काशी के कोतवाल -काल भैरव का अवतार दिवस 10/11 नवम्बर

काशी के कोतवाल -काल भैरव का अवतार हुआ 10/11 नवम्बर ; काल भैरव अष्टमी #महादेव ने कालभैरव के रूप में अवतार लिया# भगवान शिव का डरावना एवं प्रकोप वाला रूप- काल भैरव- #कालाष्टमी का हिंदू धर्म में बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है। मार्गशीर्ष मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन भगवान शिव, भैरव रूप में प्रकट हुए थे। कालाष्टमी का व्रत इसी उपलक्ष्य में # www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal & Daily Newspaper)  Execlusive Report: 

मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी काल भैरवाष्टमी के रूप में मनाई जाती है। इस दिन भगवान महादेव ने कालभैरव के रूप में अवतार लिया था। कालभैरव भगवान महादेव का अत्यंत ही रौद्र, भयाक्रांत, वीभत्स, विकराल प्रचंड स्वरूप है। भैरवजी को काशी का कोतवाल भी माना जाता है। कालभैरव के पूजन से अनिष्ट का निवारण होता है।
इस वर्ष 11 नवम्बर, 2017 के दिन भैरवाष्टमी मनाई जाएगी. काल भैरव अष्टमी तंत्र साधना के लिए अति उत्तम मानी जाती है. कहते हैं कि भगवान का ही एक रुप है भैरव साधना भक्त के सभी संकटों को दूर करने वाली होती है. यह अत्यंत कठिन साधनाओं में से एक होती है जिसमें मन की सात्विकता और एकाग्रता का पूरा ख्याल रखना होता है. पौराणिक मान्यताओं के आधार स्वरूप मार्गशीर्ष कृष्ष्ण पक्ष अष्टमी के दिन भगवान शिव, भैरव रूप में प्रकट हुए थे अत: इसी उपलक्ष्य में इस तिथि को व्रत व पूजा का विशेष विधान है.

हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल तथा प्रिन्‍ट मीडिया के लिए- परम आदरणीय विद्वान ज्‍योतिष- श्रीमान परमानंद मैदुली जी- काल भैरव के घोर साधक- जी द्वारा समय समय पर मुझे सुनाई गयी- कथा- का विवरण- मेरी कलम से- चन्‍द्रशेखर जोशी- मुख्‍य सम्‍पादक-

शिवपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी इसलिए इस तिथि को कालभैरव अष्टमी या भैरवाष्टमी के नाम से जाना जाता है। कालभैरव शिव का ही स्वरूप हैं। वर्ष 2017 में कालभैरव अष्टमी कैलेंडरों के मतभेद के चलते कहीं 10 नवंबर, शुक्रवार को तो कई स्थानों पर 11 नवंबर 2017, शनिवार को मनाई जाएगी।
कालाष्टमी को ‘भैरवाष्टमी’ के नाम से भी जाना जाता है। भगवान भोलेनाथ के भैरव रूप के स्मरण मात्र से ही सभी प्रकार के पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं। भैरव की पूजा व उपासना से मनोवांछित फल मिलता है। अत: भैरव जी की पूजा-अर्चना करने व कालाष्टमी के दिन व्रत एवं षोड्षोपचार पूजन करना अत्यंत शुभ एवं फलदायक माना गया है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन कालभैरव का दर्शन एवं पूजन मनवांछित फल प्रदान करता है।

काल भैरवाष्टमी के दिन मंदिर जाकर भैरवजी के दर्शन करने से पूर्ण फल की प्राप्ति होती है। उनकी प्रिय वस्तुओं में काले तिल, उड़द, नींबू, नारियल, अकौआ के पुष्प, कड़वा तेल, सुगंधित धूप, पुए, मदिरा, कड़वे तेल से बने पकवान दान किए जा सकते हैं। कालाष्टमी के दिन काल भैरव के साथ इस दिन देवी कालिका की पूजा-अर्चना एवं व्रत का भी विधान है। काली देवी की उपासना करने वालों को अर्धरात्रि के बाद मां की उसी प्रकार से पूजा करनी चाहिए, जिस प्रकार दुर्गापूजा में सप्तमी तिथि को देवी कालरात्रि की पूजा का विधान है। भैरव की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी होती है। भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित पाठ करने से अनेक समस्याओं का निदान होता है।

पुराणों के अनुसार अंधकासुर दैत्य ने एक बार अपनी क्षमताओं को भूलकर अहंकार में भगवान शिव के ऊपर हमला कर दिया। उसके संहार के लिए शिव के खून से भैरव की उत्पत्ति हुई थी। नारद पुराण के अनुसार इस दिन को कालाष्टमी भी कहा जाता है। इस दिन कालभैरव और मां दुर्गा की पूजा करने का बहुत ही महत्व है। काली की उपासना करने वालों को सप्तमी तिथि की अर्द्धरात्रि के बाद मां काली की पूजा करना चाहिए। भैरव शिवशंकर के ही एक रूप हैं इसलिए मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी के दिन निम्न मंत्र का जाप करना फलदायी माना गया है, ऐसा शिवपुराण में कहा गया है।

मंत्र : अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्,
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि।।

इस मंत्र के जाप से कालभैरव का स्मरण करने से बुरी शक्तियां दूर रहती हैं तथा नकारात्मकता को दूर भगाकर हर तरह के दु:ख दूर हो जाते हैं।

