राजनीतिक भूकंप – पटकथा 22 नवम्‍बर को दिल्‍ली सम्‍मेलन में लिखी जा चुकी थी;

महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा उलटफेर ;इसकी पटकथा 22 नवम्‍बर २०१९ को नई दिल्‍ली में राज्‍यपालो केे दिल्‍ली सम्‍मेलन में लिखी जा चुकी थी? राज्य की राजनीति हिल गयी- किसी ने किसी को धोखा ज़रूर दिया;;; सुबह की पहली किरण तो केन्‍द्र के सारे मंत्रियो के बधाई संदेश तक आ चुके थे- राजभवन ने आनन फानन में सब काम निपटा कर 30 नव0 तक सरकार बनाने का समय दे दियाथा- एक्‍सक्‍लूसिव रिपोर्ट- हिमालयायूके ब्‍यूरो

हिमालयायूके ब्‍यूरो की खबर पर मोहर लगायी है- रामदास अठावले ने – महाराष्ट्र की सत्ता के सबसे बड़े गेम चेंज को लेकर RPI अध्यक्ष रामदास अठावले ने कहा कि मुझे लगता है कि ये पहले से तय था कि हमारी पार्टी, बीजेपी और एनसीपी की सरकार बननी चाहिए. सबको भरोसा था एनसीपी-बीजेपी के साथ आएगी. साथ ही अठावले ने कहा कि केंद्र में एनसीपी को मंत्री पद मिल सकता है. सुप्रिया सुले केंद्र में मंत्री बन सकती हैं.

 महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा उलटफेर हो गया है। शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की सरकार बनने की चर्चाओं के बीच राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने शनिवार सुबह देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और एनसीपी नेता अजीत पवार को उप मुख्यमंत्री के पद की शपथ दिला दी है।   बड़ा सवाल यह है कि क्या तब भी बीजेपी विधानसभा में बहुमत साबित कर पाएगी।। राज्यपाल ने फडणवीस को 30 नवम्बर तक बहुमत बनाने का मौका दे दिया है।    सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि किसने किसे धोखा दिया है। जब सारी बात साफ हो चुकी थी कि शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस राज्य में मिलकर सरकार बनाएंगे तो यह आख़िरकार कैसे हो गया। यानी किसी ने किसी को धोखा ज़रूर दिया है। या तो एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने शिवसेना को धोखा दिया है या फिर शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने अपने चाचा को।

हरियाणा के राज्यपाल जीडी तापसे को राजभवन में ही भरी सभा में दिग्गज नेता चौधरी देवीलाल ने थप्पड़ तक मार दिया था।

अजीत अनंतराव पवार महाराष्ट्र विधानसभा के बारामती निर्वाचन क्षेत्र से महाराष्ट्र में विधायक हैं। वह महाराष्ट्र के पूर्व उप मुख्यमंत्री हैं। वह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार के भतीजे हैं।

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कुछ दिन पहले ही शरद पवार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात की थी। मुलाक़ात के बाद उन्होंने कहा था कि उनकी मुलाक़ात किसानों की समस्याओं को लेकर हुई है लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसे लेकर जोरदार चर्चा थी कि पवार को बीजेपी की ओर से राष्ट्रपति बनने का ऑफ़र किया गया है। और तभी से लोगों के कान खड़े हो गए थे कि एक बार फिर राज्य में बीजेपी-एनसीपी साथ आ सकते हैं क्योंकि 2014 में पवार ने ही बीजेपी को समर्थन दिया था। 

288 विधायकों वाली राज्य की विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 145 विधायकों की ज़रूरत है। बीजेपी के पास 105 विधायक हैं और कुछ निर्दलीय मिलाकर उसका दावा है कि उसके पास 119 विधायक हैं और अगर एनसीपी के 22 विधायक अजीत पवार के साथ आते हैं तो यह योग 141 बैठता है जो बहुमत के आंकड़े से 4 दूर है। लेकिन अगर 35 विधायक अजीत पवार के साथ आते हैं तो यह योग 154 विधायकों का बैठता है और ऐसी स्थिति में उसे विधानसभा में बहुमत साबित करने में कोई मुश्किल नहीं होगी। लेकिन देखना होगा कि कितने विधायक टूट कर अजीत पवार के साथ आते हैं। 

