राहुल गांधी का कद बढेगा, पीएम पद पर दावेदारी मजबूत

राहुल गांधी का कद बढेगा, पीएम पद पर दावेदारी मजबूत

राजनीतिक, सामाजिक क्षेत्रो के अलावा आध्‍यात्‍मिक जगत का भी मानना है कि राहुल का चमत्‍कारिक नेत़त्‍व सामने आयेगा, और वह मोदी के विजय रथ को रोकने में मजबूत अवरोध सिद्व होगे, Himalayauk Web & Print Media; CHANDRA SHEKHAR JOSHI

राहुल गांधी ने कहा कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो वह राफेल घोटाले की जांच सुनिश्चित करेंगे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित दोषी लोगों को सलाखों के पीछे भेजेंगे। 

राजनीतिक विश्लेषक और एशियानेट न्यूज़ के एडिटर-इन-चीफ़ एमजी राधाकृष्णन ने बीबीसी से कहा, “राहुल की उम्मीदवारी से कांग्रेस पार्टी के प्रति स्थानीय अल्पसंख्यकों के नज़रिये में बदलाव और लेफ़्ट की तरफ़ खिसकती उनकी वफ़ादारी पर लगाम लगाने का काम किया है. साथ ही इससे समाज के विभिन्न वर्गों के बीच पार्टी की छवि भी बढ़ी है. स्पष्ट है कि राहुल गांधी, मोदी विरोधी राजनीति के प्रतीक के रूप में उभरे हैं.” लेकिन, केवल अल्पसंख्यक ही नहीं हैं जो इस लोकसभा सीट से अपने प्रतिनिधि के रूप में राहुल गांधी की उम्मीदवारी को लेकर उत्साहित हैं.

कांग्रेस के लिए सुखद खबर है. कई राज्‍यो में बढत के साथ ही हालिया सर्वे में 63.6 फीसदी बेरोजगार उत्तरदाताओं ने नरेंद्र मोदी को अगले प्रधानमंत्री के रूप में प्राथमिकता नही दी है।  वही सियासी गहमागहमी, दांव-पेंच, आरोप-प्रत्यारोप का पारा तेजी से चढ़ता जा रहा है. मतदाता किसे ताज पहनाएंगे यह दिल्ली के राजनीतिक गलियारों की धड़कन बढ़ा रहा है. रोज रंग बदलती राजनीति में पूरा देश दिलचस्पी ले रहा है. कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी की लोकसभा चुनाव में पहली परीक्षा है. जिस वक्त राहुल गांधी की राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी हुई थी, उस वक्त तक कांग्रेस करीब दो दर्जन हार का सामना कर चुकी थी. अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी को मजबूत करने, खुद को बदलने और विपक्ष पर आक्रामक रुख अख्तियार कर राहुल गांधी ने कार्यकर्ताओं में नई जान फूंकने की कोशिश की. बहन प्रियंका को पार्टी में मौका देकर और पूर्वांचल की जिम्मेदारी देकर राहुल गांधी ने पीएम मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है.

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार बनने के बाद राहुल गांधी ने सहयोगी दलों के साथ गठबंधन में जोरदार मोलभाव दिखाया. यूपी, दिल्ली, बंगाल जैसे राज्यों में कांग्रेस ने सहयोगी दलों के सामने झुकने के बजाए अकेले चलना मुनासिब समझा. बिहार और महाराष्ट्र में भी सम्मानपूर्वक गठबंधन करके यह जता दिया कि कांग्रेस दबाव में नहीं है. कई बार राहुल गांधी ने पब्लिक के बीच पीएम पद पर अपनी दावेदारी भी स्पष्ट कर दी. कांग्रेस की कोशिश है कि वह अधिक से अधिक सीटें लाकर अपने नेतृत्व में सरकार बनाए. यदि कांग्रेस के पास सम्मानजनक सीटें आती हैं तो सहयोगी दलों के बीच राहुल गांधी का कद बढेगा, पीएम पद पर दावेदारी मजबूत होगी. यूपीए के सहयोगी दलों में राहुल के नेतृत्व की स्वीकार्यता बढ़ेगी.

