सवर्णों की नाराज़गी क्या गुल खिलायेगी म0प्र0 में

सवर्णों की नाराज़गी क्या शिवराज का रास्ता रोक पायेगी # सीएम शिवराज सिंह चौहान के लिये गले की फांस ; एससी/एसटी एक्टका मुद्दा #बीजेपी के लिये फायदा कम नुकसान ज्यादा पहुंचा सकता है #   हिमालयायूके-  www.himalayauk.org

मध्य प्रदेश में एससी/एसटी एक्टका मुद्दा सीएम शिवराज सिंह चौहान के लिये गले की फांस बनता दिखाई दे रहा है. इसी बीच सीएम शिवराज ने ऐलान किया है कि मध्य प्रदेश में नहीं बिना जांच के एससी/एसटी एक्ट के तहत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी. इससे एससी-एसटी नेताओ ने शिवराज सिंह चौहान को घेर लिया, एससी-एसटी एक्ट और आरक्षण को लेकर सवर्णों के निशाने पर शिवराज सरकार वही दूसरी ओर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बयान पर उदित राज और रामदास अठावले नाराज हो गए हैं. राज्य की 230 विधानसभा सीटों में सवर्ण-ओबीसी के सीधे प्रभाव वाली 148 सीटें हैं. वहीं आरक्षित वर्ग की कुल 82 सीटें हैं. राजनीतिक पंडितों का मानना है कि मध्य प्रदेश में अबकी बार 200 पार का नारा देने वाली बीजेपी के लिए एससी-एसटी एक्ट में संशोधन गले की फांस बन गया है. सवर्णों की नाराज़गी शिवराज के लिए किसी चुनौती से कम नहीं. क्योकि मध्यप्रदेश में सवर्ण और पिछड़े सीधे तौर पर 148 सीटो को प्रभावित करते हैं. हालात संभालने मुख्यमंत्री निवास से लेकर बीजेपी मुख्यालय तक आला नेताओं की रोज बैठक चल रही है.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बयान पर उदित राज और रामदास अठावले नाराज हो गए हैं. दोनों नेताओं ने कहा है कि मुख्यमंत्री को बयान वापस लेना चाहिए क्योंकि इससे दलितों में नाराजगी बढ़ेगी. मुख्यमंत्री चौहान ने हाल में एक ट्वीट कर कहा था कि मध्य प्रदेश में एससी-एसटी एक्ट के तहत बिना जांच के गिरफ्तारी नहीं होगी. सीएम शिवराज ने अपने ट्विटर हैंडल से एक ट्वीट किया था कि मध्य प्रदेश में एससी-एसटी एक्ट में बिना जांच के गिरफ्तारी नहीं की जाएगी. उन्होंने कहा कि एमपी में एससी/एसटी एक्ट का दुरुपयोग नहीं होगा.

वही दूसरी ओर एमपी में शिवराज सरकार एससी-एसटी एक्ट और आरक्षण को लेकर हर जगह सवर्ण समाज का विरोध झेल रही है. ऐसे में खुद सीएम शिवराज सिंह चौहान के विधानसभा क्षेत्र बुधनी के तिलाडिया गांव में भी लोग हाथों में पोस्टर लेकर सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरे. मध्य प्रदेश में एससी-एसटी एक पर सवर्णो के विरोध ने राजनीतिक दलों खासकर बीजेपी को परेशान कर दिया है. चुनावी साल में अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को यह डर सता रहा है कि कहीं एसएसी-एसटी एक्ट के विरोध में आवाज मुखर करने वाले सवर्णों की नाराजगी का कहीं उनकी सरकार और बीजेपी को कोपभाजन का शिकार न होना पड़ जाए. यही वजह है कि गुरुवार को शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट के जरिये अगड़ी जातियों को यह भरोसा दिलाया कि इस एससी-एसटी कानून का गलत इस्तेमाल नहीं होने दिया जाएगा.

