चार वर्ष पूरे – अच्छे दिन के वादे का क्या हुआ?

चार साल बनाम एक साल, असली चुनौती  

-ललित गर्ग –हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल 
नरेन्द्र मोदी सरकार के कार्यकाल के चार वर्ष पूरे होने पर इसका गहन आकलन होना स्वाभाविक है कि उम्मीदें कहां तक पूरी हुईं और अच्छे दिन के वादे का क्या हुआ? मोदी सरकार जिस प्रबल बहुमत से साथ सत्ता में आई थी उसके चलते उससे उम्मीदें भी बहुत बढ़ गई थीं। सच तो यह है कि खुद मोदी सरकार ने जनता की अपेक्षाओं को कहीं अधिक बढ़ा दिया था। लेकिन मोदी इन अपेक्षाओं पर खरे उतरे हैं और शेष रहा एक साल उनके लिये सबसे बड़ी चुनौती का है। 
  विरोधों एवं विवादों के बीच हमने देखा है कि नरेन्द्र मोदी का नया भारत निर्मित हो रहा है। उनके शासनकाल में यह संकेत बार-बार मिलता रहा है कि हम विकसित हो रहे हैं, हम दुनिया का नेतृत्व करने की पात्रता प्राप्त कर रहे हैं, हम आर्थिक महाशक्ति बन रहे हैं, दुनिया के बड़े राष्ट्र हमसे व्यापार करने को उत्सुक हंै, महानगरों की बढ़ती रौनक, गांवों का विकास, स्मार्ट सिटी, कस्बों, बाजारों का विस्तार अबाध गति से हो रहा है। भारत नई टेक्नोलॉजी का एक बड़ा उपभोक्ता एवं बाजार बनकर उभरा है-ये घटनाएं एवं संकेत शुभ हैं। आज भारतीय समाज आधुनिकता के दौर से गुजर रहा है। इन सब स्थितियों के बावजूद  चार साल के शासन का आकलन करते हुए हमें इन रोशनियों के बीच व्याप्त घनघोर अंधेरों पर नियंत्रण तो करना ही होगा तभी भारत को पूर्ण विकसित राष्ट्र बना सकेंगे।
नरेन्द्र मोदी का राष्ट्रीय यौद्धा का आक्रामक स्वरूप हमने अनेक बार देखा, हाल ही में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद ज्ञापन पर संसद में हुई चर्चा के दौरान उनका इस तरह का आक्रामक एवं जोशीला रूप देखा गया। पहली बार उनका संसद के पटल पर ऐसा संवेदनशील एवं जीवंत स्वरूप देखने को मिला, जिसमें उन्होंने विपक्ष विशेषतः कांग्रेस के आरोपों का तथ्यपरक जबाव दिया। शायद यह भारत के संसदीय इतिहास का पहला अवसर था जब कांग्रेस को न केवल नेहरु-गांधी परिवार को लेकर तीखे प्रहार झेलने पडे़ बल्कि कांग्रेस के़ शासन की विफलताओं के इतिहास से भी रू-ब-रू होना पड़ा। उसने जिस तरह की अलोकतांत्रिक स्थिति खड़ी की और इस स्थिति को भारतीय लोकतंत्र के लिये किसी भी कोण से उचित नहीं कहा जा सकता। 
नरेन्द्र मोदी दूरदर्शी एवं इन्द्रधनुषी बहुआयामी व्यक्तित्व हंै। इस बात को उन्होंने अपने चार साल के शासन में बार-बार दर्शाया है। कभी वे स्वतंत्रता दिवस के लालकिले के भाषण में स्कूलों में शोचालय की बात करते हंै तो कभी गांधी जयन्ती के अवसर पर स्वयं झाडू लेकर स्वच्छता अभियान का शुभारंभ करते हैं। कभी योग की तो कभी कसरत की। कभी विदेश की धरती पर हिन्दी में भाषण देकर राष्ट्रभाषा को गौरवान्वित करते हंै तो कभी “मेक इन इंडिया” का शंखनाद कर देश को न केवल शक्तिशाली बल्कि आत्म-निर्भर बनाने की ओर अग्रसर करते हैं। नई खोजों, दक्षता, कौशल विकास, बौद्धिक संपदा की रक्षा, रक्षा क्षेत्र में उत्पादन, श्रेष्ठ का निर्माण-ये और ऐसे अनेकों सपनों को आकार देकर सचमुच मोदीजी भारत को लम्बे दौर के बाद सार्थक अर्थ दे रहे हैं।
