योगी जी के धाम में त्रेतायुग से प्रज्जवलित चमत्कारी अखण्ड ज्योति

मंदिर में त्रेतायुग से प्रज्जदवलित चमत्कारी अखण्ड ज्योति लौ के दर्शन से चमत्कार होता है’ गोरक्षपीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ जी महाराज के धाम में # परम पूज्य महंत योगी आदित्यनाथ जी महाराज के गुरू महंत अवैद्यनाथ जिनका नाम कृपाल सिंह बिष्ट, था वह काण्डीे पौडी गढवाल के थे # मान्यता है कि मंदिर में गोरखनाथ जी द्वारा जलायी अखण्ड ज्योति त्रेतायुग से आज तक अनेक झंझावातों के बावजूद अखण्ड रूप से जलती आ रही है। यह ज्योति आध्यात्मिक ज्ञान, अखण्डता और एकात्मता का प्रतीक है। महत्वपूर्ण मान्यता है. इस लोकप्रिय मंदिर और गुरु गोरखनाथ के साथ जुड़े कथा का एक यह चमत्कार है कि जो भी भक्त गोरखनाथ चालीसा 12 बार जप करता है वह दिव्य ज्योति या चमत्कारी लौ के साथ ही धन्य हो जाता है I
महंत अवैद्यनाथ ( जन्म नाम कृपाल सिंह बिष्ट, जन्म: 28 मई 1921; मृत्यु: 12 सितम्बर 2014) भारत के राजनेता तथा गोरखनाथ मन्दिर के भूतपूर्व पीठाधीश्वर थे। 28 मई 1921 काण्डी, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड जन्म हुआ तथा सितम्बर 12, 2014 (उम्र 93) गोरखपुर में ब्रहमलीन हो गये; 

FILE PHOTO;  गोरखनाथ मंदिर में महंत अवैद्यनाथ और योगी आदित्यनाथ के बीच बैठे नरेन्द्र मोदी

गोरक्षपीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ जी  एक साधारण परिवार में पैदा हुए अजय सिंह बिष्ट का गोरक्षपीठ जैसे नाथ संप्रदाय की बड़ी पीठ के महंत से लेकर मुख्यमंत्री बनने तक का सफर संघर्षों भरा रहा है। गोरक्षपीठ के महंत अवैद्यनाथ का उत्तराधिकारी बनने के बाद नये नाम योगी आदित्यनाथ के रूप में काफी ख्याति अर्जित की। उनका स्वभाव योगी जैसा है। उनके द्वार पर जो भी फरियाद लेकर गया वह निराश नहीं लौटा। रात 11 बजे के बाद वह सोने के लिए चले जाते हैं और सुबह तीन-साढ़े तीन बजे जग जाते हैं।

वे गोरखपुर लोकसभा से चौथी लोकसभा के लिये हिंदू महासभा से सर्वप्रथम निर्वाचित हुए थे। इसके बाद नौवीं, दसवीं तथा ग्यारहवीं लोकसभा के लिये भी निर्वाचित हुए। महंत अवेद्यनाथ का जन्म 28 मई 1921 को महंत अवेद्यनाथ जी का जन्म ग्राम काण्डी, जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड में श्री राय सिंह बिष्ट के घर हुआ था। आपके बचपन का नाम श्री कृपाल सिंह बिष्ट था और कालांतर में श्री अवैद्यनाथ बनकर भारत के राजनेता तथा गुरु गोरखनाथ मन्दिर के पीठाधीश्वर थे के रूप में प्रसिद्द हुए। श्री अवैद्यनाथ जी ने हिन्दू धर्म की आध्यात्मिक साधना के साथ “सामाजिक हिन्दू” साधना को भी आगे बढाया और सामाजिक जनजागरण को अधिक महत्वपूर्ण मानकर हिन्दू धर्म के सोशल इंजीनियरिग पर बल दिया | श्री योगी आदित्यनाथ जी के हिन्दू युवा वाहिनी जैसे युवा संगठन की प्रेरणा भी कहीं न कहीं इसी सोसल इंजीनियरिग की प्रेरणा रही थी |
गोरखनाथ मन्दिर, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर नगर मे स्थित है। बाबा गोरखनाथ के नाम पर इस जिले का नाम गोरखपुर पड़ा है। गोरखनाथ मन्दिर के वर्तमान महन्त श्री बाबा योगी आदित्यनाथ जी है। मकर संक्रान्ति के अवसर पर यहाँ विशाल मेला लगता है जो ‘खिचड़ी मेला’ के नाम से प्रसिद्ध है।
