राजनीति की अबूझ पहेेेेली का नाम है मुलायम सिंह यादव

मुलायम सिंह यादव ने मौजूदा लोकसभा के आखिरी दिन नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाने को लेकर अपनी इच्छा क्या जताई, पूरे विपक्षी खेमे में हलचल मच गई. सब अवाक रह गए, लेकिन, मुलायम की इस तारीफ के बाद सत्ता पक्ष की तरफ बैठे हुए बीजेपी और एनडीए के सांसदों ने मेजें थपथपा कर उनके बयान का इस्तेकबाल किया. ऐसा होना लाजिमी भी था, क्योंकि बीजेपी के खिलाफ कभी आग उगलने वाले इस बुजुर्ग समाजवादी नेता की तरफ से मोदी को उस वक्त सिरआंखों पर बैठाया जा रहा है, जब देश भर में सभी विरोधी दल मोदी को घेरने में लगे हैं.

नेता जी (मुलायम सिंह यादव) ने मजमा लूट लिया। मोदी सरकार के लोकसभा में आख़िरी दिन सोनिया गाँधी के ठीक बगल में बैठे नेता जी ने अपने संबोधन में सदन में कहा, ‘जितने सदस्य इस बार जीत कर आए हैं, वे दोबारा जीत कर आएँ और मोदी जी दोबारा प्रधानमंत्री बनें’, इसे सुनकर संसद अवाक रह गया।

1977 में पहली बार मंत्री बनते वक़्त उनकी कुल घोषित हैसियत 75 हज़ार रुपये के आस-पास थी और अब उनके परिवार/कुनबे को लोग 75 हज़ार करोड़ की हैसियत का मानते हैं।  लोग अब भूल चुके होंगे कि 1 मार्च 2007 को सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के चलते 5 मार्च 2007 को नेता जी (मुलायम सिंह यादव), अखिलेश यादव, डिंपल यादव, प्रतीक यादव और तमाम अन्य पर आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई ने पीई ( प्राथमिक जाँच, सीबीआई ज़्यादातर मामलों में एफ़आईआर दर्ज करने से पहले प्राथमिक जाँच दर्ज करती है) दर्ज की थी। बाद में दाख़िल स्टेटस रिपोर्ट में सीबीआई ने अनियमितताएँ पाईं थीं और कोर्ट को आगे की जाँच का भरोसा दिया था। लेकिन नेता जी की अकूत क्षमता देखते हुए उस जाँच का क्या हुआ, आज तक किसी को कोई पता नहीं।

नेता जी के बहुत सारे राजनीतिक फ़ैसलों के पीछे सीबीआई द्वारा दर्ज इस प्राथमिकी का बड़ा रोल है। जब मोदी जी प्रधानमंत्री बने तो मशहूर रिटायर्ड आईपीएस ऑफ़िसर जे. एफ़. रिबेरो ने 23 जनवरी 2015 को उन्हें एक पत्र लिखा और इसमें कहा कि, ‘सीबीआई के पास बहुत सारे हाई प्रोफ़ाइल मामले जाँच के लिए पड़े हुए हैं, जिसमें से एक मामला (मुलायम सिंह और उनके परिवार की संपत्तियों की जाँच) यहाँ संलग्न कर रहा हूँ और यह मामला सीबीआई को पहले ही भेजा जा चुका है।’ रिबेरो ने लिखा, ‘हमें उम्मीद है कि आपकी सरकार के समय में देश को संदेश देने के लिए सरकार इस मामले में सीबीआई से जाँच पूरी करके कार्रवाई करके दिखाएगी।’  आईपीएस ऑफ़िसर जे. एफ़. रिबेरो आईआरआई (इंडिया रिजूविनेशन इनीशिएटिव) नाम की एक संस्था के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। यह संस्था हाईप्रोफ़ाइल सरकारी भ्रष्टाचार के मामलों पर विभिन्न एजेंसियों और मीडिया को लिखती रहती है और सामाजिक दबाव बनाती रहती है।

इस पत्र के तीन दिन पहले यानी 20 जनवरी 2015 को सीबीआई के तब के डायरेक्टर एके सिन्हा को नेता जी और उनके परिवार से संबंधित आय से अधिक धन जमा करने के मामले में 5 मार्च 2007 से दर्ज प्राथमिकी में जाँच तेज कर कार्रवाई करने के लिए भी आईआरआई ने पत्र लिखा था। 