राहुल गांधी (जन्म:19 जून 1970) एक भारतीय नेता और भारत की संसद के सदस्य हैं और भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा में उत्तर प्रदेश में स्थित अमेठी चुनाव क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। राहुल गांधी १६ दिसंबर २०१७ को हुई औपचारिक ताजपोशी के बाद अब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं। राहुल भारत के प्रसिद्ध गांधी-नेहरू परिवार से हैं। राहुल को 2009 के आम चुनावों में कांग्रेस को मिली बड़ी राजनैतिक जीत का श्रेय दिया गया है। उनकी राजनैतिक रणनीतियों में जमीनी स्तर की सक्रियता पर बल देना, ग्रामीण जनता के साथ गहरे संबंध स्थापित करना और कांग्रेस पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र को मजबूत करने की कोशिश करना प्रमुख हैं। आजकल राहुल अपना सारा ध्यान उनकी पार्टी को जड़ से मजबूत बनाने पर केंद्रित कर रहे हैं।

यदि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की सीटें घटती हैं तो सहयोगी दल पीएम पद पर अपनी दावेदारी पेश करेंगे. जैसे ममता बनर्जी ने कुछ दिन पहले ही कहा कि अगली सरकार टीएमसी के नेतृत्व में केंद्र में बनेगी. कांग्रेस की सीटों की संख्या सिमटती है तो फिर बीजेपी को सत्ता से बाहर करने के लिए सहयोगी दलों को अपना समर्थन देकर केंद्र में सरकार बनवाना कांग्रेस की मजबूरी हो जाएगी. कांग्रेस की स्थिति करो या मरो की है.

कलपेट्टा रोड शो के दौरान आसपास खड़े लोगों में एक व्यक्ति से पूछा गया कि नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी एनडीए के उम्मीदवार के उस आरोप पर क्या प्रतिक्रिया है कि राहुल गांधी बाहरी व्यक्ति हैं. तो उन्होंने कहा कि राहुल गांधी बाहरी व्यक्ति नहीं हैं. एक भारतीय हैं. हमारे नेता हैं. हमें एक उदारवादी नेता चाहिए. इसलिए हम यहां राहुल गांधी का समर्थन कर रहे हैं.”
लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ़ ने विपक्षी एलडीएफ़ की तुलना में हमेशा ही अधिक सीट जीती हैं. इस बार, यह पिछले चुनावों की तुलना में बेहतर कर सकती है.

वही दूसरी ओर आयकर विभाग की छापेमारी से नाराज कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘‘हिटलर से भी खराब’’ करार दिया है। जनता दल (एस) के नेता हाल में अपनी पार्टी के लोगों पर राज्यव्यापी आयकर विभाग की छापेमारी से नाराज हैं। साथ ही वह इस बात से नाराज हैं कि आयकर विभाग के आयुक्त ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर आयकर विभाग के बाहर प्रदर्शन करने के लिए कुमारस्वामी और कांग्रेस तथा जद एस के पदाधिकारियों पर कानूनी कार्रवाई करने के लिए कहा है। कुमारस्वामी ने कहा, ‘‘मोदी तानाशाह हैं – हिटलर से भी खराब व्यक्ति। वह सबसे खराब प्रधानमंत्री हैं जो लोगों की निजी संपत्तियों को जब्त करने के लिए विधेयक लेकर आए।’’ मुख्य आयकर आयुक्त (गोवा-कर्नाटक क्षेत्र) बी आर बालाकृष्णन ने राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी को पत्र लिखकर आयकर अधिकारियों को धमकाने तथा छापेमारी के दौरान उन्हें कर्तव्यपालन से रोकने के लिए कुमारस्वामी एवं अन्य के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की है।