हिन्दू धर्म, दर्शन, अध्यात्म और साधना के अंतर्गत विभिन्न संप्रदायों और मत-मतांतरों में ‘नाथ संप्रदाय’ का प्रमुख स्थान है। संपूर्ण देश में फैले नाथ संप्रदाय के विभिन्न मंदिरों तथा मठों की देख रेख यहीं से होती है। नाथ सम्प्रदाय की मान्यता के अनुसार सच्चिदानंद शिव के साक्षात् स्वरूप ‘श्री गोरक्षनाथ जी’ सतयुग में पेशावर (पंजाब) में, त्रेतायुग में गोरखपुर, उत्तरप्रदेश, द्वापर युग में हरमुज, द्वारिका के पास तथा कलियुग में गोरखमधी, सौराष्ट्र में आविर्भूत हुए थे। चारों युगों में विद्यमान एक अयोनिज अमर महायोगी, सिद्ध महापुरुष के रूप में एशिया के विशाल भूखंड तिब्बत, मंगोलिया, कंधार, अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल, सिंघल तथा सम्पूर्ण भारतवर्ष को अपने योग से कृतार्थ किया।

हिमालय और कैलाश मानसरोवर की यात्रा और साधना से शैव धर्म से गहरे प्रभावित श्री महंथ जी पहली बार १९४० में अपनी बंगाल यात्रा के दौरान मेंमन सिंह (तत्कालीन बंगाल) में श्री निवृति नाथ जी के माध्यम से श्री दिग्विजय नाथ जी से मिले | ८ फ़रवरी १९४२ को आप गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी बन गए | और इस तरह मात्र २३ साल की अवस्था में श्री कृपाल सिंह बिष्ट से अवैद्यनाथ बनकर विश्वमंच पर एक दैदीव्य्मान अक्षय प्रकाश पुंज के रूप में सदैव के लिए अमर हो गये |
आजन्म विवादों से दूर रहने वाले, विरक्त सन्यासी, सज्जन, सरल और सुमधुर और मितभाषी व्यक्तित्व के धनी श्री अवैद्यनाथ जी ने श्री रामजन्म भूमि आन्दोलन को मात्र गति ही नहीं दिया अपितु एक संरक्षक की भाँती हर तरह से रक्षित और पोषित किया |
दक्षिण भारत के रामनाथपुरम और मीनाक्षीपुरम में अनुसूचित जाति के लोगों के सामूहिक धर्मातरण की घटना से खासे आहत होते हुए महाराज जी ने राजनीति में पदार्पण किया। इस घटना का विस्तार उत्तर भारत में न हो, इसके लिए महत्वपूर्ण कदम उठाये गए और राजनीति में रहकर मतान्तरण का ध्रुवीकरण करने के कुटिल प्रयासों को असफल किया |
आपने 1962, 1967, 1974 व 1977 में उत्तर प्रदेश विधानसभा में मानीराम सीट का प्रतिनिधित्व किया और 1970, 1989, 1991 और 1996 में गोरखपुर से लोकसभा सदस्य रहे। ३४ वर्षों तक हिन्दू महासभा और भारतीय जनता पार्टी से जेड़े रहकर हिंदुत्व को भारतीय राजनीति में गति देने वाले और सामाजिक हितों की रक्षा करने वाले श्री अवैद्यनाथ जी ने स्वयं को अवसरवाद और पदभार से स्वयं को दूर रखा और इस तरह उन्होंने राजयोग में भी हठयोग का प्रयोग बखूबी किया | कितने पद स्वयं महाराज जी के चरणों में आकर स्वयं सुशोभित होते थे और आशीष लेते थे |
योग व दर्शन के मर्मज्ञ महंतजी के राजनीति में आने का मकसद हिंदू समाज की कुरीतियों को दूर करना और राम मंदिर आंदोलन को गति देना रहा है। हिन्दू धर्म में ऊंच-नीच दूर करने के लिए उन्होंने लगातार सहभोज के आयोजन किए। इसके लिए उन्होंने बनारस में संतों के साथ डोमराजा के घर जाकर भोजन किया और समाज की एकजुटता का संदेश दिया।
हिंदू समाज की एकता ही उनके प्रवचन के केंद्र में होती थी। वह मूलत: इतिहास और रामचरितमानस का सहारा लेते थे। श्रीराम का शबरी, जटायु, निषादराज व गिरीजनों से व्यवहार का उदाहरण देकर दलित-गरीब लोगों को गले लगाने की प्रेरणा देते रहे।