भैरवाष्टमी या कालाष्टमी के दिन पूजा उपासना द्वारा सभी शत्रुओं और पापी शक्तियों का नाश होता है और सभी प्रकार के पाप, ताप एवं कष्ट दूर हो जाते हैं. भैरवाष्टमी के दिन व्रत एवं षोड्षोपचार पूजन करना अत्यंत शुभ एवं फलदायक माना जाता है. इस दिन श्री कालभैरव जी का दर्शन-पूजन शुभ फल देने वाला होता है.
भैरव जी की पूजा उपासना मनोवांछित फल देने वाली होती है. यह दिन साधक भैरव जी की पूजा अर्चना करके तंत्र-मंत्र की विद्याओं को पाने में समर्थ होता है. यही सृष्टि की रचना, पालन और संहारक हैं. इनका आश्रय प्राप्त करके भक्त निर्भय हो जाता है तथा सभी कष्टों से मुक्त रहता है.
भगवान शिव के इस रुप की उपासना षोड्षोपचार पूजन सहित करनी चाहिए. रात्री समय जागरण करना चाहिए व इनके मंत्रों का जाप करते रहना चाहिए. भजन कीर्तन करते हुए भैरव कथा व आरती की जाती है. इनकी प्रसन्नता हेतु इस दिन काले कुत्ते को भोजन कराना शुभ माना जाता है. मान्यता अनुसार इस दिन भैरव जी की पूजा व व्रत करने से समस्त विघ्न समाप्त हो जाते हैं, भूत, पिशाच एवं काल भी दूर रहता है.
भैरव उपासना क्रूर ग्रहों के प्रभाव को समाप्त करती है. भैरव देव जी के राजस, तामस एवं सात्विक तीनों प्रकार के साधना तंत्र प्राप्त होते हैं. भैरव साधना स्तंभन, वशीकरण, उच्चाटन और सम्मोहन जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए कि जाती है. इनकी साधना करने से सभी प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव नष्ट हो जाते हंध
इन्हीं से भय का नाश होता है और इन्हीं में त्रिशक्ति समाहित हैं. हिंदू देवताओं में भैरव जी का बहुत ही महत्व है यह दिशाओं के रकक्षक और काशी के संरक्षक कहे जाते हैं. कहते हैं कि भगवान शिव से ही भैरव जी की उत्पत्ति हुई. यह कई रुपों में विराजमान हैं बटुक भैरव और काल भैरव यही हैं. इन्हें रुद्र, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहारक भी कहा जाता है. भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है और नाथ सम्प्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व रहा है.

भैरव आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय प्राप्त होती है, व्यक्ति में साहस का संचार होता है. इनकी आराधना से ही शनि का प्रकोप शांत होता है, रविवार और मंगलवार के दिन इनकी पूजा बहुत फलदायी है. भैरव साधना और आराधना से पूर्व अनैतिक कृत्य आदि से दूर रहना चाहिए पवित्र होकर ही सात्विक आराधना की जाती है तभी फलदायक होती है. भैरव तंत्र में भैरव पद या भैरवी पद प्राप्त करने के लिए भगवान शिव ने देवी के समक्ष अनेक विधियों का उल्लेख किया जिनके माध्यम से उक्त अवस्था को प्राप्त हुआ जा सकता है.

भैरव जी शिव और दुर्गा के भक्त हैं व इनका चरित्र बहुत ही सौम्य, सात्विक और साहसिक माना गया है न की डर उत्पन्न करने वाला इनका कार्य है सुरक्षा करना और कमजोरों को साहस देना व समाज को सही मार्ग देना. काशी में स्थित भैरव मंदिर सर्वश्रेष्ठ स्थान पाता है. इसके अलावा शक्तिपीठों के पास स्थित भैरव मंदिरों का महत्व माना गया है माना जाता है कि इन्हें स्वयं भगवान शिव ने स्थापित किया था.
भैरवाष्टमी या कालाष्टमी की कथा के अनुसार एक समय श्रीहरि विष्णु और ब्रह्मा के मध्य विवाद उत्पन्न हुआ कि उनमें से श्रेष्ठ कौन है। यह विवाद इस हद तक बढ़ गया कि समाधान के लिए भगवान शिव एक सभा का आयोजन करते हैं। इसमें ज्ञानी, ऋषि-मुनि, सिद्ध संत आदि उपस्थित थे। सभा में लिए गए एक निर्णय को भगवान विष्णु तो स्वीकार कर लेते हैं, किंतु ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं होते। वे महादेव का अपमान करने लगते हैं। शांतचित शिव यह अपमान सहन न कर सके और ब्रह्मा द्वारा अपमानित किए जाने पर उन्होंने रौद्र रूप धारण कर लिया। भगवान शंकर प्रलय के रूप में नजर आने लगे और उनका रौद्र रूप देखकर तीनों लोक भयभीत हो गए। भगवान शिव के इसी रूद्र रूप से भगवान भैरव प्रकट हुए। वह श्वान पर सवार थे, उनके हाथ में दंड था। हाथ में दंड होने के कारण वे ‘दंडाधिपति’ कहे गए। भैरव जी का रूप अत्यंत भयंकर था। उनके रूप को देखकर ब्रह्मा जी को अपनी गलती का एहसास हुआ। वह भगवान भोलेनाथ एवं भैरव की वंदना करने लगे। ब्रह्मा, देवताओं और साधुओं द्वारा वंदना करने पर भैरव जी शांत हो जाते हैं।

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