अब अजित पवार ने एक बार और झटका दिया है। यदि उन्होंने यह काम पवार को बिना बताए किया  है, तो यह अजित पवार की एक बड़ी राजनीतिक भूल भी हो सकती है। एक यह कि इससे एनसीपी में नए नेतृत्व की राह आसान हो जाएगी। यानी सुप्रिया सुले को महाराष्ट्र की राजनीति में स्थापित करने में शरद पवार को आसानी होगी। अजित पवार की जिद की वजह से सुप्रिया को आज तक पवार ने राष्ट्रीय राजनीति में ही लगाए रखा था। दूसरी ओर, एनसीपी में टूट होने को लेकर जो अटकलें चल रही थीं, उस पर पार्टी प्रमुख शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने मुहर लगा दी है। सुप्रिया सुले ने अपने वॉट्सऐप स्टेटस में लिखा है कि परिवार और पार्टी दोनों टूट गए हैं। 

 वर्ष-1982 में हरियाणा में भी महाराष्ट्र जैसा वाकया हुआ था, जब अचानक ही प्रदेश की पूरी राजनीति ही बदल गई थी और राज्यपाल ने कांग्रेस नेता चौधरी भजन लाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी। इसके बाद जो हुआ वह और भी चौंकाना वाला था। दरअसल, तत्कालीन हरियाणा के राज्यपाल जीडी तापसे को राजभवन में ही भरी सभा में दिग्गज नेता चौधरी देवीलाल ने थप्पड़ तक मार दिया था। यह भारतीय राजनीति के इतिहास की सबसे बड़ी और हैरान करने वाली घटना था। वर्ष, 1982 में हरियाणा विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिल पाया था। 90 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस को 35, लोकदल को 31 और भारतीय जनता पार्टी को 6 सीटें हासिल हुई थीं। वहीं, कांग्रेस और लोकदल दोनों ने ही सरकार बनाने का दावा पेश किया था। वहीं, इस बीच अचानक ही तत्कालीन राज्यपाल जीडी तापसे ने कांग्रेस नेता चौधरी भजन लाल को शपथ दिला दी थी।  इसका पता जब लोकदल के नेता चौधरी देवी लाल को लगा तो वह अपने सभी विधायकों के साथ राजभवन पहुंच गए। इसी के साथ उन्होंने अपने सभी विधायकों की परेड भी कराई और दावा किया कि उनके पास बहुमत है और उन्हें ही सीएम की शपथ दिलाई जाए।  

सरकार बनाने के लिए पिछले कई दिनों से चल रही बैठकों में सुप्रिया सुले उपस्थित रहीं हैं। एक दूसरी बड़ी बात है जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी तो पवार और सुप्रिया सुले दिल्ली की राजनीति पर ही ज्यादा ध्यान देते थे। लिहाज़ा, महाराष्ट्र में एनसीपी में अजित पवार के समर्थकों का एक गुट बन गया था। 

पिछले चुनाव में जिस तरह अजित पवार गुट के लोग या एनसीपी के बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ी, उसने पवार सहित हर बड़े नेता को हिला कर रख दिया था। दल-बदल के उस खेल में अजित पवार के ससुराल पक्ष के नेता भी भाजपा में शामिल हो गए थे। ऐसे में शरद पवार फिर खड़े हुए और उन्होंने अपने दमखम पर फिर से पार्टी को एक सम्मानजनक स्थान दिलाया। 

महाराष्ट्र में  ठाकरे परिवार वहाँ बालासाहेब ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे पार्टी की कमान चाहते थे,  नहीं मिलने पर अलग पार्टी बनायी। उनकी पार्टी की क्या स्थिति है, किसी से छुपी नहीं है। यही हाल अजित पवार का भी हो सकता है।  