संसद और देश को यह जानने का हक़ है कि इस पूरे साढ़े चार साल में सीबीआई ने इस मामले में क्या किया? अगर मामले के शिकायतकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी की मानें तो सीबीआई इस मामले में पूरे साढ़े चार साल हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। चतुर्वेदी के अनुसार, इसीलिए नेता जी ने प्रधानमंत्री को भरी संसद में धन्यवाद और आशीर्वाद दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए उनके दोबारा प्रधानमंत्री बनने की कामना करने पर एक तरफ जहां बीजेपी ने समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव के प्रति धन्यवाद व्यक्त किया है तो वहीं सपा में इसे लेकर हैरानी जताई जा रही है. मुलायम सिंह ने संसद में बोलते हुए बुधवार को कहा था कि मोदी ने सबके साथ मिलकर काम किया है और वह उनके फिर से प्रधानमंत्री बनने की कामना करते हैं.

प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ के बाद लखनऊ में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने धन्यवाद देते हुए पोस्टर लगाए. बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के नेता ताहिर हुसैन ने ये पोस्टर लगवाएं हैं जिसमें मुलायम सिंह के प्रति आभार जताया गया है. वहीं सपा के वरिष्ठ नेता और यूपी की पूर्व सरकार में मंत्री रहे आजम खां ने मुलायम सिंह के बयान पर दुख जताया है. समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार आजम खां ने कहा, ‘बहुत दुख हुआ यह सुनकर. यह बयान उनके (मुलायम के) मुंह में डाला गया है. यह बयान मुलायम जी का नहीं है, यह बयान नेताजी से दिलवाया गया है.’

इसके पहले जब बिहार विधानसभा के चुनावों में लालू और नीतीश ने पिछड़े वर्गों का मोर्चा बना लिया था और लालू यादव ने पटना के गाँधी मैदान में इस मोर्चे की ताक़त दिखाने के लिए रैला बुलाया था, तब अखिलेश यादव ने जोश दिखाते हुए अपने चाचा शिवपाल को उस रैले में भाषण देने के लिए भेज दिया था। लेकिन रैले के बाद शिवपाल यादव के पटना हवाई अड्डे से उड़कर लखनऊ हवाई अड्डे पर पहुँचने से पहले ही रामगोपाल यादव का दिल्ली से बयान जारी हुआ कि बिहार के पिछड़े मोर्चे में समाजवादी पार्टी शामिल नहीं होगी। इसके ठीक पहले लालू यादव परिवार से नेता जी के परिवार के एक वैवाहिक समारोह में मोदी जी ने खु़द मौज़ूद रहके काफ़ी समय बिताया था। राजनीति के शुरुआती दिनों में नेता जी चौधरी चरण सिंह के साथ थे, फिर वह चौधरी देवीलाल और वीपी सिंह के साथ चले गए और उनके साथ भी ज़्यादा नहीं रुक सके। चंद्रशेखर ने जब विद्रोह किया तो वीपी सिंह को छोड़कर उनका हाथ पकड़ लिया। 2008 में वाम मोर्चे के साथ रहते हुए भी परमाणु समझौते पर आख़िरी वक़्त में कांग्रेस के साथ चले गए और वाम मोर्चे के नेतृत्व वाला पीपुल्स फ़्रंट हैरान रह गया। 
पीपुल्स फ़्रंट का हिस्सा रहते हुए भी राष्ट्रपति चुनाव में उन्होंने एनडीए का साथ दिया और कैप्टन लक्ष्मी सहगल को अकेले छोड़ते हुए एपीजे अब्दुल कलाम के साथ चले गए। राष्ट्रपति के अगले चुनाव में पहले नेता जी ने प्रणब मुखर्जी का विरोध किया और बाद में ममता बनर्जी के साथ साझा प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर कलाम, मनमोहन सिंह या सोमनाथ चटर्जी में से किसी एक को प्रत्याशी बनाने का प्रस्ताव रखा। लेकिन प्रेस कॉन्फ़्रेंस के बाद सोनिया गाँधी से मुलाक़ात की और फिर पलटी मार ली और प्रणब मुखर्जी के समर्थन में आ गए। इसी तरह 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी को रोकने के लिए राजद-जदयू-कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाया। इस महागठबंधन के नेता बने और फिर इससे भी पीछे हट गए।
नेता जी ने बहुत ही कठिनाइयों से और बहुत अपमानजनक चुनौतियों का सामना करके अपना राजनीतिक और आर्थिक साम्राज्य बनाया है। जब वह अखिलेश यादव के पक्ष में पावर ट्रांसफ़र कर रहे थे तब भी अटकलबाज़ समझ नहीं पाए थे कि वे शिवपाल यादव को कैसे हैंडल करेंगे? 