सांगठनिक क्षमता की परीक्षा
राहुल गांधी सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया और मिलिंद देवड़ा सहित अन्य कई युवा नेताओं के साथ टीम बनाकर काम कर रहे हैं. पार्टी के कई पुराने चेहरों को सक्रिय भागीदारी से दूर रखा गया है. यदि इस चुनाव में सफलता मिलती है तो बुजुर्गों की विदाई होगी और राहुल गांधी की नई टीम मजबूत होकर पार्टी के भीतर उभरेगी. यदि कांग्रेस अपेक्षाकृत सफलता हासिल नहीं कर पाती है तो पार्टी के भीतर ही नेतृत्व पर एक बार फिर सवाल उठना शुरू हो जाएगा. पार्टी में भगदड़ की स्थिति हो जाएगी. नेतृत्व परिवर्तन की मांग उठने लगेगी. प्रियंका गांधी के आने से इस मांग को और बल मिलेगा. प्रियंका का कद पार्टी में बढ़ाने की मांग जोर पकड़ने लगेगी.

आक्रामक रुख पर असर
राहुल गांधी हर प्लेटफॉर्म का उपयोग मोदी सरकार पर हमले के लिए कर रहे हैं. खासकर सोशल मीडिया पर कांग्रेस तेजी से सक्रिय हुई है. राहुल गांधी लगातार जनता से जुड़े मुद्दे उठा रहे हैं. राहुल लगातार राफेल, किसानों के हक और बेरोजगारी का मुद्दा उठाते रहे हैं. इस बार घोषणापत्र में न्याय के जरिए किसान और युवा दोनों को समाधान बताने की कोशिश की गई है. यदि 2019 का यह समर राहुल गांधी नहीं जीत पाते हैं तो 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद बीजेपी जिस प्रकार से लगभग हर चुनाव में पीएम मोदी को चुनावी चेहरा बनाती रही है ऐसे में एक बार फिर से मोदी लहर को नकार पाना विपक्ष के लिए मुश्किल होगा. चुनावी बिसात पर किसकी चाल किस पर भारी पड़ेगी, यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है.

यूपीए पर असर
यदि 2019 का समर यूपीए ने संयुक्त अभियान से जीत लिया तो कांग्रेस की सीटों की संख्या बताएंगी कि नेतृत्व किसका हो? लेकिन यदि कांग्रेस की सीटों की संख्या कम आती है. अगर यूपीए भी बीजेपी सरकार को सत्ता से दूर करने में असमर्थ होता है तो इस गठबंधन के बिखरने की संभावना बढ़ जाएगी. लेकिन यदि यूपीए सत्ता में आती है तो इसके साथ अन्य दल भी जुड़ेंगे और यूपीए का आकार बढ़ जाएगा.

भाई -बहन की जोड़ी की परीक्षा

प्रियंका गांधी को कांग्रेस ने सरप्राइज मूव की तरह इस चुनाव में पेश किया. अब यदि चुनाव में परिणाम पक्ष में आता है तो इस जोड़ी को तुरुप का इक्का माना जाएगा. लेकिन यदि परिणाम पार्टी के उम्मीद के मुताबिक नहीं आने पर पार्टी के भीतर स्वीकार्यता संकट बढ़ेगा.

कसभा चुनाव में भी कई मुद्दे हैं जो चुनाव के केंद्र में हैं. इन्ही मुद्दों पर विपक्ष सरकार को घेर रही है. वहीं कई मु्द्दे ऐसे भी हैं जिनपर सरकार अपनी सफलता गिनाते हुए वोट मांग रही है. ऐसे में आइए जानते हैं इस लोकसभा चुनाव में कौन-कौन से मुद्दे महत्वपूर्ण हैं.

