रमणिक और रहस्यमय स्थान — नागटिब्बा TEHRI

नैनबाग :प्रसिद्ध पर्यटक स्थल नागटिब्बा ;;; उत्‍तराखण्‍ड में अनेक प्रसिध्द तीर्थ स्थल एवम सुन्दतम स्थान है। जहां भ्रमण कर मनुष्य स्वयं को भूलकर परमसत्ता का आभास कर आनन्द की प्राप्ति करता है

 नागटिब्बा—–; हिमालयायूके न्यूज पोर्टल  के लिए प्रमोद उनियाल- चम्‍बा  

यह जगह समुद्र तल से 3040 मीटर की ऊंचाई पर मसुरी से 70 किमी दूर यमनोत्री मार्ग से होते हुये नैनबाग से कुछ दूर स्थित है। यहां से आप हिमालय की खूबसूरत वादियों के नजारों का लुफ्त उठा सकते हैं। इसके अतिरिक्‍त यहां से देहरादून की घाटियों का नजारा भी देखा जा सकता है। नगतिबा ट्रैर्क्‍स और पर्वतारोहियों के लिए बिल्कुल सही जगह है। इस स्थान की प्राकृतिक सुंदरता यहां पर्यटकों को अपनी ओर अधिक आकर्षित करती है। नगतिबा पंतवारी से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान अधिक ऊंचाई पर होने के कारण यहां रहने की सुविधा नहीं है। इसलिए ट्रैर्क्‍स पंतवारी में कैम्प में रहा करते हैं। इसलिए आप जब इस जगह पर जाएं तो अपने साथ टैंट व अन्य सामान जरूर ले कर जाएं। यह स्थान नागराजा मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है  इस स्थान पर जाने के लिए एक और रास्ता , मसूरी से सुवाखौली से थत्यूड़ से बंगसील गाँव से देवलसारी है। देवलसारी एक बहुत ही रमणिक स्थान है। इसी स्थान से असली ट्रैक नागटिब्बा के लिए प्रारंभ होता है। यहाँ से नागटिब्बा 12 मील की दूरी पर है। रास्ते में अनेक प्रकार के रमणिक और रहस्यमय स्थान देखने को मिलते है। अधिकतर ट्रैकर्स इसी रास्ते से होकर ट्रैक पर जाते है।

जनपद टिहरी के प्रखंड जौनपुर के सुप्रसिद्ध पर्यटक व धार्मिक स्थल नागटिब्बा 7500 फिट की ऊंचाई पर पौराणिक नागदेवता का मंदिर है। इसके ठीक ऊपर 10 हजार फिट की उंचाई पर स्थित झंडी का टिब्बा है।   बर्फ जमी होने से भारी संख्या में देश-विदेश से पर्यटक व सैलानी यहां पहुंचतेे  हैं। यहां की मखमली घास व रंगबिरगें फूलों के साथ ही पर्यटक बर्फबारी का जमकर यहां लुत्फ लेेेेते है।   टैंट  पहलेेही  बुक हो जातेे 

 है।
नागटिब्बा में  पर्यटको को यहां सुंदर वातावरण व शांत वादियां उन्हें आकर्षित करती  है।  
पर्यटक स्थल नागटिब्बा में  8500 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह स्थल काफी रमणीक है और पर्यटन के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है।  

उत्‍तराखण्‍ड में अनेक प्रसिध्द तीर्थ स्थल एवम सुन्दतम स्थान है। जहां भ्रमण कर मनुष्य स्वयं को भूलकर परमसत्ता का आभास कर आनन्द की प्राप्ति करता है। केदारखंड का गढ़वाल हिमालय तो साक्षात देवात्मा है, जहां से प्रसिध्द तीर्थस्थल बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री के अलावा एक और परमपावन धाम है बूढ़ा केदारनाथ धाम जिसका पुराणो में अत्यधिक मह्त्व बताया गया है। इन चारों पवित्र धामॊं के मध्य वृद्धकेदारेश्वर धाम की यात्रा आवश्यक मानी गई है, फलत: प्राचीन समय से तीर्थाटन पर निकले यात्री श्री बूढ़ा केदारनाथ के दर्शन अवश्य करते रहे हैं। श्रीबूढ़ा केदारनाथ के दर्शन से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। यह भूमि बालखिल्या पर्वत और वारणावत पर्वत की परिधि में स्थित सिद्धकूट, धर्मकूट, यक्षकूट और अप्सरागिरी पर्वत श्रेणियों की गोद में भव्य बालगंगा और धर्मगंगा के संगम पर स्थित है। प्राचीन समय में यह स्थल पांच नदियों क्रमश: बालगंगा, धर्मगंगा, शिवगंगा, मेनकागंगा व मट्टानगंगा के संगम पर था। सिद्धकूट पर्वत पर सिद्धपीठ ज्वालामुखी का भव्य मन्दिर है। धर्मकूट पर महासरताल एवं उत्तर में सहस्रताल एवं कुशकल्याणी, क्यारखी बुग्याल है। यक्षकूट पर्वत पर यक्ष और किन्नरों की उपस्थिति का प्रतीक मंज्याडताल व जरालताल स्थित है। दक्षिण में भृगुपर्वत एवं उनकी पत्नी मेनका अप्सरा की तपोभूमि अप्सरागिरी श्रृंखला है, जिनके नाम से मेड गांव व मेंडक नदी का अपभ्रंस रूप में विध्यामान है।