आज भी कोई समझ नहीं पा रहा है कि कैसे एक ही समय में अखिलेश की समाजवादी पार्टी की जानी दुश्मन रही मायावती की पार्टी से सपा का समझौता हो रहा है और शिवपाल की पार्टी अमित शाह और मोदी जी की आँखों में आशा की किरण जगाए हुए है। 
नेता जी से ज़्यादा इस असलियत को कौन जानता है, जो ख़ुद इस राज्य के 3 बार मुख्यमंत्री रहे हैं और चौथी बार अपने बेटे को पूरे 5 साल के लिए मुख्यमंत्री बनवाकर राजनीतिक वारिसाना ट्रांसफ़र करने में सफल रहे हैं। नेताजी सब समझते हैं और हम ही नेता जी को नहीं समझते!

नेता जी ने फिर चंद्रशेखर को भी गच्चा दे दिया और राजीव गाँधी के सरकार से समर्थन वापस लेने पर उनके साथ चले गए। इसके बाद नेता जी ने उत्तर प्रदेश में वामपंथी पार्टियों के साथ गठबंधन किया और मित्रसेन यादव समेत कई नेताओं समेत पूरी पार्टी (सीपीआई) को ही लगभग ख़त्म कर दिया। नेता जी यहीं नहीं रुके, इसके बाद उन्होंने बसपा से गठबंधन किया और एक बार फिर मुख्यमंत्री बने। पर 2 जून 1993, गेस्ट हाउस कांड में मायावती के साथ उन्होंने जो किया वह अब इतिहास बन चुका है। 1999 में नेता जी ने सोनिया गाँधी का समर्थन किया और ऐन मौक़े पर उनका भी साथ छोड़ दिया। 

यहां तक कि खुद मुलायम सिंह यादव की पार्टी समाजवादी पार्टी और उस पार्टी के मुखिया उनके बेटे अखिलेश यादव की तरफ से मोदी को हटाने की मुहिम शुरू की गई है, अपने धुर विरोधियों से गठबंधन तक किया जा रहा है, लेकिन, अखिलेश के पिता मुलायम तो मोदी की धुन में मग्न हैं.

आखिर, मुलायम सिंह यादव की तरफ से इस तरह मोदी के लिए शुभकामना देने का क्या मतलब है. क्या मुलायम सिंह मोदी के काम से खुश हैं या फिर अपने बेटे अखिलेश को लेकर उनके मन में कोई नाराजगी है जो इस तरह बाहर निकल रही है.

दरअसल, मुलायम सिंह यादव अखिलेश यादव के उस फैसले से खुश नहीं हैं जिसके तहत अखिलेश ने अपनी धुर-विरोधी मायावती के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया है. हमेशा से बीएसपी के खिलाफ मोर्चा खोले मुलायम को इस बात का एहसास रहा है कि गठबंधन के चलते उनकी अपनी पार्टी का ही जनाधार यूपी में सिमट जाएगा. यही वजह रही कि दो साल पहले विधानसभा चुनाव के वक्त भी उनहोंने एसपी के साथ कांग्रेस के गठबंधन को लेकर अपनी खुशी नहीं जाहिर की थी.

लेकिन, अब दौर बदल गया है. अब पार्टी की कमान अखिलेश के हाथ में है और राजनीति के माहिर खिलाड़ी मुलायम पार्टी में भी हाशिए पर हैं. उनके भाई शिवपाल सिंह यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनाकर अखिलेश यादव को चुनौती देने का फैसला कर लिया है. लेकिन, मुलायम अपनी धुन में मग्न हैं उन्हें तो बस मोदी में ही वो सब दिख रहा है जो एक अच्छे प्रधानमंत्री बनने के लिए होता है.

नेता जी मुलायम सिंह यादव की यह बात मोदी विरोधियों को नागवार गुजर रही है. उनके अपने लोगों को भी दुखी कर गई है. पुराने साथी आजम खान ने उनके बयान पर कहा है कि उनके बयान से काफी दुख हुआ, लेकिन, यह बयान उनसे दिलवाया गया है. आजम खान का दर्द दिखा रहा है कि जिस नेता जी ने हमेशा बीजेपी के खिलाफ लड़ाई लड़ी, अब उसी बीजेपी को फिर से सत्ता में वापसी का आशीर्वाद दे रहे है तो फिर उनके भविष्य का क्या होगा.

