अंतरिम बजट में इतने पैसे भी क्यों नहीं है कि देश की रक्षा तैयारियाँ हो सकें

साल 1962 में भारत का रक्षा बजट उस समय के सकल घरेलू उत्पाद का 1.5 प्रतिशत था। उसी साल भारत को चीन के साथ युद्ध लड़ना पड़ा था। उसके अगले साल इसे बढ़ा कर 2.31 प्रतिशत कर दिया गया था। इस तरह जीडीपी के हिसाब से 1962 के बाद दूसरी बार सबसे कम पैसे रक्षा मद में अलॉट किए गए हैं।

लेफ़्टीनेंट जनरल शरत चंद ने बीते साल रक्षा से जुड़ी संसदीय समिति के सामने पेश होकर अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सेना के पास जो साजो सामान हैं, उसका सिर्फ़ 8 प्रतिशत ही आधुनिक है, 24 प्रतिशत आज की ज़रूरतों के मुताबिक़ हैं। तक़रीबन 68 प्रतिशत बेहद पुराने हैं जो अब किसी काम के नहीं हैं।

बीजेपी की सरकार अंतरिम बजट में रक्षा मद में जो पैसे अलॉट किए गए हैं, उससे सेना का न तो आधुनिकीकरण होगा न क्षमता बढ़ाने की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी। पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट पेश करते हुए दावा किया था कि आज़ादी के बाद रक्षा मद में सबसे ज़्यादा 3 लाख करोड़ रुपये अलॉट इसी साल किए गए हैं। लेकिन सच यह है कि पिछले साल की तुलना में इस साल रक्षा बजट में सिर्फ़ 5,000 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी की गई है। रक्षा बजट में यह अब तक का न्यूनतम इजाफ़ा है। कुल रक्षा बजट सकल घरेलू अनुपात का सिर्फ़ 1.58 प्रतिशत है।  कम पैसे की वजह से सैन्य बलों का आधुनिकीकरण नहीं हो पाएगा। थल सेना को आधुनिकीकरण और क्षमता विस्तार के लिए 36,000 करोड़ रुपये की ज़रूरत है, लेकिन उसे मिलेंगे सिर्फ 29,700 करोड़ रुपए। नौसेना को 35,714 करोड़ रुपये चाहिए, उसके लिए 22,227 करोड़ रुपये अलॉट हुए हैं। इसी तरह वायु सेना को 74,895 करोड़ रुपये चाहिए, लेकिन उसे मिलेंगे महज़ 39,347 करोड़ रुपये। यानी सेना को 1,46,609 करोड़ रुपए अपने आधुनिकीकरण के लिए चाहिए। पर उसके लिए अंतरिम बजट में महज 91,274 करोड़ रुपये मिलेंगे। यानी, उसे 55,335 करोड़ रुपये ज़रूरत से कम मिलेंगे। साफ़ है, सेना का आधुनिकीकरण नहीं हो पाएगा, न ही इसकी क्षमता का विस्तार मुमकिन है।

सेना को इस साल अपने बेड़े में सीएच-47एफ़ चिनूक हेवी लिफ़्ट हेलीकॉप्टर और एएच-64 अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर भी शामिल करना है। इसके अलावा इसे रूस से एस-400 एयर डिफेन्स सिस्टम भी लेना है।इसके अलावा सैन्य बलों को सैनिकों की पेंशन पर भी बहुत पैसे खर्च करने होते हैं। इस साल सेना को पेंशन मद में ही 1.12 लाख करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। सेना यदि इस पर पैसे खर्च करेगी तो उसके पास उपकरण खरीदने को पैसे नहीं होंगे।

कुल मिला कर स्थिति यह है कि सेना के पास इतने पैसे नहीं है कि वह अपनी क्षमता विस्तार और आधुनिकीकरण का पहले से तय काम पूरा कर सके। इससे उसकी रक्षा तैयारियों पर असर पड़ेगा। लेकिन यह काम नरेंद्र मोदी सरकार के समय हो रहा है, यह वह सरकार है जिसने राष्ट्रवाद का एक अजीब नैरेटिव खड़ा कर रखा है। उसने रफ़ाल के मुद्दे पर कांग्रेस पर चोट करते हुए कहा कि राहुल गाँधी को देश की रक्षा तैयारियों का जरा भी ध्यान नहीं है, वह बिल्कुल नहीं सोचते कि देश की सुरक्षा व्यवस्था कमज़ोर होगी और पड़ोसियों को इससे फ़ायदा होगा। अब यही सवाल मोदी सरकार से भी पूछा जा सकता है कि उसके अंतरिम  बजट में इतने पैसे भी क्यों नहीं है कि देश की रक्षा तैयारियाँ हो सकें।

वही दूसरी ओर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने मंगलवार को संसद में एक रिपोर्ट पेश की है. इस रिपोर्ट में वित्त मंत्रालय के 2017-18 के दौरान के खर्चों को लेकर अहम खुलासा किया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक मंत्रालय ने विभिन्न मदों में आवंटित बजट से 1,157 करोड़ रुपये अधिक खर्च किये हैं. जबकि इन खर्चों के लिए संसद की पूर्व अनुमति नहीं ली गई. बता दें कि अनुदान सहायता, सब्सिडी और प्रमुख कार्यों के लिए नई सर्विस के प्रावधान को बढ़ाने को पहले संसद की अनुमति लेने की जरूरत होती है.

कैग की रिपोर्ट में बताया गया है कि वित्त मंत्रालय ने नई सर्विसेज या नए सेवा साधनों के संबध में उपयुक्त तंत्र तैयार नहीं किया, जिसकी वजह से ज्यादा खर्च हुआ. रिपोर्ट में सलाह दी गई है कि वित्त मंत्रालय को सभी मंत्रालयों और विभागों पर वित्तीय अनुशासन लागू करने के लिए एक प्रभावी तंत्र तैयार करना चाहिए ताकि इस तरह की गंभीर खामियों को फिर से नहीं दोहराया जाए. वित्त मंत्रालय के अधीन आने वाला आर्थिक मामलों का विभाग अतिरिक्त खर्च के वास्ते प्रावधान बढ़ाने के लिए विधायी स्वीकृति लेने में नाकाम रहा.

लोक लेखा समिति (पीएसी) ने अपनी 83वीं रिपोर्ट में वित्‍त मंत्रालय को सावधान किया था. पीएसी ने ‘अनुदान सहायता’ और ‘सब्सिडी’ प्रावधान बढ़ाने के मामलों पर गंभीरता से विचार करते हुए कहा था कि यह गंभीर खामियां संबंधित मंत्रालयों/विभागों द्वारा दोषपूर्ण बजट अनुमान और वित्तीय नियमों में कमियां की तरफ इशारा करती हैं.  कैग रिपोर्ट के मुताबिक, पीएसी की सिफारिशों के बावजूद वित्त मंत्रालय ने उपयुक्त तंत्र नहीं तैयार किया. इस वजह से 2017-18 में 13 अनुदानों के मामले में संसद की मंजूरी के बिना कुल 1,156.80 करोड़ रुपये अधिक खर्च किए.

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