आज भी घने अंधेरे कायम है। इन घने अंधेरों के बीच अच्छे दिन की कल्पना करते हुए यह भी माना जाने लगा था कि जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा। चूंकि अपेक्षाओं की कोई सीमा नहीं होती और कई बार सक्षम सरकारों के लिए भी जन आकांक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरना मुश्किल हो जाता है इसलिए इस निष्कर्ष पर पहुंचना कठिन है कि भारत की जनता मोदी सरकार के चार साल के कार्यकाल पर कितनी उत्साहित है और कितनी नाउम्मीद? लेकिन इतना तो तय है ही कि अधूरी उम्मीदों और बेचैनी के भाव के बाद भी मोदी पर लोगों का भरोसा कायम दिख रहा है। यह भरोसा ही मोदी की सबसे बड़ी ताकत है। इस भरोसे की एक बड़ी वजह यह है कि मोदी ने कुछ कर दिखाया है, जैसे कि उच्च स्तर के भ्रष्टाचार पर सख्ती से लगाम लगाना और जन कल्याण की उज्ज्वला, जन-धन सरीखी योजनाओं को कामयाबी की मिसाल बनाना। चार वर्ष के शासन के बाद भी मोदी को जैसी लोकप्रियता हासिल है उसकी मिसाल आसानी से नहीं मिलती। मोदी सरकार के पास बतौर उपलब्धि ऐसा बहुत कुछ है जिसे वह जोर-शोर से रेखांकित कर सकती है, लेकिन काफी कुछ ऐसा भी है जो यह कसक पैदा करता है कि यह सरकार और भी बहुत कुछ कर सकती थी। यदि मोदी सरकार जो कुछ संभव था और उसकी पहुंच में भी दिख रहा था वह कर दिखाती तो शायद उसके प्रति जनता के भरोसे का वजन कुछ और ज्यादा होता।
 नरेन्द्र मोदी सरकार की कुछ उपलब्धियां सचमुच उल्लेखनीय हैं, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कई बुनियादी सुधार नहीं हो सके और जो हुए उनमें से कुछ अपेक्षित परिणाम नहीं दे सके। इसके अतिरिक्त सरकार के कुछ साहसिक फैसले नाकामी की चपेट में आ गए, जैसे कि नोटबंदी। इसी तरह कई योजनाएं जमीन पर नहीं उतर सकीं। दरअसल इसी कारण विपक्ष हमलावर है और वह मोदी का मुकाबला करने के लिए जोर-आजमाइश करता दिख रहा है। मुश्किल यह है कि उसके पास एक भी ऐसा नेता नहीं जो साख और लोकप्रियता के मामले में मोदी के आस-पास नजर आता हो। वैकल्पिक एजेंडे और कारगर विचार के अभाव से जूझ रहा विपक्ष एकजुट तो हो सकता है, लेकिन वह मजबूत विकल्प नहीं बन सकता। 
चार साल की सफलता और असफलता का आकलन करने से निकले निष्कर्ष पर चर्चा करने से ज्यादा वजनदार बात यह है कि मोदी केवल आजाद भारत को नया भारत का स्वरूप देने वाले महानायक ही नहीं है, वे केवल राजनीतिक भी नहीं है, वे सफल प्रधानमंत्री भी नहीं है, बल्कि इन सबसे पहले वे एक मानव हैं, सम्पूर्ण मानव। उच्च स्तर के मानव। राम के बाद उस शृंखला में गांधी, कैनेडी, नेहरू, मण्डेला,….। गिनती के लोगोें ने इस धरती पर मानवता का दर्शन कराया। जिन्होंने देश की दरिद्रता और दरिद्रों के आंसू पोंछें हैं। मोदी तो ऐसे शासक हैं जो सुकरात की तरह अपने देश की नयी पीढ़ी में नित-नये विचार रौप रहे हैं। यदि नयी प्रतिभाओं एवं नयी पीढ़ी को संभावनाओं भरे अवसर मिले तो देश का कायाकल्प हो सकता है।
राजनीति में आदर्श की स्थापना की दृष्टि से नरेन्द्र मोदी की अपनी तूफानी सक्रियता और चतुराई से बनाई गई रणनीति की काफी भूमिका है। उनका नेतृत्व यशस्वी है और यही कारण है कि देश की जनता उनकी तरफ आशाभरी निगाहों से देख रही है। उनके दर्शन, उनके व्यक्तित्व, उनकी बढ़ती ख्याति व उनकी कार्य-पद्धतियांे पर भले ही विपक्षी दल कीचड़ उछाल रहे हैं, अमर्यादित भाषा का उपयोग कर रहे हैं और उन्हें गालियां देकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। लेकिन इससे मोदी का कद और उनके शासन की उपलब्धियां कम नहीं हो जाती।