अब नए घटनाक्रम में पवार की ज़िम्मेदारी और अधिक बढ़ सकती है। जो आशंकाएँ  स्थिर सरकार की नए गठबंधन को लेकर लगाई जा रही थीं, वे अब भाजपा -अजित पवार गठबंधन को लेकर भी लगाई जा रहीं हैं।  बीजेपी के साथ कितने निर्दलीय विधायक है, यह आँकड़ा अभी तक स्पष्ट नहीं है। शिवसेना भाजपा-एनसीपी और छोटी-छोटी पार्टियाँ जो कांग्रेस -एनसीपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी हैं, यदि उनके विधायक बीजेपी की तरफ नहीं झुकते हैं तो बहुमत सिद्ध कर पाना मुश्किल है। शिवसेना के नेता संजय राउत ने इस बदले हुए घटनाक्रम को लेकर मीडिया के समक्ष बयान दिया कि यह महाराष्ट्र की जनता के साथ धोखा है। 

कहा जा रहा है कि एनसीपी के 56 में 22 विधायक अजीत पवार के साथ हैं और कई जगह यह आंकड़ा 35 बताया गया है। हालाँकि शरद पवार ने कहा है कि बीजेपी के साथ सरकार बनाने का फ़ैसला उनका नहीं है। पवार ने कहा है कि अजीत पवार का बीजेपी को समर्थन देने का फ़ैसला उनका निजी है और इसका एनसीपी से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि वह इस फ़ैसले का समर्थन नहीं करते हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रफुल पटेल ने भी कहा है कि यह शरद पवार का फ़ैसला नहीं है।

आगे की रणनीति बनाने के लिए एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने शनिवार शाम को 4.30 बजे पार्टी के विधायकों की बैठक भी बुलाई है। पार्टी के प्रवक्ता नवाब मलिक ने कहा है कि हमने अपने सभी विधायकों के हस्ताक्षर लिए थे और इसी का दुरुपयोग शपथ लेने के लिए किया गया है। नवाब मलिक ने कहा कि यह सरकार धोखे से बनाई गई है और यह विधानसभा के फ़्लोर पर हार जाएगी। मलिक ने कहा कि सारे विधायक हमारे साथ हैं। 

रात के अँधेरे में महाराष्ट्र का सत्ता समीकरण बदल गया। सुबह सब की आँख खुली तो लोगों ने देखा कि सत्ता का जो नया समीकरण था, उसका एक बड़ा मोहरा राजभवन में शपथ ले रहा है। ‘मैं फिर से मुख्यमंत्री बनूँगा’ कहने वाले देवेंद्र फडणवीस ने राजभवन में मुख्य मंत्री  और उनके साथ शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने उप मुख्यमंत्री की शपथ ली। राज्यपाल ने फडणवीस को 30 नवम्बर तक बहुमत बनाने का मौका दे दिया है। 

इससे इस बात की आशंकाएं बढ़ गयी हैं कि अब विधायकों की ख़रीद-फ़रोख्त का खेल भी खेला जाएगा। सुबह-सुबह की यह घटना एक राजनीतिक भूकंप जैसी रही, जिससे राज्य की राजनीति हिल गयी और इसका केंद्र रहा मुंबई। इस घटना के बाद भारतीय जनता पार्टी के ख़िलाफ़ प्रदेश में नए राजनीतिक समीकरण के केंद्रबिंदु एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने अपना बयान ट्वीट किया। उन्होंने कहा कि ‘यह निर्णय अजित पवार का निजी निर्णय है, राष्ट्रवादी कांग्रेस का नहीं।’ 

शरद पवार का यह बयान कई सवाल खड़े करता है। पहला यह कि क्या अजित पवार बिना उन्हें बताये इतना बड़ा निर्णय कर सकते हैं? दूसरा यह कि क्या अजित पवार के पास इतने विधायकों का समर्थन है कि वह एनसीपी से अलग एक स्वतंत्र गुट बनाकर राज्य की सरकार में शामिल हो सकते हैं? दोनों सवालों का जवाब शरद पवार ही दे सकते हैं। 