गोरक्षपीठ पर गुरु गोरखनाथजी के प्रतिनिधि के रूप में सम्मानित संत को महंत की उपाधि से अलंकृत किया जाता है। वर्तमान समय में महंत श्री अवेद्यनाथ जी महाराज गोरक्ष पीठाधीश्वर के पद पर आसीन थे। इस मंदिर के प्रथम महंत वरदनाथजी महाराज रहे हैं जो गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य थे।
महंत अवेद्यनाथ ने वाराणसी व हरिद्वार में संस्कृत का अध्ययन किया था। वह संस्कृत से शास्त्री थे। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद से जुड़ी शैक्षणिक संस्थाओं के अध्यक्ष के अलावा वे मासिक पत्रिका योगवाणी के संपादक रहे। योग व दर्शन पर लगातार लिखा। गोरक्षपीठ से जुड़ी चिकित्सा, शिक्षा और सामाजिक क्षेत्रों में काम कर रही करीब तीन दर्जन संस्थाओं के अध्यक्ष एवं प्रबंधक थे। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद से जुड़ी शैक्षणिक संस्थाओं के अध्यक्ष के अलावा वे मासिक पत्रिका योगवाणी के संपादक रहे। योग व दर्शन पर आजन्म लिखते रहे |
महंत अवेद्यनाथ ने गोरखपुर के वर्तमान सांसद योगी आदित्यनाथ को गोरक्षपीठ का न सिर्फ उत्तराधिकारी बनाया बल्कि उन्होंने योगी आदित्यनाथ को 1998 में सबसे कम उम्र का सांसद बनने का गौरव प्रदान किया। बाद में योगी आदित्यनाथ ने हिन्दू युवा वाहिनी का गठन किया जो हिन्दू युवाओं को धार्मिक बनाने के लिए प्रेरणा देती है।
महाराजगंज के चौक बाज़ार स्थित गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ महाविद्यालय इन्ही के नाम पर रखा गया हैं।[2]
महंथ अवेद्यनाथ का निधन 12 सितम्बर 2014 को हो गया। ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ को नाथ परंपरा के अनुसार समाधि दी गयी| पुलिस की टुकड़ी ने गार्ड ऑफ आनर दिया तथा मातमी धुन बजायी | पद्यमासन की मुद्रा में उन्हें समाधि की पश्चिम दिशा में बनी समाधि गृह में रखा गया| समाधि में कच्चा रोट, वेद, जनेऊ, अधारी, खप्पर, झोली, चीनी, चावल, घी तथा नारियल पर दीप रखा गया. धूप, घी, लोबान व कपूर से अंतिम पूजा के बाद गोरक्षपीठाधीश्वर महंत आदित्यनाथ ने समाधि गायत्री के साथ सबसे पहले मिट्टी डालकर अंतिम विदाई दी |[3] वे काफी समय से बीमार 97 वर्षीय महंत एक माह से गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में भर्ती थे। शुक्रवार शाम हालत बिगड़ने पर उन्हें विशेष विमान से गोरखपुर लाया गया, जहां उन्होंने शरीर छोड़ा
गोरक्षनाथ मंदिर गोरखपुर में अनवरत योग साधना का क्रम प्राचीन काल से चलता रहा है। ज्वालादेवी के स्थान से परिभ्रमण करते हुए ‘गोरक्षनाथ जी’ ने आकर भगवती राप्ती के तटवर्ती क्षेत्र में तपस्या की थी और उसी स्थान पर अपनी दिव्य समाधि लगाई थी, जहाँ वर्तमान में ‘श्री गोरखनाथ मंदिर (श्री गोरक्षनाथ मंदिर)’ स्थित है। नाथ योगी सम्प्रदाय के महान प्रवर्तक ने अपनी अलौकिक आध्यात्मिक गरिमा से इस स्थान को पवित्र किया था, अतः योगेश्वर गोरखनाथ के पुण्य स्थल के कारण इस स्थान का नाम ‘गोरखपुर’ पड़ा। महायोगी गुरु गोरखनाथ की यह तपस्याभूमि प्रारंभ में एक तपोवन के रूप में रही होगी और जनशून्य शांत तपोवन में योगियों के निवास के लिए कुछ छोटे- छोटे मठ रहे, मंदिर का निर्माण बाद में हुआ। आज हम जिस विशाल और भव्य मंदिर का दर्शन कर हर्ष और शांति का अनुभव करते हैं, वह ब्रह्मलीन महंत श्री दिग्विजयनाथ जी महाराज जी की ही कृपा से है। वर्तमान पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ जी महाराज के संरक्षण में श्री गोरखनाथ मंदिर विशाल आकार-प्रकार, प्रांगण की भव्यता तथा पवित्र रमणीयता को प्राप्त हो रहा है। पुराना मंदिर नव निर्माण की विशालता और व्यापकता में समाहित हो गया है।