स्वतंत्रता एवं सहअस्तित्व- मोदी की विदेश नीति इतनी स्पष्ट है कि आज दुनिया में भारत का परचम फहरा रही है। उनकी दृष्टि में कोरे हिन्दू की बात नहीं होती, ईसाई, मुसलमान, सिख की बात भी नहीं होती है, उनकी नजर में मुल्क की एकता सर्वाेपरि है। उनके निर्णय उनके इतिहास, भूगोल, संस्कृति की पूर्ण जानकारी के आधार पर होते है। 
आज जब संसार को गुटों में विभाजित करने वाली महान् शक्तियां भी गुट आधारित विदेश नीति का रास्ता छोड़ रही हैं, तब लगता है कि सर्वत्र मोदी की मौलिक दृष्टि को सहज स्वीकृति मिल रही है। मोदी का समाजवाद और धर्म निरपेक्षता में अगाध विश्वास है। धर्म निरपेक्षता की असली पहचान मोदी करवा रहे हैं। उन्होंने कट्टरता का विरोध किया और वे श्रेष्ठ नैतिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध हैं। उनकी देशभक्ति, अटूट साहस, नये भारत का संकल्प, धैर्य एवं आदर्शों के प्रति प्रामाणिकता के लिए हमारे हृदयों में परम आदर के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।
जितनी सर्वकश सत्ता मोदी के हाथों में है, उतनी कुछ तानाशाहों को छोड़कर दुनिया में किसी और के हाथों में नहीं है, यह जन समुदाय का उनमें अटूट विश्वास का प्रतीक है। भारत की जिन खूबियों या कमियों की चर्चा होती है, उसकी जडे़ं मोदी तक जाती हैं। मोदी ने भारत की कई खूबियां, जो नष्ट हो गई थी, उनको नये रूप में उभारा है। हम महसूस कर रहे हैं कि निराशाओं के बीच आशाओं के दीप जलने लगे हैं, यह शुभ संकेत हैं। एक नई सभ्यता और एक नई संस्कृति करवट ले रही है। नये राजनीतिक मूल्यों, नये विचारों, नये इंसानी रिश्तों, नये सामाजिक संगठनों, नये रीति-रिवाजों और नयी जिंदगी की हवायें लिए हुए आजाद मुल्क की एक ऐसी गाथा लिखी जा रही है, जिसमें राष्ट्रीय चरित्र बनने लगा है, राष्ट्र सशक्त होने लगा है, न केवल भीतरी परिवेश में बल्कि दुनिया की नजरों में भारत अपनी एक स्वतंत्र हस्ती और पहचान लेकर उपस्थित है। चीन की दादागिरी और पाकिस्तान की दकियानूसी हरकतों को मुंहतोड़ जबाव पहली बार मिला है। चीन ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि सीमा विवाद को लेकर डोकलाम में उसे भारत के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा। यह सब प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व का प्रभाव है। उन्होंने लोगों में उम्मीद जगाई, देश के युवाओं के लिए वह आशा की किरण हैं। इसका कारण यही है कि लोग ताकतवर और तुरन्त फैसले लेने वाले नेता पर भरोसा करते हैं ऐसे कद्दावर नेता की जरूरत लम्बे समय से थी, जिसकी पूर्ति होना और जिसे पाकर राष्ट्र केवल व्यवस्था पक्ष से ही नहीं, सिद्धांत पक्ष भी सशक्त हुआ है। किसी भी राष्ट्र की ऊंचाई वहां की इमारतों की ऊंचाई से नहीं मापी जाती बल्कि वहां के राष्ट्रनायक के चरित्र से मापी जाती है। उनके काम करने के तरीके से मापी जाती है। चार साल बनाम एक साल यानी अब ऐसा कुछ विलक्षण होना चाहिए जो आरोपों की आंधी को भी निस्तेज कर दें।
प्रेषकः
-60, मौसम विहार, तीसरा माला,
डीएवी स्कूल के पास, दिल्ली-

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