1-नौकरी

विपक्ष लगातार सरकार को नौकरी के मुद्दे पर घेर रही है और पूछ रही है कि सालाना 2 करोड़े नौकरी देने के उसके वादे का क्या हुआ. विपक्ष कह रहा है कि नोटबंदी और GST लागू करने की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा जिसकी वजह से नौकरी के अवसर पैदा नहीं हुए. नेशनल सैंपल सर्वे(सरकारी सर्वे) की लीक हुई रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2017/18 में कुशल श्रमिकों के लिए बेरोजगारी की दर बढ़कर 12.4 प्रतिशत हो गई जो 2011/12 में 5.9 प्रतिशत थी. इसलिए भी यह एक बड़ा मुद्दा है. इस बार युवा वोटर्स की संख्या काफी ज्यादा है ऐसे में रोजगार एक मुख्य मुद्दा रहने वाला है.

2- राष्ट्रवाद

इस बार के चुनाव में राष्ट्रवाद का मुद्दा भी सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक है. पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकी हमले में देश के 40 जवान शहीद हो गए. इसके बाद देश की सेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में घुसकर आतंकी शिविरों पर बम बरसाए. इसके बाद से ही देश की सेना के शौर्य को लेकर कई राजनीतिक बयानबाजी हुई. एक तरफ जहां बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में राष्ट्रवाद का मुद्दा सर्वोपरी रखा है और कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर उसकी जीरो टॉलरेंस की पॉलिसी है तो वही विपक्ष बीजेपी पर देश की सेना के शौर्य का राजनीतिक इस्तेमाल करने का आरोप लगा रही है. कुल मिलाकर भारत और पाकिस्तान के बीच पुलवामा आतंकी हमले के बाद जिस तरह रिश्तों में तल्खी आई है उसके कारण इस बार राष्ट्रवाद का मुद्दा भी एक महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा बन गया है.

3- राफेल

लंबे समय से राफेल डील को लेकर चल रहा विवाद अब मोदी सरकार के गले की फांस बन गया है. अब इस मामले में बड़ा ट्विस्ट आया जब सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग से ठीक एक दिन पहले राफेल डील पर मोदी सरकार की सभी आपत्तियां खारिज कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लीक हुए दस्तावेज मान्य हैं और इस डील से जुड़े जो कागजात आए हैं, वो सुनवाई का हिस्सा होंगे. कांग्रेस के लिए ही नहीं बल्कि 2019 के चुनाव में राफेल डील बड़े चुनावी मुद्दों में शामिल हो गया है. विपक्ष लगातार राफेल डील में पीएम मोदी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए हमला बोल रही है.

4- किसान

बढ़ती लागत और कम फसल की कीमतों के कारण लाखों गरीब किसानों के लिए कठिन परिस्थिति भी एक बड़ा चुनावी मुद्दा है. लगभग आधी आबादी खेती का काम करती है. दिसंबर में तीन बड़े खेती प्रधान वाले राज्यों (मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़) में चुनाव हारने के बाद बीजेपी ने अपने फरवरी के बजट में छोटे किसानों को 6,000 रुपये वार्षिक देने की घोषणा की. साथ ही इसी सप्ताह अपने चुनावी घोषणापत्र में भी किसानों के लिए कई बड़े वादे किए.

वहीं कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में वादा किया है कि उनकी सरकार बनती है तो किसानों के लिए अलग से बजट पेश किया जाएगा. साथ ही कांग्रेस ने अपना घोषणा पत्र में कहा है कि किसानों का कर्ज न चुका पाना अपराध के दायरे से बाहर होगा. ऐसे किसान जो कर्ज को चुकाने में असमर्थ हैं, उन पर आपराधिक मुकदमे नहीं चलेंगे बल्कि दीवानी कानून के तहत कानूनी कार्रवाई होगी. पार्टियों के इन वादों और देश में किसानों सी स्थिति से साफ है कि इस बार देश के किसान एक बड़ा चुनावी मुद्दा है.