चौहान से जब सवाल किया गया कि क्या राज्य सरकार केंद्र सरकार के अध्यादेश के एवज में कोई अध्यादेश लाएगी, तो उन्होंने कहा, “मुझे जो कहना था वो मैंने कह दिया.” अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में सवर्ण, पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, जनजाति सभी वर्गों के हितों को सुरक्षित रखा जाएगा, जो भी शिकायत आएगी, उसकी जांच के बाद ही किसी की गिरफ्तारी होगी.
बीजेपी सांसद उदित राज ने कहा कि इस मामले में मैं तकलीफ महसूस कर रहा हूं कि ऐसा बयान क्यों दिया है. हमारी सरकार कानून मजबूत करती है और हमारे चीफ मिनिस्टर डाइल्यूट करते हैं. इससे बड़ी बेचैनी महसूस कर रहा हूं. फोन भी आ रहे हैं. समाज के अंदर फिर से निराशा है. आक्रोश पैदा हो गया है, इसलिए इस पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए.

उदित राज ने कहा, यह जो हमारा समाज है, इसमें एकता होनी चाहिए. जो अंतर्विरोध है खत्म होने चाहिए. फासला खत्म होना चाहिए. इससे जातिवाद बढ़ेगा. मैं बात पार्टी में भी रखूंगा. चौहान साहब से बातचीत करूंगा. मैं राष्ट्रीय अध्यक्ष से भी बात करूंगा. एससी-एसटी के मामले में ही क्यों ऐसा दोहरा चरित्र, दोहरा मापदंड अपनाया जा रहा है. शिवराज सिंह चौहान को कहूंगा कि वह इस मामले को वापस लें, इस बयान को वापस लें.

चौहान के बयान के खिलाफ आरपीआई नेता और सांसद रामदास अठावले भी उतर गए हैं. उन्होंने कहा, हो सकता है शिवराज सिंह चौहान ने अपना बयान अगड़ी जातियों को खुश करने के लिए दिया हो लेकिन उन्हें ऐसी कोई बात नहीं बोलनी चाहिए जिससे दलित समुदाय में भय या असुरक्षा की भावना पैदा हो. अठावले ने कहा कि चौहान को अपना बयान वापस लेना चाहिए क्योंकि मुख्यमंत्री अगड़े और पिछड़े दोनों के लिए होता है.

सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के मामले में बड़ा फैसला सुनाया था और जांच के बाद ही प्रकरण दर्ज करने की बात कही थी, मगर केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदल दिया था.
इस अध्यादेश के मुताबिक, एससी-एसटी समाज के व्यक्ति की ओर से शिकायत किए जाने पर बिना जांच के मामला दर्ज किया जाएगा और आरोपी छह माह के लिए जेल जाएगा. केंद्र के इस फैसले के खिलाफ मध्यप्रदेश में विरोध प्रदर्शन का दौर लगातार जारी है.

मध्य प्रदेश में विरोध तेज-
बीते 3 सितंबर को मध्य प्रदेश में सवर्णों का हुजूम दलित कानून के खिलाफ सड़कों पर उतरा था और अपना विरोध दर्ज कराया था. यूपी के कई हिस्सों में भी विरोध की खबरें हैं. कुछ दिन पहले बिहार के कई जिलों में सवर्णों ने खुलेआम विरोध प्रदर्शन कर नाराजगी जाहिर की थी.
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं. उसके पहले सवर्णों का विरोध काफी अहम माना जा रहा है. यहां अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा और क्षत्रिय महासभा ने बीजेपी के खिलाफ खुलकर विरोध शुरू किया. चूंकि केंद्र और मध्य प्रदेश दोनों जगह बीजेपी की सरकार है, इसलिए इस कानून का ठीकरा इस पार्टी पर फोड़ते हुए महासभा ने बीजेपी को हराने का संकल्प तक ले लिया.

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने गुरूवार को घोषणा की कि राज्य सरकार जल्द ही अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम के संबंध में निर्देश जारी करेगी ताकि इस कानून का प्रदेश में दुरूपयोग न हो। माना जा रहा है कि एससी/एसटी कानून का विरोध कर रही सवर्ण एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को शांत करने के मकसद से चौहान ने यह ऐलान किया है।
समूच प्रदेश में एससी/एसटी कानून के विरोध में हो रहे व्यापक प्रदर्शनों पर पूछे गये एक सवाल के जवाब में शिवराज चौहान ने बताया,”एससी/एसटी कानून का मध्यप्रदेश में दुरूपयोग नहीं होने दिया जायेगा।” उन्होंने कहा, “(इस कानून के तहत की गई शिकायत संबंधी) मामले में पूरी जांच के बाद ही मामला कायम किया जायेगा। बिना जांच की गिरफ्तारी नहीं होगी।” शिवराज चौहान ने बताया, “इसके लिए मध्यप्रदेश सरकार द्वारा जल्द ही निर्देश जारी किया जायेगा।” इस साल के अंत में प्रदेश में होने वाले विधानसभा के मद्देनजर वह अपनी जनआशीर्वाद रथयात्रा पर कल बालाघाट पहुंचे थे।