स्कन्द पुराण के केदारखंड में सोमेश्वर महादेव के रूप में वर्णित भगवान बूढ़ा केदार के बारे में मान्यता है कि गोत्रहत्या के पाप से मुक्ति पाने हेतु पांडव इसी भूमि से स्वर्गारोहण हेतु हिमालय की ओर गये तो भगवान शंकर के दर्शन बूढॆ ब्राहमण के रूप में बालगंगा-धर्मगंगा के संगम पर यहीं हुऐ और दर्शन देकर भगवान शंकर शिला रूप में अन्तर्धान हो गये। वृद्ध ब्राहमण के रूप में दर्शन देने पर सदाशिव भोलेनाथ बृध्दकेदारेश्वर के या बूढ़ाकेदारनाथ कहलाए। श्रीबूढ़ाकेदारनाथ मन्दिर के गर्भगृह में विशाकल लिंगाकार फैलाव वाले पाषाण पर भगवान शंकर की मूर्ती, लिंग, श्रीगणेश जी एवं पांचो पांडवों सहित द्रोपती के प्राचीन चित्र उकेरे हुए हैं। बगल में भू शक्ति, आकाश शक्ति व पाताल शक्ति के रूप में विशाल त्रिशूल विराजमान है। साथ ही कैलापीर देवता का स्थान एक लिंगाकार प्रस्तर के रूप में है। बगल वाली कोठरी पर आदि शक्ति महामाया दुर्गाजी की पाषाण मूर्ती विराजमान है।

प्राचीन मान्यताओ के अनुसार बूढ़ाकेदार नाथ मंदिर के पुजारी गुरु गोरक्ष् नाथ सम्प्रदाय के नाथ रावल लोग होते है । यहीं पर नाथ सम्प्रदाय की पीर गद्दी आज भी बिद्यमान है जहा पर नवरात्री में नाथ जाती का सिद्ध पीर बैठता है, और जिसके शरीर पर हरियाली पैदा की जाती है। बाह्य कमरे में भगवान गरुड की मूर्ती तथा बाहर मैदान में दर्शनी नाथ अर्थात पुजारियो के समाधिस्थ हो जाने पर स्वर्गीय नाथ पुजारियों को समाधियां दी जाती है। जिसमे कई सो साल पुरानी सत्ती समाधी और कई पुजारियो की समाधी आज भी मंदिर प्रांगण में बिद्यमान है।

केदारखंड में थाती गांव को मणिपुर की संग्या दी गयी है। जहां पर टिहरी नरेशों की आराध्य देवी राजराजेश्वरी प्राचीन मन्दिर व उत्तर में विशाल पीपल के वृक्छ के नीचॆ छोटा शिवालय है जहां माघ व श्रावण रुद्राभिषॆक होता है। जबकि आदिशक्ति व सिध्दपीठ मां राजराजेश्वरी एवं कैलापीर की पूजा व्यवस्था टिहरी नरेश द्वारा बसायॆ गयॆ सेमवाल जाति के लोग करते हैं।

कुछ पौराणिक मान्यताऒं एवं किन्ही अपरिहर्य कारणॊ से राजमानी एवं क्षेत्र का प्रसिध्द आराध्य देवता गुरु कैलापीर राजराजेश्वरी मंदिर में वास करता है। देवता (श्रीगुरुकैलापीर) को उठाने वाले सेमवाल जाति के ही लोग हैं जिन्हॆ निज्वाळा कहते है। थाती गांव में श्रीगुरुकैलापीर देवता के नाम से मार्गशीर्ष प्रतिपदा को बलिराज मेला लगता है और दीपावली मनाई जाती है। मार्गशीर्ष के इस दीपावली और मेले में देवता के दर्शन व भ्रमण हेतु दूर दूर से लोग थाती गांव में आते हैं। इस क्षेत्र के देश विदेश में रहने वाले प्रवासी अपने आराध्य के दर्शन हेतु वर्ष में इसी मौके की प्रतिक्छा करते है। 

बूढ़ाकेदार पवित्र तीर्थस्थल होने के साथ साथ एक सुरम्य स्थल भी है। गांव के दोनो ऒर से पवित्र जल धाऱायें बालगंगा व धर्मगंगा के रूप में प्रवाहित होती है। यह इलाका अपनी सुरम्यता के कारण पर्यटकॊं को अपनी ऒर आकर्षित करने की पूर्ण छमता रखता है। घनशाली से 30 कि0मी0 दूरी पर स्थित यह स्थल पर्यटकॊं को शांति एवं आनंद प्रदान करने में सक्षम है।

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