5- राम मंदिर

पिछली बार की तरह इस बार भी चुनाव में राम मंदिर का मुद्दा बड़ा है. राम मंदिर पर बीजेपी ने जहां अपने घोषणा पत्र में कहा है कि कानून के मुताबिक जो भी रास्ता होगा उसे अपनाया जाएगा. वहीं कांग्रेस लगातार सरकार पर हमलावर है कि 2014 में राम मंदिर बनाने के अपने वादे में बीजेपी पूरी तरह असफल रही है. इस बार भी यह मुद्दा एक बड़ा चुनावी मुद्दा है.

6- कल्याणकारी योजनाएं

मोदी सरकार के मुताबिक अपने कार्यकाल में उसने बहुत सारी कल्याणकारी और विकास योजनाओं को लॉन्च किया है. उज्ज्वला, स्वच्छ भारत, पीएम किसान, आयुष्मान भारत इसमें प्रमुख हैं. सरकार का दावा है कि इन योजनाओं से उसने लोगों के कल्याण की दिशा में बड़े कदम उठाए हैं. वहीं कांग्रेस भी अपनी योजनाओं के जरिए हाल में हुए विधानसभा चुनावों में जीत हासिल कर चुकी है.  उन्होंने लोगों को रिझाने के लिए तीन राज्यों में कर्जमाफी की घोषणा भी की थी. अब राहुल गांधी ने वादा किया है कि सरकार में आने के बाद बेसिक इनकम दी जाएगी. ऐसे में जहां बीजेपी अपने पांच साल के कल्यानकारी योजना पर वोट मांग रही है तो वहीं कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में ‘न्याय’ स्कीम की बात कह कर वोटर्स को लुभाने की कोशिश की है. लिहाजा इस चुनाव में गरीबों के लिए कल्याणकारी योजना एक मुख्य मुद्दा होगी.

7-‘स्थिर सरकार’ बनाम गठबंधन

2014 की तरह यह चुनाव भी बीजेपी नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ रही है. वहीं विपक्ष में ‘महागठबंधन’ की बात कर रही है. ऐसे में इस चुनाव में एक मुद्दा जो महत्वपूर्ण है वह है ‘स्थिर सरकार’ का. दरअसल बीजेपी कह रही है कि विपक्षी पार्टियों के पास पीएम के लिए कोई चेहरा ही नहीं है और वह स्थिर सरकार नहीं बना पाएगी.

8-महिलाओं के लिए योजना

देश की आधी आबादी यानी महिलाएं इस चुनाव में अहम भूमिका में होंगी. केंद्र सरकार ने टॉइलेट निर्माण, एलपीजी गैस की सुविधा और बलात्कार के मामलों पर सख्ती जैसे कदम उठाए हैं. इससे उन्हें महिलाओं का वोट मिलने का भरोसा है. बड़े नेता एमजीआर, एनटीआर, जयललिता से लेकर शिवराज सिंह चौहान और नीतीश कुमार को अबतक महिलाओं का जबरदस्त सपॉर्ट मिला है.

वहीं कांग्रेस ने न्याय स्कीम का पैसा परिवार की महिलाओं के अकॉउंट में जाने की बात कही है. साथ ही कांग्रेस ने कहा है 17वीं, लोकसभा के पहले सत्र में और राज्य सभा में संविधान संशोधन विधेयक के ज़रिए वो लोकसभा और राज्य विधान सभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण का प्रावधान करेगी. साथ ही हम केन्द्र सरकार की नौकरियों में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण का प्रावधान करेंगे. दोनों पार्टियों को देखकर यही लगता है कि इस बार महिलाओं के लिए योजना एक और महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दों में है.

9-NRC का मुद्दा

भारतीय जनता पार्टी असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के जरिए लोकसभा चुनाव 2019 में पूर्वात्तर के राज्यों में माहौल बनाकर बड़ी जीत का ख्वाब देख रही थी. लेकिन जिस तरह से चुनाव से ऐन पहले नागरिकता संशोधन विधेयक विरोध और अब स्थायी निवासी प्रमाण पत्र को लेकर अरुणाचल का माहौल तनावपूर्ण हुआ. इस विरोध की आंच में बीजेपी के जीत के मंसूबे कहां तक सफल होंगे यह देखने वाली बात होगी. वहीं कांग्रेस NRC जैसे मुद्दे पर बीजेपी को घेरते हुए कह रही है एनआरसी की प्रक्रिया को बीजेपी अपने हित के लिए इस्तेमाल कर रही है. ऐसे में यह मुद्दा भी इसबार चुनावी मुद्दा है.