उधर, अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमर सिंह भदौरिया ने कहा कि अगले विधानसभा चुनाव में संगठन बीजेपी का खुलकर विरोध करेगा और लोगों से इसके खिलाफ वोट देने की अपील करेगा. भदौरिया ने कानून में केंद्र सरकार की ओर से लाए गए बदलाव को गलत ठहराते हुए कहा कि इससे सामान्य वर्ग के हितों को गहरी चोट पहुंची है.

केंद्र सरकार की ओर से (एससी/एसटी एक्ट) में किए गए संशोधन को लेकर मध्य प्रदेश के सवर्ण समाज में असंतोष है और वे तमाम जन प्रतिनिधियों का विरोध कर रहे हैं. इसी कड़ी में  इंदौर में लोकसभाध्यक्ष सुमित्रा महाजन के आवास के सामने सैकड़ों लोगों ने प्रदर्शन किया है. सवर्ण सेना के कार्यकर्ता हाथों में तख्ती, मजीरा, घंटे बजाते हुए लोकसभा अध्यक्ष के निवास पर पहुंचे. प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पुलिस ने बाड़ लगा रखी थी. प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच धक्का-मुक्की भी हुई है. सवर्ण सेना के एक पदाधिकारी ने बताया, “पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन वे इसमें सफल नहीं हुए. कई प्रदर्शनकारी महाजन के आवास के करीब पहुंच गए और उन्होंने वहां ढोल मजीरे के साथ भजन गाए. प्रदर्शनकारियों में ब्राह्मण, राजपूत, वैश्य व अनारक्षित वर्गो के प्रतिनिधि शामिल थे.”

राज्य में विधानसभा चुनाव को लेकर अब किसी भी दिन ऐलान हो सकता है. अगर जातिगत समीकरणों के हिसाब से देखें तो मध्य प्रदेश में एससी/एसटी एक्ट में संशोधन दांव एक तरह से बीजेपी के लिये फायदा कम नुकसान ज्यादा पहुंचा सकता है. मध्य प्रदेश में अनुसूचित जाति की आबादी 15.2 फीसदी, और अनुसूचित जनजाति की आबादी 20.8 फीसद है. सूबे में अनुसूचित जाति की 35 सीटें हैं, जिसमें फिलहाल 28 पर बीजेपी काबिज है. 47 अनुसूचित जनजाति बहुत सीटों में 32 पर बीजेपी का कब्जा है. मध्य प्रदेश में बसपा को 7 फीसद वोट मिलते रहे हैं, उसके पास 4 विधायक हैं. जीजीपी और छोटे दलों को लगभग 6 फीसद वोट मिले थे.

राज्य की 230 विधानसभा सीटों में सवर्ण-ओबीसी के सीधे प्रभाव वाली 148 सीटें हैं. वहीं आरक्षित वर्ग की कुल 82 सीटें हैं. 2013 में बीजेपी ने सवर्ण-ओबीसी की 148 में से 102 सीटें जीती थीं, यानी बहुमत से सिर्फ 14 कम. जो सवर्ण-ओबीसी वोटबैंक बीजेपी को अकेले इतनी सीटें दिला सकता है उसकी ऐन वक्त पर नाराजगी बीजेपी के लिये अच्छी खबर नहीं है. एक ओर तो पार्टी को सत्ता विरोधी लहर का भी सामना करना है. कुछ दिन पहले कराए गये एक सर्वे में पार्टी के 50 से ज्यादा विधायक इस बार हारते दिखाई दे रहे हैं. वहीं इस ऐक्ट ने बीजेपी को और भी फंसा दिया है. फिलहाल देखने वाली बात यह होगी कि शिवराज सिंह चौहान के इस नये ऐलान से कितना असर पड़ने वाला है. हालांकि एक रैली में शिवराज सिंह चौहान ने भी यह कह दिया था कि कोई ‘माई का लाल’ आरक्षण नहीं हटा सकता है उनके इस बयान को सवर्ण समाज के लोगों ने भी चुनौती के रूप में ले लिया है.

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