खलबली यूपी के अलावा बिहार में भी मची है, जहां पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने मुलायम सिंह के बयान पर कहा कि उनकी उम्र हो गई है याद नहीं रहता कब क्या बोल रहे हैं. आजम खान और राबड़ी देवी के बयान बता रहे हैं कि नेता जी के चुनाव से ठीक पहले इस दांव के आगे सब सोंचने पर मजबूर हो गए हैं कि आखिर इस दांव का मतलब क्या है. क्योंकि राजनीति में जो दिखता है, वो होता नहीं है और जो होता है वो दिखता नहीं है. वैसे भी बात यह मुलायम सिंह के मुख से निकली है जो कब क्या बोलते हैं और कब क्या करते हैं इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल होता है. एक सधे हुए पहलवान की तरह उनकी तरफ से आखिर में वो दांव चला जाता है जिसके सामने विरोधी चित हो जाते हैं.

2017 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले परिवार और पार्टी के भीतर वर्चस्व और उत्तराधिकार की लड़ाई में फंसे मुलायम सिंह यादव बेटे अखिलेश यादव को डांटते रहे, लेकिन, भाई शिवपाल के साथ खड़े दिख रहे मुलायम का दांव ऐसा रहा कि पार्टी पर पूरी तरह से बेटे अखिलेश यादव का ही कब्जा हो गया.

2008 में अमेरिका के साथ जब यूपीए-1 की सरकार में परमाणु डील के मुद्दे पर लेफ्ट ने समर्थन वापस लिया तो वो मुलायम सिंह यादव ही थे जो उस वक्त सरकार के संकट मोचक बनकर उभरे थे. कभी हां, कभी ना करते-करते मुलायम सिंह यादव ने आखिर में पत्ता खोला और कांग्रेस के साथ खड़े होकर सरकार बचा ली. मुलायम के इस दांव को देखकर सब चकित थे.

लेकिन, यही मुलायम सिंह हैं जिन्होंने 1999 में कांग्रेस की सरकार नहीं बनने दी थी. उस वक्त जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार एक वोट से संसद में हार गई थी, तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की तरफ से कोशिश हुई थी, लेकिन, मुलायम सिंह ने उस वक्त कांग्रेस को समर्थन नहीं दिया था. उस वक्त तर्क था,किसी विदेशी महिला को पीएम पद पर समर्थन नहीं दे सकेंगे.

यह मुलायम का सियासी दांव ही था जो 1999 में कांग्रेस से दूर ले गया लेकिन, 2008 में कांग्रेस के करीब ला दिया.

कांग्रेस विरोध की राजनीति करने वाले मुलायम और भी कई मौके पर कांग्रेस के साथ खड़े रहे हैं. रातों-रात अपना स्टैंड बदलने वाले और आखिरी वक्त तक अपना पत्ता संभाल कर रखने वाले मुलायम सिंह की बाजीगरी 2012 में भी देखने को मिली थी. राष्ट्रपति चुनाव को लेकर कांग्रेस की तरफ से प्रणव मुखर्जी का नाम आगे चल रहा था.लेकिन, उस वक्त कांग्रेस पर दबाव बनाने के लिए मुलायम सिंह ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ मिलकर एक प्रेशर ग्रूप बनाने की कोशिश की थी.

उस वक्त मुलायम सिंह यादव ने ममता बनर्जी के साथ मिलकर राष्ट्रपति पद के लिए संयुक्त उम्मीदवार की बात की थी. ममता बनर्जी राष्ट्रपति पद के लिए प्रणव मुखर्जी के नाम पर राजी नहीं थी, लिहाज मुलायम और ममता ने बैठक कर सोमनाथ चटर्जी, मनमोहन सिंह और ए पी जे अब्दुल कलाम के नाम पर चर्चा की थी. लेकिन, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने के बाद मुलायम अचानक पल्टी मार गए और फिर कांग्रेस की तरफ से उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी के नाम का समर्थन कर दिया.

ऐसे में मुलायम सिंह यादव के बयान को कितनी गंभीरता से लिया जाना चाहिए यह लाख टके का सवाल है. हां एक बात जरूर है कि इस वक्त बूढ़े हो चुके मुलायम सिंह यादव की अपनी पार्टी और परिवार के भीतर वो धमक नहीं रह गई है, जिसके दम पर अब वो पल्टी मार कर बाजी पलटने की स्थिति में होंगे. लेकिन, उनके बयान ने एसपी के समर्थकों में भ्रम जरूर पैदा कर दिया है.

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