10- मॉब लिचिंग

भीड़ ने द्वारा किसी व्यक्ति को मार डालने की घटनाएं पिछले पांच साल से सरकार को विपक्ष द्वारा कटघरे में लाने का काम कर रही है. विपक्ष इस बात का आरोप लगाती रही है कि सरकार मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं पर मौन रहती है. वहीं बीजेपी का कहना है कि सरकार उन अपराधियों से सख्ती से निपटती रही है. ऐसे में मॉब लिंचिंग भी इस बार एक बड़ा मुद्दा है खासकर विपक्ष इस मुद्दे को लगातार उठा रही है.

वही दूसरी ओर भारत में राजनीतिक पार्टियां अपने चुनावी कैंपेन में ज़ोर-शोर से जुटी हुई हैं. 11 अप्रैल को देश में पहले चरण के मतदान होने हैं. इस चुनाव में 90 करोड़ मतदाता हिस्सा लेंगे.

साल 2014 में बहुमत की सरकार बनाने वाले प्रधानमंत्री मोदी ‘फिर एकबार मोदी सरकार’ और ‘ट्रांसफ़ॉर्म इंडिया’ के नारे के साथ मैदान में हैं. वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस कहती है कि सरकार अपने मुख्य वादों को ही पूरा नहीं कर सकी तो वह आगे ये वादे क्या पूरे करेगी.

सीमा पर देश की सुरक्षा का वादा

फ़रवरी महीने में भारत में सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा बन कर सामने आया. 14 फ़रवरी को कश्मीर में सीआरपीएफ़ के क़ाफ़िले पर आत्मघाती हमला किया गया जिसमें 40 से ज़्यादा जवान मारे गए. इसके जवाब में भारत ने पाकिस्तानी सीमा में दाख़िल होकर एयर स्क्राइक की और चरमपंथी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों को तबाह करने का दावा किया.

लेकिन कांग्रेस मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए कहती रही है कि साल 2014 के बाद से कश्मीर में हालात बद से बदतर हुए हैं.

भारत प्रशासित कश्मीर में चरमपंथ से जुड़ी घटनाएं

इन आंकड़ों के मुताबिक़ पिछले साल के अंत तक चरमपंथी गतिविधियां मौजूदा सरकार में भी पिछली सरकार जितनी ही हुई हैं.

लेकिन एक दूसरा सच ये भी है कि साल 2016 से भारत प्रशासित कश्मीर में घुसपैठ के मामले बढ़े हैं.

मोदी सरकार उत्पादन क्षेत्र को आर्थिक वृद्धि का सबसे बड़ा स्त्रोत मानती है. सरकार ने वादा किया कि ‘मेक इन इंडिया’ की मदद से साल 2025 तक अर्थव्यवस्था में मैन्युफ़ैक्चरिंग का योगदान बढ़कर 25 प्रतिशत हो जाएगा.

सरकार के आंकड़ों के मुताबिक़ मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर का जीडीपी में योगदान अब तक 15 फ़ीसदी के लगभग ही है.

क्या अब महिलाएं सुरक्षित हैं?

विपक्षी कांग्रेस पार्टी का कहना है कि महिला की सुरक्षा ने वाले चुनाव में बड़ा मुद्दा होगी.

वहीं, बीजेपी का कहना है कि महिलाओं के ख़िलाफ़ हो रही हिंसा ने निपटने के लिए कड़े क़ानून लाए गए हैं.