शुक्रवार 22 Nov. 2019 रात 9 बजे जब मुंबई के नेहरू सेंटर में तीनों दलों की बैठक ख़त्म हुई, अजित पवार अपना मोबाइल फ़ोन बंद कर संपर्क से बाहर हो गए थे।   बताया जाता है कि इस पूरे घटनाक्रम की कहानी रात 9 बजे के बाद से ही लिखी गयी। जिन 15 या 18 विधायकों के अजित पवार के साथ जाने की बात कही जा रही है, वह कितना सच है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

यदि 15 या 18 विधायक उनके साथ होते थे तो वे राजभवन में कहीं क्यों नहीं दिखाई दिए, यह भी एक सवाल है। अजित पवार का मोबाइल उस दिन भी बंद हो गया था, जब शरद पवार को ईडी का नोटिस आया था और पवार ईडी कार्यालय में जाने के लिए तैयार हुए थे। पूरे महाराष्ट्र के लोगों से उन्हें समर्थन मिला और उनकी लोकप्रियता चरम पर थी, लेकिन शाम होते- होते, अजित पवार के विधायक पद से इस्तीफ़े की खबर ने उस लोकप्रियता को ग्रहण लगा दिया था। कुछ देर बाद फिर अचानक अजित पवार प्रकट हुए थे और यह बोलते हुए सबके सामने आये कि शरद पवार का नाम ईडी में आया इसलिए उन्हें अच्छा नहीं लगा।

कहा जा रहा है कि एनसीपी के 56 में 22 विधायक अजीत पवार के साथ हैं और कई जगह यह आंकड़ा 35 बताया गया है। हालाँकि शरद पवार ने कहा है कि बीजेपी के साथ सरकार बनाने का फ़ैसला उनका नहीं है। पवार ने कहा है कि अजीत पवार का बीजेपी को समर्थन देने का फ़ैसला उनका निजी है और इसका एनसीपी से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि वह इस फ़ैसले का समर्थन नहीं करते हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रफुल पटेल ने भी कहा है कि यह शरद पवार का फ़ैसला नहीं है।

देवेंद्र फडणवीस ने शपथ लेने के बाद सिर्फ़ अजीत पवार का ही नाम लिया है न कि शरद पवार का। इससे यह सवाल खड़ा होता है कि क्या एनसीपी में कोई बग़ावत हुई है क्योंकि यह काफ़ी दिनों से देखा जा रहा था कि अजीत पवार अपनी पार्टी से नाराज चल रहे थे। विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने विधायक के पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। तब भी इसे लेकर ख़ासी हैरानी हुई थी। अजित के इस्तीफ़े को लेकर अनेक कयास लगाए गए थे और कुछ लोगों ने इसे पवार परिवार में सियासी कलह का नतीजा बताया था तो कुछ ने कहा था कि पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री पद के रूप में प्रोजेक्ट नहीं कर रही थी, इसलिए वह नाराज थे। 

बीजेपी-एनसीपी की सरकार बनने से राजनीतिक जानकारों को ख़ासी हैरानी ज़रूर हुई है क्योंकि कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी के बीच सरकार गठन को लेकर बातचीत पूरी हो चुकी थी और यह माना जा रहा था कि शनिवार को तीनों दल मिलकर एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस करेंगे और इसमें सरकार बनने की जानकारी देंगे लेकिन उससे पहले ही यह सियासी उलटफेर हो गया।

बीजेपी-एनसीपी की सरकार को विधानसभा में बहुमत साबित करने में कोई मुश्किल पेश नहीं आएगी क्योंकि 288 विधायकों वाली राज्य की विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 145 विधायकों की ज़रूरत है और दोनों ही दलों के विधायकों का कुल योग 159 बैठता है। इसके अलावा बीजेपी के पास कुछ निर्दलीय विधायकों और छोटी पार्टियों का भी समर्थन है। 

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