भारत में मुस्लिम शासन के प्रारंभिक चरण में ही इस मंदिर से प्रवाहित यौगिक साधना की लहर समग्र एशिया में फैल रही थी। नाथ संप्रदाय के योग महाज्ञान की रश्मि से लोगों को संतृप्त करने के पवित्र कार्य में गोरक्षनाथ मंदिर की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही है। विक्रमीय उन्नीसवीं शताब्दी के द्वितीय चरण में गोरक्षनाथ मंदिर का अच्छे ढंग से जीर्णोद्धार किया गया। तभी से निरन्तर मंदिर के आकार- प्रकार के संवर्धन, समलंकरण व मंदिर से संबन्धित उसी के प्रांगण में स्थित अनेकानेक विशिष्ट देव स्थानों के जीर्णोद्धार, नवनिर्माण आदि में गोरक्षनाथ मंदिर की व्यवस्था संभाल रहे महंतों का ख़ासा योगदान रहा है।
मुस्लिम शासन काल में हिन्दुओं और बौद्धों के अन्य सांस्कृतिक केन्द्रों की भांति इस पीठ को भी कई बार भीषण कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इसके व्यापक प्रसिद्धि के कारण शत्रुओं का ध्यान विशेष रूप से इधर आकर्षित हुआ। विक्रमी चौदहवीं सदी में भारत के मुस्लिम सम्राट अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल में यह मठ नष्ट किया गया और साधक योगी बलपूर्वक निष्कासित किये गये थे। मठ का पुनर्निर्माण किया गया और पुनः यौगिक संस्कृति का प्रधान केंद्र बना। विक्रमी सत्रहवीं और अठारहवीं सदी में अपनी धार्मिक कट्टरता के कारण मुग़ल शासक औरंगजेब ने इसे दो बार नष्ट किया परन्तु शिव गोरक्ष द्वारा त्रेता युग में जलाई गयी अखंड ज्योति आज तक अखंड रूप से जलती हुई आध्यात्मिक, धार्मिक आलोक से उर्जा प्रदान कर रही है। यह अखंड ज्योति श्री गोरखनाथ मंदिर के अंतरवर्ती भाग में स्थित है।
क़रीब 52 एकड़ के सुविस्तृत क्षेत्र में स्थित इस मंदिर का रूप व आकार-प्रकार परिस्थितियों के अनुसार समय-समय पर बदलता रहा है। वर्तमान में गोरक्षनाथ मंदिर की भव्यता और पवित्र रमणीयता अत्यन्त कीमती आध्यात्मिक सम्पत्ति है। इसके भव्य व गौरवपूर्ण निर्माण का श्रेय महिमाशाली व भारतीय संस्कृति के कर्णधार योगिराज महंत दिग्विजयनाथ जी व उनके सुयोग्य शिष्य वर्तमान में गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ जी महाराज को है, जिनके श्रद्धास्पद प्रयास से भारतीय वास्तुकला के क्षेत्र में मौलिक इस मंदिर का निर्माण हुआ।
मंदिर के रिकॉर्ड में यह पता चला है कि गोरखपुर गोरखनाथ मंदिर की संरचना और आकार समय की अवधि के साथ-साथ तब्दील हो गया था. वास्तव में सल्तनत और मुगल काल के शासन के दौरान इस मंदिर को नष्ट करने के लिए कई प्रयास किए गए थे I पहले यह अलाउद्दीन खिलजी, जिसने 14 वीं सदी में गोरखनाथ मंदिर को नष्ट कर दिया और बाद में इसे 18 वीं सदी में भारत का इस्लामी शासक औरंगजेब ने नष्ट किया था. तथ्य यह है कि इसकी संरचना को दो बार नष्ट किया गया था, इसके बावजूद भी ये जगह अभी भी अपनी पवित्रता के लिये, उसके महत्व और उसके पवित्र आभा रखती है.I

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