आंकड़ों के मुताबिक़ साल 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया गैंगरेप मामले के बाद रेप की मामले दर्ज होने की घटना में इज़ाफ़ा हुआ है. लेकिन अदालतों में जाने वाले मामलों में सज़ा की दर में पिछले कुछ सालों से कोई सुधार नहीं आया है.

भारत की कुल आबादी का बड़ा हिस्सा आजीवीका के लिए खेती पर निर्भर है. ऐसे में ग्रामीण इलाक़ों के लोग ख़ासकर किसान चुनावों के दौरान हमेशा ही बड़ा मुद्दा होते हैं.

विपक्ष हमेशा ही मोदी सरकार के कार्यकाल में किसानों की दुर्दशा का ज़िक्र करता है, साथ ही केंद्र सरकार पर आरोप लगता है कि ये ‘ग़रीब विरोधी सरकार है.’ तीन साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी कर दी जाएगी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ 2016 तक किसानों की आय में काफ़ी इज़ाफ़ा हुआ है. 2016 के बाद किसानों की आय कितनी बढ़ी है इसके सरकारी आंकड़े मौजूद नहीं है. हालांकि केन्द्र सरकार ने किसानों के हित में कई क़दम उठाए हैं.

कांग्रेस की क़र्ज़ माफ़ी योजना को आड़े हाथों लेते हुए मोदी हमेशा ये कहते रहे हैं कि क़र्ज़माफ़ी किसानों की परेशानियों का हल नहीं है.किसानों के लिए की गई क़र्ज़माफ़ी का लाभ हक़ीक़त में किसानों को पूरी तरह मिल नहीं पाता है.

उज्जवला योजना कितनी कामयाब

स्वच्छ भारत अभियान के तहत प्रधानमंत्री मोदी ने कई वादे किए थे. धुआं रहित ईंधन के लिए मोदी सरकार ने उज्जवला योजना शुरू की. साल 2016 में उज्जवला योजना लॉन्च की गई और अब तक करोड़ों लोगों को गैस कनेक्शन देने का सरकार दावा करती है. सरकार की इस योजना के चलते रसोई गैस (एलपीजी) बड़ी संख्या में आम लोगों के घरों तक पहुंची. लेकिन सिलेंडर को रीफ़िल करने की लागत को देखते हुए लोगों ने इसका इस्तेमाल जारी नहीं रखा और परंपरागत ईंधन की ओर वापस लौट गए क्योंकि वे उन्हें अमूमन मुफ़्त में मिल जाते हैं.

कितने शौचालय बने

स्वच्छ भारत मिशन के तहत केन्द्र सरकार ने एक करोड़ शौचालय बनाने की घोषणा की थी. प्रधानमंत्री मोदी का दावा है कि अब भारत के 90 फ़ीसदी घरों में शौचालय है, जिनमें से तक़रीबन 40 फ़ीसदी 2014 में नई सरकार के आने के बाद बने हैं. ये बात सही है कि मोदी सरकार के समय घरों में शौचालय बनाने के काम ने रफ़्तार पकड़ी है, लेकिन ये बात भी सही है कि अलग-अलग कारणों से नए बने शौचालयों का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है.

कितनी साफ़ हुई गंगा?

जब नरेंद्र मोदी साल 2014 में प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने देश के नागरिकों से एक वायदा किया था. उन्होंने कहा था कि वो प्रदूषित गंगा नदी को साफ़ करने का काम करेंगे.

साल 2015 में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने इसके लिए पांच साल के कार्यक्रम की शुरुआत की और 300 करोड़ रुपये भी बजट के लिए रखे.

विपक्ष का ये दावा है कि सरकार इस मामले में अपना वादा पूरा नहीं कर पा रही है. सच भी यही है कि गंगा की सफ़ाई का काम बेहद धीमी गति से चल रहा है. हालांकि इस समस्या पर पहले से काफ़ी अधिक धन ख़र्च किया जा रहा है, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं लगता 1,568 मील लंबी इस नदी को साल 2020 तक पूरी तरह साफ़ किया जा सकेगा.

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