिवासियों और मुसलमानों ने जमकर कांग्रेस को वोट दिए थे. इस तीनों वर्गों से कांग्रेस को क्रमश: 50 फीसदी, 44 फीसदी और 65 फीसदी वोट मिले थे. इसके मुकाबले बीजेपी को दलितों के 20 फीसदी, आदिवासियों के 25 फीसदी और मुसलमानों के महज 11 फीसदी वोट मिले थे.
इस मामले में गौर करने की बात है कि पिछले कई चुनावों से कर्नाटक में वोटों का यह पैटर्न बरकरार रहा है. राज्य में जाति और समुदाय के वोटों के महत्व को देखते हुए ही सभी दल इस हिसाब से अपनी रणनीति भी बनाते रहे हैं.
साल 1952 से अब तक राज्य के ज्यादातर मुख्यमंत्री लिंगायत या वोक्कालिंगा समुदाय से रहे हैं. इसलिए यह धारणा बन गई है कि ये दोनों समुदाय राज्य में सबसे ताकतवर हैं. लेकिन सिद्धारमैया इस धारणा को बदलने की कोशिश कर रहे हैं.

राज्य की सत्ता की चाबी  कांग्रेस से छीन पाना मुश्‍किल

1) लिंगायतों को अलग धर्म का दर्जा
विधानसभा चुनाव से पहले राज्य मंत्रिमंडल ने हिंदू धर्म के लिंगायत पंथ को एक अलग धर्म के रूप में मान्यता देने पर सहमति जताई है। राज्य मंत्रिमंडल ने सर्वसम्मति से लिंगायत और वीरशैव लिंगायत को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने का फैसला किया है। लिंगायत और वीरशैव लिंगायत दक्षिण भारत में सबसे बड़ा समुदाय हैं, जिनकी आबादी यहां कुल 17 प्रतिशत है। परंपरागत तौर पर इस समुदाय को बीजेपी का वोट बैंक माना जाता है, ऐसे में सिद्धारमैया का ये दांव ट्रंप कार्ड साबित हो सकता है। हालांकि अभी उसे इसके लिए केंद्र सरकार की मंजूरी चाहिए। ऐसे में बीजेपी के लिए मुश्किलें कम नहीं हैं। भाजपा के मुख्यमंत्री उम्मीदवार बी.एस. येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय के हैं, जिनका इस समुदाय में काफी प्रभाव माना जाता है। बीजेपी का विरोध लिंगायत की नाराजगी की वजह बन सकता है।

2) राज्य का अलग झंडा
चुनाव पूर्व कर्नाटक सरकार ने राज्य के झंडे को भी स्वीकृति दे दी है। 9 सदस्यीय समिति ने झंडे में ऊपर पीली बीच में सफेद और नीचे लाल रंग की पट्टी की सिफारिश की थी। बीच में सफेद पट्टी पर राज्य का आधिकारिक चिन्ह है। राज्य के अलग झंडे के लिए भी केंद्र सरकार की अनुमति की आवश्यकता है। इस मुद्दे पर भी कांग्रेस सरकार ने गेंद केंद्र यानी बीजेपी के पाले में डाल दी है। भारत में जम्मू-कश्मीर राज्य के अलावा किसी अन्य के पास अपना झंडा नहीं है। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 के तहत अलग झंडा है। शुरू में अलग झंडे का विरोध होने पर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सवाल किया था कि क्या संविधान में कोई ऐसा प्रावधान है जो कि राज्य को अपना झंडा रखने से रोकता हो? इसका चुनाव से कुछ लेना-देना नहीं है। अगर बीजेपी इसका विरोध कर रही है तो यह बात सार्वजनिक रूप से क्यों नहीं कहती कि वह राज्य के झंडे के खिलाफ है।

3) कावेरी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पक्ष में आया
चुनाव से पहले कावेरी जल विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी सिद्धारमैया सरकार के लिए बड़ी राहत वाला है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सिद्धारमैया ने संतोष जताया था। इस विवाद में राज्य के पक्ष में फैसला आया और कावेरी नदी से मिलने वाले पानी में राज्य की हिस्सेदारी को बढ़ाकर सर्वोच्च न्यायालय ने उनके रुख को आंशिक रूप से स्वीकार किया, जिसमें पीने के उद्देश्य से बेंगलुरू को अधिक पानी आवंटित करने का निर्णय भी शामिल है। कांग्रेस को इसका राजनीतिक फायदा मिलेगा। इससे कांग्रेस को किसानों को अपने नजदीक लाने में मदद मिलेगी।

4) क्षेत्रीयता को बढ़ावा
दक्षिण भारत में अक्सर क्षेत्रीयता हावी होती है, इसलिए भाषा हमेशा एक बड़ा मुद्दा होती है। कांग्रेस ने इस मुद्दे को भी भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। केंद्र सरकार द्वारा हिन्दी को बढ़ावा दिए जाने के जवाब में सिद्धारमैया ने बेंगलुरु के नए नवेले मेट्रो ट्रेन और स्टेशन से सारे हिन्दी के साइन बोर्ड हटवा दिए। कर्नाटक में कन्नड़ की प्रधानता को बनाए रखने के लिए उन्होंने कई कदम उठाए हैं।

5) बजट में बड़ी-बड़ी घोषणाएं
सिद्धारमैया सरकार ने चुनाव से पहले अपना लगातार छठा बजट पेश किया। इस बजट के माध्यम से भी राज्य की कांग्रेस सरकार ने इस तीर से कई निशान साधने की कोशिश की और लोकलुभावना बजट पेश किया। राज्य में छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को अमल में लाने के लिए राज्य सरकार 5.93 लाख कर्मचारियों और 5.73 लाख पेंशनरों पर 10,508 करोड़ रुपए खर्च करेगी। कर्मचारियों के वेतन ढांचे में 30 प्रतिशत वृद्धि की सिफारिश की है। सिद्धारमैया सरकार ने मुख्यमंत्री अनिला भाग्य योजना की घोषणा की है जिसके तहत दो चूल्हे वाला गैस स्टोव और दो गैस सिलेंडर निःशुल्क उपलब्ध कराई जाएगी। किसानों की मदद के लिए रैयत बेलाकू योजना की भी घोषणा की है जिसमें वर्षा पर निर्भर खेती करने वाले प्रत्येक किसान को अधिकतम 10,000 रुपए और न्यूनतम 5,000 रुपए प्रति हेक्टेयर के हिसाब से राशि की सहायता सीधे उनके बैंक खातों में डाली जाएगी।

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